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राहुल गांधी ने महंगाई पर रैली में कांग्रेस का 'आटा' गीला कर दिया!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 04 सितम्बर, 2022 10:33 PM
  • 04 सितम्बर, 2022 10:24 PM
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कांग्रेस की जयपुर रैली के बाद ये तीसरा मौका था जब महंगाई (Congress Rally on Inflation) जैसे गंभीर मुद्दे पर मोदी सरकार (Modi Sarkar) के घेरने की जगह बहस रास्ता भटक गयी - क्योंकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की जबान फिसल गयी. अगर वो अलर्ट नहीं रहे तो बर्बादियों का सिलसिला नहीं थमने वाला.

भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में महंगाई पर रैली (Congress Rally on Inflation) बुलायी थी, लेकिन हुआ वही जिसकी बहुतों को आशंका रही होगी - अचानक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की जबान फिसली और वो ट्रोल होने लगे.

राहुल गांधी ने रैली में बहुत सी गंभीर बातें भी की. मोदी सरकार (Modi Sarkar) पर जोरदार हमला बोलते हुए देश के सामने खड़े जरूरी मुद्दे भी उठाये, लेकिन जैसे ही उनके राजनीतिक विरोधियों ने रैली का एक वीडियो क्लिप शेयर किया सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी को उस बात का अंदाजा नहीं रहा - और भूल सुधार नहीं किया, लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुकी थी.

राहुल गांधी से जिस तरह की चूक हुई है, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से अक्सर होती रहती है. फिर भी कोई ध्यान नहीं देता. बाकी नेताओं की ऐसी गलतियों पर ध्यान इसलिए नहीं दिया जाता क्योंकि उनके मामले में यही माना जाता है कि जबान फिसल गयी होगी, लेकिन राहुल गांधी को लेकर लोगों के मन में अलग ही धारणा बन चुकी है.

ऐसे में जबकि कुछ खास वजहों से राहुल गांधी की नॉन-सीरियस छवि बन चुकी है, या फिर बना दी गयी है - हर कदम फूंक फूंक कर बढ़ना चाहिये. हर शब्द काफी सोच समझ कर कहना चाहिये, लेकिन लगता नहीं कि वो ऐसी चीजों को कभी गंभीरता से लेते हैं.

होता ये है कि राहुल गांधी की एक गलती लोग भूले भी नहीं होते हैं, तभी वो नयी गलती कर देते हैं - और फिर तो फजीहत होना तय होता है. जब तक राहुल गांधी खुद ऐसी चीजों को सीरियसली नहीं लेते. जब तक राहुल गांधी को खुद ऐसी गलतियों का एहसास नहीं होता, कोई कुछ कर भी नहीं सकता है.

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट विश्वास का है. और राहुल गांधी के सामने भी वैसी ही मुश्किल है. जब तक लोगों को विश्वास नहीं होगा, उनके मन में बसी छवि नहीं बदलेगी. ये छवि तभी बदलेगी जब लोग विकल्प की ओर देखेंगे - और राहुल गांधी और कांग्रेस उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे.

अगर कांग्रेस और राहुल गांधी लोगों को...

भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में महंगाई पर रैली (Congress Rally on Inflation) बुलायी थी, लेकिन हुआ वही जिसकी बहुतों को आशंका रही होगी - अचानक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की जबान फिसली और वो ट्रोल होने लगे.

राहुल गांधी ने रैली में बहुत सी गंभीर बातें भी की. मोदी सरकार (Modi Sarkar) पर जोरदार हमला बोलते हुए देश के सामने खड़े जरूरी मुद्दे भी उठाये, लेकिन जैसे ही उनके राजनीतिक विरोधियों ने रैली का एक वीडियो क्लिप शेयर किया सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी को उस बात का अंदाजा नहीं रहा - और भूल सुधार नहीं किया, लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुकी थी.

राहुल गांधी से जिस तरह की चूक हुई है, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से अक्सर होती रहती है. फिर भी कोई ध्यान नहीं देता. बाकी नेताओं की ऐसी गलतियों पर ध्यान इसलिए नहीं दिया जाता क्योंकि उनके मामले में यही माना जाता है कि जबान फिसल गयी होगी, लेकिन राहुल गांधी को लेकर लोगों के मन में अलग ही धारणा बन चुकी है.

ऐसे में जबकि कुछ खास वजहों से राहुल गांधी की नॉन-सीरियस छवि बन चुकी है, या फिर बना दी गयी है - हर कदम फूंक फूंक कर बढ़ना चाहिये. हर शब्द काफी सोच समझ कर कहना चाहिये, लेकिन लगता नहीं कि वो ऐसी चीजों को कभी गंभीरता से लेते हैं.

होता ये है कि राहुल गांधी की एक गलती लोग भूले भी नहीं होते हैं, तभी वो नयी गलती कर देते हैं - और फिर तो फजीहत होना तय होता है. जब तक राहुल गांधी खुद ऐसी चीजों को सीरियसली नहीं लेते. जब तक राहुल गांधी को खुद ऐसी गलतियों का एहसास नहीं होता, कोई कुछ कर भी नहीं सकता है.

