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वाजपेई का 56 इंच का सीना दिखाती है पोखरण की कहानी

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 16 अगस्त, 2018 02:10 PM
  • 16 अगस्त, 2018 02:06 PM
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अमेरिकी सैटेलाइट से छुपकर, विपक्ष को बिना बताए और पूरी दुनिया की नाक के नीचे अटल बिहारी वाजपेई ने परमाणु परीक्षण कर लिया था. ये अटल जी का साहस ही था, जिसके चलते उन्‍होंने प्रधानमंत्री बनने के दो दिन के भीतर यह फैसला लिया.

कुछ दिनों पहले आई फिल्म परमाणु तो याद ही होगी आपको? इस फिल्म में भारत के चोरी छुपे न्यूक्लियर परीक्षण करने की कहानी बताई गई थी. पूरी दुनिया इस बात से बेखबर थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेई सरकार के नेत्रतृव में 11 मई, 1998 भारत में परमाणु परीक्षण हो ही गया था.

ये परीक्षण हुआ था जैलसमेर जिले के पोखरण में. एक के बाद एक 5 न्यूक्लियर धमाके किए गए जो 11 मई से 13 मई के बीत हुए थे.

ये मिशन इतना गुप्त था कि इसे अब तक की CIA की सबसे बड़ी हार माना जाता है और अमेरिकी सेटेलाइट की नाक के नीचे ही भारत ने ये मिशन पूरा कर लिया था और भारत एक परमाणु ताकत बनकर उभरा था.

ये मिशन इतना गुप्त था कि सिर्फ खास लोगों को ही इसके बारे में जानकारी थी और यहां तक कि विपक्ष के लीडर को भी इसकी भनक तक नहीं थी कि आखिर हो क्या रहा है.

अब्दुल कलाम के साथ अटल बिहारी वाजपेई

किन-किन लोगों को थी जानकारी?

इस मिशन के बारे में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को पता था. इसके अलावा, उस समय अटल जी के तकनीकी सलाहकार रहे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को भी इसके बारे में पता था. इसके अलावा, लाल कृष्ण आडवाणी, डिफेंस मिनिस्टर जॉर्ज फर्नांडिस, न्यूक्लियर साइंटिस्ट अनिल काकोडर और कुछ सीनियर आर्मी ऑफिसर के अलावा, इस प्रोजेक्ट के बारे में सिर्फ उन 58 इंजीनियर्स को पता था जो इसपर काम कर रहे थे.

कैसे रखा ये मिशन इतना गुप्त...

उस दौरान अटल जी को डर था कि कहीं इसके परीक्षण की बात सामने न आ जाए इसलिए इसे टॉप सीक्रेट रखा गया था. ये प्रोग्राम इतना खास था कि कोई बात लीक न हो इसके लिए परीक्षण के लिए खोदे जाने वाले गड्ढे भी रात में ही खोदे जाते थे. सभी भारी मशीने सुबह होते ही अपनी जगह पर रख दी जाती थीं ताकि किसी को कोई शक न...

कुछ दिनों पहले आई फिल्म परमाणु तो याद ही होगी आपको? इस फिल्म में भारत के चोरी छुपे न्यूक्लियर परीक्षण करने की कहानी बताई गई थी. पूरी दुनिया इस बात से बेखबर थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेई सरकार के नेत्रतृव में 11 मई, 1998 भारत में परमाणु परीक्षण हो ही गया था.

ये परीक्षण हुआ था जैलसमेर जिले के पोखरण में. एक के बाद एक 5 न्यूक्लियर धमाके किए गए जो 11 मई से 13 मई के बीत हुए थे.

ये मिशन इतना गुप्त था कि इसे अब तक की CIA की सबसे बड़ी हार माना जाता है और अमेरिकी सेटेलाइट की नाक के नीचे ही भारत ने ये मिशन पूरा कर लिया था और भारत एक परमाणु ताकत बनकर उभरा था.

