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राजस्थान विधानसभा चुनावों में कौन से मुद्दे लेकर मैदान में उतरेंगे अशोक गहलोत!

    • रमेश सर्राफ धमोरा
    • Updated: 16 मार्च, 2023 09:13 PM
  • 16 मार्च, 2023 09:13 PM
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सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा तो मुख्यमंत्री का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री है.

राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने में कुछ महीनों का ही समय शेष रह गया है. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ने के लिए अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. कांग्रेस में चल रहा नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा भी खत्म सा हो गया है. यह तय हो गया है कि अगला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. उनके प्रतिद्वंदी सचिन पायलट ने भी अब मान लिया है कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का समय निकल चुका है. इसीलिए उनकी नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी बंद हो गई है. अब सचिन पायलट कहने लगे हैं कि पार्टी के सभी लोगों की एकजुटता से ही अगला विधानसभा चुनाव जीता जा सकता है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मालूम है कि सरकार चाहे कितने ही विकास के कार्य करवायें. जनता हर पांच साल के बाद सत्ता बदल देती है. राजस्थान के लोगों का मानना है कि सत्ता बदलने से प्रदेश में और अधिक तेजी से विकास कार्य होते हैं. अशोक गहलोत ने अपने पांच साल के कार्यकाल में सचिन पायलट को तो मात दे दी है. मगर अब उनके समक्ष विधानसभा चुनाव सबसे बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं. जहां उन्हें सभी विपक्षी दलों को परास्त कर फिर से सरकार बनानी होगी.

चुनाव कैसे जीतना है इसके लिए राजस्थान में अशोक गहलोत ने कमर कस ली है

गहलोत को पता है कि कांग्रेस में चल रही आपसी गुटबाजी के चलते आम जनता में पार्टी के प्रति अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. इसी कमी को पूरा करने के लिए अशोक गहलोत प्रदेश में विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. गहलोत के सोच की झलक इस बार राजस्थान के आम बजट में भी देखने को मिली है.गहलोत ने अपने इस कार्यकाल के अंतिम बजट को पूरी तरह आमजन का विकासोन्मुखी बजट बनाया...

राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने में कुछ महीनों का ही समय शेष रह गया है. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ने के लिए अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. कांग्रेस में चल रहा नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा भी खत्म सा हो गया है. यह तय हो गया है कि अगला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. उनके प्रतिद्वंदी सचिन पायलट ने भी अब मान लिया है कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का समय निकल चुका है. इसीलिए उनकी नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी बंद हो गई है. अब सचिन पायलट कहने लगे हैं कि पार्टी के सभी लोगों की एकजुटता से ही अगला विधानसभा चुनाव जीता जा सकता है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मालूम है कि सरकार चाहे कितने ही विकास के कार्य करवायें. जनता हर पांच साल के बाद सत्ता बदल देती है. राजस्थान के लोगों का मानना है कि सत्ता बदलने से प्रदेश में और अधिक तेजी से विकास कार्य होते हैं. अशोक गहलोत ने अपने पांच साल के कार्यकाल में सचिन पायलट को तो मात दे दी है. मगर अब उनके समक्ष विधानसभा चुनाव सबसे बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं. जहां उन्हें सभी विपक्षी दलों को परास्त कर फिर से सरकार बनानी होगी.

चुनाव कैसे जीतना है इसके लिए राजस्थान में अशोक गहलोत ने कमर कस ली है

गहलोत को पता है कि कांग्रेस में चल रही आपसी गुटबाजी के चलते आम जनता में पार्टी के प्रति अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. इसी कमी को पूरा करने के लिए अशोक गहलोत प्रदेश में विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. गहलोत के सोच की झलक इस बार राजस्थान के आम बजट में भी देखने को मिली है.गहलोत ने अपने इस कार्यकाल के अंतिम बजट को पूरी तरह आमजन का विकासोन्मुखी बजट बनाया है.

बजट में प्रदेश के आम आदमी का पूरा ख्याल रखा गया है. उनके हित की बहुत सारी योजनाएं शुरू करने की घोषणा की गई है. जिसका गहलोत पूरा राजनीतिक लाभ उठायेगें. गहलोत ने सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से प्रदेश के वृद्ध नागरिकों, विधवा महिलाओं, विकलांगो, अनाथ बच्चों को मिलने वाली मासिक पेंशन राशि में बढ़ोतरी करने की घोषणा कर उन्हें बड़ा आर्थिक संबल प्रदान किया है. जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिलना तय माना जा रहा है.

मुख्यमंत्री बनते ही गहलोत ने उक्त सभी लोगों को मिलने वाली पेंशन की राशि में भी बढ़ोतरी की थी.अपने विकास के एजेंडे के तहत ही मुख्यमंत्री गहलोत ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के निर्माण को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया है. इस नहर परियोजना के पूरा होने से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लोगों को पीने का पानी तो मिलेगा ही साथ ही दो लाख 80 हजार हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध हो सकेगी.

यह परियोजना पूर्वी राजस्थान के लोगों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बनी हुई है. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस परियोजना को केंद्रीय प्रोजेक्ट घोषित कर पूरा करवाने की बात कही थी. मगर केंद्र सरकार ने इस परियोजना को आज तक अपने हाथ में नहीं लिया है. इसी मुद्दे को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बड़े जोर शोर से उठा रहे हैं.

