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मैं अंग्रेजों के जमाने का कलेक्टर हूं, नीतीश बाबू से पूछिए...

    • आईचौक
    • Updated: 03 अक्टूबर, 2016 04:51 PM
  • 03 अक्टूबर, 2016 04:51 PM
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नीतीश सरकार का नया कानून भी कुछ ऐसा ही है - इसमें भी वही सारी खामियां हैं जिनके चलते हाई कोर्ट ने पुराने कानून को गैर कानूनी बता कर खारिज कर दिया.

नयी बोतल में पुरानी शराब वाला जुमला नीतीश के नये कानून पर आसानी से फिट हो जाता है. असर के हिसाब से देखें तो नया कानून थोड़ा कड़क है - लेकिन तर्क और उसके कानूनी पक्ष को देखें तो ये भी कोर्ट में टिक नहीं पाएगा, ऐसा लगता है.

फिर सवाल ये है कि एक झटका खाने के बाद आखिर नीतीश ने आनन फानन में वैसा ही कानून क्यों लागू किया?

शराबबंदी पार्ट - 2

फर्ज कीजिए कोई शख्स पटना से राजधानी पकड़ कर दिल्ली रवाना होता है. सरकारी मुलाजिमों से बचने के लिए शहर का ही कोई शख्स उसके घर की सामने या पीछे वाली चारदीवारी फांद कर अपने लिए सेफ स्पेस ढूंढ लेता है. तभी एक पेट्रोल पार्टी वहां से गुजरती है - पुलिस वालों को यूं ही शक होता है. अंदर झांक कर देखते हैं तो पाते हैं एक शख्स पूरी तरह तल्लीन होकर पी रहा है. सच में ये तो सीधे सीधे शराबबंदी कानून का उल्लंघन है.

फिर पुलिस वाले उसे पकड़ कर जेल भेज देते हैं - और घर को सीज कर दिया जाता है. राजधानी का मुसाफिर अभी दिल्ली पहुंचा भी नहीं कि घर की खबर मोबाइल पर पहुंच जाती है.

नीतीश सरकार का नया कानून भी कुछ ऐसा ही है - इसमें भी वही सारी खामियां हैं जिनके चलते हाई कोर्ट ने पुराने कानून को गैर कानूनी बता कर खारिज कर दिया.

वो डाल-डाल, हम पात...

सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला किया है, लेकिन उससे पहले तकरीबन वैसा ही एक नया कानून लागू कर दिया है.

आखिर नया कानून लागू करने के पीछे इतनी जल्दबाजी की वजह क्या रही?

जरूरत या सियासी मजबूरी?

एक बात तो तय था कि अगर नीतीश कुमार शराबबंदी पर नया...

नयी बोतल में पुरानी शराब वाला जुमला नीतीश के नये कानून पर आसानी से फिट हो जाता है. असर के हिसाब से देखें तो नया कानून थोड़ा कड़क है - लेकिन तर्क और उसके कानूनी पक्ष को देखें तो ये भी कोर्ट में टिक नहीं पाएगा, ऐसा लगता है.

फिर सवाल ये है कि एक झटका खाने के बाद आखिर नीतीश ने आनन फानन में वैसा ही कानून क्यों लागू किया?

शराबबंदी पार्ट - 2

फर्ज कीजिए कोई शख्स पटना से राजधानी पकड़ कर दिल्ली रवाना होता है. सरकारी मुलाजिमों से बचने के लिए शहर का ही कोई शख्स उसके घर की सामने या पीछे वाली चारदीवारी फांद कर अपने लिए सेफ स्पेस ढूंढ लेता है. तभी एक पेट्रोल पार्टी वहां से गुजरती है - पुलिस वालों को यूं ही शक होता है. अंदर झांक कर देखते हैं तो पाते हैं एक शख्स पूरी तरह तल्लीन होकर पी रहा है. सच में ये तो सीधे सीधे शराबबंदी कानून का उल्लंघन है.

फिर पुलिस वाले उसे पकड़ कर जेल भेज देते हैं - और घर को सीज कर दिया जाता है. राजधानी का मुसाफिर अभी दिल्ली पहुंचा भी नहीं कि घर की खबर मोबाइल पर पहुंच जाती है.

नीतीश सरकार का नया कानून भी कुछ ऐसा ही है - इसमें भी वही सारी खामियां हैं जिनके चलते हाई कोर्ट ने पुराने कानून को गैर कानूनी बता कर खारिज कर दिया.

