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संघ और बीजेपी की 'कट्टर हिंदुत्व की राजनीति' कमजोर तो नहीं पड़ने लगी?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 11 जून, 2022 04:21 PM
  • 11 जून, 2022 04:21 PM
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बीजेपी और शिवसेना के बीच हिंदुत्व (Hindutva Politics) की छीनाझपटी में बचाव की मुद्रा में रहे उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) काफी आक्रामक हो गये हैं. ये मौका तो नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) ने ही मुहैया कराया है - क्या संघ और बीजेपी की पकड़ पर नकारात्मक असर पड़ा है?

मोहन भागवत और नुपुर शर्मा के हालिया बयान बिलकुल हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) के दो ध्रुवों जैसे ही हैं. एक तरफ सहज सहिष्णुता जैसे विमर्श की पहल लगती है - और दूसरी तरफ ऐसा कुछ होता है जो मॉब लिंचिंग के ही वर्चुअल फॉर्म जैसा महसूस होता है.

ज्ञानवापी के बहाने संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व की राजनीति के उदार स्वरूप की एक छोटी सी झलक पेश की थी, 'जगह जगह शिवलिंग क्यों खोजना?'

संघ प्रमुख के मन की बात जो भी हो, लेकिन जो कुछ बोला उसका सीधा सादा मतलब तो ऐसा ही समझ में आता है. कुछ कुछ हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई की समझाइश जैसा ही. फिर बातों बातों में अपनी पुरानी थ्योरी याद दिलाना भी नहीं भूलते - हमारे पूर्वज एक हैं... हम सब एक हैं.

...और उसी ज्ञानवापी-शिवलिंग पर जोर पकड़ चुकी बहस में अति उत्साहित नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) सारी हदें पार करते हुए पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर डालती हैं. ऐसी टिप्पणी कि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी को तत्काल प्रभाव से बैकफुट पर आ जाना पड़ा है. नुपुर शर्मा तो सस्पेंड कर दी जाती हैं, पार्टनर इन क्राइम नवीन जिंदल तो बाहर ही हो जाते हैं.

राजनीतिक विरोधियों को तो अरसे से बीजेपी में ऐसे ही किसी कमजोर नस की शिद्दत से तलाश थी. जैसे ही मौका मिला, हर कोई अपने स्तर से एक्टिव हो गया. राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक - लेकिन सबसे ज्यादा ये सब किसी को सूट कर रहा है तो वो हैं, उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray). शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री.

नुपुर शर्मा को लेकर बचाव की मुद्रा में आ चुकी बीजेपी पर उद्धव ठाकरे सीधा धावा बोल देते हैं. सिर्फ बीजेपी की कौन कहे, वो तो आगे बढ़ कर राष्ट्रीय...

मोहन भागवत और नुपुर शर्मा के हालिया बयान बिलकुल हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) के दो ध्रुवों जैसे ही हैं. एक तरफ सहज सहिष्णुता जैसे विमर्श की पहल लगती है - और दूसरी तरफ ऐसा कुछ होता है जो मॉब लिंचिंग के ही वर्चुअल फॉर्म जैसा महसूस होता है.

ज्ञानवापी के बहाने संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व की राजनीति के उदार स्वरूप की एक छोटी सी झलक पेश की थी, 'जगह जगह शिवलिंग क्यों खोजना?'

संघ प्रमुख के मन की बात जो भी हो, लेकिन जो कुछ बोला उसका सीधा सादा मतलब तो ऐसा ही समझ में आता है. कुछ कुछ हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई की समझाइश जैसा ही. फिर बातों बातों में अपनी पुरानी थ्योरी याद दिलाना भी नहीं भूलते - हमारे पूर्वज एक हैं... हम सब एक हैं.

...और उसी ज्ञानवापी-शिवलिंग पर जोर पकड़ चुकी बहस में अति उत्साहित नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) सारी हदें पार करते हुए पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर डालती हैं. ऐसी टिप्पणी कि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी को तत्काल प्रभाव से बैकफुट पर आ जाना पड़ा है. नुपुर शर्मा तो सस्पेंड कर दी जाती हैं, पार्टनर इन क्राइम नवीन जिंदल तो बाहर ही हो जाते हैं.

