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'गुंडे' बन चुके पंडे सरकार की नाकामी का ही नतीजा हैं !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2018 04:03 PM
  • 06 अक्टूबर, 2018 04:03 PM
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एक मंदिर में लाइन लगाने जैसा सुझाव भी सुप्रीम कोर्ट को देना पड़े तो ऐसे राज्य की सरकार को सत्ता छोड़ देनी चाहिए. 12वीं सदी के मंदिर में अब तक लाइन सिस्टम नहीं ला सके, भीड़ लगाकर लोग घुसते हैं और अब तो यहां के पंडे भी गुंडे बन चुके हैं.

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में फैली अव्यवस्था को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था, उसे लेकर हंगामा हो गया. जगन्नाथ सेना के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और तोड़फोड़ भी की. यहां तक कि स्थानीय विधायक तक के घर में घुसकर प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया. जिस सुझाव के विरोध में ये सब हुआ, वह है लाइन सिस्टम. जी हां. सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि अव्यवस्था को दूर करने के लिए जगन्नाथ मंदिर में लाइन सिस्टम होना चाहिए, लेकिन जगन्नाथ सेना के कार्यकर्ताओं को तो भीड़ में घुसना पसंद है, इसलिए उन्होंने तोड़फोड़ की. कई पुलिस वाले भी घायल हुए. यहां तक कि धारा 144 लगानी पड़ी. तो क्या वाकई ये सब सिर्फ लाइन सिस्टम के विरोध में किया गया? और अगर 12वीं सदी के इस मंदिर में लाइन सिस्टम नहीं है तो क्या इसके लिए ओडिशा सरकार और मंदिर प्रशासन जिम्मेदार नहीं हैं?

लाइन सिस्टम के सुझाव को बहाना बनाकर जगन्नाथ सेना और पंडों ने शहर के हालात खराब कर दिए.

पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुझाव दिए

ओडिशा की एक श्रद्धालु मृणालिनी पधि ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. उनका मकसद कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचना था कि जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और मंदिर में मौजूद सेवकों या पंडों द्वारा लोगों को किस कदर परेशान किया जाता है. जगन्नाथ मंदिर में फैली इन्हीं अव्यवस्थाओं से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सुब्रमण्यम को अमीकस क्यूरी (कोर्ट की ओर से नियुक्त व्यक्ति) बनाया था. उन्होंने सुझाव दिया था कि मंदिर में लाइन सिस्टम शुरू होना चाहिए, विदेशी और अन्य धर्म के लोगों को भी मंदिर में जाने की अनुमति होनी चाहिए और पंडों द्वारा लिए जाने वाले दान या दक्षिणा पर रोक लगाई जानी चाहिए. इन सुझावों से पंडे नाराज थे और उन्होंने बुधवार को अपना गुस्सा जाहिर भी कर दिया.

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में फैली अव्यवस्था को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था, उसे लेकर हंगामा हो गया. जगन्नाथ सेना के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और तोड़फोड़ भी की. यहां तक कि स्थानीय विधायक तक के घर में घुसकर प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया. जिस सुझाव के विरोध में ये सब हुआ, वह है लाइन सिस्टम. जी हां. सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि अव्यवस्था को दूर करने के लिए जगन्नाथ मंदिर में लाइन सिस्टम होना चाहिए, लेकिन जगन्नाथ सेना के कार्यकर्ताओं को तो भीड़ में घुसना पसंद है, इसलिए उन्होंने तोड़फोड़ की. कई पुलिस वाले भी घायल हुए. यहां तक कि धारा 144 लगानी पड़ी. तो क्या वाकई ये सब सिर्फ लाइन सिस्टम के विरोध में किया गया? और अगर 12वीं सदी के इस मंदिर में लाइन सिस्टम नहीं है तो क्या इसके लिए ओडिशा सरकार और मंदिर प्रशासन जिम्मेदार नहीं हैं?

लाइन सिस्टम के सुझाव को बहाना बनाकर जगन्नाथ सेना और पंडों ने शहर के हालात खराब कर दिए.

पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुझाव दिए

ओडिशा की एक श्रद्धालु मृणालिनी पधि ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. उनका मकसद कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचना था कि जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और मंदिर में मौजूद सेवकों या पंडों द्वारा लोगों को किस कदर परेशान किया जाता है. जगन्नाथ मंदिर में फैली इन्हीं अव्यवस्थाओं से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सुब्रमण्यम को अमीकस क्यूरी (कोर्ट की ओर से नियुक्त व्यक्ति) बनाया था. उन्होंने सुझाव दिया था कि मंदिर में लाइन सिस्टम शुरू होना चाहिए, विदेशी और अन्य धर्म के लोगों को भी मंदिर में जाने की अनुमति होनी चाहिए और पंडों द्वारा लिए जाने वाले दान या दक्षिणा पर रोक लगाई जानी चाहिए. इन सुझावों से पंडे नाराज थे और उन्होंने बुधवार को अपना गुस्सा जाहिर भी कर दिया.

