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रामनाथ कोविंद, जिन्‍हें टीवी पर एडल्‍ट सामग्री से सख्‍त एतराज है

    • आईचौक
    • Updated: 17 जुलाई, 2017 07:07 PM
  • 17 जुलाई, 2017 07:07 PM
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रामनाथ कोविंद ने राज्‍यसभा सदस्‍य रहते हुए 1962 के भारत-चीन युद्ध पर जनरल हैंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की मांग की थी. इसके अलावा उनके कुछ सवाल एडल्ट सामग्री, चित्रहार, चुनाव सुधार को लेकर भी थे.

सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार चुना. अब ज‍बकि उनका राष्‍ट्रपति बनना लगभग तय नजर आ रहा है, ऐसे में उनसे जुड़े, कुछ किस्से फिर दुबारा प्रकाश में आ रहे हैं.

कोविंद 1994 से लेकर 2006 के बीच दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. राज्यसभा की आर्काइव देखने पर पता चलता है कि कोविंद ने अपने कार्यकाल के दौरान टेलीविजन पर एडल्ट सामग्री पर रोक से लेकर एक हजार रुपए के नोट पर बी आर अंबेडकर की तस्वीर प्रकाशित करने की मांग आदि मुद्दे पर सवाल उठाये .

हालांकि, एक विपक्षी सांसद के रूप में, उन्होंने तत्कालीन यूपीए सरकार से धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित निजी  गैर-अनुदानित शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर काफी संघर्ष किया था.

उन्होंने टेलीविजन पर विदेशी चैनलों द्वारा एडल्ट सामग्री के प्रसारण पर रोक की मांग करते हुए इसे भारतीय सांस्कृति पर आक्रमण बताया था. जुलाई 1996 में एक सवाल के जवाब में, उन्होंने टेलीविजन पर वयस्क फिल्मों और बिना सेंसर सामग्री के बारे में चिंता व्यक्त की थी और सरकार से पूछा  "विदेशी चैनलों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक पर आक्रमण को रोकने के लिए, सरकार क्या कर रही है"

राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद, पर्याप्त बहुमत के करीब है.

मार्च 1995 में, कोविंद, सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहते थे कि हर हफ्ते टेलीविजन पर 8 से 10 फिल्मों का प्रसारण किया जा रहा है और पूछा  "क्या सरकार जानती है कि ज्यादातर टीवी चैनलों और धारावाहिकों को देखने से बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है; ... यदि हां, तो सरकार ने स्वास्थ्य के खतरों और शिक्षा मानकों की गिरावट के चलते...

सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार चुना. अब ज‍बकि उनका राष्‍ट्रपति बनना लगभग तय नजर आ रहा है, ऐसे में उनसे जुड़े, कुछ किस्से फिर दुबारा प्रकाश में आ रहे हैं.

कोविंद 1994 से लेकर 2006 के बीच दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. राज्यसभा की आर्काइव देखने पर पता चलता है कि कोविंद ने अपने कार्यकाल के दौरान टेलीविजन पर एडल्ट सामग्री पर रोक से लेकर एक हजार रुपए के नोट पर बी आर अंबेडकर की तस्वीर प्रकाशित करने की मांग आदि मुद्दे पर सवाल उठाये .

हालांकि, एक विपक्षी सांसद के रूप में, उन्होंने तत्कालीन यूपीए सरकार से धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित निजी  गैर-अनुदानित शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर काफी संघर्ष किया था.

उन्होंने टेलीविजन पर विदेशी चैनलों द्वारा एडल्ट सामग्री के प्रसारण पर रोक की मांग करते हुए इसे भारतीय सांस्कृति पर आक्रमण बताया था. जुलाई 1996 में एक सवाल के जवाब में, उन्होंने टेलीविजन पर वयस्क फिल्मों और बिना सेंसर सामग्री के बारे में चिंता व्यक्त की थी और सरकार से पूछा  "विदेशी चैनलों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक पर आक्रमण को रोकने के लिए, सरकार क्या कर रही है"

राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद, पर्याप्त बहुमत के करीब है.

मार्च 1995 में, कोविंद, सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहते थे कि हर हफ्ते टेलीविजन पर 8 से 10 फिल्मों का प्रसारण किया जा रहा है और पूछा  "क्या सरकार जानती है कि ज्यादातर टीवी चैनलों और धारावाहिकों को देखने से बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है; ... यदि हां, तो सरकार ने स्वास्थ्य के खतरों और शिक्षा मानकों की गिरावट के चलते प्रसारित होने वाली फिल्मों की संख्या को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं." इसका जबाव देते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री के पी सिंह देव ने जवाब दिया कि बच्चे के टीवी देखने पर नियंत्रण करना, माता-पिता का काम था.

कोविंद ने 1962 के भारत-चीन युद्ध पर जनरल हैंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की मांग की थी.

एक बार उन्होंने सवाल किया था कि आकाशवाणी और दूरदर्शन के कुछ उद्घोषकों ने कब से श्रोताओं का स्वागत राम-राम से करना शुरू किया और क्या इसे बंद कर दिया गया है. अगर हां तो क्यों.

अपने राज्यसभा के कार्यकाल के दौरान कोविंद ने चुनाव सुधार पर कुछ अपरंपरागत विचार भी सुझाए थे. जून 1 99 1 में चुनावी सुधार पर एक प्राइवेट मेबंर रेसोलुशन बिल पर बहस के दौरान, उन्होंने सुझाव दिया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अवधि पांच साल के लिए तय की जाए, अनिवार्य मतदान शुरू किया जाएगा, केवल पूर्व-चुनाव होगा और चुनाव के बाद गठजोड़ की अनुमति नहीं दी जाए और चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों की संख्या को छोटी संख्या तक ही सीमित किया जाए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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