वो डाल-डाल, हम पात...

सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला किया है, लेकिन उससे पहले तकरीबन वैसा ही एक नया कानून लागू कर दिया है.

आखिर नया कानून लागू करने के पीछे इतनी जल्दबाजी की वजह क्या रही?

जरूरत या सियासी मजबूरी?

एक बात तो तय था कि अगर नीतीश कुमार शराबबंदी पर नया कानून नहीं लागू करते तो अब तक उनके सारे किये कराये पर पानी फिर जाता. शराबबंदी लागू होने पर जो काम चोरी छिपे हो रहा था - वो खुलेआम होने लगता.

इसे भी पढ़ें: रम चाहिये तो 'राम' बोलो और रॉयल स्टैग के लिए 'राधेश्याम'

जो पुलिस वाले नौकरी के डर और थाना प्रभार के दबाव में किसी को बख्शते नहीं थे वे आराम से उधर से मुहं मोड़ लेते. जब तक शराबबंदी पर कोई नई व्यवस्था लागू होती तब तक हालात बेहाथ हो चुके होते.

नीतीश के पास बच निकलने का एक ही रास्ता बच रहा था. चाहते तो वो भी उसी आइडिया पर काम करते जो लालू ने शहाबुद्दीन केस के लिए अपनाया होगा. शहाबुद्दीन के समर्थकों, जो वास्तव में आरजेडी कार्यकर्ता भी होंगे, को समझाते वक्त लालू ने कहा तो यही होगा कि अब कोर्ट के आगे वो कर भी क्या सकते हैं. आखिर जो कानूनी रास्ते उन्होंने अपने लिये अपनाए होंगे उससे कहीं बढ़ चढ़ कर शहाबुद्दीन के लिए किया - 'अब बड़का कोर्ट के आगे कोई कर भी क्या सकता है?' लालू की बात में दम तो होता ही है. लोग मान गये होंगे.

अगर नीतीश कुमार ये नया कानून लागू नहीं करते तो फिर किस आधार पर पूरे देश में शराबबंदी लागू करने की बात करते. सिर पर यूपी चुनाव है और वहां के सियासी समीकरणों में फिट होने के लिए नीतीश के पास इसके अलावा और कोई आधार भी नहीं है.

नीतीश की कमजोरी है कि उनका लालू, मुलायम या मायावती जैसा बड़ा आधार भी नहीं है - और जिस सुशासन वाली छवि के आधार पर वो बिहार चुनाव जीते उसका यूपी में तो कोई मतलब भी नहीं है.

इसे भी पढ़ें: दो अदालती फैसलों का नीतीश की सियासत पर चौतरफा असर

अगर नीतीश नैतिक आधार पर नया कानून लागू न करने का फैसला करते - और सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के खिलाफ अपील कर फैसले का इंतजार करते तब तक तो शायद अब तक की सारी सियासी कवायद मिट्टी में मिल जाती. संघ मुक्त भारत और शराबमुक्त समाज का स्लोगन खुद ही मुहं चिढ़ाने को दौड़ता.

फिर किस बूते नीतीश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते. वो भी तब जब सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मोदी फिर से पुराने फॉर्म में लौट आए लगते हैं. फिर किस बूते नीतीश कुमार अपने गठबंधन साथी लालू प्रसाद और उनके उन साथियों को काउंटर करते जो अक्सर किसी न किसी बहाने उन्हें परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताते रहते हैं. यूपी में अमर सिंह को भी शायद फेस करने से बचते क्योंकि वो नीतीश के बारे में शहाबुद्दीन या रघुवंश प्रसाद जैसा ही विचार व्यक्त कर चुके हैं.

नये कानून के तहत जिलाधिकारी को बहुत सारे पावर दिये गये हैं - कुछ वैसे ही जैसे 70 साल पहले के कलेक्टर के पास हुआ करते थे. देश में वैसे भी पीएम, सीएम के बाद डीएम का ही नाम लिया जाता है - और अब अगर किसी ने सवाल पूछने की हिमाकत की तो जवाब के लिए भी तैयार रहना होगा, "मैं अंग्रेजों के जमाने का कलक्टर हूं - कोई शक हो तो नीतीशे बाबू से पूछ लीजिए..."

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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