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट विश्वास का है. और राहुल गांधी के सामने भी वैसी ही मुश्किल है. जब तक लोगों को विश्वास नहीं होगा, उनके मन में बसी छवि नहीं बदलेगी. ये छवि तभी बदलेगी जब लोग विकल्प की ओर देखेंगे - और राहुल गांधी और कांग्रेस उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे.

अगर कांग्रेस और राहुल गांधी लोगों को अपने एक्शन से विश्वास दिलाने की कोशिश करें तो बात बन भी सकती है, लेकिन तब तक चौकन्ना रहना होगा - और जब तक राहुल गांधी खुद अंतरात्मा की ऐसी कोई पुकार नहीं सुनते कुछ नहीं होने वाला है.

सिर्फ सड़क पर चलते वक्त ही नहीं, राहुल गांधी को हमेशा एक बात दिमाग में रख कर ही किसी काम को करना चाहिये या कहीं भी आगे बढ़ना चाहिये - सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. क्योंकि राहुल गांधी के साथ ऐसा ही हो रहा है. कुछ अनजाने में, कुछ जानबूझ कर.

जम्मू से आजाद ने दी राहुल गांधी को नसीहत: राहुल गांधी की रामलीला मैदान की रैली के समानांतर ही, जम्मू में गुलाम नबी आजाद की रैली हो रही थी. कांग्रेस छोड़ते वक्त गुलाम नबी आजाद ने जो बातें सोनिया गांधी को संबोधित चिट्ठी में लिखी थी, अपनी रैली में नये तरीके से पेश कर रहे थे.

कांग्रेस नेतृत्व को टारगेट करते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद रैली में कह रहे थे, मेरी अलग पार्टी बनने से उनको बैखलाहट हो रही है... मैं किसी के लिए बुरा नहीं चाहूंगा.

गुलाम नबी आजाद ने कहा, 'कांग्रेस कंप्यूटर और ट्विटर से नहीं बनी है, बल्कि ये खून-पसीने से बनी है' - और दावा किया, 'हमने कांग्रेस को बनाया है.'

वो जो भी बातें कर रहे थे, निशाने पर तो राहुल गांधी ही नजर आ रहे थे. कह रहे थे, 'मैं घर में कंप्यूटर चलाने वालों की तरह नहीं हूं... मैं जमीन से जुड़ा हुआ हूं... जमीन से गायब होने का सबसे बड़ा कारण ये है कि उनकी पहुंच सिर्फ कंप्यूटर, ट्विटर और एसएमएस पर है... मैं दुआ करता हूं कि उन्हें ट्वीट नसीब करे और हमें जमीन नसीब करे... वो ट्विटर पर ही खुश रहें.

भूल सुधार पर जोर देना चाहिये था

महंगाई पर हल्ला बोलने का संदेश लिये बुलायी गयी रामलीला मैदान की रैली में राहुल गांधी का कहना था, 'आपको आज जो बेरोजगारी दिख रही है... वो आने वाले समय में और बढ़ेगी... आपको एक तरफ बेरोजगारी की चोट लग रही है और दूसरी तरफ महंगाई की.'

और इसी क्रम में राहुल गांधी पेट्रोल, डीजल, सरसों तेल की कीमतें बता रहे थे. उनके पास 2014 की कीमत और अब हो चुकी कीमत की एक लिस्ट थी, जिसे देखते हुए वो बता रहे थे. जिस लिस्ट में पहले पेट्रोल, डीजल और सरसों तेल के दाम बताये गये थे, आगे आटे की कीमत की तुलना की गयी थी. चूंकि पहले की चीजें लीटर में बतायी जाने वाली थीं, राहुल गांधी आटे के लिए यूनिट के तौर पर किलोग्राम की जगह लीटर में ही बता दिया.

राहुल गांधी की राजनीति ऐसे नाजुक मोड़ से गुजर रही है कि हर कदम पर चौकन्ना रहना जरूरी हो गया, वरना चारों तरफ उनके विरोधी घात लगा कर बैठे हुए हैं

आटे के लिए भी लीटर बोल देने के बाद राहुल गांधी एक पल के लिए रुके और बोले - केजी यानी किलोग्राम. लेकिन राहुल गांधी के राजनीतिक विरोधी केजी बोलने के पहले वाला वीडियो क्लिप शेयर करने लगे और खेल हो ही गया.

कांग्रेस की जयपुर रैली के बाद ये तीसरा मौका है जब राहुल गांधी एक छोटी सी चूक की वजह से मकसद पूरी तरह हासिल नहीं हो सका. 5 अगस्त का ब्लैक प्रोटेस्ट भी ज्यादा असरदार हुआ होता - अगर राहुल गांधी ने ईडी और दूसरी जांच एजेंसियों के मुद्दे पर चुप रह गये होते.

