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तो कांग्रेस का भविष्य अब गीता और उपनिषद के सहारे !

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 06 जून, 2017 05:52 PM
  • 06 जून, 2017 05:52 PM
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राहुल गांधी का कहना है कि वो गीता और उपनिषद की पढ़ाई कर रहे हैं. क्या कांग्रेस ने अपनी पुरानी लाइन धर्मनिरपेक्षता के चोले को बदलते हुए नरम हिंदुत्व की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं?

आजकल राहुल गांधी भाजपा और राष्ट्रीय सेवक संघ को हराने के लिए गीता और उपनिषद की पढ़ाई कर रहे हैं. और इसका खुलासा भी खुद राहुल गांधी ने किया है. जी हां, यही सच्चाई है.

बकौल राहुल गांधी “आजकल मैं उपनिषद और गीता पढ़ता हूं, क्योंकि मैं आरएसएस और बीजेपी से लड़ रहा हूं. मैं उनसे पूछता हूं, (आरएसएस से) मेरे दोस्तों तुम ऐसा करते हो, लोगों को तंग करते हो, लेकिन तुम्हीं कहते हो कि सभी लोग बराबर हैं, तुम अपने ही धर्म में लिखी बात को कैसे नकार सकते हो.”

यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर अपने उम्र के अर्धशतक के करीब पहुंच चुके राहुल गांधी का राजनीतिक तजुर्बा और देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के वारिस होने के बावजूद, भाजपा और राष्ट्रीय सेवक संघ से राजनीतिक लड़ाई के लिये गीता और उपनिषद की जरूरत क्यों पड़ गई? सवाल ये भी उठाए जा रहे हैं कि क्या कांग्रेस ने अपनी पुरानी लाइन धर्मनिरपेक्षता के चोले को बदलते हुए नरम हिंदुत्व की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं?

जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं तब से कांग्रेस का राजनीतिक ग्राफ नीचे चला जा रहा है. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जहां साल 2014  के लोकसभा चुनाव में मात्र 44 सीटों पर ही जीत दर्ज करवा सकी वहीं 6 राज्यों में इसे अपनी सरकारें भी गवानी पड़ी.  

कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे को प्राप्त करने में भाजपा और संघ काफी आगे निकलते जान पड़ते हैं. और ऐसा प्रतीत होता है जैसे राहुल गांधी को बगैर गीता और उपनिषद पढ़े ये ज्ञान जरूर प्राप्त हो चुका है कि देश में सिमटती कांग्रेस की जमीन के पीछे संघ की बड़ी भूमिका है.  

ऐसा प्रतीत होता है जैसे कांग्रेस को अब ये एहसास होने लगा है कि जिस पार्टी ने कभी न तो हिंदुओं की परवाह की और न ही हिंदू धर्म की उसी के कारण उसका पतन निश्चित...

आजकल राहुल गांधी भाजपा और राष्ट्रीय सेवक संघ को हराने के लिए गीता और उपनिषद की पढ़ाई कर रहे हैं. और इसका खुलासा भी खुद राहुल गांधी ने किया है. जी हां, यही सच्चाई है.

बकौल राहुल गांधी “आजकल मैं उपनिषद और गीता पढ़ता हूं, क्योंकि मैं आरएसएस और बीजेपी से लड़ रहा हूं. मैं उनसे पूछता हूं, (आरएसएस से) मेरे दोस्तों तुम ऐसा करते हो, लोगों को तंग करते हो, लेकिन तुम्हीं कहते हो कि सभी लोग बराबर हैं, तुम अपने ही धर्म में लिखी बात को कैसे नकार सकते हो.”

यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर अपने उम्र के अर्धशतक के करीब पहुंच चुके राहुल गांधी का राजनीतिक तजुर्बा और देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के वारिस होने के बावजूद, भाजपा और राष्ट्रीय सेवक संघ से राजनीतिक लड़ाई के लिये गीता और उपनिषद की जरूरत क्यों पड़ गई? सवाल ये भी उठाए जा रहे हैं कि क्या कांग्रेस ने अपनी पुरानी लाइन धर्मनिरपेक्षता के चोले को बदलते हुए नरम हिंदुत्व की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं?

जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं तब से कांग्रेस का राजनीतिक ग्राफ नीचे चला जा रहा है. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जहां साल 2014  के लोकसभा चुनाव में मात्र 44 सीटों पर ही जीत दर्ज करवा सकी वहीं 6 राज्यों में इसे अपनी सरकारें भी गवानी पड़ी.  

कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे को प्राप्त करने में भाजपा और संघ काफी आगे निकलते जान पड़ते हैं. और ऐसा प्रतीत होता है जैसे राहुल गांधी को बगैर गीता और उपनिषद पढ़े ये ज्ञान जरूर प्राप्त हो चुका है कि देश में सिमटती कांग्रेस की जमीन के पीछे संघ की बड़ी भूमिका है.  

ऐसा प्रतीत होता है जैसे कांग्रेस को अब ये एहसास होने लगा है कि जिस पार्टी ने कभी न तो हिंदुओं की परवाह की और न ही हिंदू धर्म की उसी के कारण उसका पतन निश्चित है. और इन्हीं वजहों के कारण से शायद पार्टी अपना रास्ता बदलना चाहती है. ये तो जगज़ाहिर ही है कि कांग्रेस की राजनीति ऐतिहासिक रूप से तुष्टिकरण के भरोसे टिकी रही है. और शायद यही वजह रही थी कि कुछ दिन पहले ही राजनीतिक विरोध दिखाने के लिए केरल में कांग्रेसियों ने गोहत्या तक कर डाली थी. इसके बाद ही राहुल गांधी ने इसकी आलोचना की थी और अब गीता उपनिषद पढ़ने की बात.

बात साल 2014 की है जब लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को मात्र 44 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. हार की समीक्षा समिति के अध्यक्ष रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी ने भी स्वीकार किया था कि पार्टी को हिंदू विरोधी छवि के चलते नुकसान हुआ था. एंटनी समिति के अनुसार हर मुद्दे पर कांग्रेस जिस तरह से तुष्टिकरण की लाइन लेती थी वो बात अब आम जनता भी महसूस करने लगी थी और उसका नतीजा सबके सामने था. हालांकि इसने राहुल को हार के लिए जिम्मेवार नहीं माना था.

राहुल गांधी इससे पहले हिन्दुओं के बारे में उल्टे-पुल्टे बयान दे चुके हैं

- 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा था कहा कि अगर नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती.

- 2010 के विकीलीक्स के अनुसार राहुल गांधी अमेरिका को बताया था कि भारत के हिन्दू कट्टरवादी देश के लिए ज्यादा खतरनाक हैं.  

- 2014  में राहुल गांधी का बयान आया था कि जो लोग मंदिर में पूजा करते हैं वही लोग महिलाओं को बसों में छेड़ते हैं.

- राहुल गांधी राष्ट्रीय सेवक संघ को महात्मा गांधी का हत्यारा बता चुके हैं.

हालांकि अभी से इस कांग्रेस या राहुल गांधी के हृदय परिवर्तन के परिणाम बेहतर होंगे या नहीं के बारे में कल्पना करना ठीक नहीं होगा. ये तो आनेवाला 2019 का लोकसभा का चुनाव ही बताएगा कि कांग्रेस की सीटें 44 से बढ़ती हैं या फिर घटती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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