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राजनाथ को किसने मिसकोट किया, सलीम ने या...

    • आईचौक
    • Updated: 30 नवम्बर, 2015 07:44 PM
  • 30 नवम्बर, 2015 07:44 PM
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विवाद इस बात को लेकर तो था ही कि बयान क्यों दिया? विवाद इस बात पर भी है कि बयान असल में किसने दिया?

काश! हिंदू हितों को लेकर कोई और बात चल रही होती. राजनाथ सिंह के दोनों हाथ खुद उठ जाते और आगे बढ़ कर तालियां बजाते, बशर्ते घर पर टीवी देख रहे होते. "जय श्रीराम" भी मन में जरूर गूंजता. मोहम्मद सलीम को भी शायद एतराज नहीं होता, अगर उनके हाथ उस पत्रिका का वो खास अंक नहीं लगा होता.

लेकिन काश! वैसा होता कहां है जैसा होता तो अच्छा होता. असहिष्णुता, बहस के लिए ठीक है, राजनाथ इसको लेकर पहले भी हामी भर चुके हैं. लेकिन, इतना बड़ा इल्जाम! राजनाथ को टारगेट करते हुए सलीम के शब्द कटार की तरह वार किए - और राजनाथ तिलमिला उठे. शीतकालीन सत्र अचानक गर्म हो उठी.

किसका बयान?

विवाद इस बात को लेकर तो था ही कि बयान क्यों दिया? विवाद इस बात पर भी है कि बयान असल में किसने दिया? बात आगे बढ़ी तो मालूम हुआ कि बयान तो किसी और ने दिया - और नाम किसी और का उछला.

यानी जिस बात को लेकर राजनाथ को मोहम्मद सलीम ने टारगेट किया वो बयान तो वीएचपी नेता अशोक सिंघल ने दिया था, जिनका हाल ही में निधन हो गया.

बात क्या है?

बात जो भी है वो साल भर पुरानी है. विश्व हिेंदू कांग्रेस के उद्घाटन के मौके पर सिंघल ने कहा था कि 800 साल बाद भारत में स्वाभिमानी हिंदुओं की सरकार बनी है. सिंघल का आशय केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और बीजेपी की सरकार बनने से था. हालांकि, उन्होंने मोदी का नाम नहीं लिया.

सिंघल ने ये भी कहा कि दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान को 800 साल पहले मुस्लिम हमलावरों के हाथ अपना साम्राज्य गंवाना पड़ा था. अब इतने दिनों बाद एक ऐसी सरकार आई है जो हिंदू स्वाभिमान में यकीन रखती है.

लोक सभा में असहिष्णुता पर बहस की शुरुआत करते हुए मोहम्मद सलीम ने इसी बयान को लेकर राजनाथ सिंह का हवाला दिया. सलीम ने कहा कि 800 साल बाद हिंदू शासन वाली बात राजनाथ ने कही थी.

सलीम के इस स्टेटमेंट के बाद राजनाथ गुस्से से लाल हो उठे. सलीम के आरोप पर कड़ी आपत्ति जताते हुए राजनाथ ने कहा कि...

काश! हिंदू हितों को लेकर कोई और बात चल रही होती. राजनाथ सिंह के दोनों हाथ खुद उठ जाते और आगे बढ़ कर तालियां बजाते, बशर्ते घर पर टीवी देख रहे होते. "जय श्रीराम" भी मन में जरूर गूंजता. मोहम्मद सलीम को भी शायद एतराज नहीं होता, अगर उनके हाथ उस पत्रिका का वो खास अंक नहीं लगा होता.

लेकिन काश! वैसा होता कहां है जैसा होता तो अच्छा होता. असहिष्णुता, बहस के लिए ठीक है, राजनाथ इसको लेकर पहले भी हामी भर चुके हैं. लेकिन, इतना बड़ा इल्जाम! राजनाथ को टारगेट करते हुए सलीम के शब्द कटार की तरह वार किए - और राजनाथ तिलमिला उठे. शीतकालीन सत्र अचानक गर्म हो उठी.

किसका बयान?

विवाद इस बात को लेकर तो था ही कि बयान क्यों दिया? विवाद इस बात पर भी है कि बयान असल में किसने दिया? बात आगे बढ़ी तो मालूम हुआ कि बयान तो किसी और ने दिया - और नाम किसी और का उछला.

यानी जिस बात को लेकर राजनाथ को मोहम्मद सलीम ने टारगेट किया वो बयान तो वीएचपी नेता अशोक सिंघल ने दिया था, जिनका हाल ही में निधन हो गया.

बात क्या है?

बात जो भी है वो साल भर पुरानी है. विश्व हिेंदू कांग्रेस के उद्घाटन के मौके पर सिंघल ने कहा था कि 800 साल बाद भारत में स्वाभिमानी हिंदुओं की सरकार बनी है. सिंघल का आशय केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और बीजेपी की सरकार बनने से था. हालांकि, उन्होंने मोदी का नाम नहीं लिया.

सिंघल ने ये भी कहा कि दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान को 800 साल पहले मुस्लिम हमलावरों के हाथ अपना साम्राज्य गंवाना पड़ा था. अब इतने दिनों बाद एक ऐसी सरकार आई है जो हिंदू स्वाभिमान में यकीन रखती है.

लोक सभा में असहिष्णुता पर बहस की शुरुआत करते हुए मोहम्मद सलीम ने इसी बयान को लेकर राजनाथ सिंह का हवाला दिया. सलीम ने कहा कि 800 साल बाद हिंदू शासन वाली बात राजनाथ ने कही थी.

सलीम के इस स्टेटमेंट के बाद राजनाथ गुस्से से लाल हो उठे. सलीम के आरोप पर कड़ी आपत्ति जताते हुए राजनाथ ने कहा कि उन्हें आज तक राजनीति में कभी इतनी तकलीफ नहीं हुई जितनी की आज हुई है. राजनाथ ने कहा कि सलीम या तो सबूत पेश करें या फिर माफी मांगें.

इस पर सलीम ने मैगजीन से राजनाथ का बयान पढ़कर सुना दिया. लगे हाथ चुनौती भी दे डाली कि अगर उन्हें मिसकोट किया गया है तो मैगजीन को लीगल नोटिस भेजें.

अब तक जिस हंगामे की आशंका विपक्ष की ओर से थी वो सत्ता पक्ष की ओर से होने लगा. बीजेपी का कहना है कि सलीम माफी मांगे. लेकिन वो राजी नहीं हुए. होना भी न था. स्पीकर के पास भी कोई चारा न था - इसलिए कार्यवाही स्थगित कर दी. वैसे तो असहिष्णुता पर इस बहस से भी कुछ होने की कम ही गुंजाइश है. बहस चाहे जितनी चले - वोटिंग तो होनी नहीं. फिर तो सड़क और संसद के बहस में फर्क ही क्या बचता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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