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इमरान खान का रियासत-ए-मदीना मेड-इन-चाइना !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2019 02:14 PM
  • 11 अक्टूबर, 2019 02:14 PM
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जब इमरान खान चीन जाते हैं तो यूं लगता है मानो साक्षात दंडवत हो गए हों. उनके हाव-भाव में एक छटपटाहट सी दिखती है कि वह चीन जैसा कैसे बन जाएं, लेकिन ये भूल जाते हैं कि जिस पैगंबर का मदीना वह पाकिस्तान को बनाना चाहते हैं, उन्हें चीन मानता ही नहीं.

पाकिस्तान को रियासत-ए-मदीना बनाना है, ये बात आपने कई बार इमरान खान के मुंह से सुनी होगी. रियासत-ए-मदीना यानी ठीक वैसी रियासत, जो मोहम्मद पैंगबर ने बनाई थी. मदीना की बात तो इमरान खान आए दिन करते हैं, लेकिन शायद ये नहीं सोचते कि मदीना है कहां. वह मदीना की बात करते हुए भी सऊदी अरब का जिक्र नहीं करते, जहां वो मदीना है, जिसे पैगंबर ने बनाया था. यूं लगता है मानो इमरान खान चीन के दम पर ही पाकिस्तान को रियासत-ए-मदीना बनाने की सोच रहे हैं. यहां इमरान को ये समझना चाहिए कि रियासत-ए-मदीना बनाने वाले पैगंबर दोहरे चरित्र के नहीं थे, जबकि इमरान खान का रवैया दोगलापन दिखाता है. इमरान खान को पाकिस्तान को बनाना तो चीन जैसा है, लेकिन नाम मदीना रखना है. तभी तो, रियासत-ए-मदीना की बात करते हुए भी वह सऊदी अरब की बात नहीं करते हैं, लेकिन पूरी दुनिया में जहां भी जाते हैं, वहां चीन का गुणगान करने से नहीं चूकते हैं. और जब इमरान खान चीन जाते हैं तो यूं लगता है मानो साक्षात दंडवत हो गए हों. उनके हाव-भाव में एक छटपटाहट सी दिखती है कि वह चीन जैसा कैसे बन जाएं. और उसी छटपटाहट में वह ये भी कह बैठते हैं कि काश पाकिस्तान भी चीन की तरह 500 भ्रष्ट लोगों को जेल में डाल पाता.

जब इमरान खान चीन जाते हैं तो यूं लगता है मानो साक्षात दंडवत हो गए हों.

मेड-इन-चाइना होगा रियासत-ए-मदीना !

रियासत-ए-मदीना को पैगंबर ने बनाया था और इमरान खान पाकिस्तान को भी वैसा ही बनाना चाहते हैं. इमरान खान कहते हैं कि रियासत-ए-मदीना में सभी अल्पसंख्यकों को उनके हक मिले थे और इसी हक के लिए वह लड़ रहे हैं. हालांकि, पाकिस्तान के हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों के साथ क्या हो रहा है, ये किसी से छुपा नहीं है. तभी तो कश्मीर के अल्पसंख्यकों के लिए वह चीन से मदद मांगने पहुंच जाते हैं, लेकिन बलोचिस्तान...

पाकिस्तान को रियासत-ए-मदीना बनाना है, ये बात आपने कई बार इमरान खान के मुंह से सुनी होगी. रियासत-ए-मदीना यानी ठीक वैसी रियासत, जो मोहम्मद पैंगबर ने बनाई थी. मदीना की बात तो इमरान खान आए दिन करते हैं, लेकिन शायद ये नहीं सोचते कि मदीना है कहां. वह मदीना की बात करते हुए भी सऊदी अरब का जिक्र नहीं करते, जहां वो मदीना है, जिसे पैगंबर ने बनाया था. यूं लगता है मानो इमरान खान चीन के दम पर ही पाकिस्तान को रियासत-ए-मदीना बनाने की सोच रहे हैं. यहां इमरान को ये समझना चाहिए कि रियासत-ए-मदीना बनाने वाले पैगंबर दोहरे चरित्र के नहीं थे, जबकि इमरान खान का रवैया दोगलापन दिखाता है. इमरान खान को पाकिस्तान को बनाना तो चीन जैसा है, लेकिन नाम मदीना रखना है. तभी तो, रियासत-ए-मदीना की बात करते हुए भी वह सऊदी अरब की बात नहीं करते हैं, लेकिन पूरी दुनिया में जहां भी जाते हैं, वहां चीन का गुणगान करने से नहीं चूकते हैं. और जब इमरान खान चीन जाते हैं तो यूं लगता है मानो साक्षात दंडवत हो गए हों. उनके हाव-भाव में एक छटपटाहट सी दिखती है कि वह चीन जैसा कैसे बन जाएं. और उसी छटपटाहट में वह ये भी कह बैठते हैं कि काश पाकिस्तान भी चीन की तरह 500 भ्रष्ट लोगों को जेल में डाल पाता.

