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CAA-NRC विरोध की बंदूक प्रशांत किशोर के कंधे पर किसने रखी है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 जनवरी, 2020 06:19 PM
  • 01 जनवरी, 2020 06:19 PM
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CAA-NRC को लेकर अब राजनीतिक विरोध (CAA-NRC Protests) भी जोर पकड़ने लगा है, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी लगता है प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के ललकारने पर ही सामने आये हैं - सवाल ये है कि प्रशांत किशोर के पीछे कौन है?

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) CAA-NRC के खिलाफ विपक्षी विरोध (CAA-NRC Protests) की धुरी बनने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं - लेकिन किसी को भी शक नहीं कि वो सिर्फ एक कंधा बने हुए हैं जिस बंदूक रख कर कोई और चला रहा है.

CAA-NRC के खिलाफ पहले छात्रों ने विरोध का मोर्चा संभाला. फिर आम लोगों का एक खास तबका और उसके बाद राजनीतिक प्रदर्शन शुरू हुए. कांग्रेस के भी विरोध प्रदर्शन में ज्यादा जोर प्रशांत किशोर के उस बयान के बाद देखने को मिला जिसमें कहा था कि कांग्रेस का कोई सीनियर नेता मौके पर देखने को नहीं मिलता. रामलीला मैदान से सोनिया गांधी की अपील के बाद कांग्रेस के स्थापना दिवस के मौके पर खुद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा विरोध करने सामने आये.

फिर भी सवाल यही है कि ये सब किसके दिमाग की उपज है या कौन मजबूती से परदे के पीछे से हवा दे रहा है? चुनावी फायदे के हिसाब से देखें तो सबसे आगे नीतीश कुमार और ममता बनर्जी (Nitish Kumar and Mamata Banerjee) ही खड़े लगते हैं. कयास ये भी हैं कि प्रशांत किशोर का NRC पर कांग्रेस की आलोचना करके दिल्‍ली में अरविंद केजरीवाल के पक्ष में हवा बना रहे हैं. ताकि दिल्‍ली में लोकसभा चुनाव की तरह मुकाबला त्रिकोणीय न होकर, बीजेपी और आप के बीच रहे. आखिर उन पर केजरीवाल के चुनावी रणनीतिकार होने की भी तो जिम्‍मेदारी है.

केरल सरकार के प्रस्ताव से घिरे राहुल गांधी

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध को लेकर केरल की पी. विजयन सरकार दो कदम आगे बढ़ चुकी है. CAA पर चर्चा के लिए 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया - और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि केरल में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं बनेगा. CAA के खिलाफ केरल में सत्ताधारी CPM-LDF गठबंधन ने कांग्रेस की अगुवाई वाले DF के सपोर्ट से प्रस्ताव पारित किया है. केरल में बीजेपी के इकलौते विधायक ओ. राजगोपाल ने प्रस्ताव का यथाशक्ति विरोध किया है.

इस पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने...

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) CAA-NRC के खिलाफ विपक्षी विरोध (CAA-NRC Protests) की धुरी बनने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं - लेकिन किसी को भी शक नहीं कि वो सिर्फ एक कंधा बने हुए हैं जिस बंदूक रख कर कोई और चला रहा है.

CAA-NRC के खिलाफ पहले छात्रों ने विरोध का मोर्चा संभाला. फिर आम लोगों का एक खास तबका और उसके बाद राजनीतिक प्रदर्शन शुरू हुए. कांग्रेस के भी विरोध प्रदर्शन में ज्यादा जोर प्रशांत किशोर के उस बयान के बाद देखने को मिला जिसमें कहा था कि कांग्रेस का कोई सीनियर नेता मौके पर देखने को नहीं मिलता. रामलीला मैदान से सोनिया गांधी की अपील के बाद कांग्रेस के स्थापना दिवस के मौके पर खुद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा विरोध करने सामने आये.

