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कश्‍मीर मामले में राहुल गांधी का विरोध सिर्फ थोथे विरोध से ज्‍यादा कुछ नहीं

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 13 अगस्त, 2019 05:40 PM
  • 13 अगस्त, 2019 05:40 PM
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कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने नेता नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती का विरोध तो उनके हिसाब से सही है. बेचारे करें भी किया, अब उनकी दुकान जो बंद होने वाली है, लेकिन कांग्रेस का विरोध गले नहीं उतर रहा.

जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद से जहां एक ओर कुछ राजनीतिक पार्टियां इस फैसले के पक्ष में खड़ी हैं, तो कुछ इसका विरोध भी कर रही हैं. कांग्रेस तो खुलकर अपना विरोध दर्ज कर रही है, जबकि उसे भी पता है कि धारा 370 से सिर्फ नुकसान ही हुए हैं. इसने कश्मीर को बनाने से अधिक उसे बिगाड़ने का काम किया है और बाकी देश के राज्यों की तुलना में कमजोर बनाया है. कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने नेता नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती का विरोध तो उनके हिसाब से सही है. बेचारे करें भी किया, अब उनकी दुकान जो बंद होने वाली है, लेकिन कांग्रेस का विरोध गले नहीं उतर रहा.

धारा 370 को हटाने की वजह से कश्मीर के कुछ हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं, इसलिए एहतियातन जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू लगाया गया है. कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराध भसीन ने भी धारा 370 हटाने के बाद पत्रकारों पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसके खिलाफ याचिका दायर की है. चलिए मान लिया वो भी अपने हक के लिए लड़ने की बात कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस तो धारा 370 को हटाने के ही खिलाफ है. ऐसी-ऐसी बेतुकी बातें कांग्रेस की ओर से कही जा रही हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं. यूं लग रहा है कि विरोध सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि भाजपा के हर काम का बस विरोध करना है.

ऐसी-ऐसी बेतुकी बातें कांग्रेस की ओर से कही जा रही हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं.

शुरुआत राहुल गांधी के बयान से

कुछ दिन पहले ही बीबीसी ने एक वीडियो जारी किया और दावा किया कि घाटी में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें सेना की ओर से लोगों पर गोलियां तक चलाई जा रही हैं. हालांकि, सेना ने वीडियो को गलत बताते हुए कहा कि घाटी में छुटपुट प्रदर्शन जरूर हो रहे हैं, लेकिन ना तो कहीं गोलियां चलाने...

जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद से जहां एक ओर कुछ राजनीतिक पार्टियां इस फैसले के पक्ष में खड़ी हैं, तो कुछ इसका विरोध भी कर रही हैं. कांग्रेस तो खुलकर अपना विरोध दर्ज कर रही है, जबकि उसे भी पता है कि धारा 370 से सिर्फ नुकसान ही हुए हैं. इसने कश्मीर को बनाने से अधिक उसे बिगाड़ने का काम किया है और बाकी देश के राज्यों की तुलना में कमजोर बनाया है. कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने नेता नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती का विरोध तो उनके हिसाब से सही है. बेचारे करें भी किया, अब उनकी दुकान जो बंद होने वाली है, लेकिन कांग्रेस का विरोध गले नहीं उतर रहा.

धारा 370 को हटाने की वजह से कश्मीर के कुछ हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं, इसलिए एहतियातन जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू लगाया गया है. कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराध भसीन ने भी धारा 370 हटाने के बाद पत्रकारों पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसके खिलाफ याचिका दायर की है. चलिए मान लिया वो भी अपने हक के लिए लड़ने की बात कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस तो धारा 370 को हटाने के ही खिलाफ है. ऐसी-ऐसी बेतुकी बातें कांग्रेस की ओर से कही जा रही हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं. यूं लग रहा है कि विरोध सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि भाजपा के हर काम का बस विरोध करना है.

ऐसी-ऐसी बेतुकी बातें कांग्रेस की ओर से कही जा रही हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं.

