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राजनीतिक लाभ के पाले पड़ गई भोपाल मुठभेड़

    • आदर्श तिवारी
    • Updated: 02 नवम्बर, 2016 11:05 AM
  • 02 नवम्बर, 2016 11:05 AM
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जब से भोपाल मुठभेड़ हुई है तब से ही इसपर राजनीति गर्मा गई है. लोगों को दिख रहा है कि 8 लोग मारे गए, लेकिन क्या ये नहीं देख रहे कि आठों अपराधी थे और आगे चलकर किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते थे.

देश में जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है एक बात तो स्पष्ट  है कि वह आतंकवाद के मसले पर कठोर है. इससे हट के एक बात पर गौर करें तो यह भी एक सच सामने आया है कि देश के जवानों, पुलिसकर्मीयों द्वारा जब भी कोई आतंकी मारे जा रहें हैं उन आतंकियों के साथ कुछ प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, सेकुलर कबीले तथा कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल प्राय: खुलकर खड़े दिखाई दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें- 8 आंतकी, 8 घंटे, 8 किलोमीटर, 8 मौतें और ये 8 सवाल...

इसे बिडम्बना कहें या इनकी मजबूरी ?

जब भी कोई आतंकी ढेर होता एक तबका आतंकियों के समर्थन वाली पंक्ति में खड़ा दीखता है. खैर, भोपाल जेल से फरार हुए सिमी के आतंकियों को जैसे ही पुलिस ने ढेर किया उसके साथ ही कई राजनीतिक दल इस मुठभेड़ को फर्जी करार देने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करने में लग गए. इससे अधिक छिछली राजनीति और क्या हो सकती है कि वोटों के तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल आतंकियों के हिमायती बनने में देरी नहीं लगाई.

 भोपाल एनकाउंटर की फोटो

इस एनकाउंटर को लेकर जिस प्रकार से राजनीति हो रही है उससे तो यही लगता है कि देश की सीमाओं पर जब आतंकी ढेर होतें हैं कांग्रेस, वामपंथियों के सिने में दर्द जरुर होता होगा. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि इशरत जहां से लगाएं दुनिया के कई खूंखार आतंकियों के लिए कांग्रेस कितना सम्मानजनक भाव रखती है. यह देश की जनता पहले ही जान चुकी है. इसे क्रूर बिडम्बना ही कहेंगें कि मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले लोग शहीद कांस्टेबल पर शोक जताने में अभी तक असमर्थ साबित हुए हैं. यह इनकी मानसिकता इनकी विचारधारा का ताज़ा उदहारण है. खैर,कांग्रेस समेत इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले सेकुलर राजनीतिक दल ...

देश में जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है एक बात तो स्पष्ट  है कि वह आतंकवाद के मसले पर कठोर है. इससे हट के एक बात पर गौर करें तो यह भी एक सच सामने आया है कि देश के जवानों, पुलिसकर्मीयों द्वारा जब भी कोई आतंकी मारे जा रहें हैं उन आतंकियों के साथ कुछ प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, सेकुलर कबीले तथा कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल प्राय: खुलकर खड़े दिखाई दे रहे हैं.

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इसे बिडम्बना कहें या इनकी मजबूरी ?

जब भी कोई आतंकी ढेर होता एक तबका आतंकियों के समर्थन वाली पंक्ति में खड़ा दीखता है. खैर, भोपाल जेल से फरार हुए सिमी के आतंकियों को जैसे ही पुलिस ने ढेर किया उसके साथ ही कई राजनीतिक दल इस मुठभेड़ को फर्जी करार देने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करने में लग गए. इससे अधिक छिछली राजनीति और क्या हो सकती है कि वोटों के तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल आतंकियों के हिमायती बनने में देरी नहीं लगाई.

