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PK को कांग्रेस में आने के बाद क्या और कितना मिलेगा? आइये समझते हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 अप्रिल, 2022 07:41 PM
  • 24 अप्रिल, 2022 07:41 PM
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जल्द ही कांग्रेस पार्टी में प्रशांत किशोर की फॉर्मल एंट्री हो सकती है इसलिए पार्टी की दशा और दिशा बदलने के एवज में सोनिया ने प्रशांत किशोर के सामने आकर्षक प्रस्तावों की झड़ी लगा दी है. सोनिया के प्रशांत को 'आकर्षक प्रस्ताव' पर इसलिए भी किसी तरह की कोई हैरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि बीते कई दिनों से प्रशांत किशोर सोनिया गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ इंगेज थे.

अपनी रणनीति से 2014 में नरेंद्र मोदी के ऑरा को जन जान तक ले जाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर चर्चा में हैं. और उससे भी ज्यादा चर्चा में है देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस. 2014 से जो बुरे दिनों की शुरुआत हुई है, 2022 चल रहा है. कांग्रेस के अच्छे दिन आ ही नहीं रहे हैं. 2024 में देश में फिर लोकसभा चुनाव है. कांग्रेस पार्टी क्योंकि जनाधार खो चुकी है इसलिए उसके सामने करो या मरो की स्थिति है. जैसे हाल हैं. पार्टी का प्रयास यही है कि, कैसे भी करके खोई हुई इज्जत बचा ली जाए. शायद यही वो कारण हैं जिसके चलते बीच मंझधार में फंसी कांग्रेस पार्टी की नैया को पार लगाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर को दी है. प्रशांत किशोर को भी कांग्रेस की स्थिति का ठीक ठीक अंदाजा है इसलिए अभी बीते दिनों ही उन्होंने सुझावों की एक लम्बी फेहरिस्त सोनिया गांधी को सौंपी थी. अब क्योंकि जल्द ही कांग्रेस पार्टी में प्रशांत किशोर की फॉर्मल एंट्री हो सकती है इसलिए खबर ये भी है कि पार्टी की दशा और दिशा बदलने के एवज में सोनिया ने प्रशांत किशोर के सामने आकर्षक प्रस्तावों की झड़ी लगा दी है.

ध्यान रहे सोनिया के प्रशांत को 'आकर्षक प्रस्ताव' पर इसलिए भी किसी तरह की कोई हैरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि बीते कई दिनों से प्रशांत किशोर सोनिया गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ इंगेज थे. जिक्र सोनिया के लुभावने ऑफर का हुआ है तो ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि जैसी तस्वीर हमें दिखी है महसूस यही होता है कि प्रशांत किशोर भी फूंक फूंक कर कदम रख रहे थे.

 

जो सवाल पूरे देश के सामने है वो ये कि यदि पीके कांग्रेस में आ जाते हिन् तो इससे उन्हें क्या फायदा है

बात वर्तमान की हो तो अभी पीके कांग्रेस ज्वाइन करने में वक़्त इसलिए...

अपनी रणनीति से 2014 में नरेंद्र मोदी के ऑरा को जन जान तक ले जाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर चर्चा में हैं. और उससे भी ज्यादा चर्चा में है देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस. 2014 से जो बुरे दिनों की शुरुआत हुई है, 2022 चल रहा है. कांग्रेस के अच्छे दिन आ ही नहीं रहे हैं. 2024 में देश में फिर लोकसभा चुनाव है. कांग्रेस पार्टी क्योंकि जनाधार खो चुकी है इसलिए उसके सामने करो या मरो की स्थिति है. जैसे हाल हैं. पार्टी का प्रयास यही है कि, कैसे भी करके खोई हुई इज्जत बचा ली जाए. शायद यही वो कारण हैं जिसके चलते बीच मंझधार में फंसी कांग्रेस पार्टी की नैया को पार लगाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर को दी है. प्रशांत किशोर को भी कांग्रेस की स्थिति का ठीक ठीक अंदाजा है इसलिए अभी बीते दिनों ही उन्होंने सुझावों की एक लम्बी फेहरिस्त सोनिया गांधी को सौंपी थी. अब क्योंकि जल्द ही कांग्रेस पार्टी में प्रशांत किशोर की फॉर्मल एंट्री हो सकती है इसलिए खबर ये भी है कि पार्टी की दशा और दिशा बदलने के एवज में सोनिया ने प्रशांत किशोर के सामने आकर्षक प्रस्तावों की झड़ी लगा दी है.

ध्यान रहे सोनिया के प्रशांत को 'आकर्षक प्रस्ताव' पर इसलिए भी किसी तरह की कोई हैरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि बीते कई दिनों से प्रशांत किशोर सोनिया गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ इंगेज थे. जिक्र सोनिया के लुभावने ऑफर का हुआ है तो ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि जैसी तस्वीर हमें दिखी है महसूस यही होता है कि प्रशांत किशोर भी फूंक फूंक कर कदम रख रहे थे.

