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Sachin Pilot के लिए राहुल गांधी ने कांग्रेस में सरप्राइज बचा रखा है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 16 जुलाई, 2020 08:57 PM
  • 16 जुलाई, 2020 08:57 PM
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को खामोश कर सचिन पायलट (Sachin Pilot) को मनाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का मन देख कर प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये टास्क खुद अपने हाथ में लिया है. सवाल तो पायलट के मन में भी होगा - मिलेगा क्या?

क्या सचिन पायलट (Sachin Pilot) को लेकर कांग्रेस में डैमेज कंट्रोल शुरू हो चुका है? अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के सब तहस नहस कर देने के बाद कांग्रेस की तरफ से हो रही कोशिशें तो ऐसे ही इशारे कर रही हैं. बताते हैं कि खुद राहुल गांधी इस मामले में खास दिलचस्पी ले रहे हैं और संकटमोचक प्रियंका गांधी भी क्राइसिस मैनेजमेंट में कूद पड़ी हैं. मगर, सवाल तो ये है कि अचानक हृदय परिवर्तन हुआ कैसे? NSI की मीटिंग में तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तो कह ही चुके थे कि जिसे जाना है वो जाएगा ही - और जाएगा तभी तो नये युवाओं के लिए रास्ता बनेगा.

अब खबरें आ रही हैं कि राहुल गांधी चाहते हैं कि सचिन पायलट को वापसी का पूरा मौका दिया जाये. लेकिन सवाल तो ये उठता है कि सचिन पायलट गये ही कहां हैं कि उनको वापसी का मौका दिये जाने की बात हो रही है. महत्वपूर्ण तो ये है कि जो कुछ भी हुआ अगर कांग्रेस नेतृत्व उसकी भरपाई करने का मन बना ही चुका है तो सचिन पायलट के लिए क्या बचा रखा है?

'घर वापसी' किस बात की?

सचिन पायलट को तीसरा मौका दिये जाने की चर्चा है. ये तीसरा मौका सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को मिले नोटिस के जवाब के रूप में है. जवाब देने की डेडलाइन 17 जुलाई बतायी गयी है. हालांकि, नोटिस के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया है, लेकिन वहां नयी तारीख मिल चुकी है. सचिन पायलट को तीसरा मौका दिया दिये जाने में राहुल गांधी खुद दिलचस्पी ले रहे हैं, ऐसा बताया जा रहा है. ये भी सुना गया है कि प्रियंका गांधी ने अब ये टास्क अपने हाथ में ले लिया है और इस काम में अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल को भी लगाया गया है.

अहमद पटेल को फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व और सचिन पायलट के बीच हाल फिलहाल संपर्क की कड़ी बताया जा रहा है. ये अहमद पटेल ही रहे जिनसे मिलने के लिए सचिन पायलट को बोल दिया गया था जब वो सोनिया गांधी से मिल कर अपनी पीड़ा शेयर करना चाहते थे. तब तक शायद अशोक गहलोत बता चुके थे कि सचिन पायलट से बात करना का फायदा ही कुछ नहीं है क्योंकि वो तो बीजेपी...

क्या सचिन पायलट (Sachin Pilot) को लेकर कांग्रेस में डैमेज कंट्रोल शुरू हो चुका है? अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के सब तहस नहस कर देने के बाद कांग्रेस की तरफ से हो रही कोशिशें तो ऐसे ही इशारे कर रही हैं. बताते हैं कि खुद राहुल गांधी इस मामले में खास दिलचस्पी ले रहे हैं और संकटमोचक प्रियंका गांधी भी क्राइसिस मैनेजमेंट में कूद पड़ी हैं. मगर, सवाल तो ये है कि अचानक हृदय परिवर्तन हुआ कैसे? NSI की मीटिंग में तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तो कह ही चुके थे कि जिसे जाना है वो जाएगा ही - और जाएगा तभी तो नये युवाओं के लिए रास्ता बनेगा.

अब खबरें आ रही हैं कि राहुल गांधी चाहते हैं कि सचिन पायलट को वापसी का पूरा मौका दिया जाये. लेकिन सवाल तो ये उठता है कि सचिन पायलट गये ही कहां हैं कि उनको वापसी का मौका दिये जाने की बात हो रही है. महत्वपूर्ण तो ये है कि जो कुछ भी हुआ अगर कांग्रेस नेतृत्व उसकी भरपाई करने का मन बना ही चुका है तो सचिन पायलट के लिए क्या बचा रखा है?

