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केजरीवाल के लिए बड़ा झटका है रघुराम राजन द्वारा आप का ऑफर ठुकराना

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 09 नवम्बर, 2017 02:23 PM
  • 09 नवम्बर, 2017 02:23 PM
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पहला सवाल ये है कि आम आदमी पार्टी ने रघुराम राजन के नाम पर ही विचार क्यों किया? और दूसरा, राजन के ऑफर ठुकराये जाने की वजह उनकी व्यस्तता ही है या कुछ और भी?

क्या ये महज इत्तेफाक है कि नोटबंदी पर बहस के बीच रघुराम राजन का जिक्र आ ही जाता है. ऐसा पहले भी हुआ था और नोटबंदी की सालगिरह के मौके पर भी राजन चर्चा में फिर से आ गये, हालांकि, कारण अलग रहा ये बात और है.

मालूम हुआ कि आम आदमी पार्टी आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को राज्य सभा भेजना चाहती थी - और इसके लिए बाकायदा उनसे संपर्क भी किया जा चुका था. लेकिन अब ये भी साफ हो चुका है कि रघुराम राजन ने आम आदमी पार्टी का ये ऑफर ठुकरा दिया है.

रघुराम राजन के नाम पर विचार क्यों?

रघुराम राजन के नाम पर विचार किये जाने के सवाल का जवाब आप के ही अंदरखाने से आया है. असल में, आप नेतृत्व राज्य सभा के लिए पार्टी के किसी नेता को उम्मीदवार नहीं बनाना चाहता. बताया गया कि आम आदमी पार्टी किसी नेता को राज्य सभा का उम्मीदवार बनाये जाने की जगह किसी कानूनविद, अर्थशास्त्री या समाजसेवी को तरजीह देगी.

"नो थैंक्स..."

दरअसल, आम आदमी पार्टी को इस वक्त ऐसे लोगों की सख्त जरूरत है. जब आप का गठन हुआ था तो संस्थापकों में ऐसे कई बड़े नाम थे जिन्हें या तो बाहर का रास्ता दिखा दिया या फिर पार्टी की उठापटक से आजिज आकर खुद उन्होंने किनारा कर लिया. जाने माने वकील प्रशांत भूषण भी आप के संस्थापकों में से थे लेकिन उन्हें बेइज्जत करके बाहर कर दिया गया. देखा जा सकता है कि आप को फिलहाल किसी कानूनी जानकार की किस कदर जरूरत है. अगर ऐसा न होता तो क्या कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को केस के लिए हायर करने के बारे में अरविंद केजरीवाल कभी सोचेते? अभी इस मुद्दे पर बवाल थमा भी नहीं है. राम जेठमलानी और अरविंद केजरीवाल के बीच अरुण जेटली मानहानि केस में जो विवाद हुआ वो कैसे भूला जा सकता है. खबरों के मुताबिक आप के एक वरिष्ठ नेता ने राजन से संपर्क किये जाने की बात मीडिया से कही थी, हालांकि, अपना नाम न दिये जाने की शर्त पर ही उसने ये बात बतायी थी.

क्या ये महज इत्तेफाक है कि नोटबंदी पर बहस के बीच रघुराम राजन का जिक्र आ ही जाता है. ऐसा पहले भी हुआ था और नोटबंदी की सालगिरह के मौके पर भी राजन चर्चा में फिर से आ गये, हालांकि, कारण अलग रहा ये बात और है.

मालूम हुआ कि आम आदमी पार्टी आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को राज्य सभा भेजना चाहती थी - और इसके लिए बाकायदा उनसे संपर्क भी किया जा चुका था. लेकिन अब ये भी साफ हो चुका है कि रघुराम राजन ने आम आदमी पार्टी का ये ऑफर ठुकरा दिया है.

रघुराम राजन के नाम पर विचार क्यों?

रघुराम राजन के नाम पर विचार किये जाने के सवाल का जवाब आप के ही अंदरखाने से आया है. असल में, आप नेतृत्व राज्य सभा के लिए पार्टी के किसी नेता को उम्मीदवार नहीं बनाना चाहता. बताया गया कि आम आदमी पार्टी किसी नेता को राज्य सभा का उम्मीदवार बनाये जाने की जगह किसी कानूनविद, अर्थशास्त्री या समाजसेवी को तरजीह देगी.

"नो थैंक्स..."

