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पायलट-सिंधिया या फिर प्रियंका-गहलोत कौन है वो? जो बनेगा राहुल का 'राइट हैंड'

    • युसुफ बेग
    • Updated: 12 जून, 2019 06:51 PM
  • 12 जून, 2019 06:44 PM
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यदि राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस लेते हैं तो कांग्रेस उनके कार्यभार को साझा करने के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष का चुनाव कर सकती है. ऐसे में 4 नाम हैं जो सामने आ रहे हैं. यदि इन चारों ही नामों को देखा जाए तो ये सभी किसी न किसी तरह से राहुल के करीब हैं.

2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली करारी हार की जिम्मेदारी राहुल गांधी ने ली और अपने इस्तीफे की पेशकश की. खबर आने के बाद कि राहुल गांधी इस्तीफा दे रहे हैं, पार्टी में हाहाकार मच गया. सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं समेत कार्यकर्ताओं तक ने राहुल गांधी के इस्तीफे का विरोध किया और पार्टी तक ने इस्तीफा लेने से इंकार कर दिया. राहुल गांधी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और उनके इस्तीफे पर मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस के डूबते जहाज को राहुल गांधी का इस्तीफा बचाएगा या नहीं  इसका जवाब वक्त की गर्त में छुपा है. मगर जैसा पार्टी का रुख है वो इस बात को साफ कर देता है कि राहुल गांधी अपने पद पर बने रहेंगे और ऊहापोह की ये स्थिति पार्टी में अभी लम्बे समय तक बरक़रार रहेगी. खबर ये भी है कि अगर राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस लेते हैं तो कांग्रेस उनके कार्यभार को साझा करने के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष का चुनाव कर सकती है. माना जा रहा है कि पार्टी का नया अध्यक्ष राहुल गांधी की जिम्मेदारियों का कुछ भार अपने कंधे पर लेगा. जिससे राहुल उन मुद्दों पर सोच पाएंगे जिन पर यदि उन्होंने काम कर लिया तो आने वाले वक़्त में पार्टी की स्थिति अच्छी हो जाएगी.

राहुल गांधी द्वारा इस्तीफ़ा वापस लिए जाने के बाद पार्टी एक कार्यकारी अध्यक्ष चुनने का विचार बना रही है

तो आइये जानें कौन कौन हैं वो लोग जो न सिर्फ राहुल गांधी के लिए मददगार साबित होंगे बल्कि आने वाले समय में पार्टी तक को एक नई दिशा देकर उसे भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए तैयार करेंगे.

सचिन पायलट

सचिन पायलट और राहुल गांधी का रिश्ता किसी से छुपा नहीं है. सचिन पायलट के विषय में यही कहा जाता है कि, उनका शुमार राहुल गांधी के...

2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली करारी हार की जिम्मेदारी राहुल गांधी ने ली और अपने इस्तीफे की पेशकश की. खबर आने के बाद कि राहुल गांधी इस्तीफा दे रहे हैं, पार्टी में हाहाकार मच गया. सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं समेत कार्यकर्ताओं तक ने राहुल गांधी के इस्तीफे का विरोध किया और पार्टी तक ने इस्तीफा लेने से इंकार कर दिया. राहुल गांधी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और उनके इस्तीफे पर मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस के डूबते जहाज को राहुल गांधी का इस्तीफा बचाएगा या नहीं  इसका जवाब वक्त की गर्त में छुपा है. मगर जैसा पार्टी का रुख है वो इस बात को साफ कर देता है कि राहुल गांधी अपने पद पर बने रहेंगे और ऊहापोह की ये स्थिति पार्टी में अभी लम्बे समय तक बरक़रार रहेगी. खबर ये भी है कि अगर राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस लेते हैं तो कांग्रेस उनके कार्यभार को साझा करने के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष का चुनाव कर सकती है. माना जा रहा है कि पार्टी का नया अध्यक्ष राहुल गांधी की जिम्मेदारियों का कुछ भार अपने कंधे पर लेगा. जिससे राहुल उन मुद्दों पर सोच पाएंगे जिन पर यदि उन्होंने काम कर लिया तो आने वाले वक़्त में पार्टी की स्थिति अच्छी हो जाएगी.

राहुल गांधी द्वारा इस्तीफ़ा वापस लिए जाने के बाद पार्टी एक कार्यकारी अध्यक्ष चुनने का विचार बना रही है

तो आइये जानें कौन कौन हैं वो लोग जो न सिर्फ राहुल गांधी के लिए मददगार साबित होंगे बल्कि आने वाले समय में पार्टी तक को एक नई दिशा देकर उसे भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए तैयार करेंगे.