 भोपाल एनकाउंटर की फोटो

इस एनकाउंटर को लेकर जिस प्रकार से राजनीति हो रही है उससे तो यही लगता है कि देश की सीमाओं पर जब आतंकी ढेर होतें हैं कांग्रेस, वामपंथियों के सिने में दर्द जरुर होता होगा. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि इशरत जहां से लगाएं दुनिया के कई खूंखार आतंकियों के लिए कांग्रेस कितना सम्मानजनक भाव रखती है. यह देश की जनता पहले ही जान चुकी है. इसे क्रूर बिडम्बना ही कहेंगें कि मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले लोग शहीद कांस्टेबल पर शोक जताने में अभी तक असमर्थ साबित हुए हैं. यह इनकी मानसिकता इनकी विचारधारा का ताज़ा उदहारण है. खैर,कांग्रेस समेत इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले सेकुलर राजनीतिक दल  इस बात का जवाब दें उनके लिए दुर्दांत आतंकियों से इतनी हमदर्दी क्यों है? शहीद पुलिसकर्मी की शहादत उनके लिए कोई मायने रखती है, की नहीं रखती?

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जाहिर है इस मुठभेड़ से कई सवाल उठेंगें लेकिन सवाल का स्वरूप इतना विचित्र होगा यह किसी ने नहीं सोचा था देश की वर्तमान हालात को समझे तो यह नाज़ुक दौर है सीमा पर हमारे जवान लगातार शहीद हो रहें, जवाबी हमला भी जम के कर रहें हैं. कई आतंकी संगठनों के निशाने पर भारत है ऐसे में देश की अंदर सिमी जैसे खतरनाक आतंकी संगठन के 8 आतंकी जो जेल से फरार हों उन्हें जिंदा कैसे छोड़ा जा सकता था? इसमें कोई दोराय नहीं कि जेल प्रशासन की चूक की वजह से यह शातिर आतंकी जेल से फरार होने में सफल हुए. एनआईए की जाँच के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि चूक कहाँ से हुई थी.

सरकार ने जेल के कई आला अधिकारीयों की छुट्टी कर दी है. जैसे ही यह जानकारी निकल कर सामने आई कि आठ खूंखार आतंकी जेल से फरार हो गएँ हैं मप्र पुलिस के कान खड़े हो गए किन्तु  इसे पुलिस प्रशासन की चुस्ती और सरकार की सक्रियता ही कहेंगें कि महज कुछ घंटों के अंदर ही मध्य प्रदेश पुलिस ने इन खतरनाक आतंकियों को मार गिराया. गौरतलब है कि यह आतंकी जेल से फरार होने में बाद किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की तैयारी में थे ऐसे में पुलिस ने इनके मंसूबो पर पानी फेर दिया. मुठभेड़ के सहारे राजनीतिक रोटी सेंकने की फ़िराक में जो राजनेता लगे हुए हैं वह इस स्याह सच के मुंह क्यों फेर रहें है कि आतंकी खूंखार थे तथा कभी भी कोई बड़ी घंटना को अंजाम दे सकते थे फिर उसका जिम्मेदार कौन होता?

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बहरहाल, आतंकियों को लेकर जिस प्रकार की कठोर नियति सरकार ने अख्तियार किया है वह काबिलेतारीफ है किसी भी राज्य ,देश की सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी होती है कि वहां की जनता को महफूज रखे,सुरक्षा में मसले पर कभी कोई ढीलवाही नहीं बरतें. शिवराज सरकार ने बिना कोई प्रवाह किये इस जिम्मेदारी को निभाया है. हम इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगा सकतें है कि जब 2013 में खंडवा जेल से सिमी में आतंकी फरार हुए थे तब लोगों में दहशत का माहौल था किन्तु इसबार जैसे ही यह खबर आई कि आतंकियों को ढेर कर दिया गया है लोग पुन: दिवाली मनानें लगे.

जाहिर है कि इस मुठभेड़ को लेकर कई संशय बनें हुए किन्तु कांग्रेस ,आम आदमी पार्टी और सभी सेकुलरिज्म के झंडाबरदार जिसप्रकार जज बनकर आसमान गिराने की कोशिश में इस मुठभेड़ को फर्जी बता रहें हैं वो यह नहीं भूले की संशय मुठभेड़ को लेकर है इसमें कोई संशय नहीं कि वह खूंखार आतंकी थे. इस मुठभेड़ पर हमारे राजनीतिक दलों से जिसप्रकार अपने –अपने ढंग से राजनीतिक तुष्टीकरण का प्रयास कर रहें है वह निंदनीय है. आतंकवाद किसी भी प्रकार से बर्दाश्त नहीं होना चाहिए ,अच्छा होता सभी राजनीतिक दल ऐसे मसले पर राजनीतिक चेष्टा छोडकर एक साथ खड़े दिखाई देते.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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