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यूपी के मुसलमान क्या सपा का विकल्‍प ढूंढ रहे हैं ?

    • कुमार अभिषेक
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2016 01:41 PM
  • 26 अक्टूबर, 2016 01:41 PM
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तीन तलाक के खात्मे की गंभीरता और सपा की कलह से परेशान उत्तरप्रदेश के मुसलमान के लिए मायावती बन सकती पहली पसंद.

समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में मुसलमानों की “अपनी पार्टी” मानी जाती रही है. यह पार्टी सूबे में मुसलमानों का नैचुरल चॉएस रहा है. मुसलमानों ने बीते ढाई दशकों में थोक के भाव वोट देकर इस पार्टी को प्रदेश और केन्द्र की सत्ता तक कई बार पहुंचाया है. आज पार्टी के अंदर मची पारिवारिक कलह ने मुसलमानों के लिए सवाल खड़े कर दिए हैं. लिहाजा इस परिवारिक कलह पर जिस पूरे समुदाय की पैनी नजर बनी हुई है. इस बीच राज्य की सत्ता पर कई बार काबिज हो चुकी मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी स्थिति को अपने पक्ष में करने की कोई कसर नहीं छोड़ रही है. मुस्लिम समुदाय दो-राहे पर खड़ा है. सत्ता के गरियारों में खुसफुसाहट तेज है कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह बहुजन समाज की सरकार बनवाने का फैसला कर सकता है.

मुसलमान आज मायावती के लिए सबसे अहम इसलिए भी है कि मायावती के लिए सत्ता की चाबी भी आज सिर्फ इसी समुदाय के पास है. ये बात मायावती, बीजेपी और मुसलमान तीनों जानते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश की 22 फीसदी दलित आबादी और 18 फीसदी मुसलमानों का ब़डा हिस्सा अगर एक साथ आ जाए तो फिर बीएसपी को राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी और की जरूरत नहीं पड़ेगी.

इसे भी पढ़ें: समाजवादी पार्टी में ग्रह शांति के लिए मुलायम को करने होंगे ये उपाय

 कहीं विपक्ष असफलताओं को गिनाने में हावी न हो जाए!

मौजूदा सरकार के कार्यकाल में मुजफ्फरनगर दंगा, कैराना पलायन, लव जेहाद के अलावा कई...

समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में मुसलमानों की “अपनी पार्टी” मानी जाती रही है. यह पार्टी सूबे में मुसलमानों का नैचुरल चॉएस रहा है. मुसलमानों ने बीते ढाई दशकों में थोक के भाव वोट देकर इस पार्टी को प्रदेश और केन्द्र की सत्ता तक कई बार पहुंचाया है. आज पार्टी के अंदर मची पारिवारिक कलह ने मुसलमानों के लिए सवाल खड़े कर दिए हैं. लिहाजा इस परिवारिक कलह पर जिस पूरे समुदाय की पैनी नजर बनी हुई है. इस बीच राज्य की सत्ता पर कई बार काबिज हो चुकी मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी स्थिति को अपने पक्ष में करने की कोई कसर नहीं छोड़ रही है. मुस्लिम समुदाय दो-राहे पर खड़ा है. सत्ता के गरियारों में खुसफुसाहट तेज है कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह बहुजन समाज की सरकार बनवाने का फैसला कर सकता है.

मुसलमान आज मायावती के लिए सबसे अहम इसलिए भी है कि मायावती के लिए सत्ता की चाबी भी आज सिर्फ इसी समुदाय के पास है. ये बात मायावती, बीजेपी और मुसलमान तीनों जानते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश की 22 फीसदी दलित आबादी और 18 फीसदी मुसलमानों का ब़डा हिस्सा अगर एक साथ आ जाए तो फिर बीएसपी को राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी और की जरूरत नहीं पड़ेगी.

इसे भी पढ़ें: समाजवादी पार्टी में ग्रह शांति के लिए मुलायम को करने होंगे ये उपाय

 कहीं विपक्ष असफलताओं को गिनाने में हावी न हो जाए!

मौजूदा सरकार के कार्यकाल में मुजफ्फरनगर दंगा, कैराना पलायन, लव जेहाद के अलावा कई ऐसे छोटे-मोटे सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी जिसने मुसलमानों को समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन देने पर सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा. मुसलमान जान-माल की हिफाजत के लिहाज से मायावती के शासन को बेहतर मानता था, लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ मुसलमानों के जज्बाती रिश्ते ने उसे फिर भी इस पार्टी के साथ उसे बांधे रखा था. मुलायम परिवार के हालिया कलह के बाद समाजवादी पार्टी पर मुसलमानो का भरोसा इसलिए भी टूटता दिख रहा है कि शायद ये पार्टी बीजेपी को टक्कर देने में पीछे रह जाए.

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यादव परिवार में उपजी कलह नें बीजेपी के माथे पर भी बल ला दिया है. बीजेपी ये जानती जरूर थी लेकिन मान नहीं रही थी कि उसका मुकाबला बीएसपी से हो सकता है. लेकिन मुलायम परिवार में उपजी कलह के बाद अब मुसलमान बीजेपी को रोकने के लिए हाथी की सवारी कर सकता है और ये उस बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है जो यूपी में सत्ता के दरवाजे पर दस्तक देती दिख रही है.

 एक बार फिर बीएसपी पटखनी देने के लिए तैयार है!

आजतक के पोल सर्वे में दिखाया गया कि किस तरह बीजेपी बहुमत के आंकड़े के नजदीक पंहुच रही है जबकि बीएसपी करीब 125 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर आएगी. लेकिन ये सर्वे तब का था जब परिवार में कलह ने कोहराम का रूप नहीं लिया था और लग रहा था कि समाजवादी पार्टी चुनावी रेस में सत्ता के लिए मजबूत दावेदार बनी रहेगी. लेकिन समाजवादी पार्टी के कलह ने राज्य के पूरे सियासी हालात को बदल दिया है. अब मुलायम परिवार का कोहराम मुसलमानों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर सकता है.

2012 में हुए विधानसभा चुनाव में मुसलमानों में बीएसपी के बजाए समाजवादी पार्टी को बंपर वोट दिया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों पर अपना दांव लगाया था लेकिन बीएसपी को उनकी तुलना में काफी कम वोट मिले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी मुसलमानों ने अपना वोट समाजवादी पार्टी को ही दिया था जिससे बीएसपी का सूपड़ा ही साफ हो गया था.

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इसबार बीजेपी के बढ़ रहे प्रभाव से मुस्लिम वोटरों ने उधेडबुन साफ तौर पर देखी जा रही थी. लेकिन जैसे ही समाजवादी पार्टी की कलह ने उसके चुनावी संभावनाओं को झकझोरना शुरू किया मुसलमानो का बड़ा वर्ग ये मानने लगा है कि अपना वोट बांटना एतिहासिक गलती साबित हो सकती है. हालांकि मुसलमानों के मिजाज में समाजवादी पार्टी उनकी पहली पसंद है लेकिन शायद वो फैसला जज्बात के बजाए दिमाग से करें औऱ अगर ये हुआ तो समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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