ये मिशन इतना गुप्त था कि सिर्फ खास लोगों को ही इसके बारे में जानकारी थी और यहां तक कि विपक्ष के लीडर को भी इसकी भनक तक नहीं थी कि आखिर हो क्या रहा है.

अब्दुल कलाम के साथ अटल बिहारी वाजपेई

किन-किन लोगों को थी जानकारी?

इस मिशन के बारे में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को पता था. इसके अलावा, उस समय अटल जी के तकनीकी सलाहकार रहे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को भी इसके बारे में पता था. इसके अलावा, लाल कृष्ण आडवाणी, डिफेंस मिनिस्टर जॉर्ज फर्नांडिस, न्यूक्लियर साइंटिस्ट अनिल काकोडर और कुछ सीनियर आर्मी ऑफिसर के अलावा, इस प्रोजेक्ट के बारे में सिर्फ उन 58 इंजीनियर्स को पता था जो इसपर काम कर रहे थे.

कैसे रखा ये मिशन इतना गुप्त...

उस दौरान अटल जी को डर था कि कहीं इसके परीक्षण की बात सामने न आ जाए इसलिए इसे टॉप सीक्रेट रखा गया था. ये प्रोग्राम इतना खास था कि कोई बात लीक न हो इसके लिए परीक्षण के लिए खोदे जाने वाले गड्ढे भी रात में ही खोदे जाते थे. सभी भारी मशीने सुबह होते ही अपनी जगह पर रख दी जाती थीं ताकि किसी को कोई शक न हो. जो मिट्टी खोदी जाती थी उसे एक रेट के टीले की शक्ल दे दी जाती थी.

वैज्ञानिक और इंजीनियर भी आर्मी की यूनिफॉर्म पहन कर आते थे. उन्हें मिलिट्री रूटीन निभाना पड़ता था, सैनिकों के साथ स्पोर्ट्स और ड्रिल में भाग लेना पड़ता था ताकि वो किसी भी जगह बिना परेशानी आ जा सकें.

इसकी तैयारी 10 दिन पहले से ही शुरू हो गई थी और हथियारों को मुंबई से पोखरण लाना था. 1 मई को ये काम हुआ और किसी को शक न हो इसके लिए सिर्फ 4 ट्रकों का इस्तेमाल किया गया. न की किसी बड़े जत्थे का.

यही कारण है कि अमेरिका को या यहां के किसी अन्य नेता को इसकी भनक तक नहीं लगी.

भारत के न्यूक्लियर परीक्षण में सिर्फ इजराइल ने उसका साथ दिया था अन्य सभी देश इसके विरोध में थे इसलिए इस मिशन को गुप्त रखना बहुत जरूरी था.

क्यों वाजपेई ने प्रधानमंत्री बनने के दो दिन के अंदर कर लिया फैसला?

आज़ादी के 8 महीने बाद से ही पंडित नेहरू के नेत्रित्व वाली सरकार में अटम बम बनाने की बात हो चली थी, डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा ने नेहरू को बताया कि दो साल में ये बनाया जा सकता है, लेकिन नेहरू ने मना कर दिया. नेहरू के बाद आई लाल बहादुर शास्त्री सरकार मौका था 1965 इंडो-चीन युद्ध में मिली हार का. लाल बहादुर शास्त्री और डॉक्टर भाभा दोनों ही उस साल चल बसे.

न्यूक्लियर टेस्ट साइट पर अटल बिहारी वाजपेई और अब्दुल कलाम

इसके बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी और डॉक्टर भाभा की जगह ली विक्रम साराभाई ने. दोनों ही पहले एटम बम बनाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी सोच बदल दी और तब सितंबर 1972 में इंदिरा गांधी ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का परीक्षण किया. दो साल बाद यानी 1974 18 मई को पहला टेस्ट हुआ और ये बुद्ध पूर्णिमा को हुआ था इसलिए इसे स्माइलिंग बुद्धा कहा गया.

