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राहुल गांधी ने दिया सबसे बड़ा धोखा!

    • विनीत कुमार
    • Updated: 25 फरवरी, 2016 03:02 PM
  • 25 फरवरी, 2016 03:02 PM
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संसद में प्रवेश करते हुए राहुल गांधी ने साफ साफ कहा कि वे जो कहने जा रहे हैं उससे सरकार डर रही है और वह उसे बोलने नहीं देगी. उनके इस बयान से सरकार को कठघरे में देखने वालों की उम्‍मीदें बंधी थीं. लेकिन...

पहले रोहित वेमुला खुदकुशी मामला और फिर जेएनयू विवाद. राहुल गांधी दोनों जगहों पर पहुंचे. ये जताते हुए कि वे इन घटनाओं के प्रति गंभीर हैं और सरकार के सामने कुछ कड़े सवाल रखेंगे. लोकसभा में प्रवेश से पहले उन्‍होंने साफ साफ इसका संदेश भी दिया. इन विषयों पर बहस के दौरान राहुल मौजूद भी रहे, दिन खत्‍म होने के साथ उन्हीं के लिए कई सवाल खड़े हो गए. क्या राहुल सच में एक गंभीर राजनेता हैं? रोहित की आत्महत्या को लेकर क्या वे सच में संवेदनशील हैं या हम सभी को और उन छात्रों को भी मान लेना चाहिए कि हैदारबाद का दौरा राहुल गांधी का एक राजनीति स्टंट भर था. क्‍योंकि घोषणा करने के बावजूद वे संसद में चुप रहे और अंत में वॉकआउट कर गए. मोदी सरकार की आलोचना करने वालों के लिए सुबह उन्‍होंने जो उम्‍मीद बांधी थी, उसके अंत में उन्‍होंने धोखा ही दिया.

अपनी ही शुरू की गई लड़ाई से भागे राहुल!

सभी को पता था कि पिछले कुछ दिनों से देश भर के यूनिवर्सिटी में हो रही घटनाओं पर लोकसभा में चर्चा होनी है. राहुल जब सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने पहुंचे तो पत्रकारों से कहा, 'आप देखना जब मैं बोलूंगा तो वो (सरकार) मुझे बोलने नहीं देंगे पार्लियामेंट में. मैं बोलूंगा लेकिन वो मुझे बोलने नहीं देंगे. क्योंकि जो मैं बोलूंगा वो उससे डरते हैं. इसलिए वो मुझे बोलने नहीं देंगे.'

करीब चार घंटे से ऊपर लोकसभा में इस विषय पर चर्चा हुई. लेकिन विपक्ष की ओर से बोलने वालों में राहुल गांधी शामिल नहीं थे. अब आप इसे क्या कहेंगे. क्या यह एक तरह का 'धोखा' नहीं है. क्योंकि संसद के बाहर आप कुछ और बात करते नजर आते हैं लेकिन जहां जरूरत थी वहां आपने कदम पीछे हटा लिए. इस तरह की बहस से क्या निकलेगा? यहां तो सरकार ही विपक्ष की क्लास लेती नजर आई.  

हालांकि जब सत्ता पक्ष की ओर से सवालों की बौछार शुरू हुई तो राहुल नदारद हो गए. अनुराग ठाकुर ने इसे भांप लिया और राहुल गांधी के जाने का उल्लेख अपने भाषण में भी कर दिया. देखिए अनुराग...

पहले रोहित वेमुला खुदकुशी मामला और फिर जेएनयू विवाद. राहुल गांधी दोनों जगहों पर पहुंचे. ये जताते हुए कि वे इन घटनाओं के प्रति गंभीर हैं और सरकार के सामने कुछ कड़े सवाल रखेंगे. लोकसभा में प्रवेश से पहले उन्‍होंने साफ साफ इसका संदेश भी दिया. इन विषयों पर बहस के दौरान राहुल मौजूद भी रहे, दिन खत्‍म होने के साथ उन्हीं के लिए कई सवाल खड़े हो गए. क्या राहुल सच में एक गंभीर राजनेता हैं? रोहित की आत्महत्या को लेकर क्या वे सच में संवेदनशील हैं या हम सभी को और उन छात्रों को भी मान लेना चाहिए कि हैदारबाद का दौरा राहुल गांधी का एक राजनीति स्टंट भर था. क्‍योंकि घोषणा करने के बावजूद वे संसद में चुप रहे और अंत में वॉकआउट कर गए. मोदी सरकार की आलोचना करने वालों के लिए सुबह उन्‍होंने जो उम्‍मीद बांधी थी, उसके अंत में उन्‍होंने धोखा ही दिया.

