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पठानकोट का सबक: दुश्मन को अपने नहीं, उसके घर में मारो

    • गौरव चितरंजन सावंत
    • Updated: 05 जनवरी, 2016 08:13 PM
  • 05 जनवरी, 2016 08:13 PM
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पठानकोट आतंकी हमले से सरकार को सीख लेने की जरूरत है कि दुश्मनों को हमारी सीमा में प्रवेश करने से पहले ही मिटा दिया जाना चाहिए. इसलिए जरूरी है कि दुश्मन को दरवाजे पर ही खत्म किया जाए, हमारे आंगन में नहीं.

29 दिसंबर 2015 को पाकिस्तानी आतंकियों की दो टीमों के भारत में घुसपैठ करने की विशिष्ट खुफिया सूचना थीं. इंडिया टुडे टेलीविजन पर मैंने उस खुफिया रिपोर्ट पर आधारित एक कार्यक्रम किया था जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजधानी दिल्ली सहित देश के सैन्य प्रतिष्ठानों, महत्वपूर्ण संपत्तियों और केंद्रों को निशाना बनाने की आशंका जताई गई थी.

खुफिया रिपोर्ट में खासतौर पर सैन्य प्रतिष्ठानों और परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की बात कही गई थी. 31 दिसंबर को खुफिया रिपोर्ट का केंद्र पंजाब पर केंद्रित हो गया. 1 जनवरी को आतंकी हमले से पहले-मेजर जनरल दुष्यंत सिंह के नेतृत्व में नेशनल सिक्यॉरिटी गार्ड (एनएसजी) के 150 से ज्यादा कमांडो पठानकोट स्थित इंडियन एयर फोर्स स्टेशन के लिए उड़ान भर चुके थे.

साथ ही सेना की दो टुकड़ियां और स्पेशल फोर्स की टीमें भी पठानकोट स्थित एयर फोर्स स्टेशन की सामिरक संपत्तियों-विमान, हेलीकॉप्टर्स, रडार, एयर डिफेंस सिस्टम और कमांड कंट्रोल उपकरण की सुरक्षा के लिए रवाना हो गए. मिलिट्री स्टेशन को भी आभासी किले में तब्दील कर दिया गया. एहतियाती कदम के तहत सिविल मार्केट को भी बंद कर दिया गया. ये सब आतंकियों द्वारा पहली गोली चलाए जाने के पहले किया गया.

खुफिया तौर पर कोई असफलता नही थीं-वास्तव में खुफिया सूचना बहुत स्पष्ट थी और इसे काफी लंबी अवधि के बाद तैयार किया गया था. करीब चार महीने चैनलों पर यह जानकारी उपलब्ध थी कि जैशे-मोहम्मद और लश्करे-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के आतंकियों को भारत में विशेष आतंकी मिशन के लिए पाकिस्तान स्थित सियालकोट में विशिष्ट मिलिट्री ट्रेनिंग दी जा रही है. उस समय खुफिया एजेंसी के मेरे सूत्र ने बताया था कि उनका लक्ष्य 'महत्वपूर्ण बड़ा निशाना' था-लेकिन 26/11 के आतंकी हमले जितनी गंभीरता का नहीं.

सक्रियता के हिसाब से तीन मुख्य खामियां रहीं. आतंकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करके भारत में घुसने में सफल रहे. हम अब भी इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं कि भारत में कितने आतंकी घुसे थे- 10...

29 दिसंबर 2015 को पाकिस्तानी आतंकियों की दो टीमों के भारत में घुसपैठ करने की विशिष्ट खुफिया सूचना थीं. इंडिया टुडे टेलीविजन पर मैंने उस खुफिया रिपोर्ट पर आधारित एक कार्यक्रम किया था जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजधानी दिल्ली सहित देश के सैन्य प्रतिष्ठानों, महत्वपूर्ण संपत्तियों और केंद्रों को निशाना बनाने की आशंका जताई गई थी.

