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मोदी और केजरीवाल दोनों एक्शन में हैं लेकिन रोड शो एक ही नजर आ रहा है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 13 मार्च, 2022 02:33 PM
  • 13 मार्च, 2022 02:33 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की ही तरफ पंजाब चुनाव में जीत का जश्न अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी मना रहे हैं - देखने में फर्क सिर्फ ये है कि मोदी का रोड शो हर कोई देख रहा है और चुनावों को लेकर AAP का एक्शन प्लान (Future Election Plan) पूरी तरह सामने नहीं आया है.

10 मार्च तो चुनाव नतीजों की आपाधापी में बीत गया, लेकिन अगले ही दिन देश के दो नेता भविष्य की चुनावी तैयारियों (Future Election Plan) में जुट गये - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल.

प्रधानमंत्री मोदी जहां गुजरात चुनाव के मद्देनजर अहमदाबाद में रोड शो करने निकल पड़े थे, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मीडिया के जरिये लोगों से मुखातिब हुए और एमसीडी चुनाव टलने को लेकर मोदी सरकार पर सीधा हमला बोल दिया.

एमसीडी इलेक्शन तो बहाना रहा, केजरीवाल तो अपनी तरफ से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विरोध की नंबर 1 आवाज बनने की कोशिश कर रहे थे. अब तक ये जगह राहुल गांधी ने अपने नाम सर्वाधिकार सुरक्षित रखने की कोशिश की है, लेकिन यूपी और पंजाब सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद राजनीतिक समीकरण बदलने लगे हैं.

अब तक राहुल गांधी को लगता था कि सामने एकमात्र खतरा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं, लेकिन केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया के बयान और आप नेता सोमनाथ भारती के ऐलान ने एक्शन प्लान की तस्वीर करीब करीब सामने रख दी है.

गुजरात में मोदी के ताबड़तोड़ रोड शो के मुकाबले राहुल गांधी और अखिलेश यादव की चुनावी जंग में दिलचस्पी की तुलना हो रही है, लेकिन असल बात तो ये है कि अरविंद केजरीवाल तैयारियों में कहीं से भी उन्नीस नहीं लग रहे हैं.

हो सकता है केजरीवाल गुजरात में भी चुनाव लड़ें और हिमाचल प्रदेश में भी, लेकिन उनकी नजर कर्नाटक पर ज्यादा टिकी लगती है जहां बीएस येदियुरप्पा के कुर्सी छोड़ने के बाद बीजेपी पहले जैसी मजबूत नहीं रह गयी है. कर्नाटक में भी कांग्रेस और बीजेपी की सीधी टक्कर है जो अरविंद केजरीवाल को सबसे ज्यादा सूट करता है. करीब करीब पंजाब जैसा हाल है.

कहने को...

10 मार्च तो चुनाव नतीजों की आपाधापी में बीत गया, लेकिन अगले ही दिन देश के दो नेता भविष्य की चुनावी तैयारियों (Future Election Plan) में जुट गये - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल.

प्रधानमंत्री मोदी जहां गुजरात चुनाव के मद्देनजर अहमदाबाद में रोड शो करने निकल पड़े थे, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मीडिया के जरिये लोगों से मुखातिब हुए और एमसीडी चुनाव टलने को लेकर मोदी सरकार पर सीधा हमला बोल दिया.

एमसीडी इलेक्शन तो बहाना रहा, केजरीवाल तो अपनी तरफ से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विरोध की नंबर 1 आवाज बनने की कोशिश कर रहे थे. अब तक ये जगह राहुल गांधी ने अपने नाम सर्वाधिकार सुरक्षित रखने की कोशिश की है, लेकिन यूपी और पंजाब सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद राजनीतिक समीकरण बदलने लगे हैं.

अब तक राहुल गांधी को लगता था कि सामने एकमात्र खतरा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं, लेकिन केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया के बयान और आप नेता सोमनाथ भारती के ऐलान ने एक्शन प्लान की तस्वीर करीब करीब सामने रख दी है.

गुजरात में मोदी के ताबड़तोड़ रोड शो के मुकाबले राहुल गांधी और अखिलेश यादव की चुनावी जंग में दिलचस्पी की तुलना हो रही है, लेकिन असल बात तो ये है कि अरविंद केजरीवाल तैयारियों में कहीं से भी उन्नीस नहीं लग रहे हैं.

हो सकता है केजरीवाल गुजरात में भी चुनाव लड़ें और हिमाचल प्रदेश में भी, लेकिन उनकी नजर कर्नाटक पर ज्यादा टिकी लगती है जहां बीएस येदियुरप्पा के कुर्सी छोड़ने के बाद बीजेपी पहले जैसी मजबूत नहीं रह गयी है. कर्नाटक में भी कांग्रेस और बीजेपी की सीधी टक्कर है जो अरविंद केजरीवाल को सबसे ज्यादा सूट करता है. करीब करीब पंजाब जैसा हाल है.

