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राहुल गांधी की राजनीति केजरीवाल से प्रेरित लगती है...

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 31 जनवरी, 2019 05:23 PM
  • 31 जनवरी, 2019 05:23 PM
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राहुल गांधी ने मनोहर पर्रिकर से मिलकर क्या बात की वो तो वही जानें, लेकिन इसके बाद जो राजनीति शुरू की उससे राहुल, केजरीवाल वाले रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं.

देश की सभी राजनितिक पार्टियां चुनावी मोड में आ गयी हैं, ऐसे में इस चुनावी सीजन में शब्दों की मर्यादा का माखौल उड़ना तय ही मानिए, और कुछ दिन की ख़बरों पर नजर दौड़ाएं तो समझना मुश्किल नहीं है कि इसकी शुरुआत हो भी चुकी है. हालांकि, हालिया मामला ऐसा है जिसमें शब्दों के बाण ने तो किसी को तार-तार नहीं किया. मगर बीमारी पर जिस तरह की ओछी राजनीति की गयी वो वाकई घटिया राजनीति की मिसाल कही जा सकती है. दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर से विधानसभा परिसर में मुलाकात कर उनकी तबीयत के बारे में पूछा था. राहुल गांधी का यह कदम काबिलेतारीफ कहा जा सकता है. इसे भारतीय राजनीति के उस खूबसूरत पहलु के रूप में भी देखा जा सकता है जहां राजनेता दलगत राजनीति से ऊपर उठ एक दूसरे से मिलते-मिलाते हैं.

राहुल गांधी भी केजरीवाल की तरह आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में कूद गए हैं.

पर राहुल ने इसके कुछ घंटों बाद ही यह दावा कर दिया कि 'मैं कल पर्रिकर जी से मिला था. पर्रिकर जी ने स्वयं कहा है कि डील बदलते समय पीएम ने हिंदुस्तान के रक्षा मंत्री से नहीं पूछा था.' राहुल के इसी बयान के बाद मनोहर पर्रिकर ने चिट्टी लिख कर राहुल के इस ओछी राजनीति पर खेद जताया. पर्रिकर ने राहुल गांधी से कहा कि आपसे पांच मिनट की भेंट में न राफेल का जिक्र हुआ और न ही मैंने राफेल संबंधी कोई चर्चा की. पर्रिकर ने लिखा कि शिष्टाचार भेंट के बहाने मेरे घर आकर, फिर इतने निम्न स्तर का झूठ आधारित राजनीतिक बयान देना आपके मेरे घर आने के उद्देश्यों को उजागर करता है. मैंने सोचा था कि आपका आना और आपकी शुभकानाएं मेरे लिए इस प्रतिकूल स्थिति में संबल प्रदान करेंगी लेकिन मैं नहीं समझ सका कि आपके आने का वास्तविक इरादा यह था. हालांकि, पर्रिकर के इस चिट्टी का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने लिखा कि उन्होंने कुछ भी खुद से नहीं कहा. पर्रिकर के साथ मुलाकात के दौरान हुई बातों का जिक्र भी नहीं किया, बल्कि सिर्फ वही कहा जो पब्लिक डोमेन में है. राहुल गांधी ने कहा- 'पर्रिकर जी, मैं समझता हूं. आप पर...

देश की सभी राजनितिक पार्टियां चुनावी मोड में आ गयी हैं, ऐसे में इस चुनावी सीजन में शब्दों की मर्यादा का माखौल उड़ना तय ही मानिए, और कुछ दिन की ख़बरों पर नजर दौड़ाएं तो समझना मुश्किल नहीं है कि इसकी शुरुआत हो भी चुकी है. हालांकि, हालिया मामला ऐसा है जिसमें शब्दों के बाण ने तो किसी को तार-तार नहीं किया. मगर बीमारी पर जिस तरह की ओछी राजनीति की गयी वो वाकई घटिया राजनीति की मिसाल कही जा सकती है. दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर से विधानसभा परिसर में मुलाकात कर उनकी तबीयत के बारे में पूछा था. राहुल गांधी का यह कदम काबिलेतारीफ कहा जा सकता है. इसे भारतीय राजनीति के उस खूबसूरत पहलु के रूप में भी देखा जा सकता है जहां राजनेता दलगत राजनीति से ऊपर उठ एक दूसरे से मिलते-मिलाते हैं.