दिक्कत लाइन सिस्टम से नहीं, दान नहीं मिलने से है

सुझावों को ध्यान में रखते हुए अगर देखा जाए तो पंडों को असली दिक्कत लाइन सिस्टम से नहीं, बल्कि दान नहीं मिलने से है. दान नहीं मिलने पर वह लाइन सिस्टम को बहाना बना रहे हैं, क्योंकि लाइन में लगे लोगों से दान लेना या यूं कहें कि उगाही करना आसान नहीं होगा, जबकि भीड़ में किसी को भी निशाना बनाकर आसानी से उगाही की जा सकती है. तोड़-फोड़ पर उतारी जगन्नाथ सेना ने ये भी कहा है कि लाइन सिस्टम की वजह से मंदिर का वह स्थान भी घिर जा रहा है, जहां पर अन्य धार्मिक क्रियाएं होती हैं.

सरकार ही है इन सबके लिए जिम्मेदार

12वीं सदी से एक मंदिर चल रहा है और वहां देखते ही देखते इतनी सारी अव्यवस्थाएं फैल जाती हैं, जो इसके लिए जिम्मेदार तो सरकार ही हुई ना. मंदिर प्रशासन भी इन अव्यवस्थाओं का भागीदार ही माना जाएगा, क्योंकि ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं से लूटपाट हो, उन्हें परेशान किया जाए और मंदिर प्रशासन को पता ही ना चले. अगर इतने दिनों से मंदिर में बिना लाइन लगाए भीड़ लगाकर लोग अंदर जाते थे, तो अब तक सरकार ने इसे क्यों नहीं रोका? क्यों मंदिर प्रशासन भी धक्का-मुक्की करते लोगों को चुपचाप देखता रहा? जवाब है पंडे, जिनकी कमाई का जरिया है वह भीड़ है, क्योंकि लाइनों में लगे लोगों से बदतमीजी नहीं की जा सकती. भीड़ में तो पंडों का झुंड जिसे चाहे घेरकर उसे लूट ले. जब एक जनहित याचिका डाली गई तो मंदिर में फैली अव्यवस्थाएं सामने आईं. खैर, समय रहते सरकार ने कोई सख्त कदम नहीं उठाया, उसी का नतीजा है कि आज पंडों के साथ जगन्नाथ सेना के लोग गुंडागर्दी करने पुरी के विधायक माहेश्वर मोहंती के घर तक जा पहुंचे और तोड़-फोड़ की.

बेहद खतरनाक हैं यहां के पंडे

12वीं सदी के इस मंदिर में करीब 1100 साल से 1500 पंडों की पीढ़ियां काम कर रही हैं. मंदिर की तरफ से उन्हें कोई सैलरी नहीं मिलती है. ये लोग जल्दी दर्शन, गर्भगृह से स्पेशल प्रसाद और पूजा कराने के नाम पर मंदिर आए श्रद्धालुओं से सौदेबाजी करते हैं. ये पंडे मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप से ही घेरना शुरू कर देते हैं. आप बिना पंडे के अगर मंदिर तक पहुंच भी गए तो मंदिर के अंदर पंडे आपका जीना हराम कर देंगे. अक्सर ये पंडे पैसे न देने पर लोगों से बदतमीजी तक पर उतारू हो जाते हैं. यानी आप भले ही मंदिर में सिर्फ भगवान के दर्शन करने के लिए घुसें, लेकिन हो सकता है कि आप मंदिर से लुट कर बाहर आएं.

