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बाहुबल के आधार पर बंटता आरक्षण !

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 24 अगस्त, 2017 10:59 PM
  • 24 अगस्त, 2017 10:59 PM
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आरक्षण के नाम पर देश के नेता जिस तरह से समाज को हर दिन बांटकर अपनी-अपनी राजनीतिक दुकान चला रहे हैं, वह किसी के हित में नहीं है. इसका फायदा सिर्फ एवं सिर्फ जाति के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं को हो रहा है.

राजस्थान सरकार ने 23 अगस्त को भरतपुर-धौलपुर के जाटों को ओबीसी कोटे में आरक्षण का लाभ दे दिया है. इस निर्णय का तात्कालिक कारण यह है कि आरक्षण की मांग को लेकर धौलपुर-भरतपुर के जाटों ने 26 अगस्त से आंदोलन करने की चेतावनी दी थी. आरक्षण की मांग को लेकर भरतपुर-धौलपुर के जाट लंबे समय से आंदोलन कर रहे थे और वसुंधरा राजे सरकार का निर्णय इनके लिए बहुत बड़ी जीत है.

वर्ष 2000 में जब राजस्थान सरकार ने एवं 2014 में केंद्र सरकार ने इनको ओबीसी की लिस्ट में शामिल कर दिया था. 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ने भी भरतपुर और धौलपुर के जाटों को इसी आधार पर आरक्षण देने से मना कर दिया था, क्योंकि स्वतंत्रता से पहले ये शासक थे. पर न्यायालय ने प्रदेश के बाकी 31 जिले के जाटों का आरक्षण बरकरार रखा था.

भरतपुर-धौलपुर के जाटों को ओबीसी कोटे में मिला आरक्षण

संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया गया था कि समाज में पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाया जाए. राजस्थान के धौलपुर एवं भरतपुर के जाटों को रिजर्वेशन देकर राजस्थान सरकार उन लोगों को पिछड़ा बना रही है, जो मुख्यधारा में हैं. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि यहां के जाटों ने आरक्षण के लिए आंदोलन की धमकी दी थी. और सरकार को पता था कि इनमें इतना सामर्थ है कि ये सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देंगे.

मूलतः संविधान में आरक्षण केवल कुछ पिछड़े लोगों के लिए कुछ समय के लिए था. पर अब यह अनंत लोगों के लिए अनंत काल के लिए बन गया है. आरक्षण लेने का एक ही आधार है, बाहुबल. अब तक कापू, गुर्जर, जाट, पटेल एवं मराठा समाज आरक्षण की मांग कर रहा है. इनमें से कई जातियां सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से कई अगड़े जातियों से भी आगे हैं, फिर भी इनको आरक्षण चाहिए. शायद इनकी मांगे पूरी भी हो...

राजस्थान सरकार ने 23 अगस्त को भरतपुर-धौलपुर के जाटों को ओबीसी कोटे में आरक्षण का लाभ दे दिया है. इस निर्णय का तात्कालिक कारण यह है कि आरक्षण की मांग को लेकर धौलपुर-भरतपुर के जाटों ने 26 अगस्त से आंदोलन करने की चेतावनी दी थी. आरक्षण की मांग को लेकर भरतपुर-धौलपुर के जाट लंबे समय से आंदोलन कर रहे थे और वसुंधरा राजे सरकार का निर्णय इनके लिए बहुत बड़ी जीत है.

वर्ष 2000 में जब राजस्थान सरकार ने एवं 2014 में केंद्र सरकार ने इनको ओबीसी की लिस्ट में शामिल कर दिया था. 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ने भी भरतपुर और धौलपुर के जाटों को इसी आधार पर आरक्षण देने से मना कर दिया था, क्योंकि स्वतंत्रता से पहले ये शासक थे. पर न्यायालय ने प्रदेश के बाकी 31 जिले के जाटों का आरक्षण बरकरार रखा था.

भरतपुर-धौलपुर के जाटों को ओबीसी कोटे में मिला आरक्षण

संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया गया था कि समाज में पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाया जाए. राजस्थान के धौलपुर एवं भरतपुर के जाटों को रिजर्वेशन देकर राजस्थान सरकार उन लोगों को पिछड़ा बना रही है, जो मुख्यधारा में हैं. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि यहां के जाटों ने आरक्षण के लिए आंदोलन की धमकी दी थी. और सरकार को पता था कि इनमें इतना सामर्थ है कि ये सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देंगे.

मूलतः संविधान में आरक्षण केवल कुछ पिछड़े लोगों के लिए कुछ समय के लिए था. पर अब यह अनंत लोगों के लिए अनंत काल के लिए बन गया है. आरक्षण लेने का एक ही आधार है, बाहुबल. अब तक कापू, गुर्जर, जाट, पटेल एवं मराठा समाज आरक्षण की मांग कर रहा है. इनमें से कई जातियां सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से कई अगड़े जातियों से भी आगे हैं, फिर भी इनको आरक्षण चाहिए. शायद इनकी मांगे पूरी भी हो जाएं.

हिंदी में एक कहावत है जिसकी लाठी उसकी भैंस. यानी कि जिसके पास सामर्थ है उसी को आरक्षण भी मिलेगा. यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. अगर धौलपुर एवं भरतपुर के जाटों को आरक्षण मिल रहा है तो फिर बिहार के मिथिलांचल के ब्राह्मणों को क्यों नहीं? उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति किसी भी तरह से धौलपुर एवं भरतपुर के जाटों से बेहतर नहीं है. फिर भी उनको आरक्षण नहीं मिलेगा क्योंकि वो उग्र नहीं है, उन्होंने आंदोलन नहीं किया है या उनमें सरकार से आरक्षण छीनने की क्षमता नहीं है?

आरक्षण से सिर्फ देश को नुकसान होगा

आरक्षण के नाम पर देश के नेता जिस तरह से समाज को हर दिन बांटकर अपनी-अपनी राजनीतिक दुकान चला रहे हैं, वह किसी के हित में नहीं है. इसका फायदा सिर्फ एवं सिर्फ जाति के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं को हो रहा है.

सरकारी नौकरियां घटती जा रही हैं. सरकारी स्कूल एवं कॉलेज उस अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है. संसाधन घटते जा रहे हैं एवं जनसंख्या बढ़ती जा रही है. अच्छा होता कि हमारे नेता संसाधन बढ़ाने पर जोर देते न कि हर दिन नए लोगों को आरक्षण देने पर. अगर आरक्षण के बंदरबांट का खेल जल्द ही समाप्त नहीं होता तो भले ही इन नेताओं को कुछ समय के लिए राजनीतक फायदा हो, घाटा देश का होगा.

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने साफ कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार का आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा करने का कोई विचार नहीं है और ऐसा किया भी नहीं जाएगा. यानी वर्तमान व्यवस्था जारी रहेगी. इसमें नित नई जातियां शामिल होती रहेंगी. एवं आरक्षण पर राजनीतिक रोटी सेंकने का खेल जारी रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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