राजनीतिक विरोधियों को तो अरसे से बीजेपी में ऐसे ही किसी कमजोर नस की शिद्दत से तलाश थी. जैसे ही मौका मिला, हर कोई अपने स्तर से एक्टिव हो गया. राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक - लेकिन सबसे ज्यादा ये सब किसी को सूट कर रहा है तो वो हैं, उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray). शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री.

नुपुर शर्मा को लेकर बचाव की मुद्रा में आ चुकी बीजेपी पर उद्धव ठाकरे सीधा धावा बोल देते हैं. सिर्फ बीजेपी की कौन कहे, वो तो आगे बढ़ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदुत्व की राजनीति का भी मजाक उड़ाने लगे हैं. संघ के पास बचाव का इसके अलावा कोई मौका नहीं समझ में आता कि वो राजनीति नहीं बल्कि राष्ट्र के लिए व्यक्ति निर्माण का काम करता है. व्यक्ति निर्माण को संघ राष्ट्र निर्माण की इकाई के रूप में समझाने की कोशिश करता है.

जो बीजेपी अब तक हिंदुत्व के साथ देशहित को जोड़ कर राजनीति करती आ रही है, उद्धव ठाकरे तो एक साथ टूट पड़ते हैं. बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति से शिवसेना के हिंदुत्व को बेहतर तो समझाते ही हैं, केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर देश के अपमान की भी तोहमत जड़ देते हैं - और मुद्दे की बात ये है कि बीजेपी और बीजेपी की सरकार की तरफ से सिग्नल भी वैसे ही दिये जा रहे हैं जैसे वो अपने बढ़े हुए कदम पीछे खींचने लगी हो.

हर कॉकटेल खतरनाक ही होता है

नुपुर शर्मा के बयान पर अरब मुल्कों के रिएक्शन के बाद मोदी सरकार की सफाई को उद्धव ठाकरे देश का अपमान बता रहे हैं. कहते हैं - ये अपमान हम सहन कर रहे हैं. कह रहे हैं, 'भारत को मिडिल ईस्ट मुल्कों के सामने घुटने टेकने पड़े... प्रधानमंत्री का फोटो कचरा पेटी पर लगाया गया.'

बीजेपी की कमजोरी का फायदा उठाने के मामले में उद्धव ठाकरे तो राहुल गांधी से भी आगे निकल गये हैं

उद्धव ठाकरे का कहना है, बीजेपी ने गुनाह किया तो देश क्यों माफी मांगे? भारतीय जनता पार्टी के छोटे मोटे प्रवक्ताओं ने गुनाह किया है... भाजपा का प्रवक्ता देश का प्रवक्ता नहीं हो सकता.

ये बीजेपी के राष्ट्रवाद के एजेंडे पर भी सीधी चोट है - जो बीजेपी देशभक्ति की राजनीति करती आ रही थी, टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ उद्धव ठाकरे के मिल जाने के लिए आलोचना कर रही थी, हिंदुत्व से दूर चले जाने के इल्जाम लगा रही थी, उसे अब चुपचाप उद्धव ठाकरे का लेक्चर सुनना पड़ रहा है.

औरंगाबाद में उद्धव ठाकरे के भाषण पर देवेंद्र फडणवीस को भी जवाब देते नहीं बन रहा है. शिवसेना के हिंदुत्व पर सवाल उठाने की जगह अब वो सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने लगे हैं. किसानों के फसल के नुकसान और मुआवजे की बातें याद दिलाने लगे हैं. पूछ रहे हैं किसानों को मदद कब मिलेगी? वादे का क्या हुआ? कह रहे हैं, महाराष्ट्र में ईंधन की कीमतों में कोई कमी नहीं हुई है - और पूछ रहे हैं क्यों? लेकिन उद्धव ठाकरे को उन मुद्दों पर नहीं काउंटर कर रहे जो वो सरेआम उठा रहे हैं. क्या बीजेपी के पास उद्धव के सवालों का कोई जवाब नहीं है?

हर तरह का कॉकटेल खतरनाक ही होता है - और हाल फिलहाल राजनीति में भी ऐसा ही प्रयोग होने लगा है. देशभक्ति और हिंदुत्व का कॉकटेल - और स्वाभाविक तौर पर ये भी खतरनाक होने लगा है.

नुपुर शर्मा का बयान कट्टर हिंदुत्व की राजनीति का अतिरेक है - और उद्धव ठाकरे ने इसे देश के सम्मान से जोड़ दिया है. देश के साथ साथ देश के प्रधानमंत्री के अपमान पर भी उद्धव ठाकरे सवाल खड़े कर रहे हैं - कचरे में मोदी की तस्वीर क्यों?

