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प्रियंका गांधी के सोनभद्र दौरे की जिद कांग्रेस के लिए 'बेलछी' सिद्ध होगी या फिर 'भट्टा पारसौल'

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 20 जुलाई, 2019 03:58 PM
  • 20 जुलाई, 2019 03:58 PM
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कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश एवं देश में राजनीतिक रूप से सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में प्रियंका गांधी को सोनभद्र का मामला अंधेरे में उम्मीद की एक किरण के रूप में दिखाई दे रहा है. इसके सहारे वो पार्टी का जनाधार बढ़ाने के साथ ही साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरना चाह रही हैं.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को उस समय हिरासत में ले लिया गया जब वो उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में सामूहिक हत्याकांड के पीड़ित परिवारों से मिलने जा रही थीं. सोनभद्र में एक जमीन के विवाद में 17 जुलाई को 10 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया था. सबसे पहले वो खुद को रोके जाने के विरोध में धरने पर बैठ गयीं. लेकिन बाद में उन्हें चुनार गेस्ट हाउस ले जाया गया जहां उन्होंने अपना प्रदर्शन जारी रखा. वो इस बात की जिद पर अड़ी हैं कि वे बगैर पीड़ित परिवार वालों से मिले वापस नहीं लौटेंगी.

सोनभद्र के सामूहिक हत्याकांड के पीड़ित परिवारों से मिलने से रोकने पर धरने पर बैठीं प्रियंका

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश एवं देश में राजनीतिक रूप से सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में प्रियंका गांधी को सोनभद्र का मामला अंधेरे में उम्मीद की एक किरण के रूप में दिखाई दे रहा है. इसके सहारे वो पार्टी का जनाधार बढ़ाने के साथ ही साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरना चाह रही हैं.

बेलछी नरसंहार का याद ताजा

प्रियंका गांधी जिस तरह से सोनभद्र जाने के लिए जिद पर अड़ीं, इसने 1977 में अपनी दादी इंदिरा गांधी के रुख की याद ताजा कर दी. प्रियंका और इंदिरा गांधी का जनता से सीधे मिलने का अंदाज सभी को मालूम है.

बात मई 1977 की है जब बिहार के पटना के पास बेलछी गांव में 14 दलितों को दबंग कुर्मी समाज द्वारा आग में झोंक दिया गया था. उस समय आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस को मात्र 154 सीटें ही हासिल हुईं थीं. जाहिर है इंदिरा गांधी सदमे में थीं. बेलछी में दलितों का नरसंहार कांग्रेस पार्टी के लिए किसी वरदान से कम नहीं...

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को उस समय हिरासत में ले लिया गया जब वो उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में सामूहिक हत्याकांड के पीड़ित परिवारों से मिलने जा रही थीं. सोनभद्र में एक जमीन के विवाद में 17 जुलाई को 10 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया था. सबसे पहले वो खुद को रोके जाने के विरोध में धरने पर बैठ गयीं. लेकिन बाद में उन्हें चुनार गेस्ट हाउस ले जाया गया जहां उन्होंने अपना प्रदर्शन जारी रखा. वो इस बात की जिद पर अड़ी हैं कि वे बगैर पीड़ित परिवार वालों से मिले वापस नहीं लौटेंगी.

सोनभद्र के सामूहिक हत्याकांड के पीड़ित परिवारों से मिलने से रोकने पर धरने पर बैठीं प्रियंका

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश एवं देश में राजनीतिक रूप से सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में प्रियंका गांधी को सोनभद्र का मामला अंधेरे में उम्मीद की एक किरण के रूप में दिखाई दे रहा है. इसके सहारे वो पार्टी का जनाधार बढ़ाने के साथ ही साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरना चाह रही हैं.

बेलछी नरसंहार का याद ताजा

प्रियंका गांधी जिस तरह से सोनभद्र जाने के लिए जिद पर अड़ीं, इसने 1977 में अपनी दादी इंदिरा गांधी के रुख की याद ताजा कर दी. प्रियंका और इंदिरा गांधी का जनता से सीधे मिलने का अंदाज सभी को मालूम है.

बात मई 1977 की है जब बिहार के पटना के पास बेलछी गांव में 14 दलितों को दबंग कुर्मी समाज द्वारा आग में झोंक दिया गया था. उस समय आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस को मात्र 154 सीटें ही हासिल हुईं थीं. जाहिर है इंदिरा गांधी सदमे में थीं. बेलछी में दलितों का नरसंहार कांग्रेस पार्टी के लिए किसी वरदान से कम नहीं था. इंदिरा गांधी ने इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं दिया. उन्होंने उसी साल अगस्त महीने में वहां जाने का कार्यक्रम बना लिया. इसके लिए उन्हें काफी कठनाइयों का सामना भी करना पड़ा था. बरसात का समय होने के कारण इंदिरा गांधी ने ट्रेक्टर और आखिरकार हाथी की पीठ पर बैठकर लगभग चार घंटे का सफर तय किया और पीड़ित परिवारों से मिलीं.

इंदिरा गांधी हाथी पर बैठकर बेलछी पहुंची थीं

इंदिरा गांधी के इस सफर से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जैसे जान सी आ गई थी. ठीक इसके ढाई साल बाद ही केंद्र में जनता पार्टी की सरकार का अंत हुआ था और 1980 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने 353 सीटों के साथ केंद्र में सत्ता हासिल की थी. और इसका श्रेय इंदिरा गांधी को ही दिया गया था.

भट्टा पारसौल मामला हुआ था फेल

उत्तर प्रदेश में नोएडा के पास भट्टा पारसौल गांव में जमीन अधिग्रहण को लेकर 2011 में आंदोलन हुआ था जिसमें दो किसानों के साथ दो पुलिस वालों की भी मौत हो गई थी. यहां किसानों को साथ देने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी नाटकीय अंदाज में पहुंचे थे. किसानों के साथ पूरी रात भी बिताई थी. उस समय भी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खोया जनाधार वापस लेन के लिए संघर्ष कर रही थी लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को नहीं मिला सका था. जब प्रदेश में अगले ही साल 2012 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को मात्र 28 सीटें ही प्राप्त हुई थीं.

भट्टा परसौल में राहुल गांधी के प्रयास सफल नहीं हुए

वैसे तो प्रियंका गांधी का लोगों से मिलना-जुलना या फिर पीड़ितों के साथ खड़े रहने का तौर-तरीका उनकी दादी इंदिरा गांधी से मिलता है लेकिन क्या वो सोनभद्र नरसंहार से अपने दादी के तरह ही पार्टी को खराब दौरे से उबार पाएंगी या फिर यह राहुल गांधी का "भट्टा पारसौल" सिद्ध होगा, परिणाम के लिए इंतज़ार तो करना ही होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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