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पहली बार नहीं जब राहुल ने विदेशी धरती से मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया है

    • अशोक भाटिया
    • Updated: 09 मार्च, 2023 09:17 PM
  • 09 मार्च, 2023 09:17 PM
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राहुल कुछ कह लें लेकिन भारत आज दुनिया में बड़ी इकनॉमिक और पॉलिटिकल पावर है. वह अपनी तरह से राजनीतिक एजेंडे बनाता है और उन पर अमल करता है. जी-20 देशों की वह अध्‍यक्षता कर रहा है. यह सबकुछ पॉलिसी से डिसाइड होता है. कुछ नेताओं और लोगों की राय से देश की छवि न बनती है न बिगड़ती है.

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लंदन के अपने कार्यक्रमों में ऐसी कोई बात नहीं कही है, जिस पर इतना हंगामा मचा है. उन्होंने न तो कोई गलत बात कही है और न कोई नई बात कही है.यह सब कुछ पहली बार नहीं है . इसके पहले भी 6 साल में वो 7 मौके जब राहुल गांधी ने विदेशी धरती से मोदी सरकार पर हमला बोला है . इसके बावजूद भाजपा के नेता उनके पीछे पड़े हैं और यह साबित करने में लगे हैं कि उन्होंने देश का अपमान किया. जो बात राहुल गांधी विदेश में कहते है वहीं बात वे दिल्ली में भी कहते हैं. तभी सवाल है कि जब दिल्ली में कहते हैं तो उससे देश का अपमान नहीं होता है और जब में विदेश में करते हैं तो उससे अपमान हो जाता है? राहुल ने कहा कि संसद में बोलने नहीं दिया जाता है, माइक बंद कर दिया जाता है, मीडिया के ऊपर दबाव है, केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है, क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है आदि आदि तो इसमें कौन सी बात से देश का अपमान हो रहा है?

ये सारी बातें राहुल गांधी भारत में सौ बार कह चुके हैं और ये ही सारी बातें उन्होंने विदेश के अलग अलग देशों में दोहराई. इस समय लन्दन में उन्होंने पहले कैम्ब्रिज में भाषण दिया, फिर इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन से जुड़े पत्रकारों से मिले, फिर प्रवासी भारतीयों को संबोधित किया और फिर ब्रिटेन की संसद में बोले. उन्होंने चारों जगहों पर एक जैसी बातें कहीं. लोकतंत्र पर खतरा, मीडिया पर दबाव, चुनिंदा उद्योगपतियों को बढ़ावा देना और आरएसएस-भाजपा की फासीवादी सोच. इसमें कोई भी बात नई नहीं है और न देश का अपमान करने वाली है.

इस तरह की बातें वे पहले भी कम से कम आधा दर्जन बार विदेश दौरे में कह चुके हैं. वैसे भी भाजपा के नेता कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का मान बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है तो राहुल गांधी के बोलने से क्या अपमान होना है! इससे पहले 6 साल में वो 7 मौके जब राहुल गांधी ने विदेशी धरती से मोदी सरकार पर हमला बोल चुके है.जब मई 2022 को लंदन में ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ सम्मेलन हो रहा...

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लंदन के अपने कार्यक्रमों में ऐसी कोई बात नहीं कही है, जिस पर इतना हंगामा मचा है. उन्होंने न तो कोई गलत बात कही है और न कोई नई बात कही है.यह सब कुछ पहली बार नहीं है . इसके पहले भी 6 साल में वो 7 मौके जब राहुल गांधी ने विदेशी धरती से मोदी सरकार पर हमला बोला है . इसके बावजूद भाजपा के नेता उनके पीछे पड़े हैं और यह साबित करने में लगे हैं कि उन्होंने देश का अपमान किया. जो बात राहुल गांधी विदेश में कहते है वहीं बात वे दिल्ली में भी कहते हैं. तभी सवाल है कि जब दिल्ली में कहते हैं तो उससे देश का अपमान नहीं होता है और जब में विदेश में करते हैं तो उससे अपमान हो जाता है? राहुल ने कहा कि संसद में बोलने नहीं दिया जाता है, माइक बंद कर दिया जाता है, मीडिया के ऊपर दबाव है, केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है, क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है आदि आदि तो इसमें कौन सी बात से देश का अपमान हो रहा है?

ये सारी बातें राहुल गांधी भारत में सौ बार कह चुके हैं और ये ही सारी बातें उन्होंने विदेश के अलग अलग देशों में दोहराई. इस समय लन्दन में उन्होंने पहले कैम्ब्रिज में भाषण दिया, फिर इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन से जुड़े पत्रकारों से मिले, फिर प्रवासी भारतीयों को संबोधित किया और फिर ब्रिटेन की संसद में बोले. उन्होंने चारों जगहों पर एक जैसी बातें कहीं. लोकतंत्र पर खतरा, मीडिया पर दबाव, चुनिंदा उद्योगपतियों को बढ़ावा देना और आरएसएस-भाजपा की फासीवादी सोच. इसमें कोई भी बात नई नहीं है और न देश का अपमान करने वाली है.