भारत के एटम बम प्रोग्राम को पी.वी नरसिम्हा राव की सरकार में काफी बल मिला और उस दौर में वैज्ञानिक एटोमिक बम के साथ साथ थर्मोन्यूक्लियर बम और हाइड्रोजन बम भी बनाने के लिए तैयार थे, लेकिन उस दौर में अमेरिकी सैटेलाइट ने न्यूक्लियर टेस्ट प्रोग्राम की तस्वीर उतार ली और दबाव में आकर नरसिम्हा राव कुछ नहीं कर पाए.

अब बारी आई अटल बिहारी वाजपेई की. 18 मार्च 1998 को वाजपेई ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और दो दिन बाद वाजपेई जी अब्दुल कलाम और आर चिदंबरम से मिले. वाजपेई जी ने अब्दुल कलाम से पूछा कि कितने दिन में वो ये परीक्षण पूरा कर सकते हैं. कलाम का कहना था कि अगर आप आज हां कर दें तो अगले 30 दिन में परीक्षण हो जाएगा. तारीख तय हुई 11 मई 1998 और उस दिन भारत का आधिकारि तौर पर पहला सफल परमाणु परीक्षण हुआ. ये भी बुद्ध पूर्णिमा को हुआ था और इसका नाम रखा गया था ऑपरेशन शक्ति.

वाजपेई ने ऐसे की थी घोषणा...

दिल्ली के 7 रेस कोर्स से लगातार वाजपेई जी पोखरण से जुड़े हुए थे. जैसे ही परमाणु परीक्षण पूरा हुआ अटल बिहारी वाजपेई ने प्रेस के सामने घोषणा की.

घोषणा थी..

'आज शाम 03:45 बजे, भारत ने पोखरण रेंज में तीन अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट किए. जो टेस्ट आज हुए वो फिजन डिवाइस के जरिए हुए थे. कम ऊर्जा पैदा करने वाला डिवाइस और एक थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस. नतीजे वैसे ही रहे जैसा अनुमान किया गया था. नतीजों में ये बात भी साफ है कि पर्यावरण में किसी भी तरह की कोई रेडियोएक्टिविटी नहीं है. ये वैसे ही धमाके थे जैसे मई 1974 को हुए थे. मैं हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को तहे दिल से मुबारकबाद देता हूं. '

दो दिन बाद फिर से दो टेस्ट किए गए और कुल पांच न्यूक्लियर टेस्ट के बाद सरकार ने उन वैज्ञानिकों के बारे में बताया जो इस प्रोजेक्ट में जुड़े हुए थे.

उस समय अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रशिया उन देशों में थे जो न्यूक्लियर पावर रखते थे पर किसी ने एटम बम नहीं बनाया था. फिर भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अपने देश के लिए कड़ा कदम उठाया और ये फैसला प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद ही ले लिया. और इसके बाद भारत न्यूक्लियल पावर देश बना.

टेस्ट के बाद अटल बिहारी वाजपेई ने लोकसभा में तीन स्टेटमेंट दिए..

1. हम किसी भी तरह का कोई न्यूक्लियल बम जंग के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे. (कम से कम पहले तो नहीं.)

2. हम न्यूक्लियर बम उस देश के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे जिसके पास न्यूक्लियर बम नहीं है.

3. हम अब से न्यूक्लियर बम पर एक्सपेरिमेंट बंद कर देंगे.

इसके बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के आरोप लगाए और मानव संसाधनों के अलावा, किसी भी तरह की मदद बंद कर दी. उस समय प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन ने आधिकारिक तौर पर भारत के खिलाफ पेपर साइन किए. पाकिस्तान ने भी भारत के इस कदम की निंदा की, लेकिन कोई भी देश असल मायने में कुछ नहीं कर पाया. ये अटल बिहारी वाजपेई का कदम था जिसने भारत को न्यूक्लियर पावर बना दिया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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