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प्रणब मुखर्जी ने तमाम चर्चाओं पर तो मुहर लगा दी, पर एक सस्पेंस रह ही गया

    • आईचौक
    • Updated: 15 अक्टूबर, 2017 10:33 AM
  • 15 अक्टूबर, 2017 10:33 AM
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अपनी किताब के जरिये पूर्व राष्ट्रपति उन कई बातों पर मुहर लगा दी है जो अब तक ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा में रही हैं, मनमोहन सिंह को लेकर उनके बयान से सस्पेंस कायम है.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब भारतीय राजनीति के 16 महत्वपूर्ण साल का लेखा जोखा है, हालांकि, उनके नजरिये से. इस किताब के तीन अहम किरदार हैं - खुद पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. ये किताब ऐसे वक्त मार्केट में आयी है जब प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद का कार्यकाल खत्म हो चुका है और सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी अपने बेटे राहुल गांधी को सौंपने जा रही हैं. मनमोहन सिंह को तो पूर्व प्रधानमंत्री हुए भी तीन साल हो चुके हैं.

ये पहला मौका है जब पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन दोनों के दिल के गुबार खुल कर सियासी हवाओं में घुल रहे हैं. मुखर्जी ने सत्ता के दिनों की यादों के पन्ने खोल कर रख दिये हैं तो मनमोहन भी मन की बात कह कर हल्का महसूस कर रहे होंगे.

किताब में तो सारी बातें तकरीबन वे ही हैं जो ऑफ द रिकॉर्ड किसी न किसी रूप में छन छन कर खबरों के जरिये आती रहीं, लेकिन इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में पूर्व राष्ट्रपति ने एक बात बोल कर सस्पेंस खत्म नहीं होने दिया है.

वो बातें गॉसिप नहीं थीं

प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश अपनी जगह है. मौका होने के बावजूद सामने से कुर्सी का बार बार खिसक जाना किसी के लिए भी तकलीफदेह हो सकता है. भारतीय राजनीति ऐसे कई नाम हैं जिनके बेहद करीब आकर भी प्रधानमंत्री की कुर्सी दूर हो गयी. मुलायम सिंह यादव को तो हमेशा मलाल रहेगा. ज्यादा कष्ट उन्हें इसलिए भी होता है क्योंकि जिस लालू प्रसाद की वजह से वो पीएम बनने से रह गये वो बाद उनके समधी बन गये.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ ऐसा कई बार हुआ है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सीनियर होते हुए भी तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी. बाद में राजीव गांधी से प्रणब मुखर्जी की खटपट की एक बड़ी वजह ये बात भी रही. 2004 में जब सोनिया गांधी ने विदेशी मूल के मुद्दे पर विरोध के चलते खुद न बनने...

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब भारतीय राजनीति के 16 महत्वपूर्ण साल का लेखा जोखा है, हालांकि, उनके नजरिये से. इस किताब के तीन अहम किरदार हैं - खुद पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. ये किताब ऐसे वक्त मार्केट में आयी है जब प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद का कार्यकाल खत्म हो चुका है और सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी अपने बेटे राहुल गांधी को सौंपने जा रही हैं. मनमोहन सिंह को तो पूर्व प्रधानमंत्री हुए भी तीन साल हो चुके हैं.

ये पहला मौका है जब पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन दोनों के दिल के गुबार खुल कर सियासी हवाओं में घुल रहे हैं. मुखर्जी ने सत्ता के दिनों की यादों के पन्ने खोल कर रख दिये हैं तो मनमोहन भी मन की बात कह कर हल्का महसूस कर रहे होंगे.

किताब में तो सारी बातें तकरीबन वे ही हैं जो ऑफ द रिकॉर्ड किसी न किसी रूप में छन छन कर खबरों के जरिये आती रहीं, लेकिन इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में पूर्व राष्ट्रपति ने एक बात बोल कर सस्पेंस खत्म नहीं होने दिया है.