खुफिया रिपोर्ट में खासतौर पर सैन्य प्रतिष्ठानों और परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की बात कही गई थी. 31 दिसंबर को खुफिया रिपोर्ट का केंद्र पंजाब पर केंद्रित हो गया. 1 जनवरी को आतंकी हमले से पहले-मेजर जनरल दुष्यंत सिंह के नेतृत्व में नेशनल सिक्यॉरिटी गार्ड (एनएसजी) के 150 से ज्यादा कमांडो पठानकोट स्थित इंडियन एयर फोर्स स्टेशन के लिए उड़ान भर चुके थे.

साथ ही सेना की दो टुकड़ियां और स्पेशल फोर्स की टीमें भी पठानकोट स्थित एयर फोर्स स्टेशन की सामिरक संपत्तियों-विमान, हेलीकॉप्टर्स, रडार, एयर डिफेंस सिस्टम और कमांड कंट्रोल उपकरण की सुरक्षा के लिए रवाना हो गए. मिलिट्री स्टेशन को भी आभासी किले में तब्दील कर दिया गया. एहतियाती कदम के तहत सिविल मार्केट को भी बंद कर दिया गया. ये सब आतंकियों द्वारा पहली गोली चलाए जाने के पहले किया गया.

खुफिया तौर पर कोई असफलता नही थीं-वास्तव में खुफिया सूचना बहुत स्पष्ट थी और इसे काफी लंबी अवधि के बाद तैयार किया गया था. करीब चार महीने चैनलों पर यह जानकारी उपलब्ध थी कि जैशे-मोहम्मद और लश्करे-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के आतंकियों को भारत में विशेष आतंकी मिशन के लिए पाकिस्तान स्थित सियालकोट में विशिष्ट मिलिट्री ट्रेनिंग दी जा रही है. उस समय खुफिया एजेंसी के मेरे सूत्र ने बताया था कि उनका लक्ष्य 'महत्वपूर्ण बड़ा निशाना' था-लेकिन 26/11 के आतंकी हमले जितनी गंभीरता का नहीं.

सक्रियता के हिसाब से तीन मुख्य खामियां रहीं. आतंकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करके भारत में घुसने में सफल रहे. हम अब भी इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं कि भारत में कितने आतंकी घुसे थे- 10 या 15 या उससे ज्यादा. दुर्भाग्य से ये संख्या खतरनाक है. दूसरा जिस ढंग से पंजाब पुलिस के एसपी सलविंदर सिंह का अपहरण किया गया और आतंकियों को जाने दिया गया और उनके द्वारा इस मामले में जारी चेतावनी के प्रति पंजाब पुलिस की प्रतिक्रिया. तीसरी आतंकियों द्वारा इंडियन एयर फोर्स के 26 किलोमीटर की परिधि के परिसर में घुसने में कामयाब होना रही.

इंडियन एयर फोर्स ने जोर देकर कहा कि उसने अनमैन्ड एरियल वीइकल (यूएवी) पर कुछ संदिग्ध गतिविधियां देखीं और एक गार्ड कमांडो टीम को जांच के लिए भेजा. यही पर पहली मुठभेड़ हुई. इंडियन एयरफोर्स के टॉप सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि आतंकी एयरपोर्ट के टेक्निकल एरिया में स्थित विमानों और संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की योजना को अमली जामा नहीं पहना सके. इस भीषण भिड़ंत में कमांडो गुरुसेवक सिंह शहीद हो गए और इसके बाद आतंकी टुकड़ियों में बंटकर उनके सामने आने वाली पहली बिल्डिंग की तरफ भागे.

इसके बाद आतंकियों ने डिफेंस सर्विस कोर (डीएससी) पर्सनल मेस (खाने और रहने का एरिया) में प्रवेश किया. आतंकी उनका पीछा कर रहे गरुड़ कमांडों के जवानों पर खिड़कियों से गोलियां की बौछार करते रहे. डीएससी के कुछ जवान जो दिन की तैयारी कर रहे थे- दुर्भाग्य से गोलियों की इन बौछार के बीच में आ गए और शहीद हो गए. लेकिन यहां पर एक निहत्थे डीएससी जवान जगदीश चंद की वीरता का जिक्र करना जरूरी है जोकि रसोई में सुबह का खाना बना रहे थे-वह एक पाकिस्तानी आतंकी से भिड़ गए-उसका हथियार छीना और उसे गोली मार दी और इस आतंकी हमले में पहले पाकिस्तानी आतंकी को मार गिराया. दुर्भाग्य से भागते हुए एक अन्य आतंकी घूमा और बहादुर जगदीश सिंह को मार दिया. तब तक इन आतंकियों को सेना और एनएसजी के जवान एक और जोरदार लड़ाई के लिए ललकार चुके थे. आतंकी पहले ही दो समूहों में बंट चुके थे. जो आतंकी खुले में थे उन्हें खोजकर मार गिराया गया. यहां एक बार फिर भागते हुए एक दुष्ट आतंकी ने अपने मारे गए एक कामरेड के शरीर में ग्रेनेड्स और IED फंसा दिए.