अपनी ही शुरू की गई लड़ाई से भागे राहुल!

सभी को पता था कि पिछले कुछ दिनों से देश भर के यूनिवर्सिटी में हो रही घटनाओं पर लोकसभा में चर्चा होनी है. राहुल जब सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने पहुंचे तो पत्रकारों से कहा, 'आप देखना जब मैं बोलूंगा तो वो (सरकार) मुझे बोलने नहीं देंगे पार्लियामेंट में. मैं बोलूंगा लेकिन वो मुझे बोलने नहीं देंगे. क्योंकि जो मैं बोलूंगा वो उससे डरते हैं. इसलिए वो मुझे बोलने नहीं देंगे.'

करीब चार घंटे से ऊपर लोकसभा में इस विषय पर चर्चा हुई. लेकिन विपक्ष की ओर से बोलने वालों में राहुल गांधी शामिल नहीं थे. अब आप इसे क्या कहेंगे. क्या यह एक तरह का 'धोखा' नहीं है. क्योंकि संसद के बाहर आप कुछ और बात करते नजर आते हैं लेकिन जहां जरूरत थी वहां आपने कदम पीछे हटा लिए. इस तरह की बहस से क्या निकलेगा? यहां तो सरकार ही विपक्ष की क्लास लेती नजर आई.  

हालांकि जब सत्ता पक्ष की ओर से सवालों की बौछार शुरू हुई तो राहुल नदारद हो गए. अनुराग ठाकुर ने इसे भांप लिया और राहुल गांधी के जाने का उल्लेख अपने भाषण में भी कर दिया. देखिए अनुराग ठाकुर का ये भाषण. शुरुआत में तो राहुल बैठे नजर आते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद ही बाहर चले जाते हैं. इसके बाद भाषण के छठे मिनट में ही अनुराग राहुल के चले जाने का उल्लेख करते हैं...

अपने भाषण के दौरान अनुराग ठाकुर कई बार राहुल गांधी पर निशाना साधते नजर आए. लेकिन हद तो तब हो गई जब स्मृति ईरानी द्वारा चर्चा का जवाब देने के दौरान समूची कांग्रेस पार्टी ही वॉकआउट कर जाती है. असल में होना तो ये चाहिए था कि कड़वे सवाल विपक्ष की ओर से आते. राहुल को यहां नेतृत्व करना चाहिए था. लेकिन उलटा हुआ. विपक्ष ही सत्ता पक्ष के सवालों में घिरता नजर आया और बचने की कोशिश करता भी. मतलब सीधा सरेंडर.

राहुल का साथ कांग्रेस को कहां ले जाएगा?

यह सवाल कांग्रेस के लिहाज से गंभीर है. क्योंकि एक नहीं कई मौकों पर राहुल अपनी पार्टी को बीच मंझधार में छोड़ कर जाने का काम कर चुके हैं. वो किसी मुद्दे को छेड़ते तो हैं लेकिन उसके अंजाम तक पहुंचने से पहले ही दिशा बदल लेते हैं. लोकसभा और फिर दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद जब राहुल गांधी करीब दो महीनों के लिए पब्लिक लाइफ से अचानक गायब हुए तो कई तरह की बातें कहीं गई. कहा गया कि राहुल विपश्यना के लिए राजनीति के गलियारों से दूर रहे. उम्मीद की गई कि लौटने के बाद एक बदले हुए और परिपक्व राजनेता के तौर पर राहुल गांधी का नया चेहरा देखने को मिलेगा. लेकिन बहुत कुछ अब भी नहीं बदला है.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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