'घर वापसी' किस बात की?

सचिन पायलट को तीसरा मौका दिये जाने की चर्चा है. ये तीसरा मौका सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को मिले नोटिस के जवाब के रूप में है. जवाब देने की डेडलाइन 17 जुलाई बतायी गयी है. हालांकि, नोटिस के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया है, लेकिन वहां नयी तारीख मिल चुकी है. सचिन पायलट को तीसरा मौका दिया दिये जाने में राहुल गांधी खुद दिलचस्पी ले रहे हैं, ऐसा बताया जा रहा है. ये भी सुना गया है कि प्रियंका गांधी ने अब ये टास्क अपने हाथ में ले लिया है और इस काम में अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल को भी लगाया गया है.

अहमद पटेल को फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व और सचिन पायलट के बीच हाल फिलहाल संपर्क की कड़ी बताया जा रहा है. ये अहमद पटेल ही रहे जिनसे मिलने के लिए सचिन पायलट को बोल दिया गया था जब वो सोनिया गांधी से मिल कर अपनी पीड़ा शेयर करना चाहते थे. तब तक शायद अशोक गहलोत बता चुके थे कि सचिन पायलट से बात करना का फायदा ही कुछ नहीं है क्योंकि वो तो बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं.

सचिन पायलट प्रकरण के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटा कांग्रेस नेतृत्व

केसी वेणुगोपाल ने ही अशोक गहलोत की जगह ली थी जब वो दिल्ली छोड़ कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने जयपुर चले गये. केसी वेणुगोपाल को राहुल गांधी का भरोसेमंद माना जाता है. अहमद पटेल के साथ प्रियंका गांधी ने केसी वेणुगोपाल को भी सचिन से बातचीत करने रहने को कहा है. सचिन पायलट की 'घर वापसी' की चर्चा चल रही है. 'अस्तबल से घोड़ों के निकल जाने' से पहले रोकने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को जगाने वाले कपिल सिब्बल ने फिर एक ट्वीट किया है. अब कपिल सिब्बल जानना चाहते हैं कि घर वापसी को लेकर क्या सीन है?

क्या सचिन पायलट के केस में घर वापसी जैसी भी कोई चीज भी है क्या? या फिर कपिल सिब्बल भी अब अशोक गहलोत के बहकावे में आ चुके हैं? सचिन पायलट को अब तक सिर्फ राजस्थान के पीसीसी अध्यक्ष पद और अशोक गहलोत के कैबिनेट से हटाया गया है. अब भी सचिन पायलट को AICC से न तो निलंबित किया गया है और न ही बर्खास्त किया गया है - फिर किस बात की घर वापसी भला?

...और मिलेगा क्या?

सचिन पायलट ने भी इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा है - 'मैं सौ बार कह चुका हूं कि बीजेपी में नहीं जा रहा हूं.'

जब सचिन पायलट ने खुद घर छोड़ा नहीं - और परिवार के मुखिया ने घर से सचिन पायलट को बेदखल किया नहीं तो किस बात की घर वापसी होने लगी. न तो सीधी सपाट भाषा में न ही तकनीकि तौर पर ये घर वापसी का केस तो है ही नहीं.

सचिन पायलट के केस में अब तक जो भी हुआ है वो उनके और सोनिया या राहुल गांधी के बीच हुए कम्यूनिकेशन गैप का नतीजा है, जिसके बीच अशोक गहलोत मुख्य कम्यूनिकेशन टूल बने हुए थे. बने हुए थे - इसलिए कि सचिन पायलट के केस में राहुल गांधी की दिलचस्पी बता रही है कि नेतृत्व से हुई चूक का एहसास हो चुका है - और अब भूल सुधार की कोशिश हो रही है.

सचिन पायलट के केस में नया मोड़ अशोक गहलोत के निजी हमले के बाद आया लगता है, जिसमें सचिन पायलट पर डील में शामिल होने का बड़ा आरोप लगाया गया - वो भी तब जब वो जोर देकर कह चुके थे कि बीजेपी में नहीं जा रहे हैं. अशोक गहलोत के सार्वजनिक बयान देने से मना भी उसके बाद ही किया गया. सचिन पायलट को नोटिस भेजकर तो अशोक गहलोत ने गलती कर ही डाली थी.