कहने को तो आम आदमी पार्टी ने दक्षिण के राज्यों पर फोकस करने की बात कही है, लेकिन काफी संभावना है कि केजरीवाल की नजर राजस्थान पर जा टिके जहां बीजेपी में वसुंधरा राजे की बगावत खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. अगर बीजेपी वसुंधरा राजे को योगी आदित्यनाथ की तरह हैंडल नहीं कर पायी तो कांग्रेस को पछाड़ना अरविंद केजरीवाल के लिए बहुत मुश्किल नहीं होगा - चुनाव तो पंजाब मॉडल पर ही लड़ा जाएगा. हो सकता है अभी से राजस्थान में भी एक भगवंत मान की तलाश शुरू हो चुकी हो.

क्या पीके को केजरीवाल पसंद हैं

चुनाव नतीजे आने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी जश्न मना रही थी, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक ट्वीट कर विपक्ष को अपनी तरफ से आश्वस्त करने की कोशिश की - और झांसे में न आने के लिए विपक्ष को आगाह किया.

 अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम विस्तार के लिए भविष्य की चुनावी तैयारियों के लिए कमर कस ली है.

अपने ट्वीट में 'साहेब' शब्द का उल्लेख करते हुए प्रशांत किशोर ने विपक्ष को ये समझाने की कोशिश की है कि राज्यों के चुनावों से 2024 के आम चुनाव पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी सहित चार राज्यों में बीजेपी की जीत के जरिये अगले आम चुनाव के नतीजों से जोड़ने की कोशिश की थी.

हाल तक प्रशांत किशोर, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमलू कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे. गोवा विधानसभा चुनाव में भी वो डेरा डाल कर जमे हुए थे, लेकिन फिर मतभेदों की बात सामने आयी और बात अलग होने तक आ पहुंची. बताया गया कि प्रशांत किशोर ने पत्र लिख कर ममता बनर्जी को कुछ राज्यों के चुनावों में काम कर पाने में असमर्थता जता दी है.

राहुल गांधी के जरिये कांग्रेस के साथ संभावित रिश्तों का ब्रेक अप तो पहले ही हो चुका है. ये बात प्रशांत किशोर की तरफ से भी बतायी गयी है - और प्रियंका गांधी वाड्रा भी एक इंटरव्यू के दौरान सवालों के जवाब में बता चुकी हैं.

अब सवाल ये है कि आखिर प्रशांत किशोर किसकी हौसलाअफजाई कर रहे हैं?

ये समझने से पहले जरा वो लम्हा याद कीजिये जब प्रशांत किशोर ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पत्र लिख कर सॉरी बोल दिया था. पंजाब विधानसभा चुनावों को लेकर कैप्टन में प्रशांत किशोर को अपना सलाहकार बताया था.

ये तभी की बात है जब प्रशांत किशोर की राहुल गांधी से कांग्रेस ज्वाइन करने को लेकर बात चल रही थी. तब ऐसा लगा था कि गांधी परिवार की वजह से प्रशांत किशोर ने कैप्टन का काम छोड़ दिया है - लेकिन अब क्यों लग रहा है कि बात कुछ और थी.

ये तो मान कर चलना चाहिये कि अगर प्रशांत किशोर की मदद कैप्टन को मिल रही होती तो वो जल्दी कमजोर नहीं पड़ते. सुनने में तो ये भी आया था कि उद्धव ठाकरे भी बीजेपी के सामने अपनी जिद पर प्रशांत किशोर के बल पर भी टिके रहे. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की टीम ने आदित्य ठाकरे के लिए उनके चुनाव कैंपेन की जिम्मेदारी भी संभाली थी.

तो क्या प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी के लिए नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल के लिए कैप्टन का साथ छोड़ा था?

जिन दिनों तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर यानी के. चंद्रशेखर राव मुंबई में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी नेता शरद पवार से मिलने की तैयारी कर रहे थे, प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार भी अरसा बाद संपर्क में थे - और दोनों की जरूरत, सुविधा और अपने अपने हिसाब से मुलाकातें भी हुईं.

ये भी उन दिनों की ही बात है. कुछ दिन पहले. प्रशांत किशोर की केसीआर से मुलाकात भी हो चुकी थी और उसी के आसपास तेजस्वी भी हैदराबाद गये थे - और वो भी तेलंगाना के मुख्यमंत्री से मिले थे. तभी नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाने का आइडिया भी मार्केट में छोड़ा गया था.