दरअसल, आम आदमी पार्टी को इस वक्त ऐसे लोगों की सख्त जरूरत है. जब आप का गठन हुआ था तो संस्थापकों में ऐसे कई बड़े नाम थे जिन्हें या तो बाहर का रास्ता दिखा दिया या फिर पार्टी की उठापटक से आजिज आकर खुद उन्होंने किनारा कर लिया. जाने माने वकील प्रशांत भूषण भी आप के संस्थापकों में से थे लेकिन उन्हें बेइज्जत करके बाहर कर दिया गया. देखा जा सकता है कि आप को फिलहाल किसी कानूनी जानकार की किस कदर जरूरत है. अगर ऐसा न होता तो क्या कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को केस के लिए हायर करने के बारे में अरविंद केजरीवाल कभी सोचेते? अभी इस मुद्दे पर बवाल थमा भी नहीं है. राम जेठमलानी और अरविंद केजरीवाल के बीच अरुण जेटली मानहानि केस में जो विवाद हुआ वो कैसे भूला जा सकता है. खबरों के मुताबिक आप के एक वरिष्ठ नेता ने राजन से संपर्क किये जाने की बात मीडिया से कही थी, हालांकि, अपना नाम न दिये जाने की शर्त पर ही उसने ये बात बतायी थी.

आम आदमी पार्टी के प्रस्ताव पर जब मीडिया ने रघुराम राजन से उनका पक्ष जानना चाहा तो बाकायद एक बयान जारी कर स्थिति स्पष्ट की गयी. बयान में बताया गया, "प्रोफेसर राजन बहुत से शिक्षा से जुड़े कामों से जुड़े हुए हैं. उनका शिकागो यूनिवर्सिटी में पूर्णकालिक पढ़ाने की नौकरी छोड़ने की कोई योजना नहीं है."

और कौन कौन हैं कतार में?

एक तरफ आप के कोटे से राज्य सभा जाने वालों की लंबी कतार है, तो दूसरी तरफ रघुराम राजन जैसे लोग भी हैं जिन्हें ऐसे ऑफर में कोई दिलचस्पी नहीं. मुमकिन है जिन फील्ड से आप लोगों को राज्य सभा भेजना चाहती है उनमें भी कई ऐसे हों जिन्हें आप के ऑफर का इंतजार हो.

लेकिन क्या लोग भूल गये होंगे कि किस तरह से आप ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से निकाला. इतना ही नहीं जिन्होंने पार्टी में इसका विरोध किया था उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया. बाद में थक हार कर उन सभी ने धीरे धीरे पार्टी छोड़ दी.

दिल्ली से राज्य सभा की तीन सीटें हैं. अभी तीनों ही सीटों पर कांग्रेस के जनार्दन द्विवेदी, डॉ. कर्ण सिंह और परवेज हाशमी सांसद हैं. इन सभी का कार्यकाल अगले साल जनवरी में खत्म हो रहा है. दिल्ली विधानसभा में फिलहाल आम आदमी पार्टी के 66 विधायक हैं. ऐसे में तय है इस बार दिल्ली से तीनों आप के ही उम्मीदवार जीतेंगे.

राज्य सभा की सीटों को लेकर ताजा चर्चा की शुरुआत हुई कुमार विश्वास के बयान से. जब आम आदमी पार्टी अपने विधायक अमानुल्ला खान का निलंबन वापस लिया तो कुमार विश्वास भड़क उठे. बोले, ये सब उनके राज्य सभा में जाने के रास्ते में रोड़ा अटकाये जाने के मकसद से हो रहा है. राज्य सभा में जाने को लेकर जब उनसे पूछा गया तो जवाब था, ''मनुष्‍य होने के नाते मेरी भी इच्‍छाएं हैं.''

कुमार विश्वास के अलावा आप में संजय सिंह, आशुतोष और दिलीप पांडेय भी राज्य सभा को लेकर उम्मीद पाले हुए हैं. इनके अलावा मीडिया से जुड़े भी कई लोग हैं जो आप से या तो सीधे सीधे जुड़े हुए हैं या परोक्ष रूप से सोशल मीडिया पर आप के पक्ष में माहौल बनाते हैं, उन्हें भी राज्य सभा को लेकर आप से बड़ी उम्मीदें हैं.

राजन ने दिया झटका...

ये तो साफ हो गया कि रघुराम राजन को आप का ऑफर मंजूर नहीं है - और ये आप नेता अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका है. अभी ये सामने नहीं आया है कि आप ने और किस किस से इस बारे में संपर्क किया है - और उनका क्या रिएक्शन है. लेकिन राजन द्वारा आप का ऑफर ठुकराये जाने की क्या सिर्फ यही वजह हो सकती है? क्या आप की अंदरूनी कलह और उसके नतीजों की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी?

आप का ऑफर मिलने पर कोई शख्सियत जो अपने आप में हस्ती हो बीती घटनाओं को कैसे नजरअंदाज कर सकता है. एक बार ही सही लेकिन किसी के भी दिमाग में ये बात तो आएगी ना कि किस तरीके से योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और प्रो. आनंद कुमार को निकाला गया. किन हालात में मधु भादुड़ी, कैप्टन जीआर गोपीनाथ और अशोक अग्रवाल को आप से नाता तोड़ना पड़ा? ऐसी बातें किसी के भी आप से जुड़ने से पहले सवाल बन कर मन में उठेंगी ही, इतना तो तय है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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