फिर भी सवाल यही है कि ये सब किसके दिमाग की उपज है या कौन मजबूती से परदे के पीछे से हवा दे रहा है? चुनावी फायदे के हिसाब से देखें तो सबसे आगे नीतीश कुमार और ममता बनर्जी (Nitish Kumar and Mamata Banerjee) ही खड़े लगते हैं. कयास ये भी हैं कि प्रशांत किशोर का NRC पर कांग्रेस की आलोचना करके दिल्‍ली में अरविंद केजरीवाल के पक्ष में हवा बना रहे हैं. ताकि दिल्‍ली में लोकसभा चुनाव की तरह मुकाबला त्रिकोणीय न होकर, बीजेपी और आप के बीच रहे. आखिर उन पर केजरीवाल के चुनावी रणनीतिकार होने की भी तो जिम्‍मेदारी है.

केरल सरकार के प्रस्ताव से घिरे राहुल गांधी

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध को लेकर केरल की पी. विजयन सरकार दो कदम आगे बढ़ चुकी है. CAA पर चर्चा के लिए 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया - और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि केरल में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं बनेगा. CAA के खिलाफ केरल में सत्ताधारी CPM-LDF गठबंधन ने कांग्रेस की अगुवाई वाले DF के सपोर्ट से प्रस्ताव पारित किया है. केरल में बीजेपी के इकलौते विधायक ओ. राजगोपाल ने प्रस्ताव का यथाशक्ति विरोध किया है.

इस पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर सख्त लहजे में कहा कि केरल ही नहीं बल्कि किसी भी विधानसभा को CAA पर प्रस्ताव पारित करने का अधिकार ही नहीं है क्योंकि ऐसी शक्तियां केवल संसद के पास हैं. रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि 'ये कानून पूरे देश के लिए है... इससे पहले बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने यूगांडा और श्रीलंका के तमिलों को भारतीय नागरिकता दी थी.' रविशंकर प्रसाद ने ये सवाल भी उठाया कि अगर कांग्रेस ने पहले यही काम किया है तो अब वो विरोध क्यों कर रही है? ये दोहरा मानदंड क्यों?

अपने साथी मंत्री से थोड़ा आगे बढ़ कर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह विपक्षी दलों पर बरसे और बोले कि ये समाज में भ्रम फैला कर देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा करना चाहते हैं. गिरिराज सिंह बोले, ‘विपक्ष जिन्ना के रास्ते पर चलने के अलावा पाकिस्तान की भाषा बोल रहा है.'

CAA-NRC विरोध में प्रशांत किशोर तो महज मुखौटा हैं

केरल प्रस्ताव पर कांग्रेस के सपोर्ट के बाद राहुल गांधी चौतरफा घिरते जा रहे हैं. वैसे भी वो केरल के ही वायनाड से सांसद हैं - और हाल फिलहाल उनका सारा जोर केरल पर ही होता है.

प्रशांत किशोर के लिए राहुल गांधी पर दबाव बनाना अब आसान हो गया. अभी तक प्रशांत किशोर राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेतृत्व को सलाह देते रहे कि पार्टी की राज्य सरकारों से औपचारिक तौर पर कहें कि वो ऐलान करें कि कांग्रेस शासित राज्यों में CAA-NRC नहीं लागू होगा.

अब तो प्रशांत किशोर राहुल गांधी से ये भी कह सकते हैं कि कांग्रेस शासन वाली राज्य सरकारें केरल को फॉलो करें.

कंधा तो बेशक PK का है, बंदूक कौन चला रहा है - नीतीश या ममता?

जनता दल यूनाइटेड में उपाध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने से पहले तक प्रशांत किशोर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनावी रणनीतिकार हुआ करते थे. जेडीयू नेता बनने के बाद तो प्रशांत किशोर, जिन्हें PK के नाम से भी जाना जाता है, सिर्फ पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में भी छोटी सी भूमिका निभा पाये - यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से उनकी मुलाकात और उसे लेकर विवाद तो आपको याद होगा ही. नीतीश कुमार के लिए अच्छी खबर ये रही कि युवाओं के बीच भी जेडीयू चमकने लगा. पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में जेडीयू की ये पहली जीत रही और प्रशांत किशोर की आखिरी चुनावी रणनीति.