सवाल अब भी कायम है कि नीतीश कुमार अगर राष्ट्रपति बने तो देश के प्रधानमंत्री पद का विपक्ष का चेहरा कौन बनेगा - और ये पहले से ही तय है या अभी आये चुनाव नतीजों के बाद रणनीति में कोई तब्दीली भी हुई है?

सवाल ये भी है अगला प्रधानमंत्री बनवाने को लेकर भी पीके ने कोई प्लान किया है क्या - नतीजों के अगले ही दिन ट्वीट इशारा तो कुछ वैसा ही करता है.

फिर तो यही लगता कि प्रशांत किशोर को अरविंद केजरीवाल ही पसंद हैं. केजरीवाल पुराने क्लाइंट भी रहे हैं. ममता बनर्जी का काम करने के साथ साथ प्रशांत किशोर ने अरविंद केजरीवाल के लिए भी काम किया था.

जैसे बिहार चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर की सलाहियत की झलक तेजस्वी यादव के आस पास नजर आयी थी, अब तो लगता है दिल्ली की ही तरह केजरीवाल को पंजाब में भी आतंकवादी साबित किये जाने के दौरान पीके की वर्चुअल सलाहकार की भूमिका रही होगी.

और अब तो खुद केजरीवाल ने एमसीडी चुनावों के बहाने मोदी पर सीधा हमला बोल कर आगे का इरादा भी जाहिर कर दिया है - बाकी काम उनकी टीम ने संभाल लिया है. जरा सोमनाथ भारती और मनीष सिसोदिया के बयानों को ध्यान से सुनिये.

केजरीवाल की चुनावी तैयारियां भी चालू हैं

2019 की ही तरह एक बार फिर केसीआर गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी क्षेत्रीय दलों का मोर्चा एक बार फिर खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. ममता बनर्जी भी ठीक ऐसा ही चाहती हैं, लेकिन शरद पवार जैसे नेताओं का सपोर्ट न मिल पाने से उनकी रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गयी है - खास बात ये है कि कांग्रेस की ही तरह अभी दोनों ही प्रयासों में अरविंद केजरीवाल का कहीं कोई जिक्र नहीं सुनने को मिला है.

केजरीवाल और सिसोदिया के बयान: एमसीडी चुनाव टाले जाने को लेकर अरविंद केजरीवाल के मोदी सरकार पर हमले के जवाब में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मोर्चा संभाला था - और उनको काउंटर करने के लिए केजरीवाल के करीबी सहयोगी मनीष सिसोदिया सामने आये.

मनीष सिसोदिया को तो किसी भी तरीके से स्मृति ईरानी के दावों का काउंटर करना ही था, लेकिन दिल्ली के डिप्टी सीएम ने उनकी बातों को कांग्रेस नेताओं जैसा रोना बताया. मतलब, सिसोदिया नये सिरे से केजरीवाल के पक्ष में बीजेपी और कांग्रेस को बराबर खड़ा करके के हमला बोल रहे थे - ये बता रहा है कि कैसे केजरीवाल और उनकी पूरी टीम आम आदमी पार्टी के लिए भविष्य की चुनावी तैयारियों में युद्ध स्तर पर जुट गयी है.

सोमनाथ भारती का ऐलान: ममता बनर्जी को लेकर तो किसी ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन केसीआर पर आप नेता सोमनाथ भारती ने सीधा हमला बोला है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर को सोमनाथ भारती ने 'छोटा मोदी' करार दिया है. साथ में घमंडी भी कहा है.

और इसके साथ ही भारती ने बताया है कि आम आदमी पार्टी 14 अप्रैल से दक्षिण भारत के कई राज्यों में सदस्यता अभियान की शुरू कर रही है. 14 अप्रैल को बाबा साहेब अंबेडकर जयंती मनायी जाती है और ये दलित राजनीति का देश का सबसे बड़ा इवेंट होता है.

गौर करने वाली बात ये है कि आम आदमी पार्टी 14 अप्रैल से ही तेलंगाना में पदयात्रा शुरू करने जा रही है. सोमनाथ भारती के मुताबिक हर विधानसभा क्षेत्र के लोगों तक अरविंद केजरीवाल की राजनीति का दिल्ली मॉडल के साथ साथ अंबेडकर और भगत सिंह के विचारों को पहुंचाने की कोशिश होगी.

2018 में आम ने कर्नाटक और तेलंगाना में चुनावों के जरिये एंट्री मारने की कोशिश की थी. मतलब, पंजाब की तरह जहां भी कोशिशें कामयाब नहीं हुईं और स्कोप नजर आ रहा हो, आप आगे बढ़ने की कोशिश करेगी - और ये ममता बनर्जी के साथ साथ राहुल गांधी के लिए भी अलर्ट मैसेज है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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