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राम मंदिर पर क्यों बंटे शिया और सुन्नी मुसलमान?

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 17 नवम्बर, 2019 06:23 PM
  • 17 नवम्बर, 2019 06:23 PM
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अयोध्या (Ayodhya Case) के राम मंदिर पर आए फैसले (Ram Mandir Verdict) को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमान नेताओं में कई विवाद थे, लेकिन वह बार-बार यही कह रहे थे कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Verdict) हर हाल में मंज़ूर होगा, लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत.

राम मंदिर (Ram Mandir Verdict) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Supreme Court Verdict) ने देश के मुसलमानों को ही बांट दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Ayodhya Case) से पहले सभी मुसलमान यही कह रहे थे कि उन्हें कोई भी फैसला स्वीकार होगा. वे तब भी संतुष्ट होंगे यदि फैसला उनके पक्ष में नही आता. इस तरह की घोषणा से संदेश तो यही गया था कि मुसलमानों ने इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताया है. शिया और सुन्नी मुसलमानों (Muslim) के नेता लाख आपसी विवादों के बावजूद बार बार यही कह रहे थे कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फैसला हर हाल में मंज़ूर होगा, पर हुआ ठीक इसके विपरीत.शिया मुसलमानों ने तो फैसले का तहेदिल से स्वागत किया. एक भी शिया मुसलमान सामने नहीं आया जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की निंदा की हो. दिल्ली से लखनऊ और पटना से भोपाल आदि के शिया मुसलमान यहां तक कह रहे हैं कि राम मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा? यह बेशक एक सकारत्मक सोच है और इससे भारत की धर्म निरपेक्षता और मज़बूत होगी. उत्तर प्रदेश से तो कुछ ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि शिया मुसलमानों ने राम मंदिर के निर्माण में अपना हर संभव सहयोग करने का भी मन बनाया है.

राम मंदिर पर आए फैसले ने शिया और सुन्नी मुसलमानों की राय अलग-अलग कर दी है.

लेकिन शिया मुसलमानों से हट कर राय सुन्नी मुसलमानों की रही है. देश में मुसलमानों की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा सुन्नी ही है. माना जाता है कि इन सब के पुरखे पहले हिन्दू ही थे. इन सुन्नी मुसलमानों की सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया निराश करने वाली रही. चूंकि फैसला इनके मन माफिक नहीं आया तो ये लगे कोसने सुप्रीम कोर्ट को. अब ये भूल गए अपने वादे को जो इन्होंने खुद किये थे. ये तो यही कह रहे थे की इन्हें राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का कोई भी...

राम मंदिर (Ram Mandir Verdict) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Supreme Court Verdict) ने देश के मुसलमानों को ही बांट दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Ayodhya Case) से पहले सभी मुसलमान यही कह रहे थे कि उन्हें कोई भी फैसला स्वीकार होगा. वे तब भी संतुष्ट होंगे यदि फैसला उनके पक्ष में नही आता. इस तरह की घोषणा से संदेश तो यही गया था कि मुसलमानों ने इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताया है. शिया और सुन्नी मुसलमानों (Muslim) के नेता लाख आपसी विवादों के बावजूद बार बार यही कह रहे थे कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फैसला हर हाल में मंज़ूर होगा, पर हुआ ठीक इसके विपरीत.शिया मुसलमानों ने तो फैसले का तहेदिल से स्वागत किया. एक भी शिया मुसलमान सामने नहीं आया जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की निंदा की हो. दिल्ली से लखनऊ और पटना से भोपाल आदि के शिया मुसलमान यहां तक कह रहे हैं कि राम मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा? यह बेशक एक सकारत्मक सोच है और इससे भारत की धर्म निरपेक्षता और मज़बूत होगी. उत्तर प्रदेश से तो कुछ ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि शिया मुसलमानों ने राम मंदिर के निर्माण में अपना हर संभव सहयोग करने का भी मन बनाया है.

राम मंदिर पर आए फैसले ने शिया और सुन्नी मुसलमानों की राय अलग-अलग कर दी है.

