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सर्जिकल स्ट्राइक बन गई बीजेपी की संजीवनी बूटी

    • आईचौक
    • Updated: 05 अक्टूबर, 2016 08:11 PM
  • 05 अक्टूबर, 2016 08:11 PM
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केजरीवाल ने बड़ी चालाकी से सबूत मांगे हैं. निरूपम और दिग्विजय ने भी केजरीवाल के ही अंदाज में ऐसा किया है. कांग्रेस की ऑफिशयल लाइन अलग है.

बात मौके की होती है. भक्ति काल का वो दौर अब नहीं रहा - ये देशभक्ति का दौर है. दुर्गापूजा से लेकर दशहरे तक थीम बदल गया है. ये देशभक्ति का आलम नहीं तो और क्या कि मौजूदा सियासी माहौल में राम और रावण भी महज किरदार नजर आ रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूपी पहुंचने से पहले ही उनके शहर बनारस में नये जमाने के पोस्टर लग गये हैं.

रावण दहन

बनारस में पोस्टर शिव सेना की ओर से लगाये गये हैं. पोस्टर में खास तौर पर रामलीला के तीन किरदारों पर फोकस किया गया है. पोस्टर में मोदी को राम के रूप में तो पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को रावण के रूप में दिखाया गया है. सर्जिकल स्ट्राइक पर सबसे पहले सवाल उठाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी शिव सेना ने पोस्टर में जगह दी है, लेकिन मेघनाद के रूप में.

वैसे अगर चुनाव नहीं होने होते तो शायद अरविंद केजरीवाल भी ऐसे बयान न देते कि उन्हें भारत से ज्यादा पाकिस्तान में सपोर्ट मिले. कांग्रेस भी शायद संजय निरूपम के बयान से उस तरह किनारा नहीं करती. दिग्विजय सिंह तो खैर अपवाद हैं. कांग्रेस में उन्हें भी आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह की तरह लिया जाना चाहिये, जिस पर किसी का भी कंट्रोल नहीं. शायद, लालू प्रसाद और खुद उनका भी नहीं, लेकिन कोई इस बात से भी इंकार नहीं करता कि वो आलाकमान के मन की बात नहीं कर रहे.

लगता है केजरीवाल ने सबसे पहले सर्जिकल स्ट्राइक की सियासी अहमियत समझी - और अगर उन्हें ऐसा लगा कि ये चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है तो वो बिलकुल सही सोच रहे हैं.

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बात मौके की होती है. भक्ति काल का वो दौर अब नहीं रहा - ये देशभक्ति का दौर है. दुर्गापूजा से लेकर दशहरे तक थीम बदल गया है. ये देशभक्ति का आलम नहीं तो और क्या कि मौजूदा सियासी माहौल में राम और रावण भी महज किरदार नजर आ रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूपी पहुंचने से पहले ही उनके शहर बनारस में नये जमाने के पोस्टर लग गये हैं.

रावण दहन

बनारस में पोस्टर शिव सेना की ओर से लगाये गये हैं. पोस्टर में खास तौर पर रामलीला के तीन किरदारों पर फोकस किया गया है. पोस्टर में मोदी को राम के रूप में तो पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को रावण के रूप में दिखाया गया है. सर्जिकल स्ट्राइक पर सबसे पहले सवाल उठाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी शिव सेना ने पोस्टर में जगह दी है, लेकिन मेघनाद के रूप में.

वैसे अगर चुनाव नहीं होने होते तो शायद अरविंद केजरीवाल भी ऐसे बयान न देते कि उन्हें भारत से ज्यादा पाकिस्तान में सपोर्ट मिले. कांग्रेस भी शायद संजय निरूपम के बयान से उस तरह किनारा नहीं करती. दिग्विजय सिंह तो खैर अपवाद हैं. कांग्रेस में उन्हें भी आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह की तरह लिया जाना चाहिये, जिस पर किसी का भी कंट्रोल नहीं. शायद, लालू प्रसाद और खुद उनका भी नहीं, लेकिन कोई इस बात से भी इंकार नहीं करता कि वो आलाकमान के मन की बात नहीं कर रहे.

