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कैप्टन अमरिंदर को भी योगी की तरह राहुल-सोनिया से 'मार्गदर्शन' की जरूरत है

    • आईचौक
    • Updated: 24 जून, 2021 01:24 PM
  • 24 जून, 2021 01:24 PM
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कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) का मामला भी राहुल गांधी और सोनिया गांधी (Rahul Gandhi and Sonia Gandhi) को योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की तरह ही हैंडल करते, तो बीजेपी नेतृत्व की तरह राजनीतिक साहस दिखाते हुए चुनावों से पहले जोखिम से बच जाते.

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) भी कांग्रेस नेतृत्व के सामने वैसे ही डटे हुए हैं, जैसे 'मार्गदर्शन' मिलने तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. असल में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के दिल्ली दौरे के वक्त बीजेपी नेतृत्व से हर मुलाकात के बाद उनके ट्वीट में मार्गदर्शन शब्द ही कॉमन नजर आ रहा था. योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के तीनों बड़े नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद ट्विटर पर एक जैसी ही जानकारी शेयर की थी.

अब राहुल गांधी और सोनिया गांधी (Rahul Gandhi and Sonia Gandhi) को चाहिये कि पंजाब के मामले में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी बिलकुल वैसा ही मार्गदर्शन दें जैसा मोदी-शाह और जेपी नड्डा ने योगी आदित्यनाथ को दिया था.

योगी आदित्यनाथ को मोदी-शाह से मिले मार्गदर्शन पर रहस्य से पर्दा तब उठा जब वो लखनऊ लौटे. योगी आदित्यनाथ के लौटने के बाद खबर आयी कि बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा को प्रदेश बीजेपी का उपाध्यक्ष बना दिया गया है. ये खबर उन सभी के लिए हैरानी भरी थी, जो मान कर चल रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी के करीबी और भरोसेमंद अफसर रहे अरविंद शर्मा को यूपी कैबिनेट में जगह तो पक्की ही है. कई बात तो अरविंद शर्मा को डिप्टी सीएम तक बनाने की खबर आयी, लेकिन संगठन में उनके जाते ही मान लिया गया कि सरकार में शुमार किये जाने का चैप्टर बंद हो गया.

अरविंद शर्मा के केस में समझ में तो यही आया कि योगी आदित्यनाथ उनको कैबिनेट में लेने को राजी नहीं हुए. खबरें तो पहले भी आयी थीं कि योगी आदित्यनाथ उनको राज्य मंत्री तक बनाने को तैयार हैं, लेकिन कैबिनेट दर्जा देने को तो कतई राजी नहीं हैं. साथ ही साथ समझ में ये भी आ गया कि बीजेपी नेतृत्व ने ओदी आदित्यनाथ की जिद के आगे पीछे हटने का सही फैसला लिया - और...

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) भी कांग्रेस नेतृत्व के सामने वैसे ही डटे हुए हैं, जैसे 'मार्गदर्शन' मिलने तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. असल में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के दिल्ली दौरे के वक्त बीजेपी नेतृत्व से हर मुलाकात के बाद उनके ट्वीट में मार्गदर्शन शब्द ही कॉमन नजर आ रहा था. योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के तीनों बड़े नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद ट्विटर पर एक जैसी ही जानकारी शेयर की थी.

अब राहुल गांधी और सोनिया गांधी (Rahul Gandhi and Sonia Gandhi) को चाहिये कि पंजाब के मामले में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी बिलकुल वैसा ही मार्गदर्शन दें जैसा मोदी-शाह और जेपी नड्डा ने योगी आदित्यनाथ को दिया था.

योगी आदित्यनाथ को मोदी-शाह से मिले मार्गदर्शन पर रहस्य से पर्दा तब उठा जब वो लखनऊ लौटे. योगी आदित्यनाथ के लौटने के बाद खबर आयी कि बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा को प्रदेश बीजेपी का उपाध्यक्ष बना दिया गया है. ये खबर उन सभी के लिए हैरानी भरी थी, जो मान कर चल रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी के करीबी और भरोसेमंद अफसर रहे अरविंद शर्मा को यूपी कैबिनेट में जगह तो पक्की ही है. कई बात तो अरविंद शर्मा को डिप्टी सीएम तक बनाने की खबर आयी, लेकिन संगठन में उनके जाते ही मान लिया गया कि सरकार में शुमार किये जाने का चैप्टर बंद हो गया.