सचिन पायलट

सचिन पायलट और राहुल गांधी का रिश्ता किसी से छुपा नहीं है. सचिन पायलट के विषय में यही कहा जाता है कि, उनका शुमार राहुल गांधी के विश्वासपात्रों में है. साथ ही वो पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं द्वारा भी खासे पसंद किये जाते हैं. सचिन पायलट ने जिस तरह की राजनीति की है. या फिर वो जिस तरह से राजनीति करते हैं. यदि उसका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि वो हमेशा आगे आकर खेलने वाले नेता है साथ ही वो एक हद तक जनता में भी खासे लोकप्रिय हैं.

41 साल के सचिन अपने आपको युवाओं से कनेक्ट करते हैं और इसे वो अहम कारण माना जाता है जो उन्हें पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी का चहीता बनाता है. इसके अलावा पायलट कांग्रेस पार्टी के उन चुनिन्दा नेताओं से एक हैं जिन्होंने उन जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह किया जो उन्हें  पार्टी की तरफ से दी गयीं थीं.

बात समझने के लिए हम राजस्थान का रुख कर सकते हैं. 2013 में जब सचिन को कांग्रेस के पुनर्निर्माण के लिए राजस्थान भेजा गया था उन्होंने अपना काम बखूबी अंजाम दिया. सचिन अपने काम में कितने कुशल थे इसे हम 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव से भी समझ सकते हैं जहां ये सचिन पायलट की कार्यशैली ही थी जिसके दम पर उनका नाम राज्य के मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित हुआ लेकिन बाद में अशोक गहलोत को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.

सचिन पायलट का शुमार राहुल गांधी के करीबियों में है

यदि सचिन पायलट नए अध्यक्ष बनते हैं तो माना यही जा रहा है कि उनकी नियुक्ति निश्चित रूप से  खातमे की कगार पर आ चुकी कांग्रेस पार्टी का कायाकल्प कर देगी.

ऐसा नहीं है कि सचिन के साथ सब कुछ अच्छा ही है. जहां गुण हैं वहां दोष भी है. यदि सचिन पायलट के रवैये को देखें तो मिलता है कि वो जी हुजूरी करने वाले नेता नहीं है और उन्हें फैसले लेना आता है इसलिए उन्हें शायद थोड़ी बहुत दिक्कतों का भी सामना करना पड़े. ऐसा इसलिए भी क्योंकि जैसा राहुल गांधी का स्वाभाव है उन्हें वो लोग बिल्कुल नहीं पसंद हैं जो उनके फैसलों से इतर फैसला लें.

अशोक गहलोत

हालांकि अपने बेटे वैभव के कारण अशोक गहलोत खासी किरकिरी का सामना कर चुके हैं मगर पार्टी में जो उनका कद है उस कद के कारण अध्यक्ष / राहुल गांधी का सहयोगी बनने की इस रेस में उनका भी नाम आगे आ रहा है. कांग्रेसी नेता अहमद पटेल के खास गहलोत, इसलिए भी चर्चा में हैं क्योंकि अहमद खुद सोनिया के विश्वासपात्र हैं और कहा यही जाता है कि सोनिया खुद उनकी बातें नहीं टालती हैं.

गहलोत को पार्टी के लोगों द्वारा पसंद किया जाता है. साथ ही वर्तमान में उनका शुमार उन नेताओं में है जो पार्टी में कद्दावर स्थिति रखते हैं. बात अगर गहलोत की खूबियों कि हो तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो लोगों को एकजुट रखने की क्षमता रखता है.

ज्ञात हो कि राजस्थान के मुख्यमंत्री होने के अलावा गहलोत प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और कांग्रेस सके राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं. साथ ही उन्होंने 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव और 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी अहम योगदान दिया था. यदि गहलोत दिल्ली आते हैं तो इसे कांग्रेस की तरफ से एक तीर से दो शिकार कहा जाएगा ऐसा इस लिए क्योंकि जहां एक तरफ कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलेगा वहीं राजस्थान में मचा गतिरोध थम जाएगा.

