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Puducherry Political Crisis: पुद्दुचेरी में क्यों गिर गई कांग्रेस की नारायण सामी सरकार?

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 22 फरवरी, 2021 09:22 PM
  • 22 फरवरी, 2021 09:20 PM
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एक कहावत है जब दो हाथी लड़ते हैं तो धरती हिलती है. नीचे की घास कुचली जाती है. लेकिन किरण बेदी (Kiran Bedi) और नारायणसामी (V Narayansamy) की लड़ाई में ये कहावत आधी ही लागू हो पा रही है. जानिए इसकी वजह!

पुद्दुचेरी में पासा पलट गया. सरकार गिर गई. वी नारायणसामी अब मुख्यमंत्री नहीं रहे. किरण बेदी तो पहले ही राज्यपाल पद से हटा दी गई थीं. एक कहावत है जब दो हाथी लड़ते हैं तो धरती हिलती है. नीचे की घास कुचली जाती है. लेकिन किरण बेदी और नारायणसामी की लड़ाई में ये कहावत आधी ही लागू हो पा रही है. इन दोनों के विवाद की वजह से पूरा राज्य तो हिल गया, लेकिन नुकसान खुद इन्हीं दोनों को उठाना पड़ा.

हां, इसमें बाजी कोई और मारता हुआ दिखाई दे रहा है. यदि सियासी शतरंज पर सभी मोहरे ऐसे ही सटीक बैठते गए, तो आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुत बड़ा फायदा होता नजर आ रहा है. खामियाजा तो कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा. बेदी को देर-सवेर ही सही वफादारी का ईनाम मिल जाएगा. पुडुचेरी विधानसभा में सोमवार को शक्ति परीक्षण का दिन था. सरकार का भविष्य निर्धारित करने के लिए एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था.

वी नारायणसामी अब मुख्यमंत्री नहीं रहे, उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया.

इस दौरान मुख्यमंत्री वी नारायणसामी (V Narayansamy) ने सदन में विश्वास मत प्रस्ताव पेश किया. लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए. 33 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन (Congress-DMK) के विधायकों की संख्या घटकर 11 हो गई थी, जबकि विपक्षी दलों के 14 विधायक हैं. कांग्रेस के विधायक के लक्ष्मीनारायणन और द्रमुक के विधायक वेंकटेशन, पूर्व मंत्री ए. नमसिवायम और मल्लाडी कृष्ण राव सहित कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जबकि पार्टी के एक अन्य विधायक को अयोग्य ठहराया गया था. नारायणसामी के करीबी ए जॉन कुमार ने भी इसी सप्ताह अपना इस्तीफा दे दिया था.

फ्लोर टेस्ट में फेल होने के बाद मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने नवनियुक्त उप राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इसके बाद...

पुद्दुचेरी में पासा पलट गया. सरकार गिर गई. वी नारायणसामी अब मुख्यमंत्री नहीं रहे. किरण बेदी तो पहले ही राज्यपाल पद से हटा दी गई थीं. एक कहावत है जब दो हाथी लड़ते हैं तो धरती हिलती है. नीचे की घास कुचली जाती है. लेकिन किरण बेदी और नारायणसामी की लड़ाई में ये कहावत आधी ही लागू हो पा रही है. इन दोनों के विवाद की वजह से पूरा राज्य तो हिल गया, लेकिन नुकसान खुद इन्हीं दोनों को उठाना पड़ा.

हां, इसमें बाजी कोई और मारता हुआ दिखाई दे रहा है. यदि सियासी शतरंज पर सभी मोहरे ऐसे ही सटीक बैठते गए, तो आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुत बड़ा फायदा होता नजर आ रहा है. खामियाजा तो कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा. बेदी को देर-सवेर ही सही वफादारी का ईनाम मिल जाएगा. पुडुचेरी विधानसभा में सोमवार को शक्ति परीक्षण का दिन था. सरकार का भविष्य निर्धारित करने के लिए एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था.

वी नारायणसामी अब मुख्यमंत्री नहीं रहे, उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया.