अरविंद शर्मा के केस में समझ में तो यही आया कि योगी आदित्यनाथ उनको कैबिनेट में लेने को राजी नहीं हुए. खबरें तो पहले भी आयी थीं कि योगी आदित्यनाथ उनको राज्य मंत्री तक बनाने को तैयार हैं, लेकिन कैबिनेट दर्जा देने को तो कतई राजी नहीं हैं. साथ ही साथ समझ में ये भी आ गया कि बीजेपी नेतृत्व ने ओदी आदित्यनाथ की जिद के आगे पीछे हटने का सही फैसला लिया - और चुनावों के ऐन पहले कोई भी जोखिम उठाना खतरे से खानी नहीं समझा गया.

ये ठीक है कि देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश की तरह पंजाब को प्रधानमंत्री पद के लिए ग्रीन कॉरिडोर नहीं माना जाता. बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश की अहमियत संसदीय सीटों की भारी संख्या के चलते भी ज्यादा है, लेकिन कांग्रेस के लिए पंजाब क्या उतना महत्वपूर्ण नहीं है?

राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब सहित तीन राज्यों में ही तो कांग्रेस की अपनी सरकार है क्योंकि महाराष्ट्र और झारखंड में तो हिस्सेदार भर है. महाराष्ट्र में वैसे भी कांग्रेस कब तक बनी रहेगी कहना मुश्किल है. ऐसा इसलिए नहीं कि शिवसेना, बीजेपी से हाथ मिला कर या एनसीपी, कांग्रेस विधायकों को तोड़ कर गठबंधन से बाहर कर देगी - बल्कि, इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले की महत्वाकांक्षा बढ़ती ही जा रही है. राहुल गांधी का नाना पटोले की पीठ पर हाथ उत्प्रेरक का काम कर रहा है - और नाना पटोले को लगने लगा है कि विशेष परिस्थितियों में महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव हुए तो कांग्रेस इतनी सीटें तो जीत ही लेगी कि सरकार बनाते वक्त अपने हिस्से में मुख्यमंत्री पद के लिए किसी भी पार्टी पर दबाव बनाने में कामयाब रहेगी.

पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू की बगावत पुरानी अदावत का ही हिस्सा है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व अब तक लालन पालन में लगा था और विधानसभा चुनाव के ऐन पहले पंचायत शुरू कर दिया - मुश्किल ये है कि न कैप्टन अमरिंदर पीछे हटने को तैयार हैं, न नवजोत सिंह सिद्धू और न ही दोनों में से कोई मल्लिकार्जुन खड़गे की बातें सुनने को तैयार है.

झगड़े की आग में घी तो कांग्रेस नेतृत्व ही डालता है

पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू भी मंत्री बने, लेकिन कुछ दिन बाद ही झगड़ा शुरू हो गया - और साल भर बाद ही 2018 के विधानसभा चुनावों में दोनों का झगड़ा खुल कर सामने आ गया.

तब से अब तक देखने को तो यही मिला है कि जब भी दिल्ली से नवजोत सिंह सिद्धू की पीठ ठोक दी जाती है, वो खूब बवाल करते हैं, लेकिन जैसे ही कदम पीछे खींच लिये जाते हैं, सिद्धू ठंडे पड़ जाते हैं. लगता तो ऐसा ही है कि कांग्रेस नेतृत्व जान बूझ कर कैप्टन और सिद्धू के बीच टकराव का माहौल बनाये रखता है.

तेलंगाना विधानसभा चुनाव कैंपेन के दौरान ही नवजोत सिंह सिद्धू के बयान पर खूब बवाल हुआ - मेरे कैप्टन तो राहुल गांधी हैं, मैं किसी और कैप्टन को नहीं जानता.

जब तक कांग्रेस नेतृत्व सिद्धू को ये नहीं समझा पाता कि उनका कैप्टन कौन है, पंजाब को भी कांग्रेस रिस्क जोन में रख सकती है.