एनएसजी बम निरोधक दस्ते के लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन ई कुमार तलाशी अभियान के दौरान IED/ग्रेनेड को डिफ्यूज करने की कोशिश की लेकिन वह फट गया. इस घटना में एक अन्य ऑफिसर और एनएसजी के कुछ जवान घायल हुए. एक आतंकी को डीएससी के जवान द्वारा मारा गया, सूत्रों के मुताबिक तीन अन्य आतंकियों को जमीन पर तैनात सेना के विशेष फोर्स और इंफेंट्री टीम द्वारा मारा गया. 2 जनवरी को चार आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई.

साथ ही सेना अपने पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों (BMPs) और बारूदी सुरंग संरक्षित वाहनों (MPVs) के साथ आगे बढ़ी. इन वाहनों में आगे बढ़ना बेहतरीन कदम था इससे जवानों को भयंकर गोलीबारी वाले इलाकों में आगे बढ़ते हुए सुरक्षा मिली, रात में देखने की क्षमता वाले और शक्तिशाली गोलाबारूद से लैस इन वाहनों से दीवारों और पेड़ों के पीछे छिपे आतंकियों को भी नेस्तनाबूद करने में मदद मिली. साथ ही इससे मनोवैज्ञानिक बढ़त भी मिली.

ऑपरेशन की कमान और कंट्रोल सेना के ब्रिगेड कमांडर से एनएसजी के इंस्पेक्टर जनरल को हस्तांतरित हुई थी. शायद ऑपरेशन के बीच में कमांड और कंट्रोल को शिफ्ट करने पर बहस हो सकती है. साथ ही क्या मिलिट्री एरिया में एनएसजी को बुलाने की जरूरत थी? अतीत में सेना ऐसी घटनाओं से प्रभावी ढंग से निपट चूकी है, फिर चाहे वह सांबा में या कहीं और-सेना के स्पेशल फोर्स और पैदल सैनिक यूनिट्स को पाकिस्तानी आतंकी हमले से निपटने का ज्यादा अनुभव है.

सूत्रों के मुताबिक एक से ज्यादा फोर्स का मतलब एक से ज्यादा आदेश, नियंत्रण और संचालन प्रक्रियाओं का का होना है.

ऑपरेशन में लगे समय के लिए आंतक के खिलाफ लड़ने वाले जवानों की आलोचना अनुचित है. वे इस बात का निर्णय करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं कि बिना खुद को और आसपास के आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाए आतंकियों को मारने में कितने समय की जरूरत है. पठानकोट स्थित इंडियन एयरफोर्स स्टेशन के 26 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में तलाशी अभियान चलाने में लंबा वक्त लगेगा. वहां स्कूल, अस्पताल, बाजार, प्रशासनिक कार्यालय, आवासीय ब्लॉक, क्लब, जल निकाय, जंगल हैं- आतंकी इनमें से किसी भी जगह पर छिपे हो सकते हैं. इसलिए यह महत्वूपर्ण है कि कैंपस में प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित हो और कहीं पर भी एक भी आतंकी छिपा न हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के हाथों में एक महत्वपूर्ण चुनौती है. दुश्मनों को हमारी सीमा में प्रवेश करने से पहले ही मिटाने की आवश्यकता है-नुकसान से बचाने की कोशिश में हमेशा ही ज्यादा जान जाने का खतरा रहेगा.

दुश्मन को दरवाजे पर ही खत्म करो, हमारे आंगन में नहीं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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