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एडीएम साहेब हैं आप, कम से कम तिरंगे का तो सम्मान कर लेते...

    • बिभांशु सिंह
    • Updated: 23 अगस्त, 2022 06:04 PM
  • 23 अगस्त, 2022 06:01 PM
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अभी-अभी देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना चुका है. और देश की एकता अखंडता का परिचय दुनिया को कराने के लिए हर घर तिरंगा का अभियान भी चला था. तिरंगा का सम्मान में अमूमन भारतवासी दिखे. लेकिन, एडीएम का इस कदर तिरंगे ऊपर प्रहार करना किस बात का प्रतीक है?

पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन चुनाव लड़ रही थी. उस समय जेडीयू ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था. तेजस्वी ने मुख्यमंत्री बनने के साथ पहली कैबिनेट की बैठक में 10 लाख नौकरी देने के प्रस्ताव पर पहली दस्तखत करने की घोषणा कर दी थी. युवाओं में इस घोषणा के बाद एक उम्मीद की किरण दिखी और उनमें जोश भर गया. नतीजतन, तेजस्वी और बदलाववाद के पक्ष में वोट भी पड़े.

हालांकि, सामाजिक समीकरण की वजह से तेजस्वी कुछ सीट से चूक गये. लेकिन, जब पुनः उप मुख्यमंत्री बने, तो युवाओं को वह 10 लाख नौकरी वाली बात याद आ गई. अलबत्ता, एक आशावादी सोच के साथ हर क्षेत्र के अभ्यर्थियों का पटना जाना प्रारंभ हो गया. इसी अभियान के तहत शिक्षक नियोजन के सातवें चरण की तिथि घोषित करने के लिए सीटेट और बीटेट अभ्यर्थियों ने सोमवार को राजधानी पटना के डाकबंगला चौराहे पर जोरदार प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया.

जाहिर है कि प्रदर्शन में विधि-व्यवस्था बिगड़ती है. पुलिस पुरानी सरकार में आती थी और नई सरकार में भी आयी. सिपाही लाठी भांजते हैं और पिटाई भी करते हैं. लेकिन, एक उच्च स्तर की शिक्षा व उच्च कोटि के इम्ति‍हान और साक्षात्कार के बाद कोई एडीएम बन पाता है. लेकिन, एडीएम लॉ एंड ऑर्डर केके सिंह का अभ्यर्थी के ऊपर लाठी बरसाना, वह भी बड़ी निर्दयता व क्रूरतापूर्वक, कहां से उचित है?

पटना एडीएम द्वारा तिरंगा लिए युवक पर लाठीचार्ज को किसी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता है.

मानवीय संवेदना भी इसकी इजाजत नहीं देती है. उसपर भी जमीन पर लेटे अभ्यर्थी ने अपने बचाव में ही शायद देश का तिरंगा आगे कर दिया. फिर भी एडीएम की सुस्त हो चुकी संवेदना जिंदा न हो सकी. लाठियां बरबस पड़ती रही. निर्दयता की पराकाष्ठा पार कर जब एडीएम साहेब आप अपने घर गये होंगे तो...

पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन चुनाव लड़ रही थी. उस समय जेडीयू ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था. तेजस्वी ने मुख्यमंत्री बनने के साथ पहली कैबिनेट की बैठक में 10 लाख नौकरी देने के प्रस्ताव पर पहली दस्तखत करने की घोषणा कर दी थी. युवाओं में इस घोषणा के बाद एक उम्मीद की किरण दिखी और उनमें जोश भर गया. नतीजतन, तेजस्वी और बदलाववाद के पक्ष में वोट भी पड़े.

हालांकि, सामाजिक समीकरण की वजह से तेजस्वी कुछ सीट से चूक गये. लेकिन, जब पुनः उप मुख्यमंत्री बने, तो युवाओं को वह 10 लाख नौकरी वाली बात याद आ गई. अलबत्ता, एक आशावादी सोच के साथ हर क्षेत्र के अभ्यर्थियों का पटना जाना प्रारंभ हो गया. इसी अभियान के तहत शिक्षक नियोजन के सातवें चरण की तिथि घोषित करने के लिए सीटेट और बीटेट अभ्यर्थियों ने सोमवार को राजधानी पटना के डाकबंगला चौराहे पर जोरदार प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया.

