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बेनकाब होने चाहिए भारत की बर्बादी चाहने वाले

    • गौरव चितरंजन सावंत
    • Updated: 18 फरवरी, 2016 09:12 PM
  • 18 फरवरी, 2016 09:12 PM
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क्या जमात-उद-दावा भारत में कुछ गड़बड़ी फैलाने कि फिराक में है? कम से कम हमारे गृह मंत्री और दिल्ली पुलिस कमिश्नर तो ऐसा मानते ही हैं. पटियाला हाउस कोर्ट पर मारपीट के गुनाहगारों को सजा दें लेकिन देशद्रोहियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

देश का प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इन दिनों सुर्खियों में है. इसलिए नहीं कि वहां कोई एडवांस रिसर्च हुई है या फिर शिक्षा जगत में कोई बड़ा काम हुआ है, बल्कि इसलिए कि परिसर में कुछ लोग कैमरे में यह नारा लगाते हुए कैद हुए हैं-

भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी...

कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी...

अफजल के अरमानों को मंजिल तक ले जाएंगे...

बंदूक के बल पर... आजादी...

अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं....

कन्हैया कुमार, जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष को देशद्रोह के आरोप पर गिरफ्तार कर लिया गया है. अब कोर्ट यह फैसला करेगी कि क्या पुलिस के पास इन आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. इसके अलावा जेएनयू की इस तस्वीर ने कई परेशान करने वाले सवालों को जन्म दे दिया है.

जेएनयू में 9 फरवरी को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजकों में एक रिसर्च स्टूडेंट उमर खालिद भी था. दावा किया जा रहा है कि उमर खालिद डेमोक्रैटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) का सदस्य है और उसने बयान दिया है ‘मैं कश्मीर पर भारत के कब्जे के खिलाफ हूं. मैं यह जाहिर करना चाहता हूं कि मैं कश्मीर से नहीं हूं लेकिन मेरा यह विश्वास है कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है उसे भारत का कब्जा ही कहा जाएगा.’ लिहाजा, कौन हैं ये लोग जो देश की राजधानी में बैठकर भारत की बर्बादी का नारा बुलंद कर रहे है. और कौन हैं वो लोग जो विश्वविद्यालय के युवा स्टूडेंट्स को अपने माता-पिता के अरमानों को भूलकर अफजल के अरमान के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

यहां दो मुद्दे हैं. कन्हैया कुमार कहता है कि उसकी लड़ाई गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ है. विरोध कर रहे एक दूसरे स्टूडेंट का कहना है कि उसका संघर्ष महिलाओं और पिछड़ी जातियों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के विरोध में है. यह लड़ाई सांप्रदायिक ताकतों और...

देश का प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इन दिनों सुर्खियों में है. इसलिए नहीं कि वहां कोई एडवांस रिसर्च हुई है या फिर शिक्षा जगत में कोई बड़ा काम हुआ है, बल्कि इसलिए कि परिसर में कुछ लोग कैमरे में यह नारा लगाते हुए कैद हुए हैं-

भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी...

कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी...

अफजल के अरमानों को मंजिल तक ले जाएंगे...

बंदूक के बल पर... आजादी...

अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं....

कन्हैया कुमार, जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष को देशद्रोह के आरोप पर गिरफ्तार कर लिया गया है. अब कोर्ट यह फैसला करेगी कि क्या पुलिस के पास इन आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. इसके अलावा जेएनयू की इस तस्वीर ने कई परेशान करने वाले सवालों को जन्म दे दिया है.

जेएनयू में 9 फरवरी को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजकों में एक रिसर्च स्टूडेंट उमर खालिद भी था. दावा किया जा रहा है कि उमर खालिद डेमोक्रैटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) का सदस्य है और उसने बयान दिया है ‘मैं कश्मीर पर भारत के कब्जे के खिलाफ हूं. मैं यह जाहिर करना चाहता हूं कि मैं कश्मीर से नहीं हूं लेकिन मेरा यह विश्वास है कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है उसे भारत का कब्जा ही कहा जाएगा.’ लिहाजा, कौन हैं ये लोग जो देश की राजधानी में बैठकर भारत की बर्बादी का नारा बुलंद कर रहे है. और कौन हैं वो लोग जो विश्वविद्यालय के युवा स्टूडेंट्स को अपने माता-पिता के अरमानों को भूलकर अफजल के अरमान के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

यहां दो मुद्दे हैं. कन्हैया कुमार कहता है कि उसकी लड़ाई गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ है. विरोध कर रहे एक दूसरे स्टूडेंट का कहना है कि उसका संघर्ष महिलाओं और पिछड़ी जातियों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के विरोध में है. यह लड़ाई सांप्रदायिक ताकतों और दंगों के खिलाफ है. यह एक नेक काम है और इसके लिए छात्रों का सशक्तिकरण होना चाहिए.