पूर्वी राजस्थान के झालावाड़, बांरा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर सहित इन 13 जिलों में राजस्थान की एक तिहाई से अधिक आबादी रहती है. इस नहर परियोजना के पूरा होने से इस क्षेत्र के लोगों की आर्थिक स्थिति तो सुदृढ़ होगी ही साथ ही उन्हें आने वाले लंबे समय तक पीने का पानी भी उपलब्ध हो सकेगा.

इन 13 जिलों में विधानसभा की 83 सीट आती है. जिनमें से अभी कांग्रेस के पास 49 और भाजपा के पास 25 सीट है. राजनीतिक रूप से भी इन 13 जिलों में अभी कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. मुख्यमंत्री गहलोत इस नहर परियोजना के मुद्दे पर इस क्षेत्र में अपनी पार्टी की  पकड़ को और भी मजबूत करने में लगे हुए हैं. इसीलिए मुख्यमंत्री गहलोत ने इस परियोजना को गति देने के लिए हाल ही में 14 हजार 200 करोड रुपए की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है.

गहलोत सरकार ने अपने पिछले वर्ष के बजट में भी इस परियोजना के लिए 9 हजार 600 करोड रुपए की स्वीकृति जारी की थी. इस तरह प्रदेश सरकार ने इस परियोजना पर अब तक 23 हजार 800 करोड रुपए की स्वीकृति जारी कर चुकी है. इससे उक्त परियोजना में नवनेरा-गलवा-बीसलपुर-ईसरदा लिंक परियोजना, निर्माणाधीन नवनेरा बैराज एवं ईसरदा बांध, रामगढ़ एवं महलपुर बैराज का निर्माण, नवनेरा बैराज, मेज एनीकट तथा गलवा बांध में पंपिंग और विद्युत स्टेशन स्थापित करने तथा बाढ़ के पानी को संग्रहित करने सहित विभिन्न कार्य पूरे किए जा सकेंगे.

इसके साथ ही बीसलपुर बांध की ऊंचाई आधा मीटर बढ़ाने तथा 202.42 किलोमीटर लंबे जल परिवहन तंत्र को विकसित करने के कार्य भी किए जा सकेंगे. इसके अलावा वर्ष 2040 तक जयपुर, अजमेर, टोंक जिले की अतिरिक्त पेयजल आवश्यकताओं तथा जयपुर जिले के शेष ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 16.82 टीएमसी पेयजल की अतिरिक्त मांग को ध्यान में रखते हुए जल प्रबंधन के कार्य किए जा सकेंगे.

प्रदेश के गरीब लोगों को महंगाई से राहत दिलाने के लिए गहलोत ने इस बार के बजट में 19 हजार करोड़ रुपए के महंगाई राहत पैकेज की घोषणा की है. इसमें उज्जवला योजना में शामिल प्रदेश के 76 लाख परिवारों को 500 रूपये में घरेलू गैस सिलेंडर देने व प्रदेश मे खाद्य सुरक्षा योजना से जुड़े एक करोड़ लोगों को प्रतिमाह मुख्यमंत्री निशुल्क अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना शुरू करने की घोषणा की है.

जिसके तहत हर पैकेट में 1 किलो दाल, 1 किलो चीनी, 1 किलो नमक, 1 लीटर खाद्य तेल और मसाले उपलब्ध करवाए जाएंगें. जिस पर राज्य सरकार तीन हजार करोड़ खर्च करेगी. गहलोत की यह योजना 2023 में सत्ता वापसी के लिए मददगार साबित हो सकती है. इसके साथ ही प्रदेश के सभी घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 100 यूनिट प्रतिमाह व कृषि उपभोक्ताओं को दो हजार यूनिट प्रतिमाह मुफ्त बिजली देने तथा मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना में 25 लाख  रुपए तक का निशुल्क उपचार की सुविधा देना शामिल है.

प्रदेश में सरकार द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं में युवाओं से अब कोई परीक्षा शुल्क नहीं लिया जाएगा. यह बेरोजगार अभ्यर्थियों को बहुत बड़ी राहत दी गई है. बेरोजगार युवकों के लिए आगामी वर्ष में एक लाख नई भर्तियां करने की घोषणा कर मुख्यमंत्री ने युवाओं को भी लुभाने का काम किया है. सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा तो मुख्यमंत्री का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री है.

उनकी घोषणा के बाद कई राज्य सरकारों ने इस योजना को लागू करना करने की घोषणा की है. अब हर राज्य के सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रहे हैं. पुरानी पेंशन योजना के मुद्दे पर गहलोत ने भाजपा को राजनीतिक रूप से संकट में डाल दिया है. हाल ही में भाजपा शासित कर्नाटक सरकार ने भी पुरानी पेंशन योजना के अध्ययन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति का गठन किया है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी हर चाल बहुत सावधानी से चल रहे हैं. उन्हें पता है कि एक तरफ उन्हें भाजपा सहित अन्य विरोधी दलों से मुकाबला करना होगा. वही पार्टी में व्याप्त अंदरूनी गुटबाजी को भी काबू में कर उन्हें चुनाव में कांग्रेस को बहुमत दिलाना होगा. तभी उनका चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो पाएगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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