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मुल्‍तान की दरगाह के मुर्शिद का पाकिस्तानी विदेश मंत्री रूप!

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 08 अप्रिल, 2019 06:55 PM
  • 08 अप्रिल, 2019 06:50 PM
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16 से 20 अप्रैल के बीच भारत के हमले की भविष्‍यवाणी करने वाले पाकिस्‍तानी विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी के कई रूप हैं. कोट सूट पहनकर वे कैंब्रिज वाली अंग्रेजी बोलते हैं, तो दूसरी तरफ सूफीयों वाला लिबास पहनकर लोगों का जादू-टोना भी दूर करने का दावा करते हैं. भला हो पाकिस्‍तान का!

पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दावा किया है कि 16 से 20 अप्रैल के बीच भारत किसी बहाने से पाकिस्तान पर हमला कर सकता है. भारत के बारे में ये भविष्यवाणी करते हुए कुरैशी ने कहा कि उन्होंने कहा कि एक नए हादसे का ताना-बाना रचा जा सकता है और इसका मकसद पाकिस्तान के खिलाफ उनकी कार्रवाई को सही ठहराना और इस्लामाबाद के खिलाफ राजनयिक दबाव बढ़ाना होगा. पर ये दावा करते समय वो ये भूल गए कि वो मुर्शिद के तौर पर दरगाह में भविष्यवाणी नहीं कर रहे हैं. कुरैशी एक देश के विदेश मंत्री भी हैं. और उन्हें सुनने वाले उनके अनुयायी नहीं बल्कि अतंरराष्ट्रीय मीडिया, अधिकारी और समझदार आवाम भी हैं. 

शाह महमूद कुरैशी अक्सर भारत के खिलाफ बातें करते रहते हैं और उन्हें इस बात से भी बहुत ऐतराज़ था कि सुषमा स्वराज को दुबई में हुई इस्‍लामिक देशों के संगठन की मीटिंग में क्‍यों बुलाया गया. शाह महमूद कुरैशी वैसे तो अपने देश को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, लेकिन असल में वो खुद न सिर्फ पाकिस्तान की अलग-अलग पार्टियों से कैबिनेट मिनिस्टर रह चुके हैं. पाकिस्‍तान में कुरैशी की कामयाबी हवा का सही अंदाजा लगाने के कारण है.

लेकिन, कुरैशी के जीवन का दूसरा पहलू भी है. विदेश मंत्री के रूप में अकसर कोट-पैंट पहने दिखाई देने वाले कुरैशी दक्षिण एशिया की एक मशहूर दरगाह हजरत गौसिया बहाउद्दीन जकारिया के सज्‍जादा नशीन (पैतृक उत्‍तराधिकारी) हैं. यह दरगाह मुल्‍तान में स्थित है. उन्हें मुर्शिद, मखदूम और पीर का खिताब भी मिला हुआ है. दरगाह पर आने वाले लोगों के लिए दुआ पढ़ना, और जादू-टोने से मुक्ति दिलाने का भी वे काम करते हैं. अगर कभी इंटरनेट पर आपको शाह महमूद कुरैशी की ऐसी तस्वीर मिल जाए तो चौंकिएगा मत. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्री का एक ये चेहरा भी है.

पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दावा किया है कि 16 से 20 अप्रैल के बीच भारत किसी बहाने से पाकिस्तान पर हमला कर सकता है. भारत के बारे में ये भविष्यवाणी करते हुए कुरैशी ने कहा कि उन्होंने कहा कि एक नए हादसे का ताना-बाना रचा जा सकता है और इसका मकसद पाकिस्तान के खिलाफ उनकी कार्रवाई को सही ठहराना और इस्लामाबाद के खिलाफ राजनयिक दबाव बढ़ाना होगा. पर ये दावा करते समय वो ये भूल गए कि वो मुर्शिद के तौर पर दरगाह में भविष्यवाणी नहीं कर रहे हैं. कुरैशी एक देश के विदेश मंत्री भी हैं. और उन्हें सुनने वाले उनके अनुयायी नहीं बल्कि अतंरराष्ट्रीय मीडिया, अधिकारी और समझदार आवाम भी हैं. 

शाह महमूद कुरैशी अक्सर भारत के खिलाफ बातें करते रहते हैं और उन्हें इस बात से भी बहुत ऐतराज़ था कि सुषमा स्वराज को दुबई में हुई इस्‍लामिक देशों के संगठन की मीटिंग में क्‍यों बुलाया गया. शाह महमूद कुरैशी वैसे तो अपने देश को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, लेकिन असल में वो खुद न सिर्फ पाकिस्तान की अलग-अलग पार्टियों से कैबिनेट मिनिस्टर रह चुके हैं. पाकिस्‍तान में कुरैशी की कामयाबी हवा का सही अंदाजा लगाने के कारण है.