इस दौरान मुख्यमंत्री वी नारायणसामी (V Narayansamy) ने सदन में विश्वास मत प्रस्ताव पेश किया. लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए. 33 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन (Congress-DMK) के विधायकों की संख्या घटकर 11 हो गई थी, जबकि विपक्षी दलों के 14 विधायक हैं. कांग्रेस के विधायक के लक्ष्मीनारायणन और द्रमुक के विधायक वेंकटेशन, पूर्व मंत्री ए. नमसिवायम और मल्लाडी कृष्ण राव सहित कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जबकि पार्टी के एक अन्य विधायक को अयोग्य ठहराया गया था. नारायणसामी के करीबी ए जॉन कुमार ने भी इसी सप्ताह अपना इस्तीफा दे दिया था.

फ्लोर टेस्ट में फेल होने के बाद मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने नवनियुक्त उप राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इसके बाद नारायणसामी ने कहा, 'मैंने, मेरी सरकार के मंत्रियों, कांग्रेस और डीएमके के सभी विधायकों और निर्दलीय विधायक ने इस्तीफा दे दिया है. उपराज्यपाल से इसे स्वीकार करने की मांग की गई है. हमने डीएमके और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई. उसके बाद हमने कई चुनाव देखे. हमने सभी उप चुनाव जीते. यह साफ है कि पुडुचेरी के लोग हम पर भरोसा करते हैं. तमिलनाडु और पुडुचेरी में हम दो भाषा प्रणाली का इस्‍तेमाल करते हैं. लेकिन बीजेपी जबरन यहां हिंदी को लाना चाह रही है. किरण बेदी और केंद्र सरकार ने विपक्ष के साथ टकराव किया और सरकार को गिराने की कोशिश की है.'

आपको दिल्ली की 'जंग' याद होगी. जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप-राज्यपाल नजीब जंग के बीच अक्सर तलवारें खींची रहती थीं. केजरीवाल सरकार की कोई भी फाइल आसानी से उप-राज्यपाल के दफ्तर से पास होकर नहीं निकल पाती थी. दोनों के बीच जंग सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक जमकर चली थी. मोदी सरकार पर नजीब जंग की सरपरस्ती के आरोप लगाए गए. लेकिन केंद्र सरकार ने यहां भी उप-राज्यपाल को हटा दिया.

कुछ ऐसा ही हाल पुद्दुचेरी का था. यहां किरण बेदी और वी नारायणसामी के बीच जबरदस्त नूरा-कुश्ती चल रही थी. यहां तक कि आम जनता के समर्थन में चलाई जा रही कई नीतियों को लागू करने के सवाल पर टकराव होता रहा. इससे आम लोग भी बेदी और केंद्र सरकार से नाराज होने लगे थे.

बताया जा रहा है कि किरण बेदी राज्य सरकार के रोजमर्रा के काम में दख़ल देती थीं. उनका हस्तक्षेप इतना बढ़ गया था कि वह सरकार के चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को भी पूरा करने की राह में अड़चन आने लगी थीं. दोनों के बीच साल 2016 से टकराव शुरू हुआ था.

साल 2019 तक आते-आते बुरे दौर में पहुंच गया. यहां तक की मुख्य़मंत्री को राजभवन के सामने छह दिनों तक धरना देना पड़ा. उस वक्त उप-राज्यपाल ऑफिस सरकार की ओर से पारित 39 प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दे रहा था. इनमें कुछ खास वर्गों के लिए दिवाली और पोंगल में मुफ़्त अनाज और उपहार बांटने की योजनाएं शामिल थीं. इस वजह से बेदी का विरोध बढ़ता गया. आगामी विधान सभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने उनको वहां से फिलहाल हटाना ही उचित समझा.

पिछले साल के शुरुआत में कांग्रेस राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, पुडुचेरी और महाराष्ट्र में सत्ता में थी. उसके हाथ से सबसे पहले मध्य प्रदेश निकला, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों ने कमलनाथ से बगावत कर दी. मार्च 2020 में कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा. अब कांग्रेस को दूसरा झटका पुडुचेरी में मिला है. अब कांग्रेस की सरकार राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में है.

महाराष्ट्र में वह शिवसेना-एनसीपी के साथ गठबंधन में है. राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में वह अकेले दम पर सरकार चला रही है. इनमें भी राजस्थान और महाराष्ट्र की हालत नाजुक है. क्योंकि दोनों ही जगह सरकार गिराने के आरोप लग रहे हैं. राजस्थान में बगावत का सुर तेज है, तो महाराष्ट्र में भी तोड़फोड़ की कोशिश के आरोप हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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