जब राहुल गांधी को भी नवजोत सिंह सिद्धू का ये बयान ठीक नहीं लगा तो तेवर नरम पड़ गये. सिद्धू के साथ साथ उनकी पत्नी नवजोत कौर भी कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रही थीं, लेकिन जब सिद्धू को कांग्रेस नेतृत्व का सपोर्ट नहीं मिला तो वो भी कैप्टन को पिता तुल्य बताने लगीं. बार बार सफाई दी गयी, लेकिन झगड़ा अपनी जगह कायम रहा.

विधानसभा चुनावों से पहले ही कैप्टन और सिद्धू में दरार उस वक्त ज्यादा बढ़ गयी जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर कॉरिडोर के लिए बुलावा भेजा. इमरान खान को अपना यार बताते हुए सिद्धू पाकिस्तान गये - और एक कार्यक्रम में जब पाक आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा की गले मिलते तस्वीरें वायरल हुईं तो विवाद बढ़ता ही गया.

एक तरफ कैप्टन अमरिंदर ने न्योता ठुकराते हुए पाकिस्तान न जाने का स्टैंड लिया तो दूसरी तरफ सिद्धू विवादों में फंस गये और राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर आ गये. सिद्धू को देशद्रोही की तरह ट्रीट किया जाने लगा, फिर भी वो अपने रवैये में बदलाव लाने को तैयार न हुए.

विवाद बढ़ता ही जा रहा था, लेकिन सिद्धू तब तक नहीं माने जब तक कि नेतृत्व का वरदहस्त कायम रहा. 2019 के आम चुनाव के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और उसके साथ ही सिद्धू के बुरे दिन शुरू हो गये.

सिद्धू ने दिल्ली पहुंच कर सोनिया गांधी से मिलने की कोशिश की, लेकिन तब उनको अहमद पटेल के पास भेज दिया गया. अहमद पटेल ने अपने हिसाब से समझा बुझा कर भेज दिया. मुलाकात को लेकर सिद्धू ने ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर की थी जिसमें उनके साथ अहमद पटेल और प्रियंका गांधी वाड्रा भी थीं.

कुछ दिन तक इंतजार करने के बाद आखिरकार निराश होकर सिद्धू ने जुलाई, 2019 में ट्विटर पर ही मंत्री पद से अपना इस्तीफा शेयर किया और ये भी जानकारी दी कि अपना सरकारी बंगाल भी खाली करने जा रहे हैं.

फिर फरवरी, 2020 में सिद्धू ने दिल्ली पहुंच कर सोनिया गांधी से मुलाकात की. बताते हैं कि मुलाकात के दौरान सिद्धू ने पंजाब को लेकर अपने एक्शन प्लान का प्रेजेंटेशन भी दिखाया था - और एक बार फिर सिद्धू की प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ सोनिया गांधी की तस्वीर भी सामने आयी.

इस्तीफा देने के करीब साल भर बाद जून, 2020 में नवजोत सिंह सिद्धू के प्रति कैप्टन अमरिंदर ने नरम रुख के संकेत दिये. तब सिद्धू के आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने को लेकर खबरें आ रही थीं. ये भी खबर रही कि कोई और नहीं बल्कि प्रशांत किशोर ही सिद्धू और अरविंद केजरीवाल के बीच बातचीत के माध्यम बने हुए हैं, लेकिन तभी कैप्टन अमरिंदर ने सामने आकर खंडन किया कि सिद्धू कांग्रेस में ही बने हुए हैं और प्रशांत किशोर से बातचीत का हवाला देते हुए बोले की सारी खबरें बेबुनियाद हैं.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस में बने एक से ज्यादा पावर सेंटर ही ऐसे झगड़ों की जड़ हैं. समझा जाता है कि बाकी बुजुर्ग नेताओं की तरह सोनिया गांधी को कैप्टन अमरिंदर पर भरोसा रहता है, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अपनी शेरो-शायरी के जरिये इम्प्रेस कर लेने वाले सिद्धू में संभावना ज्यादा नजर आती है - क्योंकि दोनों भाई बहन मानते हैं कि सिद्धू पंजाब के युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और कैप्टन अमरिंदर मार्गदर्शक मंडल वाले कैटेगरी में पहुंच चुके हैं.

