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गांधी के गुजरात में राजनीति थप्‍पड़ों पर पहुंची !

    • गोपी मनियार
    • Updated: 07 फरवरी, 2017 04:05 PM
  • 07 फरवरी, 2017 04:05 PM
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गुजरात में हाशिए पर खड़ी कांग्रेस के लिये इस साल का चुनाव करो या मरो वाली बात है, वहीं कांग्रेस अब बीजेपी के छोटे से छोटे प्रचार प्रसार के कार्यक्रम में कुछ न कुछ हंगामा या प्रदर्शन जरूर करती है.

गुजरात में दिसंबर 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन चुनाव से पहले राजनीति का स्तर गिरता हुआ नजर आ रहा है. वैसे तो गुजरात में यूपी की तरह चार-पांच राजनीतिक पार्टियां नहीं बल्कि सिर्फ दो पार्टियां ही हमेशा यहां आमने सामने होती हैं- कांग्रेस ओर बीजेपी. बीजेपी पिछले 20 साल से गुजरात में एक तरफा शासन में है, जिसमें पिछले 12 साल शासन किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने. इस दौरान नरेन्द्र मोदी ने अपना कद इतना बढ़ा लिया था कि उनके गुजरात से जाने के बाद, गुजरात बीजेपी में नेतृत्व को लेकर ऐसी कमी आई, जिसे गुजरात बीजेपी का कोई भी हालिया नेता पूरी नहीं कर पाया.

वहीं गुजरात में हाशिए पर खड़ी कांग्रेस के लिये इस साल का चुनाव करो या मरो की नीति पर आधीन है. कांग्रेस सत्ता में आने के लिये इतनी लालाइत हो चुकी है कि अब उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा है कि जिस तरह गुजरात में बीजेपी लगातार बेकफुट पर आती जा रही है, उनके लिये इस साल चुनाव जीतना उतना ही आसान होता जा रहा है. यही वजह है कि कांग्रेस अब बीजेपी के छोटे से छोटे प्रचार प्रसार के कार्यक्रम में कुछ न कुछ हंगामा या प्रदर्शन जरूर करती है.

वैसे तो लोकतंत्र में मतदान केन्द्र में ही राजनीतिक पार्टियों का हिसाब किताब होता है, लेकिन बीजेपी सत्ता जाने और कांग्रेस सत्ता में आने को लेकर इतनी ज्यादा दिशाहीन होती जा रही हैं कि दोनों ही पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता अब गुंडों की तरह सड़कों पर उतर आए हैं, ताकि एक दूसरे की बाजी बिगाड़ सकें.

जानकार मानते हैं कि गुजरात में इस साल का चुनाव विचारों का चुनाव न होकर भीड़ इकट्ठा कर ज्यादा से ज्यादा समर्थ दिखाने के प्रयास के तौर पर हो रहा है. उसमें चाहे बीजेपी हो, कांग्रेस हो या फिर इन दिनों नए-नए आए पाटीदार, दलित और ओबीसी नेता हों. भीड़ की इस राजनीति में आम आदमी की आवाज कहीं...

गुजरात में दिसंबर 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन चुनाव से पहले राजनीति का स्तर गिरता हुआ नजर आ रहा है. वैसे तो गुजरात में यूपी की तरह चार-पांच राजनीतिक पार्टियां नहीं बल्कि सिर्फ दो पार्टियां ही हमेशा यहां आमने सामने होती हैं- कांग्रेस ओर बीजेपी. बीजेपी पिछले 20 साल से गुजरात में एक तरफा शासन में है, जिसमें पिछले 12 साल शासन किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने. इस दौरान नरेन्द्र मोदी ने अपना कद इतना बढ़ा लिया था कि उनके गुजरात से जाने के बाद, गुजरात बीजेपी में नेतृत्व को लेकर ऐसी कमी आई, जिसे गुजरात बीजेपी का कोई भी हालिया नेता पूरी नहीं कर पाया.

वहीं गुजरात में हाशिए पर खड़ी कांग्रेस के लिये इस साल का चुनाव करो या मरो की नीति पर आधीन है. कांग्रेस सत्ता में आने के लिये इतनी लालाइत हो चुकी है कि अब उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा है कि जिस तरह गुजरात में बीजेपी लगातार बेकफुट पर आती जा रही है, उनके लिये इस साल चुनाव जीतना उतना ही आसान होता जा रहा है. यही वजह है कि कांग्रेस अब बीजेपी के छोटे से छोटे प्रचार प्रसार के कार्यक्रम में कुछ न कुछ हंगामा या प्रदर्शन जरूर करती है.

वैसे तो लोकतंत्र में मतदान केन्द्र में ही राजनीतिक पार्टियों का हिसाब किताब होता है, लेकिन बीजेपी सत्ता जाने और कांग्रेस सत्ता में आने को लेकर इतनी ज्यादा दिशाहीन होती जा रही हैं कि दोनों ही पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता अब गुंडों की तरह सड़कों पर उतर आए हैं, ताकि एक दूसरे की बाजी बिगाड़ सकें.

जानकार मानते हैं कि गुजरात में इस साल का चुनाव विचारों का चुनाव न होकर भीड़ इकट्ठा कर ज्यादा से ज्यादा समर्थ दिखाने के प्रयास के तौर पर हो रहा है. उसमें चाहे बीजेपी हो, कांग्रेस हो या फिर इन दिनों नए-नए आए पाटीदार, दलित और ओबीसी नेता हों. भीड़ की इस राजनीति में आम आदमी की आवाज कहीं दब सी गयी है और ये सभी अंदरुनी लड़ाई के जरिये खुद को दूसरे से बड़ा दिखाने में लगे हैं. जिसका उदाहरण हैं हाल ही में गुजरात में हुई कुछ ऐसी वारदातें जिसने अंदरुनी लडाई को सडकों और आम आदमी तक ला दिया.

मसलन बीजेपी हाल ही में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को जवाब देने के लिये युवा चेहरे रुत्वीक पटेल को मेदान में लेकर आ, तो हार्दिक पटेल के समर्थकों ने उसपर अंडे, स्याही, और खुजलीवाला पावडर डाल उसका विरोध किया, तो बदले में बीजेपी कार्यकर्ता ने हार्दिक के समर्थकों को इतना पीटा कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पडा. लड़ाई यहां तक नहीं रुकी, केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभु जब सूरत में एक सरकारी कार्यक्रम में पहुंचे तो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने सुरेश प्रभु को काला खेस पहनाया और लॉलीपॉप दिखायी.

कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने सुरेश प्रभु को काला खेस पहनाया और लॉलीपॉप दिखायी

बात तो यहां तक बढ़ गयी कि सुरेन्द्रनगर में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम में पहुंचे बीजेपी के राज्यसभा सांसद शंकर वेगड को एक शख्स ने हजारों की भीड़ के बीच चांटा मार दिया. और कल नवसारी में बीजेपी ने जब आदिवासी यात्रा शुरु की, तो कांग्रेसी और बीजेपी कार्यकर्ता आपस में भिड़ गये, जिसमें 5 लोग बुरी तरह घायल हो गए.

हालांकि जानकारों की मानें तो ये तो बस शुरुआत है, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा इस साल राजनीति की गुंडागर्दी के तमाशे लोगों को ऐसे ही देखने मिलते रहेंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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