जब इमरान खान चीन जाते हैं तो यूं लगता है मानो साक्षात दंडवत हो गए हों.

मेड-इन-चाइना होगा रियासत-ए-मदीना !

रियासत-ए-मदीना को पैगंबर ने बनाया था और इमरान खान पाकिस्तान को भी वैसा ही बनाना चाहते हैं. इमरान खान कहते हैं कि रियासत-ए-मदीना में सभी अल्पसंख्यकों को उनके हक मिले थे और इसी हक के लिए वह लड़ रहे हैं. हालांकि, पाकिस्तान के हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों के साथ क्या हो रहा है, ये किसी से छुपा नहीं है. तभी तो कश्मीर के अल्पसंख्यकों के लिए वह चीन से मदद मांगने पहुंच जाते हैं, लेकिन बलोचिस्तान और उइगर मुस्लिमों को नहीं देखते. वह मदीना बनाने की राह में चीन का इतना गुणगान कर रहे हैं कि लग रहा है मानो इमरान खान का रियासत-ए-मदीना भी मेड-इन-चाइना ही होगा.

जब इमरान खान पैगंबर के रियासत-ए-मदीना की बात करते हैं तो उन्हें ये भी ध्यान रहना चाहिए कि पैगंबर के कुछ आदर्श थे. मुस्लिम जिस पैगंबर की इबादत करते हैं, चीन तो उन्हें मानता तक नहीं. बल्कि चीन तो वो देश है जो किसी भी धर्म में नहीं मानता है. चीन के लिए धर्म-कर्म सब कुछ कम्युनिस्ट पार्टी और चीन की सरकार है. तभी तो, उइगर मुस्लिमों को भी वह चीन में कोई धार्मिक आयोजन करने की अनुमति नहीं देता. यही वजह है कि चीन में कोई मोहम्मद नाम नहीं रखा जा सकता, कोई अपने घर में मीनार नहीं बना सकता, जैसी मस्जिद में होती हैं. अब सवाल ये है कि चीन की मदद से वो रियासत-ए-मदीना कैसे बन सकता है, जिसकी बुनियाद ही धार्मिक उसूलों पर डाली जानी है.

चीन-पाकिस्तान को सेलेक्टेड चीजें ही दिखती हैं

जब कभी बात ह्यूमन राइट्स की आती है, तो चीन को कश्मीर समेत पूरी दुनिया की तमाम जगहें दिखती हैं, लेकिन अपने ही देश के उइगर मुस्लिम और हांगकांग नहीं दिखता. उसे नहीं दिखता है वह खुद किस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.

चीन की तरह ही पाकिस्तान को भी सिर्फ कश्मीर समेत पूरी दुनिया के मुस्लिम दिखते हैं. यही मुस्लिम उन्हें अल्पसंख्यक लगते हैं. उन्हें लगता है कि इन लोगों को उनके हक नहीं दिए जा रहे हैं और इनके लिए वह युद्ध तक करने को तैयार हो जाते हैं. वहीं पाकिस्तान के अंदर ही बलोचिस्तान में मानवाधिकारों को कैसे कुचला जा रहा है ये नहीं दिखता. पाकिस्तान में ही हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों के साथ क्या हो रहा है, वह दुनिया से छुपा नहीं है. पाकिस्तान को ये भी नहीं दिखता कि चीन में कैसे उइगर मुस्लिमों पर जुल्म हो रहे हैं. उल्टा वो तो ये कह देते हैं कि चीन के उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार होने की खबर के बारे में वह नहीं जानते.

आतंकवाद पर भी इमरान खान सेलेक्टेड दिखते हैं. दुनिया से आतंकवाद खत्म करने के लिए तमाम मौकों पर अलग-अलग मंचों पर वह कुछ ना कुछ बोलते हैं, लेकिन अपने देश में आतंकवाद को पनाह दिए जाने पर नहीं बोलते. यानी दुनिया आतंक से लड़े, लेकिन पाकिस्तान तो उसे पालेगा और अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करेगा.

सऊदी का मदीना नहीं, चीन का 'मदीना'

इमरान खान सऊदी अरब के मदीना की बात नहीं करते, वह तो चीन जैसी व्यवस्था बनाकर उसे मदीना का नाम देना चाहते हैं. सऊदी को तो छोड़िए, वह किसी भी गल्फ देश की बात नहीं करते. हालांकि, ये गल्फ देश समय-समय पर पाकिस्तान को कुछ न कुछ वित्तीय मदद देते रहते हैं, जिससे इमरान खान खुश भी होते हैं. लेकिन फिर जब वही गल्फ देश पीएम मोदी को सर्वोच्च सम्मान दे देते हैं, तो एक बार फिर इमरान की सारी निष्ठा चीन की ओर मुड़ जाती है. और मुड़े भी क्यों ना. एक चीन ही तो है जो भारत के खिलाफ कुछ भी बोलने या करने में इमरान खान की मदद जो करता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि इमरान खान का मदीना सऊदी अरब में नहीं, बल्कि चीन में है, जिसका रास्ता CPEC से होकर जाता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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