कैप्टन और सिद्धू की जो तकरार करीब करीब खत्म हो चुकी थी, वो पांच साल बाद फिर से होने जा रहे चुनावों के ऐन पहले फिर से शुरू हो चुकी है और बढ़ती ही जा रही है - और ये झगड़ा महज इसीलिए फल फूल रहा है क्योंकि पूरा खाद पानी कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से ही मिलता है.

मोदी शाह की तरह साहस क्यों नहीं दिखाते राहुल सोनिया

2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी छोड़ने के बाद नवजोत सिद्धू आम आदमी पार्टी में जाने वाले थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल से मनमाफिक डील नहीं हुई तो आवाज-ए-पंजाब नाम से एक मंच बना लिये थे और कुछ लोगों के साथ चुनावों की तैयारियों में जुट गये थे, तभी कांग्रेस के साथ बातचीत हुई और पार्टी में शामिल हो गये, लेकिन ज्यादा दिन नहीं बीते और झगड़े भी शुरू हो गये.

ऐसा भी नहीं कि 2017 के चुनाव से पहले सारी चीजें ठीक ठाक चल रही थीं. तब भी कैप्टन को कांग्रेस नेतृत्व से लड़ कर सूबे में पार्टी की कमान हासिल करनी पड़ी थी - और सत्ता दिलाने के वादे के साथ डंके की चोट पर चुनाव जीते भी. तब भी पंजाब कांग्रेस दो गुटों में बंटी हुई थी. एक गुट कैप्टन अमरिंदर का तो दूसरा उनसे पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे, प्रताप सिंह बाजवा का. अब जबकि बाजवा को लग रहा है कि कहीं कमान सिद्धू के हाथ में न चली जाये, वो कैप्टन से हाथ मिला चुके हैं, ऐसी खबरें आ रही हैं.

देखा जाये तो राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के सामने बिलकुल वही परिस्थितियां चुनौती बनी हुई हैं जैसी कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के सामने बनी रहीं. तब योगी आदित्यनाथ को दिल्ली दरबार में हाजिरी लगानी पड़ी थी और अभी कैप्टन अमरिंदर सिंह डेरा डाले हुए हैं.

जैसे योगी आदित्यनाथ के मन में बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा को लेकर तब ख्याल आते रहे होंगे, ठीक वैसे ही फिलहाल कैप्टन अमरिंदर सिंह के मन में आ रहे होंगे.

बीजेपी नेतृत्व ने तो पहले योगी आदित्यनाथ की रिपोर्ट मंगा ली थी और सामने बिठा कर समझाने की कोशिश की. कांग्रेस नेतृत्व ने अपनी परंपरा के अनुसार तीन सदस्यों की एक कमेटी बना दी और कैप्टन अमरिंदर के साथ साथ सिद्धू और तमाम दूसरे नेताओं को पेश होकर अपनी अपनी पीड़ा साझा करनी पड़ी है - लेकिन उसका कोई नतीजा निकलने वाला हो ऐसा भी नहीं लगता.

देखा जाये तो जो योगी आदित्यनाथ अभी कर रहे हैं, कैप्टन अमरिंदर सिंह पांच साल पहले मिलता जुलता प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी वाड्रा आसानी से इस बार मान जाने के मूड में नहीं हैं. खबर ये जरूर आ रही है कि मजबूरी में ही सही कांग्रेस नेतृत्व ने कैप्टन के पक्ष में सकारात्मक रुख दिखाया है, लेकिन सिद्धू को कहीं अलग ऐडजस्ट करने का कोई रास्ता नहीं निकाला है - जैसे बीजेपी ने अरविंद शर्मा को संगठन में भेज कर टकराव को चुनावों तक टाल देने का फैसला किया.

बाकी मामलों में न सही लेकिन गांधी परिवार को कम से कम इस मामले में तो मोदी-शाह के राजनीतिक साहस से सबक लेते हुए आंख मूंद कर कदम बढ़ाने चाहिये - वरना, पंजाब में भी हरियाणा का हाल होते देन नहीं लगने वाली जब कोई और कोई नया गठबंधन सरकार बना लेगा और कांग्रेस नेतृत्व मन मसोस कर रह जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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