मेरा सवाल यह है कि इस नेक काम को कैसे भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी के नारे के साथ पूरा किया जाएगा? और साथ ही क्या यह कहना कि भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी हमारे अभिव्यक्ति के अधिकार के दायरे में है. जब हम टैक्स का भुगतान करते हैं और वह टैक्स उस शिक्षा को सब्सिडी देता है जिसमें अफजल के अरमानों को मंजिल तक ले जाएंगे का नारा लगाने वाले लोग भी शामिल हैं- तो क्या बतौर एक टैक्सपेयर मुझे सवाल पूछने का अधिकार है कि नहीं?

इसके बावजूद, पटियाला हाउस कोर्ट में कन्हैया कुमार, उसके समर्थकों और पत्रकारों पर हुआ हमला निंदनीय है.

पुलिय को उन सभी लोगों की शिनाख्त करनी चाहिए जो इन हमलों में शामिल थे और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. पुलिस को यह भी समझाने की जरूरत है कि कैसे इस तरह का हमला दो बार संभव हुआ. जो लोग उमर खालिद जैसे लोगों का समर्थन कर रहे हैं उन्हें मौका मिल रहा है कि पूरे मामले को देश विरोधी नारों से हटाकर पटियाला हाउस कोर्ट की घटना की तरफ मोड़ दिया जाए. सभी लोगों के वकीलों को यह जानने की जरूरत है कि उन्हें जेएनयू और जादवपुर युनिवर्सिटी में देश विरोधी सुर अलापने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना है या फिर उन सभी 18 विश्वविद्यालयों में जहां गड़बड़ी फैलने की सूचना हमारा खुफिया विभाग दे रहा है.

क्या पुलिस ने किसी जल्दबाजी में कदम उठाया? हाफिज सईद के तथाकथित ट्वीट, जिसे दिल्ली पुलिस ने जारी किया, जिसकी ट्विटर और टेलिवीजन पर रिपोर्टिंग मैंने की थी, जरूर सवाल उठाता है. किस आधार पर दिल्ली पुलिस यह कह सकती है कि भारत विरोधी ताकतें, जिसमें हाफिज सईद भी शामिल है, देश के किसी युनिवर्सिटी कैम्पस में हुई घटना का फायदा उठा सकते हैं? यह एक सच्चाई है कि जमात-उद-दावा पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर कई तरह का प्रचार कर रहा है.

क्या ऐसा भी कुछ है जो इशारा कर रहा है कि वह संस्था भारत में भी कुछ गड़बड़ करने की कोशिश में हैं. दोनों, दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी और केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह तो कम से कम ऐसा ही मानते हैं. बहरहाल, हम सभी को पत्रकारों, कन्हैया कुमार और उसके समर्थकों पर हमले की निंदा करने के साथ-साथ उन सभी के खिलाफ कड़ी कारवाई की मांग करनी चाहिए जो जेएनयू और अन्य विश्वविद्यालयों में भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी के नारे लगा रहे हैं.

सीपीआई छात्र नेता पर बीजेपी विधायक ओपी शर्मा के हमले को जायज नहीं ठहराया जा सकता है और विधायक के खिलाफ कानूनी कारवाई करने की जरूरत है.

देशद्रोह पर फैसला कोर्ट करेगी- लेकिन जो लोग देश की बर्बादी की आवाज बुलंद कर रहे हैं, मेरे विचार से उन्हें टैक्स पेयर के पैसे पर चल रहे विश्वविद्यालयों, संस्थानों और नौकरियों में जगह नहीं मिलनी चाहिए. मेरे टैक्स देश की तरक्की के लिए हैं न कि भारत की बर्बादी के लिए. मुझे जवाब उन लोगों को भी देना है जो राष्ट्रवाद को गाली बनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. राष्ट्रवाद एक ऐसा भाव है जिसका सभी भारतीयों में होना जरूरी है. देश के लिए गौरव महसूस करना अच्छी बात है और इसके लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है.

जो लोग पत्रकारों, कन्हैया कुमार और उसके समर्थकों की पिटाई कर रहे हैं वह उन्हीं लोगों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं जो भारत के बर्बादी की जंग रहेगी का नारा लगा रहे हैं. गुंडावाद राष्ट्रवाद नहीं है. इन गुंडों को बेनकाब करने की जरूरत है. उन्हें जेल भेज दें. लेकिन उन्हें भी जेल में डालें जो भारत की बर्बादी का नारा बुलंद कर रहे हैं. किसी चिंगारी को नजरअंदाज करने से पूरे घर में आग लगने का खतरा रहता है. जब तक जेएनयू की स्थिति को प्रभावशाली ढंग से दुरुस्त नहीं किया जाता यह विवाद किसी दूसरे विश्वविद्यालय तक पहुंचकर देश को नुकसान पहुंचा सकता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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