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बीजेपी भी सुने बाबाजी का 'दाल ज्ञान', 2019 चुनाव में काम आएगा!

    • विनीत कुमार
    • Updated: 20 जून, 2016 02:13 PM
  • 20 जून, 2016 02:13 PM
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बाबा रामदेव का नुस्खा- 'दाल के दाम बढ़ने पर लोग सीधे प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कर देते हैं. दाल महंगी हो रही है तो पानी डालकर दाल बनाओ. पतली दाल खाने से मोटापा तो खत्म होगा ही साथ ही सेहत भी सही रहेगी.'

बात तब की है जब रूस सोवियत संघ हुआ करता था और वहां कम्युनिस्टों का राज होता था.

मास्को के बाजार में दो परिचित मिले. एक ने दूसरे से पूछा- क्या हालचाल है?

दूसरे ने जवाब दिया- बहुत बढ़िया.

पहले ने पूछा- आजकल अखबार पढ़ते हो?

दूसरे ने कहा- हां भई, वरना मुझे कैसे पता चलता.

बस, एक लतीफा है. कहीं सुना था. इसलिए बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है. और हां, हालात कैसे भी हों...Be positive. हर सिक्के के दो पहलू होते हैं टाइप वाली लाइन से भी आप खुद को दिलासा दे सकते हैं.

खैर, अब मुद्दे पर आते हैं. अभी पाकिस्तान में जब दाल की बढ़ती कीमतों को लेकर विपक्ष ने हंगामा मचाया तो वहां के वित्त मंत्री इशक दार साहब ( Ishaq Dar) ने संसद में बहुत गंभीर लहजे में समझाया कि नेता अपने इलाके के वोटरों को बताएं कि वे दाल की जगह मुर्गा खाएं.

दाल को लेकर हंगामा तो यहां हिंदुस्तान में भी तो मचा हुआ है. इसलिए, योग से लेकर अर्थशास्त्र तक पर 'गहरी पकड़' रखने वाले बाबा रामदेव ने भी अपना 'दाल आसन' परोस दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बाबाजी ने कहा, 'दाल के दाम बढ़ने पर लोग सीधे प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कर देते हैं. दाल महंगी हो रही है तो खूब पानी डालकर दाल बनाओ. पतली दाल खाने से मोटापा तो खत्म होगा ही साथ ही सेहत भी सही रहेगी. और तो और दाल की खपत में भी कमी आएगी'.

पिछले साल भी बाबाजी ने समझाया था कि लोगों को दाल कम खाना चाहिए क्योंकि ज्यादा प्रोटीन से घुटने में दर्द होता है. इसलिए दाल की बजाए बाजार में मिल रही सबसे सस्ती सब्जी का सेवन करें. गजब! कीमतों पर लगाम लगाने का यह नायाब तरीका देश के नामचीन अर्थशास्त्रियों के दिमाग में क्यों नहीं आया? धिक्कार है उन पर.

बात तब की है जब रूस सोवियत संघ हुआ करता था और वहां कम्युनिस्टों का राज होता था.

मास्को के बाजार में दो परिचित मिले. एक ने दूसरे से पूछा- क्या हालचाल है?

दूसरे ने जवाब दिया- बहुत बढ़िया.

पहले ने पूछा- आजकल अखबार पढ़ते हो?

दूसरे ने कहा- हां भई, वरना मुझे कैसे पता चलता.

बस, एक लतीफा है. कहीं सुना था. इसलिए बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है. और हां, हालात कैसे भी हों...Be positive. हर सिक्के के दो पहलू होते हैं टाइप वाली लाइन से भी आप खुद को दिलासा दे सकते हैं.

खैर, अब मुद्दे पर आते हैं. अभी पाकिस्तान में जब दाल की बढ़ती कीमतों को लेकर विपक्ष ने हंगामा मचाया तो वहां के वित्त मंत्री इशक दार साहब ( Ishaq Dar) ने संसद में बहुत गंभीर लहजे में समझाया कि नेता अपने इलाके के वोटरों को बताएं कि वे दाल की जगह मुर्गा खाएं.

दाल को लेकर हंगामा तो यहां हिंदुस्तान में भी तो मचा हुआ है. इसलिए, योग से लेकर अर्थशास्त्र तक पर 'गहरी पकड़' रखने वाले बाबा रामदेव ने भी अपना 'दाल आसन' परोस दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बाबाजी ने कहा, 'दाल के दाम बढ़ने पर लोग सीधे प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कर देते हैं. दाल महंगी हो रही है तो खूब पानी डालकर दाल बनाओ. पतली दाल खाने से मोटापा तो खत्म होगा ही साथ ही सेहत भी सही रहेगी. और तो और दाल की खपत में भी कमी आएगी'.

पिछले साल भी बाबाजी ने समझाया था कि लोगों को दाल कम खाना चाहिए क्योंकि ज्यादा प्रोटीन से घुटने में दर्द होता है. इसलिए दाल की बजाए बाजार में मिल रही सबसे सस्ती सब्जी का सेवन करें. गजब! कीमतों पर लगाम लगाने का यह नायाब तरीका देश के नामचीन अर्थशास्त्रियों के दिमाग में क्यों नहीं आया? धिक्कार है उन पर.

 महंगाई भूल जाओ, और हां...जरा दाल कम खाओ

देश में चीनी के दाम बढ़ रहे हैं, तेल के दाम बढ़ रहे हैं....ये भी तो स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छे नहीं है. इन पर भी बेफिक्री का पानी डालो. और फिर....रेप का जिम्मेदार जींस है. फास्ट फूड से बलात्कर की घटनाएं बढ़ी हैं. जवान लड़कों से गलती हो जाती है. लड़कियों को देर रात बाहर नहीं निकलना चाहिए....और हिंदू महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने चाहिए, इनको सुनने की आदत डाल लो. ये बयान बाबा रामदेव ने भले ही नहीं दिए लेकिन उनके जैसे ज्ञानी और भी तो हैं.

बाबजी का 'दाल ज्ञान' बीजेपी के लिए भी कारगर..

सब जानते हैं, महंगाई ने कितनी सरकारों की कुर्सी छीनी है. इसलिए बाबा रामदेव ने जो रास्ता दिखाया है, उस पर भाजपा के रणनीतिकारों को जरूर ध्यान देना चाहिए. रामदेव भले ही बीजेपी के सदस्य न हों लेकिन महंगाई पर जवाब कैसे दिया जाता है, इसकी क्लास तो वे भाजपा के नेताओं को दे ही सकते हैं. क्योंकि महंगाई तो जाने से रही. इसलिए बेहतर है कि माहौल ऐसा बनाया जाए, जैसे लगे कि वाकई अच्छे दिन आ गए और बस आप ही ऐसे नासमझ हैं जिन्हें ये दिखाई नहीं दे रहा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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