एक साथ उद्धव ठाकरे लोगों को बीजेपी के खिलाफ दोनों बातें समझाने लगे हैं - हिंदुत्व की भी और देशभक्ति की भी.

उद्धव ठाकरे ये भी समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना का हिंदुत्व बीजेपी से बेहतर है - और लगे हाथ ये भी समझाने की कोशिश है कि बीजेपी देश का अपमान करने लगी है. अब तक तो यही समझ में आया है कि उद्धव ठाकरे की लड़ाई बीजेपी से है, संघ से नहीं - लेकिन हैरानी की बात ये है कि शिवेसना प्रमुख अब संघ को भी बीजेपी की ही तरह ट्रीट करने लगे हैं. खुलेआम संघ का मजाक भी उड़ा रहे हैं.

शिवसेना का हिंदुत्व बनाम बीजेपी का हिंदुत्व: महाराष्ट्र में गठबंधन तोड़ने के बाद से ही उद्धव ठाकरे बीजेपी के निशाने पर हैं. बीजेपी के लिए उद्धव ठाकरे पर बाकी राजनीतिक विरोधियों की तरह आलोचना आसान तो है नहीं. कहीं लेने के देने न पड़ जायें, इसलिए ज्यादातर परहेज करते ही देखा जाता है. उद्धव ठाकरे के साथ मराठी अस्मिता जुड़ी हुई है - और दोबारा वो नीतीश कुमार के डीएनए में खोट खोज कर फिर से फजीहत करानी तो नहीं ही चाहेगी.

ऐसे में बीजेपी के लिए सबसे आसान होता है उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व पर ही सवाल खड़ा कर देना. एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार चलाने की वजह से बीजेपी को ये मौका भी मिल जाता है. उद्धव ठाकरे को बार बार अयोध्या और बाल ठाकरे के हिंदुत्व की दुहाई देते रहना पड़ता है.

नुपुर शर्मा विवाद के संदर्भ में उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'छत्रपति शिवाजी ने भी कुरान का सम्मान किया था, लेकिन हम दूसरे धर्म का द्वेष नहीं करते ये हमने सीखा है... बाला साहेब कहते थे कि अपने धर्म को घर मे रखना चाहिये - अगर कोई अपने धर्म की कट्टरता के नाम पर हमला करेगा तो हम उसे नहीं छोडेंगे.'

फिर ये भी समझाते हैं कि बीजेपी और शिवसेना के हिंदुत्व में बड़ा फर्क क्या है? उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'जब भी हिंदुत्व की बात आई... हमेशा बाला साहेब सबसे आगे रहे हैं... बाबरी की बात हो, अमरनाथ यात्रा की बात हो... सब बाला साहेब ने किया है - और ये हमें हिंदुत्व सिखाएंगे!

और फिर उद्धव ठाकरे बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व पर हमला बोल देते हैं - बाला साहेब ने कभी नहीं कहा कि मुस्लिम समाज का विरोध करो... उनको मारो, लेकिन आज अलग तस्वीर बनायी जा रही है.'

कश्मीरी पंडितों के बहाने बीजेपी पर हमला: उद्धव ठाकरे का बीजेपी पर आरोप है कि वो सुपारी देकर हनुमान चालीसा बजाने का काम करती है. कहते हैं, 'बीजेपी के एक प्रवक्ता के बयान से देश को अपमान सहना पड़ा और यहां वो लाउडस्पीकर और दूसरी चीजों को लेकर मुद्दा बना रही है.'

उद्धव ठाकरे एक साथ राज ठाकरे और नवनीत राणा की तरफ इशारा करके बीजेपी को खरी खोटी सुनाते हैं, 'कश्मीरी पंडितों के पास घाटी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है और बीजेपी चुप बैठी है... अगर आपके पास हिम्मत है तो आपको कश्मीर जाना चाहिये - और वहां हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये.'

और लगे हाथ चेताने का भी प्रयास होता है, 'ED और सीबीआई को हमारे पीछे चलाने के बजाय, जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की स्थिति पर ध्यान दें.'

नुपुर शर्मा को सबक सिखाया गया तो क्या होगा?