अब जरा घर वापसी विमर्श से आगे बढ़ते हैं. जानना ये भी जरूरी है कि कथित 'घर वापसी' हुई भी तो सचिन पायलट को मुआवजे में मिलेगा क्या?

राजस्थान में सचिन पायलट के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी तरफ से सारे दरवाजों पर ताला लगा दिया है. सचिन पायलट पर डील में शामिल होने का आरोप लगा कर ये भी साफ कर दिया है कि ताले पर सील भी लगा दी गयी है.

सचिन पायलट के अब राजस्थान पीसीसी का अध्यक्ष बनाये जाने की संभावना खत्म हो चुकी है क्योंकि वो जगह अब गोविंद सिंह डोटासरा को मिल चुकी है. सीकर से आने आने वाले गोविंद सिंह डोटासरा पेशे से वकील रहे हैं और अशोक गहलोत सरकार में मंत्री हैं.

अगर सचिन पायलट हालात और कांग्रेस आलाकमान के दबाव में फिर से मान भी जायें तो अशोक गहलोत उनको मंत्रिमंडल में लेने को राजी नहीं होंगे. सचिन पायलट बार बार राजस्थान में अपनी पांच साल की मेहनत की बात कर रहे हैं, अगर झगड़ा मिटाने के लिए उनको दिल्ली अटैच कर दिया जाये तो उनकी सारी जमा पूंजी मिट्टी में मिल जाएगी. अब तक जो सपोर्ट बेस सचिन पायलट ने तैयार किया है वो भी हाथ से निकल जाएगा. अशोक गहलोत तो यही चाह भी रहे हैं.

जब राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ी तो उनकी जगह लेने वालों की फेहरिस्त में तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ साथ सचिन पायलट का भी नाम चला था, लेकिन अब वो बातें काफी पीछे छूट चुकी हैं.

सचिन पायलट को मौका देने और कांग्रेस से न जाने देने के लिए जो भी कोशिशें हो रही हों, एक बात तो साफ है कि सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद भी जो विश्वास बचा हुआ था वो खत्म हो चुका है. ये विश्वास भी दोबारा कायम करने के लिए सचिन पायलट को हर मौके पर बार बार साबित भी करना होगा. भरोसा दिलाने में कामयाब भी तभी होंगे जब अशोक गहलोत का प्रभाव खत्म हो पाएगा - लेकिन क्या ऐसा वास्तव में हो भी पाएगा? मुश्किल है. बेहद मुश्किल है.

सुना है प्रियंका गांधी ने सचिन पायलट प्रोजेक्ट अपने हाथ में लेने के बाद कुछ लक्ष्य भी तय कर रखा है. जो लक्ष्य बताया गया है वो तो असंभव ही लगता है - सचिन पायलट और अशोक गहलोत में सुलह कराने का!

अब तक सुलह ही तो कराया जा रहा था. अशोक गहलोत 2018 में मुख्यमंत्री बने और सचिन पायलट डिप्टी सीएम - आखिर ये सुलह नहीं तो क्या था. नतीजा सामने है. सचिन पायलट कह रहे हैं कि वो डिप्टी सीएम नहीं बनना चाह रहे थे, लेकिन राहुल गांधी की बात मानने के लिए राजी हो गये. सचिन पायलट ये भी बता रहे हैं कि राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को दखल न देने के लिए भी कहा था. सचिन पायलट कह रहे हैं कि अधिकारियों को उनकी बात मानने के लिए ही मना कर दिया जाता है, फिर वो काम क्या करेंगे?

ये तो ऐसा लगता है जैसे प्रियंका गांधी वाड्रा पूरे मामले को रीसेट करने की कोशिश कर रही हों - मतलब, साफ है जो झगड़े की बुनियाद बना फिर से मामला वहीं पहुंचाने की नये सिरे से कोशिश चल पड़ी है. ये कांग्रेस के मर्ज का वो लक्षण है जो बार बार उभर कर सामने आता है और उसे नजरअंदाज कर लाइलाज बना दिया जाता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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