राहुल गांधी भी केजरीवाल की तरह आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में कूद गए हैं.

पर राहुल ने इसके कुछ घंटों बाद ही यह दावा कर दिया कि 'मैं कल पर्रिकर जी से मिला था. पर्रिकर जी ने स्वयं कहा है कि डील बदलते समय पीएम ने हिंदुस्तान के रक्षा मंत्री से नहीं पूछा था.' राहुल के इसी बयान के बाद मनोहर पर्रिकर ने चिट्टी लिख कर राहुल के इस ओछी राजनीति पर खेद जताया. पर्रिकर ने राहुल गांधी से कहा कि आपसे पांच मिनट की भेंट में न राफेल का जिक्र हुआ और न ही मैंने राफेल संबंधी कोई चर्चा की. पर्रिकर ने लिखा कि शिष्टाचार भेंट के बहाने मेरे घर आकर, फिर इतने निम्न स्तर का झूठ आधारित राजनीतिक बयान देना आपके मेरे घर आने के उद्देश्यों को उजागर करता है. मैंने सोचा था कि आपका आना और आपकी शुभकानाएं मेरे लिए इस प्रतिकूल स्थिति में संबल प्रदान करेंगी लेकिन मैं नहीं समझ सका कि आपके आने का वास्तविक इरादा यह था. हालांकि, पर्रिकर के इस चिट्टी का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने लिखा कि उन्होंने कुछ भी खुद से नहीं कहा. पर्रिकर के साथ मुलाकात के दौरान हुई बातों का जिक्र भी नहीं किया, बल्कि सिर्फ वही कहा जो पब्लिक डोमेन में है. राहुल गांधी ने कहा- 'पर्रिकर जी, मैं समझता हूं. आप पर भारी दबाव है.' वैसे राहुल गांधी ने जो कुछ भी लिखा उस पर विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि कार्यक्रम के वीडियो में साफ़ तौर पर राहुल गांधी, पर्रिकर से मुलाकात का हवाला देते दिख रहे हैं.

राहुल गांधी का हालिया अवतार काफी आक्रमक है, राहुल मोदी सरकार और उसकी योजनाओं को लेकर भी काफी आक्रामक रहे हैं, जो सही भी है. क्योंकि भारत में मुख्य विपक्षी दल को लोग इसी भूमिका में देखना भी पसंद करते है. मगर राहुल गांधी का हालिया अवतार अब किसी पर भी आरोप लगाने से भी नहीं झीझकता, और ऐसा करते वक़्त राहुल कहीं ना कहीं दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की झलक दिखाई देती है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की केजरीवाल की पूरी राजनीति ही आरोप प्रत्यारोप पर ही आधारित रही है. केजरीवाल के आरोप कितने बेबुनियाद थे इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केजरीवाल को बाद में उन सभी लोगों से माफ़ी मांगनी पड़ी जिन्होंने केजरीवाल के बेबुनियाद आरोप से खीज कर मानहानि का मुकदमा कर दिया था.

अब राहुल भी उसी कड़ी को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं, राहुल अब किसी पर आरोप लगाने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहते. राहुल शायद उस कहावत को साबित करना चाहते हैं कि 'अगर एक झूठ को भी सौ बार कहा जाए तो वह सच लगने लगता है'. राहुल को यह बात भली भांति पता है कि बेबुनियाद आरोप से उनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है, हां चुनावी मौसम में इसका फायदा जरूर उनकी पार्टी को मिल सकता है. पर राहुल ऐसा करते हुए यह भूल गए कि देश में किसी की बीमारी पर राजनीति करना उनके दूर प्रशंसकों को भी नहीं भाएगा. साथ ही राहुल को यह भी ध्यान में रखना होगा कि राजनीति का यह रूप फौरी तौर पर तो फायदा दे सकता है, लेकिन यह फार्मूला टिकाऊ बिलकुल भी नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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