मुंबई पुलिस ने तो नुपुर शर्मा को पूछताछ के लिए पहले ही नोटिस भेज रखा है. मुंबई पुलिस ने नुपुर शर्मा को पूछताछ के लिए 22 जून को बुलाया है - और अब तो दिल्ली पुलिस ने भी एफआईआर दर्ज कर लिया है.

जाहिर है नुपुर शर्मा पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार भी साफ साफ नजर आने लगी है. ये बात और भी गंभीर बात हो जाती है जब भारत की आधिकारिक यात्रा पर आये ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के सामने ये मुद्दा उठाते हैं.

बाद में ईरान के विदेश मंत्रालय की तरफ से एक बयान जारी किया जाता है, जिसमें बताया जाता है कि पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के मामले में एनएसए डोभाल ने दोषियों के खिलाफ कड़े एक्शन का आश्वासन दिया है. ऐसा एक्शन जिससे दूसरे लोगों को सबक भी मिलेगा.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नूपूर शर्मा के विवादित बयान को लेकर गिरफ्तार किये जाने की मांग की है. तृणमूल कांग्रेस नेता का कहना है कि ऐसे विवादित बयान देने वालों पर फौरन एक्शन होना चाहिये.

ऐसे में जबकि नुपुर शर्मा पूरी तरह अकेले पड़ चुकी हैं, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने आगे आकर हौसला बढ़ाने की कोशिश की है - और ये अजय मिश्रा का अनुभव बोल रहा है. जैसे देश में लॉकडाउन लागू होने पर जम्मू-कश्मीर के नेता उमर अब्दुला नजरबंद रहने के दौरान अपने अनुभवों के आधार पर लोगों को हालात से लड़ने के टिप्स देने लगे थे.

बीजेपी से निलंबित नूपुर शर्मा और बर्खास्त किये गये नवीन जिंदल को लेकर एक प्रेस कांफ्रेंस में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ता का साथ नहीं छोड़ती है. खास बात ये रही कि केंद्रीय मंत्री ने बीजेपी के एक्शन के बावजूद नुपुर शर्मा के बयान की आलोचना तक नहीं की. मीडिया के सवाल पर अजय मिश्रा ने बस इतना ही कहा कि नुपुर शर्मा की बातें सही है या गलत ये वो पार्टी फोरम पर स्पष्ट रूप से बता चुके हैं.

वैसे भी अजय मिश्रा टेनी का जिस तरह बीजेपी ने जोखिम उठाते हुए बचाव किया, वो अपनेआप में मिसाल है. यूपी चुनाव में सब कुछ दांव पर लगा हुआ था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विपक्ष के तमाम हो-हल्ला के बावजूद अपने कैबिनेट में बनाये रखा. बीजेपी की रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के साथ तो अजय मिश्रा टेनी की तस्वीर चुनावों के बीच ही सामने आ गयी थी. अजय मिश्रा के आश्वासन के बाद नुपुर शर्मा को भी निश्चिंत हो जाना चाहिये.

लेकिन राजनीतिक और कूटनीतिक वजहों से अगर नुपुर शर्मा को वास्तव में सबक सिखाया गया तो बीजेपी की राजनीति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. ऐसे अगर सख्त ऐक्शन लिये जाने लगे तो भला बीजेपी का कौन प्रवक्ता कुर्बानी देने के लिए तैयार होगा?

और ऐसा हुआ तो बीजेपी कार्यकर्ताओं का जोश भी ठंडा हो सकता है. कार्यकर्ता तो तभी तक लड़ने मरने के लिए तैयार रहता है जब तक कि संरक्षण मिलता है. आखिर कांग्रेस के पास आज कार्यकर्ताओं का टोटा क्यों पड़ गया है? वे जानते हैं कि जो खुद ईडी के नोटिस पर पूछताछ के लिए पेश होने जा रहे हैं, वे कार्यकर्ताओं को कैसे प्रोटेक्ट कर सकते हैं?

शायद इसीलिए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता को प्रेस कांफ्रेंस करके बीजेपी सरकार का स्टैंड स्पष्ट करना पड़ा है. नुपुर शर्मा के बयान पर आपत्ति जताने वाले देशों को लेकर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है, 'हमने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार किसी भी बहस के दौरान या सोशल मीडिया पर किये गये किसी भी विचार का समर्थन नहीं करती है.' अरिंदम बागची कहते हैं, 'हमें यकीन नहीं है कि किसी भी देश में भारतीय सामानों का बायकॉट किया जाएगा.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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