लगता है केजरीवाल ने सबसे पहले सर्जिकल स्ट्राइक की सियासी अहमियत समझी - और अगर उन्हें ऐसा लगा कि ये चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है तो वो बिलकुल सही सोच रहे हैं.

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मोदी सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक का सरहद पार डिप्लोमेटिक असर हुआ है तो मुल्क के अंदर सियासी सरगर्मी तेज हो चली है. ब्रांड मोदी एक बार फिर चुनावी बाजार में ट्रेंड करने लगा है. सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह.

समझा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली छोड़ कर दशहरा मनाने इस बार लखनऊ जा रहे हैं. लखनऊ के दशहरे में जो पुतला दहन होगा उसका थीम भी 'आतंकवाद' बताया जा रहा है.

संजीवनी बूटी

पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी दोनों ही के लिए संजीवनी बूटी साबित होने जा रहा है. उरी हमले के बाद मोदी सरकार को भी जवाब देना मुश्किल हो रहा था. सोशल मीडिया पर '56 इंच का सीना' टैग कर लोग मजाक उड़ाने लगे थे.

भक्ति पर देशभक्ति हावी...

यूपी, पंजाब और गोवा में चुनावी माहौल जोर पकड़ने लगा था - लेकिन बीजेपी नेताओं में जीत की उम्मीद न के बराबर दिखने लगी थी. दिल्ली और बिहार में ब्रांड मोदी पूरी तरह फेल हो जाने के बाद केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी की मुश्किलें कम नहीं हो पा रही थीं.

पंजाब की सत्ता में बीजेपी के साझीदार शिरोमणि अकाली दल के नेताओं में भी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जोश भरा दिख रहा है. बुलंद तिरंगा मार्च में सड़क पर उतरे समर्थकों ने प्रकाश सिंह बादल के परिवार और पार्टी को नयी आस बंधायी है.

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद माहौल पूरी तरह बदल गया है. कांग्रेस भले ही जोर जोर से शोर मचा रही हो कि ऐसे कई सर्जिकल स्ट्राइक हमने भी किये लेकिन ढोल नहीं पीटा. लेकिन जश्न के नगाड़े की आवाज में ढोल का कोई मोल नजर नहीं आ रहा.

गोवा में आरएसएस प्रमुख को लेकर विवाद और केजरीवाल की जोरदार दस्तक के बाद बीजेपी सहमी सहमी नजर आने लगी थी, लेकिन अब उसकी बाछें खिली खिली नजर आ रही हैं. गोवा बीजेपी की ओर से मनोहर पर्रिकर का सम्मान और विजय जुलूस का कार्यक्रम भी तय था लेकिन उनकी व्यस्ताओं के चलते स्थगित करना पड़ा. पर्रिकर करीब नौ हजार बाइक सवार समर्थकों के साथ रैली में शामिल होने वाले थे. ये विजय जुलूस वास्को में डबलिम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लेकर पणजी तक निकाला जाने वाला था.

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पंजाब में भले ही शिवसेना का बहुत प्रभाव न हो लेकिन उसके नेताओं ने लड्डू जरूर बांटे - और अब महाराष्ट्र में संजय निरूपम के खिलाफ हल्ला बोलने पर आमादा है.

सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल सियासी वजहों से उठ रहे हैं. सवाल उठाने वालों में अब तक केजरीवाल, संजय निरूपम और दिग्विजय सिंह आगे आये हैं. केजरीवाल ने बड़ी चालाकी से सबूत मांगे हैं. निरूपम और दिग्विजय ने भी केजरीवाल के ही अंदाज में ऐसा किया है. कांग्रेस की ऑफिशयल लाइन अलग है.

देशभक्ति के आगोश में डूबे देश में केजरीवाल को जैन मुनि तरुण सागर का भी कोपभाजन बनना पड़ा है. तरुण सागर ने कहा है, "केजरीवाल ओछी राजनीति से बाज आएं. डायन भी एक घर छोड़ देती है. सेना के जवान हमारे असली हीरो हैं. उनकी आलोचना करने वाले नशे में हैं, होश में नहीं."

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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