इसी मंदिर के खजाने की खोई है चाबी

माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में श्रीकृष्ण आज भी सशरीर मौजूद हैं और हर 12 साल के बाद नवकलेवर उत्सव में नीम की लकड़ी से बना इनका आवरण बदला जाता है. इस आवरण के अंदर भगवान किस में रहते हैं, ये अपने आप में एक रहस्य है. भगवान जगन्नाथ की तरह ही इस मंदिर के खजाने की चाबी भी एक रहस्य ही बन गई है, जिसका कोई पता नहीं चल रहा है. चाबी खोने पर चिंता होना जरूरी है क्योंकि इस मंदिर की आय करीब 50 करोड़ रुपए सालाना है और इसकी संपत्ति करीब 250 करोड़ रुपए की है. मंदिर के खजाने में महंगे रत्न भरे हुए हैं. 4 अप्रैल को कड़ी सुरक्षा के बीच 16 सदस्यों की एक टीम ने ओडिशा हाईकोर्ट के आदेश पर 34 साल बाद रत्न भंडार कक्ष खोला था और इसके दो महीने बाद चाबी गायब हो गई. एक बार एक मजदूर ने मंदिर से चांदी की ईंट चुराई थी, जिसके बाद जांच हुई तो ये रहस्य खुला कि मंदिर में करीब 100 करोड़ रुपए की चांदी की ईंटें हैं. और अब चाबी रहस्यमयी तरीके से गायब हो गई है. सरकार और मंदिर प्रशासन की लापरवाही का इससे बड़ा और कोई सबूत नहीं हो सकता.

भीड़ बनती है भगदड़ और मौतों की वजह

ये बात सिर्फ किसी मंदिर, मस्जिद या एक धार्मिक स्थल की नहीं है. जहां भी अधिक भीड़ होती है, वहां भगदड़ मचने से बहुत से लोग मारे ही जाते हैं. एक नजर डालिए इन आंकड़ों पर, आपकी आंखें खुल जाएंगी.

- 3 अगस्त 2006 को हिमाचल के नैना देवी मंदिर में मची भगदड़ में 160 लोग मारे गए थे, जबकि 400 घायल हो गए थे.

- राजस्थान के जोधपुर में स्थित चामुंडा देवी के मंदिर में 30 सितंबर 2008 को मची भगदड़ में करीब 120 लोग मारे गए थे और 200 घायल हो गए थे.

- 14 जनवरी 2011 को केरल में सबरीमाला मंदिर में भगदड़ मची थी, जिसमें 106 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से भी अधिक लोग घायल हो गए थे.

- मध्य प्रदेश के दतिया में 13 अक्टूबर 2013 को रनगढ़ मंदिर में भगदड़ मच गई थी, जिसमें 89 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 100 लोग घायल हो गए थे.

- युपी के प्रतापगढ़ में राम-जानकी मंदिर में 4 मार्च 2010 में भगदड़ मच गई थी, जिसकी वजह से 63 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से भी अधिक लोग घायल हो गए थे.

- नासिक के कुभं मेले में भी 27 अगस्त 2003 को भगदड़ मची थी, जिसमं 40 लोग मारे गए थे और 125 लोग घायल हो गए थे.

- इलाहाबाद कुंभ मेले में भी 10 फरवरी 2013 को रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें 36 लोगों की मौत हो गई थी और 39 लोग घायल हो गए थे.

- 8 नवंबर 2011 को हरिद्वार में हर की पौड़ी पर भगदड़ मची थी, जिसमें 22 लोगों की जान चली गई थी.

- पटना में अदालत गंज क्षेत्र के एक घाट पर छठ पूजा के दौरान 19 नवंबर 2012 को भगदड़ मची थी, जिसमें करीब 20 लोग मारे गए थे, जबकि बहुत से लोग घायल हो गए थे.

- 10 अगस्त 2015 को झारखंड के देवघर में स्थित प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ मंदिर में अचानक भगदड़ मचने से 11 लोगों की मौत हो गई थी और 50 लोग घायल हो गए थे.

दस-बीस नहीं 1100 साल पुराना मंदिर, बावजूद इसके मंदिर में अव्यवस्थाओं की भरमार. श्रद्धालुओं से बदतमीजी किए जाने की शिकायतें होती रहीं, लेकिन इस मामले में न तो पुलिस की गंभीरता दिखी, ना ही सरकार की. अब सुप्रीम कोर्ट ने जब दखल दी है, तो पंडे उसकी भी बात सुनने को तैयार नहीं हैं. हिंदू धर्म में इस मंदिर का बहुत महत्व है, जिसकी वजह से यहां भारी मात्रा में लोग आते हैं. यही लोग पंडों की कमाई का जरिया हैं. लाइन सिस्टम तो सिर्फ बहाना है. पंडों की उगाही ना रुक जाए, इसलिए इनकी गुंडागर्दी मंदिर की दहलीज लांघ कर सड़कों पर आ चुकी है. अगर ऐसा नहीं होता तो आप ही सोचिए आखिर कौन चाहेगा कि मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए धक्का-मुक्की हो? कौन चाहेगा कि भीड़ में जाकर अपनी जान का खतरा मोल लिया जाए? लेकिन पंडों की उगाही भीड़ में लोगों को डराकर आसानी से होती है, इसलिए पंडे इस भीड़ को ही बनाए रखना चाहते हैं और लाइनें नहीं लगने देना चाहते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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