वो बातें गॉसिप नहीं थीं

प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश अपनी जगह है. मौका होने के बावजूद सामने से कुर्सी का बार बार खिसक जाना किसी के लिए भी तकलीफदेह हो सकता है. भारतीय राजनीति ऐसे कई नाम हैं जिनके बेहद करीब आकर भी प्रधानमंत्री की कुर्सी दूर हो गयी. मुलायम सिंह यादव को तो हमेशा मलाल रहेगा. ज्यादा कष्ट उन्हें इसलिए भी होता है क्योंकि जिस लालू प्रसाद की वजह से वो पीएम बनने से रह गये वो बाद उनके समधी बन गये.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ ऐसा कई बार हुआ है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सीनियर होते हुए भी तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी. बाद में राजीव गांधी से प्रणब मुखर्जी की खटपट की एक बड़ी वजह ये बात भी रही. 2004 में जब सोनिया गांधी ने विदेशी मूल के मुद्दे पर विरोध के चलते खुद न बनने का फैसला किया तब भी प्रणब मुखर्जी एक दावेदार थे. हाल तक ऐसी बातें गॉसिप जैसी ही थीं, लेकिन अब इनमें से कई पर किताब ने मुहर लगा दी है.

अंत भला तो सब भला...

अपनी किताब में प्रणब मुखर्जी ने 2012 के राष्‍ट्रपति चुनाव से पहले के घटनाक्रम पर खास तौर पर प्रकाश डाला है. इसी सिलसिले में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से 2 जून 2012 की मुलाकात का खास तौर पर जिक्र किया है. मुलाकात में सोनिया गांधी ने कहा, 'प्रणबजी आप इस पद के लिए सबसे योग्‍य शख्‍स हैं, लेकिन आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि सरकार चलाने में आपकी भूमिका बेहद अहम है. लिहाजा कोई वैकल्पिक नाम सुझाएं.' इस वाकये के बारे में प्रणब मुखर्जी ने बताया है, 'मीटिंग खत्‍म होने के बाद मुझे लगा कि सोनिया गांधी यूपीए के राष्‍ट्रपति पद के प्रत्‍याशी के लिए मनमोहन सिंह के नाम पर विचार कर रही हैं. मैंने सोचा कि यदि मनमोहन सिंह को राष्‍ट्रपति बनाया जाएगा, तो वह मुझे प्रधानमंत्री पद के लिए चुन सकती हैं.'

प्रणब मुखर्जी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाये जाने के फैसले को सही बताया है. उनका कहना है कि वो निराश नहीं हुए और मान लिये कि वो प्रधानमंत्री पद के लायक नहीं थे क्योंकि वो राज्य सभा के सदस्य थे, वो हिंदी नहीं जानते थे. प्रणब मुखर्जी का कहना है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए हिंदी जानना बेहद जरूरी है.

कुछ गॉसिप सच होते हैं...

आखिर में भी वो सीनियर ही रहे मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त करने वाले प्रणब मुखर्जी ही रहे, जब वो वित्त मंत्री थे. मनमोहन सिंह ने इस बात का ख्याल तब भी रखा जब वो खुद प्रधानमंत्री बन गये और प्रणब उनकी कैबिनेट के मंत्री. इसकी भरपाई तभी हो पायी जब 2012 में प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बने.

प्रणब मुखर्जी की किताब रिलीज होने के मौके पर मनमोहन ने कहा भी, 'प्रणब मुखर्जी राजनीति में मुझसे हर लिहाज से सीनियर थे, लेकिन मुझे चुना गया. इसके बावजूद हमारे रिश्तों में कभी कोई अंतर नहीं आया.'

मनमोहन सिंह ने ये भी बताया कि जब वो पीएम बने तो प्रणब मुखर्जी अपसेट थे और उन्हें इस बात की शिकायत का पूरा हक है.

वो रिमोट कंट्रोल नहीं था!

2014 के लोक सभा चुनाव और उसके बाद भी बीजेपी का आरोप रहा है कि कांग्रेस के सत्ता में होने के दौरान पीएमओ तक रिमोट से कंट्रोल होता रहा. हालांकि, कांग्रेस की ओर से हमेशा ऐसे आरोप खारिज किये जाते रहे.

यूपीए के पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री के सलाहकार रहे संजय बारू की किताब - एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर खासी चर्चित रही. इस किताब से ये बात समझ आयी कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी मनमोहन सिंह पर सोनिया गांधी कितना नियंत्रण रखती थीं.

लेकिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ऐसी बातों से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते. इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में उन्होंने ये मानने से इंकार कर दिया कि प्रधानमंत्री होते हुए भी मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी के नियंत्रण में रहे.

पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने अपनी किताब और इंटरव्यू में ज्यादातर सियासी चर्चाओं पर मुहर लगा दी है, लेकिन मनमोहन सिंह को लेकर उनके बयान से फिर से सस्पेंस कायम हो गया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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