इस तरह की बातें वे पहले भी कम से कम आधा दर्जन बार विदेश दौरे में कह चुके हैं. वैसे भी भाजपा के नेता कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का मान बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है तो राहुल गांधी के बोलने से क्या अपमान होना है! इससे पहले 6 साल में वो 7 मौके जब राहुल गांधी ने विदेशी धरती से मोदी सरकार पर हमला बोल चुके है.जब मई 2022 को लंदन में ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ सम्मेलन हो रहा था.

विदेशी धरती पर राहुल गांधी कुछ कह लें देश को उसपर बहुत ज्यादा गंभीर होने की जरूरत नहीं है

 

राहुल गांधी इस सम्मेलन में भाजपा सरकार पर हमला बोलते हैं. राहुल कहते हैं, ‘आवाज के बिना आत्मा का कोई मतलब नहीं है, भारत की आवाज दबा दी गई है. कांग्रेस अब भारत के लिए लड़ रही है. यह एक वैचारिक लड़ाई है. पाकिस्तान की तरह ED, CBI जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करके राज्यों और संस्थानों को खोखला किया जा रहा है.’राहुल ने आगे कहा था कि भारत की स्थिति इस वक्त ठीक नहीं है, भाजपा ने पूरे देश में केरोसिन छिड़क दिया है. एक चिंगारी और हम सब एक बड़े संकट में पहुंच जाएंगे.

ये जिम्मेदारी भी कांग्रेस की है वो लोगों को एक साथ लेकर आए और लोगों का गुस्सा और जो आग लोगों के बीच है उसे शांत किया जाए. राहुल ने इस दौरान भारत की तुलना पाकिस्तान से की थी.उन्होंने कहा कि जो रूस यूक्रेन में कर रहा है ठीक वही पैटर्न चीन भारत में डोकलाम और लद्दाख में दिखा रहा है. चीन ने भारत में डोकलाम और लद्दाख में अपनी सेना तैनात कर रखी है और अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को भारत का हिस्सा मानने से इंकार करता है.

अगस्त 2018 में राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे और जर्मनी के दौरे पर गए थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत में रोजगार की बड़ी समस्या है, लेकिन प्रधानमंत्री उस पर बात नहीं करना चाहते. चीन हर रोज 50 हजार लोगों को रोजगार देता है, जबकि भारत में रोजाना 400 लोगों को ही रोजगार मिलता है.राहुल गांधी ने इस दौरान मोदी की तुलना ट्रंप जैसे पॉपुलर नेताओं से की. उन्होंने कहा कि लोगों की रोजगार जैसी समस्याएं सुलझाने के बजाय ये नेता उनके गुस्से का फायदा उठाते हैं.

ऐसा करके ये लोग देश को नुकसान पहुंचाते हैं. उन्होंने कहा कि दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ों को अब सरकारी लाभ नहीं मिलता. गरीबों की योजनाओं का पैसा अब महज चंद बड़े कॉरपोरेट को दिए जा रहे हैं.राहुल गांधी ने आतंकी संगठन IAS के बनने का जिक्र करते हुए आगाह किया या कि अगर विकास की प्रक्रिया से लोगों को बाहर रखा गया, तो इसी तरह के हालात देश में पैदा हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि लोगों को बाहर रखना 21वीं सदी में बेहद खतरनाक है. अगर 21वीं सदी में आप लोगों को नजरिया नहीं देते हैं तो कोई और देगा.राहुल ने कहा कि चीन के साथ डोकलाम में गतिरोध नहीं हुआ होता, अगर प्रधानमंत्री मोदी खुद सावधान रहते. उन्होंने कहा कि डोकलाम कोई अलग मुद्दा नहीं था. यह एक प्रक्रिया का हिस्सा था. यदि प्रधानमंत्री सावधानी से पूरी प्रक्रिया पर नजर रखते तो इसे रोका जा सकता था.

मार्च 2018 मलेशिया दौर के समय राहुल गांधी ने 2016 में हुई नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा था. राहुल ने भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि मैं प्रधानमंत्री होता और कोई मुझे नोटबंदी करने के प्रस्ताव की फाइल देता, तो मैं उसे कचरे के डिब्बे में, कमरे से बाहर या कबाड़खाने में फेंक देता.’उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह इसे लागू करता, क्योंकि मेरे हिसाब से नोटबंदी के साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए, क्योंकि यह किसी के लिए भी अच्छी नहीं है.’

मार्च 2018 सिंगापुर के ली कुआन यी स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के पैनल डिस्कशन में बोलते हुए राहुल ने कहा था कि भारत की परिकल्पना ही इसमें है कि भले ही व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति या भाषा से संबंध क्यों न रखता हो, उसे अपने घर जैसा महसूस होना चाहिए. उन्होंने कहा कि कुछ लोग चुनाव जीतने के लिए नफरत और हिंसा का सहारा ले रहे हैं. जबकि हमारा दृष्टिकोण लोगों को जोड़ने का है.