गलती इंसान से ही होती है. माना तो यहां तक जाता है कि गलती करना इंसान की फितरत है - लेकिन साथ में ये भी समझाइश होती है कि गलतियों से सीखने पर ही सफलता मिलती है. एक गलती के बाद दूसरी, तीसरी या जितनी भी गलती कोई करे किसी को दिक्कत नहीं हो सकती, लेकिन एक जैसी ही गलतियों की सीरीज कोई भी बर्दाश्त नहीं करेगा. राहुल गांधी के साथ ऐसा ही हो रहा है. ऐसा लगता है जैसे गलती होना ही नहीं, लगातार एक जैसी गलतियां होना ही राहुल गांधी की फितरत बन चुकी है. और ये उनके लिए बहुत महंगा साबित हो रहा है.

जयपुर की रैली में हिंदुत्व की बात कर और दिल्ली के ब्लैक प्रोटेस्ट के दौरान जांच एजेंसियों का जिक्र कर राहुल गांधी ने कांग्रेस की महंगाई पर मुहिम की धार कमजोर कर दी थी, इस बार ठीक वैसा ही तो नहीं किया है, लेकिन उनकी एक छोटी सी चूक भी भारी पड़ी है. कहां महंगाई और बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस होनी चाहिये, कहां चर्चा का विषय राहुल गांधी की फिसली जबान बन जाती है.

बेरोजगारी पर मोदी सरकार को घेरते हुए राहुल गांधी ने कहा, '40 साल से सबसे ज्यादा बेराजगारी आज देश में है.' रैली में राहुल गांधी ने पुराने आरोपों को भी दोहराया. मसलन, फायदा केवल दो उद्योपति उठा रहे हैं... आपके डर और नफरत का फायदा इन्हीं के हाथों में जा रहा है... बीते आठ साल में किसी और को कोई फायदा नहीं हुआ... तेल, एयरपोर्ट, मोबाइल का पूरा सेक्टर दोनों उद्योगपतियों को दिया जा रहा है.'

लोगों को आगाह करते हुए राहुल गांधी अपनी तरफ से समझाने की कोशिश भी कर रहे थे, 'आज देश अगर चाहे भी तो अपने युवाओं को रोजगार नहीं दे पाएगा - क्योंकि देश को रोजगार ये दो उद्योगपति नहीं देते हैं... देश को रोजगार छोटे-मीडियम बिजनेस और किसान देते हैं... और इन लोगों की रीढ़ की हड्डी नरेंद्र मोदी जी ने तोड़ दी है.'

रैली का मकसद क्या था?

भारत जोड़ो यात्रा से पहले ये रैली कांग्रेस नेताओं के लिए रिहर्सल जैसी थी क्योंकि राहुल गांधी की बातों से भी ऐसा ही लगा. राहुल गांधी ने बताया भी कि भारत जोड़ो यात्रा इसलिए शुरू की जा रही है क्योंकि हमारे सभी रास्ते बंद कर दिए गये हैं.

राहुल का कह रहे थे, 'हमारी संस्थाएं मीडिया और न्यायालय पर दबाव है...हमारे पास एक ही रास्ता बचा है... सीधा जनता के बीच जाकर जनता को देश की सच्चाई बताना... जो जनता के दिल में है उसे गहराई से सुनना और समझना.

विपक्ष के साथ आने पर जोर: अक्सर देखने को मिलता है कि ऐसी रैलियों में राहुल गांधी सिर्फ कांग्रेस की बात करते हैं और सीधे सीधे संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो-दो हाथ करने की कोशिश होती है - लेकिन रामलीला मैदान की रैली में विपक्षी खेमे को साथ लाने की कोशिश भी देखी गयी.

कुछ दिन पहले राहुल गांधी को लंदन के एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही बातें करते सुना गया था. नफरत की बातें राहुल गांधी इस रैली में भी कर ही रहे थे, और तब भी कहा था कि हर तरफ केरोसिन छिड़क दिया गया हो जैसे, ऐसा हाल है. लंदन यात्रा में राहुल गांधी के साथ विपक्ष के कई नेता भी थे. राहुल गांधी की शिकायत है कि संसद में विपक्ष के नेताओं का माइक बंद कर दिया जाता है, 'हमें बोलने नहीं दिया जाता... चुनाव आयोग, न्यायपालिका पर सरकार का दबाव बना हुआ है.'

रैली में भी राहुल गांधी ने दोहराया कि जो कुछ वो कर रहे हैं वो विचारधारा की लड़ाई है. राहुल गांधी का दावा है कि कांग्रेस की विचारधारा और सभी राजनीतिक दल मिल कर बीजेपी को हराएंगे. बोले, 'अगर आज हम नहीं खड़े हुए तो देश नहीं बचेगा... क्योंकि ये देश संविधान है... ये देश इस देश की जनता की आवाज है... ये देश इस देश की जनता का भविष्य है' - और हां, 'ये देश दो उद्योगपतियों का नहीं है.'

सब कुछ ठीक है. सारी बातें सही हैं, लेकिन राहुल गांधी जब तक प्रधानमंत्री के गले मिल कर आंख मारने जैसी आदतें नहीं छोड़ेंगे, उनके सारे जानी दुश्मन संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूं ही आबाद रहेंगे - और ये सिर्फ 2024 तक की बात नहीं है!

इन्हें भी पढ़ें :

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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