शुरुआत राहुल गांधी के बयान से

कुछ दिन पहले ही बीबीसी ने एक वीडियो जारी किया और दावा किया कि घाटी में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें सेना की ओर से लोगों पर गोलियां तक चलाई जा रही हैं. हालांकि, सेना ने वीडियो को गलत बताते हुए कहा कि घाटी में छुटपुट प्रदर्शन जरूर हो रहे हैं, लेकिन ना तो कहीं गोलियां चलाने की नौबत आई है, ना ही किसी की मौत हुई है. इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए चल रही कांग्रेस कार्यकारी कमेटी की बैठक के दिन राहुल गांधी ने मीडिया को बयान दिया कि कश्मीर में खून-खराबा हो रहा है. जबकि उनके पास अपनी बात रखने के लिए कोई सबूत तक नहीं था. सिर्फ विरोध करने के लिए खून-खराबा होने की बात कहने का मतलब तो ये ही हुआ कि उन्हें सेना की बात पर नहीं, बल्कि बीबीसी पर ज्यादा भरोसा है.

सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची कांग्रेस

कांग्रेस कार्यकर्ता तेहसीन पूनावाला ने तो कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हुई है, जिस पर आज सुनवाई है. हालांकि, उनका विरोध इस बात को लेकर है कि राज्य में कर्फ्यू क्यों लगाया है, फोन, इंटरनेट, न्यूज चैनल क्यों बंद किए हैं, इन सब पर से प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए. पूनावाला ने कहा है कि पूरा राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश) सुरक्षाकर्मियों से घिरा है, लोग डरे हुए हैं, जबकि कहीं कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहा है.

दरअसल, तेहसीन पूनावाला को ये समझना चाहिए कि प्रदर्शन इसीलिए नहीं हो रहे हैं, क्योंकि सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद है. वरना जो अलगाववादी हमेशा से आजादी-आजादी चीखते रहे हैं, वह अब तक सड़कों पर होते. एक और मकबूल भट या बुरहान वानी दिखाई दे जाता. वैसे भी, इन अलगाववादियों को दिक्कत धारा 370 लगाने या हटाने से नहीं है, बल्कि वह कश्मीर को आजाद देश बनाना चाहते हैं, जबकि वह भी जानते हैं कि भारत से अलग होने के बाद चंद महीने भी वह आजादी से नहीं जी सकेंगे. एक ओर पाकिस्तान ताक लगाए बैठा है और दूसरी ओर चीन कभी भी झपट्टा मार सकता है.

चिदंबरम का गैर-जिम्मेदाराना बयान भी ना भूलें

पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने जो बयान दिया है, वो बेहद ही गैर-जिम्मेदाराना है, जो उन्हें शोभा नहीं देता. चिदंबरम ने कहा है- 'जम्मू और कश्मीर से धारा 370 को सिर्फ इसलिए हटाया गया है कि वह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. अगर जम्मू और कश्मीर हिंदू बहुल राज्य होता तो भाजपा उस राज्य का विशेष दर्जा कभी नहीं छीनती.' कल तक धारा 370 को सिर्फ इस एंगल से देखते हुए विरोध हो रहा था कि मोदी सरकार ने एक राज्य के लोगों के अधिकार छीन लिए, बंदूक नोक पर कानून लागू कर दिया, लेकिन चिदंबरम ने सिर्फ अपने सियासी फायदे के लिए इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया है.

कांग्रेस का विरोध सिर्फ और सिर्फ इसलिए है, क्योंकि उनकी विरोधी पार्टी भाजपा का फैसला उन्हें पसंद नहीं है. अपना विरोध दर्ज करने के लिए कांग्रेस भी क्या-क्या बयान दे रही है, इस पर वह खुद भी ध्यान नहीं दे रही है. कांग्रेस ये नहीं समझ रही है कि उसके बयान देशहित में कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं. कश्मीर पहले से ही बेहद संवेदनशील इलाका है, जहां आए दिन विरोध प्रदर्शन से लेकर हिंसा तक होती रहती है. ऐसे में सिर्फ एक छोटी सी चिंगारी भी कब आग भड़का दे, कहा नहीं जा सकता है. बावजूद इसके कांग्रेस जैसी बयानबाजी कर रही है, ये बिल्कुल नहीं लग रहा कि उसे कश्मीर में हिंसा होने या न होने से कोई भी फर्क पड़ता है. एक बार कांग्रेस को बैठकर सोचना चाहिए कि उसे सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करना है या देशहित भी कोई मायने रखता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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