जाहिर है कि प्रदर्शन में विधि-व्यवस्था बिगड़ती है. पुलिस पुरानी सरकार में आती थी और नई सरकार में भी आयी. सिपाही लाठी भांजते हैं और पिटाई भी करते हैं. लेकिन, एक उच्च स्तर की शिक्षा व उच्च कोटि के इम्ति‍हान और साक्षात्कार के बाद कोई एडीएम बन पाता है. लेकिन, एडीएम लॉ एंड ऑर्डर केके सिंह का अभ्यर्थी के ऊपर लाठी बरसाना, वह भी बड़ी निर्दयता व क्रूरतापूर्वक, कहां से उचित है?

पटना एडीएम द्वारा तिरंगा लिए युवक पर लाठीचार्ज को किसी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता है.

मानवीय संवेदना भी इसकी इजाजत नहीं देती है. उसपर भी जमीन पर लेटे अभ्यर्थी ने अपने बचाव में ही शायद देश का तिरंगा आगे कर दिया. फिर भी एडीएम की सुस्त हो चुकी संवेदना जिंदा न हो सकी. लाठियां बरबस पड़ती रही. निर्दयता की पराकाष्ठा पार कर जब एडीएम साहेब आप अपने घर गये होंगे तो आपको नींद कैसे आयी होगी? जरा देश को बताएं. पछतावा हुआ था कि नहीं.

अगर नहीं, तो वह वीडियो देखिये और अपनी संतान को भी निहारिये. क्या आपकी संतान के ऊपर ऐसा अत्याचार कोई दूसरा एडीएम करता तो आप पर सामान्य अभिभावक के तौर पर क्या गुजरता. चलिये मानवीय पक्ष ऐसे ही अफसरशाही में ध्यान नहीं रहता. कम से कम देश के तिरंगे का तो सम्मान कर लिया होता. आपने तिरंगे के उपर भी लाठियां बरसा दीं. वह लाठी सीधे तिरंगे पर नहीं देश पर पड़ी है. जबकि, अभी-अभी देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना चुका है. और देश की एकता-अखंडता का परिचय दुनिया को कराने के लिए हर घर तिरंगा का अभियान भी चला था.

तिरंगे के सम्मान में अमूमन भारतवासी दिखे. लेकिन, एडीएम होकर इसी तिरंगे व देश के भविष्य के साथ ऐसी क्रूरता कहां शोभनीय है. इस पर तो बिहार सरकार को भी जवाब देते नहीं बन रहा है. और तो और संवेदनशील अफसरों को भी शर्म आ गई. सवाल उप मुख्यमंत्री व मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव से भी है कि क्या आप 10 लाख नौकरी के वादे के विपरीत अभ्यर्थियों को लाठी दीजियेगा.

तब तो बात वही हो गयी आपके पिताजी के दौर की, लाठी घुमाबन, तेल पिलावन वाली. यदि ऐसी नीयत रहेगी तो आप राज तो कर सकते हैं, लेकिन, जनता आपको क्रूर शासक व वादाखिलाफ नेता के तौर पर ही याद करेगी. कानूनी कार्रवाई होगी या सिर्फ जांच. भारतीय दंड विधान किसी के साथ भी मारपीट या लाठी बरसाने की इजाजत नहीं देता है. यहां का कानून सब पर एक समान लागू होता है. क्या जांच के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट के बाद एडीएम पर आइपीसी धारा के तहत केस दर्ज करते हुए कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी. जैसा कि अन्य सामान्य नागरिक के साथ होता है.

दूसरा आरोप तिरंगे के संबंध में हैं. तिरंगा आगे कर देने के बाद भी एडीएम साहेब तिरंगे पर भी लाठियां चलाते रहे. तो क्या तिरंगे के सरेआम अपनाम को लेकर भी धारा लगेगा. इन सबका इंतजार बिहारीवासियों को है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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