लेकिन शिया मुसलमानों से हट कर राय सुन्नी मुसलमानों की रही है. देश में मुसलमानों की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा सुन्नी ही है. माना जाता है कि इन सब के पुरखे पहले हिन्दू ही थे. इन सुन्नी मुसलमानों की सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया निराश करने वाली रही. चूंकि फैसला इनके मन माफिक नहीं आया तो ये लगे कोसने सुप्रीम कोर्ट को. अब ये भूल गए अपने वादे को जो इन्होंने खुद किये थे. ये तो यही कह रहे थे की इन्हें राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला मान्य होगा.

आपको याद होगा कि जब राम मंदिर मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी तब ऑल इंडिया इमाम फेडरेशन के सदर मौलाना उमर इलयासी और मौलाना आज़ाद के पौत्र फिरोज़ बख्त अहमद जैसे प्रगतिशील मुसलमान दिन रात कोशिश कर रहे थे कि यह मसला आपसी प्रेम और भाईचारे से ही हल हो जाय. पर इन रौशन ख्याल सुन्नी मुसलमानों की पहल को सफल नहीं होने दिया गया. इनके प्रयासों के आगे अवरोध खड़े किए गए. उन्हीं लोगों के द्वारा, जो अब सुप्रीम कोर्ट की निंदा कर रहे हैं. इन्होंने अपनी कौम को हमेशा जाहिल रखने की कसम खाई हुई है.

दरअसल, देश के मुस्लिम समाज को अपने कथित रहनुमाओं से सचेत रहने की ज़रूरत है. इनकी चाहत रहती है कि इनकी कौम अंधकार युग में ही जीती रहे. ये कभी नए स्कूलों और कॉलेजों को खोलने की सरकार के सामने मांग नहीं रखते. ये वक़्फ की सम्पत्तियों को बेच कर खा जाते हैं. ये मुस्लिम समाज में तीन तलाक़ की प्रथा के समर्थक थे. कभी इन्होंने अपने मुस्लिम समाज में फैली जाति की बीमारी के खिलाफ जन जागरण अभियान या आन्दोलन नहीं चलाया. हालांकि, इस्लाम में वैसे तो जाति के लिए कोई स्थान नहीं है, पर भारतीय मुसलमानों के बीच इसका असर साफ़ तौर पर दिखाई देता है. मुसलमानों की पिछडी जातियों की स्थिति बेहद खराब है. अलग अलग जातियों के अपने कब्रिस्तान हैं. लेकिन गौर कीजिये कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वाले अपनी कौम को सही रास्ता दिखाने के लिये तैयार नहीं हैं. इनसे कोई यह क्यों नहीं पूछता कि इन्होंने 1947 के बाद लडकियों के कितने स्कूल और कॉलेज खोले हैं? क्या कोई समाज अपनी बेटियों को साक्षर किये बगैर आगे बढ़ सकता है? इन सवालों के जवाब वे सुन्नी मुसलमान नेता नहीं देंगे, जो यहां तक कह रहे हैं कि नई मस्जिद बनाने के लिए दी जा रही ज़मीन को भी वे नहीं लेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ करते हुए एक मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ ज़मीन दी है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करने के बजाए ये सुन्नी मुसलमान मस्जिद के लिए ज़मीन लेने में ही आनाकानी कर रहे हैं. इनका यह आचरण शर्मनाक है. इसकी मुस्लिम समाज के हर वर्ग द्वारा निंदा करनी चाहिए.

भारत के मुसलमानों को अज़ीम प्रेमजी और आमिर खान जैसों को अपना नायक मानना चाहिए. अज़ीम प्रेमजी और आमिर खान सच्चे मुसलमान और भारतीय हैं. भारतीय मुसलमानों को कठमुल्ला सोच वालों को खारिज करना होगा. इस स्तर पर शिया मुसलमान भाग्यशाली रहे हैं. उनके नेता उन्हें रास्ते से भटकाते नहीं हैं. यही बात बोहरा मुसलमानों के लिए भी कही जा सकती है जो देश के निर्माण में भरपूर योगदान दे रहे हैं.

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं.)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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