 

जो सवाल पूरे देश के सामने है वो ये कि यदि पीके कांग्रेस में आ जाते हिन् तो इससे उन्हें क्या फायदा है

बात वर्तमान की हो तो अभी पीके कांग्रेस ज्वाइन करने में वक़्त इसलिए भी ले रहे हैं क्योंकि पहले उन्हें ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, वाईएस जगन मोहन रेड्डी, उद्धव ठाकरे, के चंद्रशेखर राव से व्यक्तिगत मुलाकात करनी है. क्योंकि इन तमाम नेताओं से पीके के पेशेवर रिश्ते हैं तो माना यही जा रहा है कि इनसे मिले सुझाव के बाद ही पीके कांग्रेस ज्वाइन करने के विषय में कोई महत्वपूर्ण फैसला लेंगे.

कांग्रेस ज्वाइन करने से पहले प्रशांत किशोर का तमाम नेताओं से मिलना भी उनकी एक बड़ी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. बताते चलें कि चाहे वो ममता बनर्जी हों या फिर एमके स्टालिन, वाईएस जगन मोहन रेड्डी, उद्धव ठाकरे ये तमाम नेता 100 से अधिक 100 से अधिक लोकसभा सीटों को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं. यदि प्रशांत किशोर कांग्रेस से सक्रिय रूप से जुड़ जाते हैं तो गैर-भाजपा, गैर-एनडीए दलों से पीके की ये मुलाकात सीधे सीधे कांग्रेस पार्टी को बड़ा फायदा पहुंचाएगी.

गौरतलब है कि अलग अलग मौकों पर लगातार हार का मुंह देख रहीं सोनिया गांधी भी इस बात को बखूबी जानती हैं. और शायद यही वो कारण हैं जिसके चलते उन्होंने किशोर से लुभावने वादे किये हैं. वहीं बात यदि प्रशांत किशोर की हो तो उन्हें पता है कि कांग्रेस में वरिष्ठ नेता नए जुड़ने वाले लोगों का क्या हाल करते हैं. प्रशांत किशोर पार्टी में नंबर 2 बनकर नहीं रहना चाहते. उनका यही कहना है कि ऐसा प्रावधान हो कि वो पार्टी में फ्री हैंड लेकर काम करें और उनके काम करने के तरीके में किसी का दखल न हो. वहीं उनका ये भी कहना है कि जब वो पार्टी से जुड़े तो चाहे वो सोनिया गांधी हों या फिर प्रियंका और राहुल उनतक उनकी सीधी पहुंच हो.

ख़बरें ये भी हैं कि प्रशांत किशोर ने खुद के लिए महासचिव (मीडिया ) पद की डिमांड की है. हालांकि अभी इस बात को लेकर किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं हुई है. चूंकि प्रशांत किशोर पार्टी में आ रहे हैं तो पार्टी के वरिष्ठ और कद्दावर नेता भी इसे लेकर कम उत्साहित नहीं हैं. हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट पर यदि यकीन किया जाए तो मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ ने पीके के कांग्रेस पार्टी में आने के फैसले का समर्थन किया है. दिलचस्प ये है कि कमनाथ चाहते हैं कि प्रशांत किशोर के लिए कांग्रेस पार्टी में एक नया पद बने जिसे महासचिव (रणनीति) का नाम दिया जाए.

ध्यान रहे कांग्रेस में पीके के आने के बाद उनका रोल क्या रहेगा? इसपर अभी सिर्फ कयास ही लग रहे हैं. लेकिन चूंकि पीके स्वयं सोनिया गांधी को रिपोर्ट करने के इच्छुक हैं इसलिए पीके के सामने चुनौतियों का पहाड़ इसलिए भी है कि ये वो जगह हैं जहां पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल पहले से ही विराजमान हैं.

जैसा कांग्रेस में नेताओं का स्वाभाव है वो पार्टी को अपनी जागीर समझते हैं तो देखना दिलचस्प रहेगा कि पार्टी और पार्टी के पुराने और कद्दावर नेता उन्हें कबतक और कितना हाथों हाथ लेते हैं. कुल मिलाकर कहा बस यही जा सकता है कि पीके का कांग्रेस में आना जितना स्वयं उनके लिए रोमांचक है. उतना ही रोमांचित पार्टी के वो नेता भी हैं जो लंबे समय से पार्टी में कुंडली मारे बैठे हैं और किसी नए को अपने सामने टिकने नहीं दे रहे हैं. बाकी पीके पार्टी के लिए कितने फायदेमंद रहते हैं या फिर वो कांग्रेस आ ही अपने निजी फायदे के लिए रहे हैं सवाल तो तमाम हैं जिनका जवाब हमें आने वाला वक़्त देगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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