यूपी की हार से बेहाल हुए विपक्षी दल अब एकता की बात करने लगे हैं. बाघ और बकरी एक ही घाट पर पानी पियेंगे. आग और पानी एक साथ रहेंगे. सपा बसपा एक ही चरनी में चरेंगे. यानी स्वभाव के विपरीत एकता करना मजबूरी भी तो है. कल तक एक दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले दल और उनके नेता अब गले में बाहें डाले घूमेंगे. बुआ भतीजे और बहन भाई की रिश्तेदारी भी हो जाएगी.
चुनाव के दौरान तो ये दल अलग-अलग लड़ते रहे और खुश होते रहे. लेकिन अब जब मोदी की अगुआई में एनडीए की सरकार आ ही गई है और इन विपक्षी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़कर सामने से आते हार के दानव को झेल लिया तो सबकी अकल ठिकाने आ गई है. सभी सयानेपन की बातें करने लगे हैं. लेकिन पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए तो पनघट की डगर बहुत कठिन लगती है. क्योंकि अहम की मटकी बहुत जल्दी छलक जाती है. एकता का प्याला लब तक आते आते हाथों से रपट जाता...
यूपी की हार से बेहाल हुए विपक्षी दल अब एकता की बात करने लगे हैं. बाघ और बकरी एक ही घाट पर पानी पियेंगे. आग और पानी एक साथ रहेंगे. सपा बसपा एक ही चरनी में चरेंगे. यानी स्वभाव के विपरीत एकता करना मजबूरी भी तो है. कल तक एक दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले दल और उनके नेता अब गले में बाहें डाले घूमेंगे. बुआ भतीजे और बहन भाई की रिश्तेदारी भी हो जाएगी.
चुनाव के दौरान तो ये दल अलग-अलग लड़ते रहे और खुश होते रहे. लेकिन अब जब मोदी की अगुआई में एनडीए की सरकार आ ही गई है और इन विपक्षी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़कर सामने से आते हार के दानव को झेल लिया तो सबकी अकल ठिकाने आ गई है. सभी सयानेपन की बातें करने लगे हैं. लेकिन पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए तो पनघट की डगर बहुत कठिन लगती है. क्योंकि अहम की मटकी बहुत जल्दी छलक जाती है. एकता का प्याला लब तक आते आते हाथों से रपट जाता है. इस एकता में सेंध लगने में कितनी देर लगेगी कहा नहीं जा सकता. क्या गारंटी है कि सीबीआई, आपराधिक मामलों की जांच और अन्य घपलों की जांच का डर दिखाकर इनको तोड़ा नहीं जा सकता. क्योंकि जब आर खोटा हो तो पार को क्या दोष दिया जाय.
बात चाहें यूपी के चुनाव की करें या लोकसभा चुनाव की. दोनों जगह अपने-अपने चूल्हों पर सियासी रोटियां पकाते रहे. दूसरों की रोटियों के आटे में जुलाब की गोलियां मिलाते रहे. हां, बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने भांप लिया था कि हार निश्चित है. लिहाजा इसके अलावा कोई और राह नहीं थी कि रसोई इकट्टा मिलकर तैयार की जाय. लेकिन यूपी उत्तराखंड में अपना ही सबक भूल गये. अब यूपी, उत्तराखंड और अन्य राज्यों के बाद उपचुनाव के नतीजों के बाद आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर इन दलों की चिंता गहरा गई है. ओखली में सिर देने के अलावा कोई और चारा नहीं. इन सारे दलों ने सत्ता के छुहारे चख रखे हैं. लेकिन कहा जाता है ना कि अक्ल बादाम खाने से नहीं ठोकर खाने से आती है. यहां तो अब एकता की बातें बना रहे इन दलों और उनके नेताओं ने धक्के पर धक्के खाये हैं. जब हड्डियां कीर्तन करने लगें तो एकता की बात करने के अलावा कोई और चारा नहीं. अब तो नेताजी से लेकर भय्या जी तक, बहनजी से लेकर बुआजी तक, दीदी ले लेकर दादा तक सबके जबान पर एक ही राग.. एकता में शक्ति है...
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