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पेट्रोल महंगा है क्योंकि सरकार की नीयत खराब है, बाकी सब बहाने हैं

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 23 मई, 2018 05:07 PM
  • 23 मई, 2018 05:07 PM
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अब जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें ऊपर जा रही हैं तो सरकार को शराफत दिखाते हुए वो टैक्स वापस लेना चाहिए लेकिन अब सरकार की नीयत में खोट आ गया है. सिर्फ दो बार मामूली कमी की, इसके बाद मुंह छिपा लिया. ये एक तरह की बेईमानी है.

मोदी तब सरकार में आए ही थे कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिरने लगीं. पेट्रोल लगातार सस्ता हो रहा था. जाहिर बात है कि इससे सरकार की टैक्स से कमाई घटने लगी. सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी. ये सिलसिला लगातार चलता रहा और सरकार ने चार बार कभी तीन तो कभी चार फीसदी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई. सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि पिछले तीन साल में डीजल में एक्साइज ड्यूटी पर 380% बढ़ोतरी हुई है और पेट्रोल पर 120%. पिछले दो साल (2013-14 और 2014-15) में केंद्र सरकार का रेवेन्यू पेट्रोल/डीजल पर लगी एक्साइज ड्यूटी से दोगुना हो हुआ है. यानी दाम गिरा तो बोझ जनता पर डाल दिया.

2014 में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने से पहले डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.56 रुपये थी और पेट्रोल पर 9.48 रुपये. इसके बाद पिछले तीन साल में 11 बार रेट रिवाइज किए गए. डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 17 रुपये 33 पैसे (380%) बढ़ी, जबकि पेट्रोल पर 21.48 रुपये (120%) बढ़ी.

बीजेपी सरकार ने पिछले तीन साल में 11 बार रेट रिवाइज किए

अब जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें ऊपर जा रही हैं तो सरकार को शराफत दिखाते हुए वो टैक्स वापस लेना चाहिए लेकिन अब सरकार की नीयत में खोट आ गया है. सिर्फ दो बार मामूली कमी की, इसके बाद मुंह छिपा लिया. ये एक तरह की बेईमानी है. सरकार को बढ़ाया हुआ टैक्स वापस लेना चाहिए था.

पेट्रोल-डीजल पर सिर्फ केंद्र सरकार ने ही एक्साइज ड्यूटी नहीं बढ़ाई, बल्कि पिछले 3 सालों में राज्यों ने भी वैट/सेल्स टैक्स बढ़ाया है. अप्रैल 2014 में डीजल पर 10 राज्यों में 20% से ज्यादा वैट था. सबसे ज्यादा 25% छत्तीसगढ़ में था. वहीं अब तक मार्च 2017 में डीजल पर 16 राज्यों में 20% से ज्यादा वैट रहा और सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 31.31%...

मोदी तब सरकार में आए ही थे कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिरने लगीं. पेट्रोल लगातार सस्ता हो रहा था. जाहिर बात है कि इससे सरकार की टैक्स से कमाई घटने लगी. सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी. ये सिलसिला लगातार चलता रहा और सरकार ने चार बार कभी तीन तो कभी चार फीसदी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई. सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि पिछले तीन साल में डीजल में एक्साइज ड्यूटी पर 380% बढ़ोतरी हुई है और पेट्रोल पर 120%. पिछले दो साल (2013-14 और 2014-15) में केंद्र सरकार का रेवेन्यू पेट्रोल/डीजल पर लगी एक्साइज ड्यूटी से दोगुना हो हुआ है. यानी दाम गिरा तो बोझ जनता पर डाल दिया.

2014 में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने से पहले डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.56 रुपये थी और पेट्रोल पर 9.48 रुपये. इसके बाद पिछले तीन साल में 11 बार रेट रिवाइज किए गए. डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 17 रुपये 33 पैसे (380%) बढ़ी, जबकि पेट्रोल पर 21.48 रुपये (120%) बढ़ी.

बीजेपी सरकार ने पिछले तीन साल में 11 बार रेट रिवाइज किए

अब जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें ऊपर जा रही हैं तो सरकार को शराफत दिखाते हुए वो टैक्स वापस लेना चाहिए लेकिन अब सरकार की नीयत में खोट आ गया है. सिर्फ दो बार मामूली कमी की, इसके बाद मुंह छिपा लिया. ये एक तरह की बेईमानी है. सरकार को बढ़ाया हुआ टैक्स वापस लेना चाहिए था.

पेट्रोल-डीजल पर सिर्फ केंद्र सरकार ने ही एक्साइज ड्यूटी नहीं बढ़ाई, बल्कि पिछले 3 सालों में राज्यों ने भी वैट/सेल्स टैक्स बढ़ाया है. अप्रैल 2014 में डीजल पर 10 राज्यों में 20% से ज्यादा वैट था. सबसे ज्यादा 25% छत्तीसगढ़ में था. वहीं अब तक मार्च 2017 में डीजल पर 16 राज्यों में 20% से ज्यादा वैट रहा और सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 31.31% है.

पेट्रोल पर नजर डालें, तो अप्रैल 2014 में 17 राज्यों में कम से कम 25% वैट था. इसमें सबसे ज्यादा 33.06% पंजाब में था. अब भी कम से कम 25% वैट अलग अलग राज्यों में है और सबसे ज्यादा वैट मध्य प्रदेश में 39.75% है.

आप अगर अपनी गाड़ी में एक बार टैंक फुल कराते हैं तो डीलर को करीब 126 रुपये की कमाई हो जाती है

अफसोस की बात ये है कि केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ही बेईमान की तरह रवैया अपनाए हुए हैं. केन्द्र राज्य सरकारों से टैक्स कम करने को तो कह रहा है लेकिन राज्यों से सीधे बात नहीं कर रहा. सोचने वाली बात ये है कि केन्द्र सीधे-सीधे राज्यों से नहीं कह रहा कि वो टैक्स कम करें. ज्यादातर सरकारें या तो बीजेपी की हैं या बीजेपी के गठबंधन की. मोदी अगर कहें तो कौन टाल सकता है. लेकिन यहां भी सिर्फ अपनी छवि को बचाने के लिए ऐसी बातें कही जा रही हैं.

एक और बयान दिया गया कि तेल कंपनियां अपना मुनाफा कम करें लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही. एक लीटर पेट्रोल पर रिलायंस, अडानी और एस्सार जैसी कंपनियां तीन रुपये 52 पैसे की कमाई करती हैं. डीलर का कमीशन भी तीन रुपये बासठ पैसे और दो रुपये बावन पैसे हैं. यानी आप अगर अपनी गाड़ी में एक बार टैंक फुल कराते हैं तो डीलर को करीब 126 रुपये की कमाई हो जाती है. जब वो पेट्रोल भर रहा होता है तभी पेट्रोलियम कंपनी के खाते में भी इतने ही रुपये आ जाते हैं.

अफसोस की बात ये है कि इस पर राजनीति ही राजनीति हो रही है...सिर्फ राजनीति. सरकार देश के नागरिकों से ईमानदार और उसूल पसंद होने की अपेक्षा करती है लेकिन सरकार का अपना चरित्र राजनीति से भरा हो तो ये अच्छी बात नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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