राहुल ने कहा था कि अगर आप मुझसे पूछते हैं कि मुझे अपने देश की किस बात पर गर्व होता है तो यह बहुलवाद का विचार है. यह विचार है कि भारत में लोग जो चाहें कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं, और उन्हें किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा.उन्होंने कहा था कि लोग इंसाफ के लिए न्यायपालिका के पास जाते हैं, लेकिन पहली बार चार जज इंसाफ के लिए लोगों के पास आए. राहुल ने आरोप लगाया कि व्यवस्था पर और न्यायपालिका पर बहुत ही आक्रामक और संगठित हमला हो रहा है.

अगर आप प्रेस से, उद्योग जगत के लोगों से बात करेंगे तो वे भी आपको बताएंगे कि हम डरा हुआ महसूस करते हैं. इसलिए आमतौर पर डर का माहौल है. जनवरी 2018 में जब कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी पहली बार विदेश दौरे पर बहरीन पहुंचे थे तब राहुल ने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा था कि देश में आज विचित्र स्थिति है. सरकार जॉब क्रिएट करने में नाकाम रही है.

लोग सड़कों पर उतर आए हैं और गुस्से में दिखाई दे रहे हैं.सरकार इससे बचने के लिए जातीय व धार्मिक उन्माद पैदा करवा रही है. देश में बांटने वाली ताकतें तय कर रही हैं कि लोगों को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं.देश में विघटन की स्थिति पैदा हो रही है. दलितों को पीटा जा रहा है, पत्रकारों को धमकाया जा रहा है. उनका विश्वास है कि आम चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी को हराकर फिर नया भारत बनाएगी.

साल 2017 के सितंबर में अपने दो हफ्ते के अमेरिकी दौरे के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बर्कले की मशहूर यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को संबोधित किया था. उन्होंने कहा था कि संसद को अंधेरे में रखकर नोटबंदी लाई गई, नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में गिरावट आई.उन्होंने कहा था कि आज नफरत और हिंसा की राजनीति हो रही है. हिंसा का मतलब मुझसे बेहतर कौन जान सकता है क्योंकि इसमें मैंने अपनी दादी और पिता को खोया है.

अहिंसा की विचारधारा आज खतरे में है, हालांकि यही एक ऐसी विचारधारा है जो मानवता को आगे ले जा सकती है.राहुल ने कहा था, ‘हमने सूचना का अधिकार दिया, लेकिन मोदी सरकार ने इसे दबा दिया. अब सरकार में क्या हो रहा है, लोगों को नहीं पता. सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो रही हैं, उदारवादी पत्रकारों को गोली मार दी जा रही है.राहुल ने कहा था कि भारत में 30 हजार युवा हर दिन जॉब मार्केट में आते हैं, मगर उनमें से सिर्फ 450 को ही रोजगार मिल पाता है.

यह परिस्थिति आज भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. रोजगार की समस्या इसलिए पनप रही है, क्योंकि आजकल सिर्फ टॉप 100 कंपनियों पर ही फोकस किया जा रहा है. अगर रोजगार बढ़ाने हैं तो छोटी और मझोली कंपनियों को भी बढ़ावा देना होगा. भाजपा के नेताओं को जरा भी पेनिक होने की जरुरत नहीं है क्योकि विदेश में राहुल गांधी के बयानों से तनिक भी फर्क नहीं पड़ता है. हर कोई जानता है कि राहुल विपक्ष के नेता हैं.

विपक्षी दलों का काम ही आलोचना करना होता है. जब भाजपा विपक्ष में थी तब वह भी यही काम करती थी. टेक्‍नोलॉजी के इस युग में हर किसी को पल-पल की खबर मिल रही है. किसी को कोई गुमराह नहीं कर सकता है. लोग भी जानते हैं कि राहुल जो कुछ भी बोल रहे हैं वह उनकी निजी राय है. राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक यात्रा की है. इस दौरान चीन से लेकर कई मुद्दों पर बात की. अगर उसका राजनीति रूप से यानी गुजरात और पूर्वोत्तर के चुनावों में असर नहीं हुआ तो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कहने से भी कोई असर नहीं होगा.

भारत आज दुनिया में बड़ी इकनॉमिक और पॉलिटिकल पावर है. वह अपनी तरह से राजनीतिक एजेंडे बनाता है और उन पर अमल करता है. जी-20 देशों की वह अध्‍यक्षता कर रहा है. यह सबकुछ पॉलिसी से डिसाइड होता है. कुछ नेताओं और लोगों की राय से देश की छवि न बनती है न बिगड़ती है. विपक्ष के नेता से तारीफ की अपेक्षा करनी भी नहीं चाहिए. इस तरह का कोई प्रोटोकॉल भी नहीं है कि आप देश में रहेंगे तो सरकार की आलोचना करेंगे और विदेश जाकर उसकी तारीफ. हर भारतीय नागरिक, चाहे वह कोई भी हो, वह कहीं भी अपनी बात रखने के लिए स्‍वतंत्र है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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