अशोक गहलोत को न सिर्फ कांग्रेस का बल्कि सोनिया गांधी का वफादार माना जाता है

इतनी खूबियों के बावजूद बड़ा सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी गहलोत को मौका देंगे ? इस सवाल का जवाब भी हमें आने वाला वक़्त देगा.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कांग्रेस अध्यक्ष पद अहम उम्मीदवार माना जा रहा है. बात अगर कारण की हो तो सिंधिया सिर्फ इसलिए इस रेस में आए हैं क्योंकि वो राहुल ब्रिगेड के अहम सदस्य हैं. चूंकि सिंधिया का खुद का राजनीतिक वजन बहुत कम है. इसलिए कहा यही जा रहा है कि यदि पार्टी उन्हें अध्यक्ष बना देती है तो राहुल और सोनिया गांधी को पार्टी के लिए एक ऐसा व्यक्ति मिल जाएगा जो न सिर्फ उनकी बातें सुनेगा बल्कि उसे अमली जमा तक पहनाएगा.

सिंधिया की राजनीति कितनी कारगर है इसे न सिर्फ हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी की खराब परफॉरमेंस से समझ सकते हैं बल्कि गुना सीट से इनकी खुदकी हार देख सकते हैं. कहने को सिंधिया मध्य प्रदेश का एक बड़ा चेहरा हैं मगर जब हम मध्य प्रदेश की राजनीति का रुख करते हैं तो मिलता है कि वहां पार्टी बुरी तरह से गुटबाजी का शिकार है.

ज्योतिरादित्य राहुल गांधी के चहीते हैं ये बात उन्हें फायदा दे सकती है

चाहे वो ज्योतिरादित्य सिंधियाहों या फिर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह हर कोई यही चाहता है कि सत्ता उसके पास रहे. ऐसे में यदि इन तीनों में से कोई भी आलाकमान से नजदीकी बनाता है तो विरोधी खेमे में बेचैनी बढ़ना लाजमी है. अब जबकि सिंधिया का नाम सामने आ ही गया है तो ये देखना भी दिलचस्प रहेगा कि पार्टी इनके नाम पर मोहर लगाकर इन्हें इनके काम का इनाम देती है या नहीं.

प्रियंका गांधी वाड्रा

बात कांग्रेस के एक ऐसे अध्यक्ष की चल रही है जो न सिर्फ पार्टी को मजबूती दे. बल्कि राहुल गांधी के कन्धों का भार अपने कंधे पर ले ऐसे में इस पद का एक बड़ा दावेदार प्रियंका गांधी को माना जा रहा है. कह सकते हैं कि एक राजवंशीय शासन के तहत अपना सारा राजनीतिक जीवन व्यतीत करने के बाद, कांग्रेस के नेता दूसरे गांधी की यथास्थिति का स्वागत करेंगे. कहा जा सकता है कि पार्टी में प्रियंका के लिए अपार संभावनाएं हैं और यहां रहकर वो राहुल गांधी के अलावा पार्टी के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं.

इस रेस में प्रियंका गांधी का नाम क्यों आया? इसके पीछे की वजह उनके चार्म को माना जा रहा है. क्योंकि ये गांधी नेहरू की विरासत को आगे लाई हैं, इसलिए कहीं न कहीं जनता से भी इन्हें समर्थन मिल रहा है. बात अगर पार्टी की हो तो कहीं न कहीं पार्टी भी इस बात को बखूबी जानती है कि यदि प्रियंका अध्यक्ष बनती हैं और राहुल की मदद के लिए आगे आती हैं तो भाई और बहन के बीच फैसलों को लेकर गतिरोध और अन्तर्विरोध कम होगा और सबसे अच्छी बात ये भी होगी सत्ता भी उसी परिवार में रहेगी जहां वो वर्तमान में है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या प्रियंका इस जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगी ? ये सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जिस तरह उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका निभाई है और जिस तरह के परिणाम आए हैं वो उतने संतोषजनक नहीं थे जितने की उम्मीद की जा रही थी. इसके अलावा एक परेशानी खुद प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा हैं जिनपर भ्रष्टाचार के तमाम गंभीर आरोप हैं.

प्रियंका यदि अध्यक्ष बनती हैं तो सत्ता परिवार में ही रहेगी

बहरहाल, एक ऐसे वक़्त में, जब पार्टी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है बेहतर यही होगा कि जल्द से जल्द स्थिति साफ हो जाए और उस नाम की घोषणा हो जाए जो राहुल गांधी के साथ मिलकर कांग्रेस की डूबती नैया का खेवैया बनेगा. बाक़ी बात नामों की चल रही है तो जैराम रमेश, अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद और दिग्विजय सिंह वो नाम है जिनको लेकर पार्टी के अन्दर सुगबुगाहट मची हुई है और कहा जा रहा है कि यदि इनमें से कोई अध्यक्ष बनता है तो इनका अनुभव पार्टी के लिए मददगार साबित हो सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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