प्रशांत किशोर अब नीतीश कुमार के लिए चुनावी रणनीति नहीं तैयार करते - क्योंकि ये काम जेडीयू के सीनियर नेता करते हैं और वो ट्वीट कर कहते हैं कि वो वरिष्ठों से सीख रहे हैं. दरअसल, प्रशांत किशोर फिलहाल ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की चुनावी मुहिम देख रहे हैं. हां, आम चुनाव में जगनमोहन रेड्डी की आंध्र प्रदेश में जीत और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने में भी प्रशांत किशोर की भूमिका की काफी चर्चा रही.

हो सकता है प्रशांत किशोर की पैराशूट एंट्री से नाराज नेताओं को शांत करने के लिए नीतीश ने उन्हें चुनावी राजनीति से दूर कर ये रास्ता निकाला हो - लेकिन फिलहाल तो प्रशांत किशोर वो काम कर रहे हैं जो न तो जेडीयू में कोई कर सकता है और न ही खुद नीतीश कुमार - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से CAA-NRC पर दो-दो हाथ करने का.

प्रशांत किशोर के इस ट्वीट से मचे बवाल को नीतीश कुमार ने ये कहते हुए संभालने की कोशिश की है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच सब ठीक ठाक चल रहा है. देखा जाये तो प्रशांत किशोर ने भी रिश्तों में खटास जैसी कोई बात अभी तो नहीं की है, भले ही आगे को लेकर जो भी इरादा हो. प्रशांत किशोर कहते हैं, ‘मेरे अनुसार लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला विधानसभा चुनाव में दोहराया नहीं जा सकता.’

हो सकता है CAA-NRC के व्यापक विरोध के लिए प्रशांत किशोर मजबूत जमीन तैयार कर रहे हों, लेकिन उसके मूल में बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर दबाव बनाने के लिए कोई खास रणनीति भी तो हो सकती है.

वैसे प्रशांत किशोर के CAA विरोध से फायदा उन सभी को हो रहा है जो बीजेपी के खिलाफ अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. अभी तो आम राय यही बनी है कि प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार का पूरा सपोर्ट हासिल है - और वो जो कुछ भी कह रहे हैं वो एक तरीरके से नीतीश कुमार की ही जबान है. अगर ऐसी स्थिति खत्म हो जाये तो प्रशांत किशोर वही कर रहे हैं जो उनके सभी क्लाइंट्स को सूट करता है - ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से लेकर उद्धव ठाकरे तक. जब तक फिर से बीजेपी को प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने की जरूरत नहीं पड़ती, वो अपने मूल बिजनेस को कायम रखने की कोशिश तो करेंगे ही. सीधा फायदा इसका ये होगा कि प्रशांत किशोर को ममता और केजरीवाल के बाद भी लंबा इंतजार नहीं करना होगा - चुनावी मुहिम की जिम्मेदारी मिल ही जाएगी.

तात्कालिक रूप से देखें तो प्रशांत किशोर की CAA-NRC विरोधी मुहिम का सीधा फायदा नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल को भी मिलने वाला है. बल्कि, ऐसे कह सकते हैं कि ममता बनर्जी से भी पहले नीतीश कुमार को ही फायदा होगा - क्योंकि बिहार में चुनाव 2020 में है जबकि पश्चिम बंगाल में 2021 में.

ऐसी उलझन इसलिए भी पैदा हो रही है क्योंकि CAA के विरोध में नीतीश कुमार नहीं हैं, उनका विरोध बस NRC तक सीमित है. अब तक यही पता चला है कि नीतीश कुमार की नजर में CAA में कोई गलत बात नहीं है. हां, ममता बनर्जी जरूर दोनों ही चीजों का बराबर विरोध कर रही हैं.

ऐसे में सवाल यही है कि CAA-NRC विरोध को लेकर प्रशांत किशोर ने अपना जो कंधा मुहैया कराया है उस पर रखी बंदूक का ट्रिगर किसने पकड़ रखा है? नीतीश कुमार ने या फिर ममता बनर्जी ने?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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