लेकिन, कुरैशी के जीवन का दूसरा पहलू भी है. विदेश मंत्री के रूप में अकसर कोट-पैंट पहने दिखाई देने वाले कुरैशी दक्षिण एशिया की एक मशहूर दरगाह हजरत गौसिया बहाउद्दीन जकारिया के सज्‍जादा नशीन (पैतृक उत्‍तराधिकारी) हैं. यह दरगाह मुल्‍तान में स्थित है. उन्हें मुर्शिद, मखदूम और पीर का खिताब भी मिला हुआ है. दरगाह पर आने वाले लोगों के लिए दुआ पढ़ना, और जादू-टोने से मुक्ति दिलाने का भी वे काम करते हैं. अगर कभी इंटरनेट पर आपको शाह महमूद कुरैशी की ऐसी तस्वीर मिल जाए तो चौंकिएगा मत. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्री का एक ये चेहरा भी है.

शाह महमूद कुरैशी को सज्जादा नशीन की उपाधि भी मिली हुई थी जिसे 2014 में उन्हीं के भाई ने खारिज कर दिया था.

एक मुर्श‍िद या एक नेता?

पाकिस्तानी तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के नेता और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का परिवार पाकिस्तान के कुछ सबसे अमीर परिवारों में से एक है. इसका कारण है उस दरगाह पर आने वाला चढ़ावा, जो श्रद्धालु दे जाते हैं. पीटीआई की फंडिंग का बड़ा हिस्‍सा कुरैशी की जमात की ओर से आता है. मुल्‍तान के इलाके में कुरैशी की कितनी धाक है, इसका अंदाजा एक किस्‍से से लगाया जा सकता है. कुरैशी को साथ लेकर जब इमरान खान पहली बार इस इलाके में रैली करने पहुंचे, तो काफी संख्‍या में लोग उमड़े. इस उत्‍साह को जानने के लिए जब पत्रकारों ने लोगों से इमरान खान के बारे में सवाल किए तो जवाब यही मिला कि उन्‍हें इमरान खान से कोई मतलब नहीं है. वे तो यहां अपने मुर्शिद को देखने आए हैं.

पाकिस्‍तान की मशहूर दरगाह के सज्‍जादा नशीन होने का फायदा शाह महमूद कुरैशी अपनी राजनीति को चमकाने के लिए उठाते रहे हैं. उन्हें हज़ारों वोट सिर्फ इसी कारण से मिल भी जाते हैं. 2011 में तो शाह महमूद कुरैशी ने अपने अनुयायियों को बुलाकर एक सभा का आयोजन किया था और साथ ही ये भी बताया था कि वो PTI से जुड़ने वाले हैं. शाह महमूद कुरैशी के भाई भी यही कहते हैं कि वो राजनीतिक फायदे के लिए सूफी संतों का नाम इस्तेमाल करते हैं.

शाह महमूद कुरैशी अपनी राजनीतिक पारी की घोषणा भी स्टाइल से करते हैं.

कुरैशी के परिवार के लगभग सभी सदस्‍य राजनीति से जुड़े हुए हैं और साथ ही साथ सूफी संत की तरह लोगों को आर्शीवाद देकर उनकी तकलीफों को दूर करने का दावा भी करते हैं. उर्दू, अंग्रेजी, सारैकी और पंजाबी में दक्ष कुरैशी के पिता भी पाकिस्तानी संसद के सदस्य थे और पंजाब के गवर्नर भी. कुरैशी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से डिग्री भी हांसिल कर चुके हैं, लेकिन दरगाह के सर्वेसर्वा होने के नाते जब वे लोगों के बीच जाते हैं, तो अपना वेस्‍टर्न सूट नहीं पहनते हैं. यानी हर मौके के हिसाब से उनका पहनावा बदल जाता है.

दलबदलू नेता जिसने हर सरकार में मंत्री पद हासिल किया!

1985 में कुरैशी को पहली बार चुनाव में जीत हासिल हुई थी. उस समय पाकिस्तान में चुनाव किसी तय पार्टी के आधार पर नहीं लड़े गए थे क्योंकि पाकिस्तान में जिया उल हक द्वारा मिलिट्री सरकार चलाई जा रही थी. 1986 में कुरैशी ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML) पार्टी का दामन थाम लिया. जब ये पार्टी टूटी तो इसके एक धड़े के साथ कुरैशी हो लिए, जिसे PML (N) कहा गया. ये थी नवाज़ शरीफ की पार्टी.

1988 में दोबारा चुनावों में उन्हें चुना गया और वो प्लानिंग एंड डेवलपमेंट मिनिस्टर बन गए. इसके बाद 1990 में एक बार फिर वो जीते जब पाकिस्तान में जनरल इलेक्शन हुए और उस समय उन्हें वित्त मंत्रालय दे दिया गया. ये 1990-1993 के बीच में पाकिस्तान के वित्त मंत्री रहे. 1993 में नवाज़ शरीफ ने उन्हें फिर से टिकट देने से मना कर दिया तो फिर पार्टी छोड़ पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी से जुड़ गए.

और यकीनन फिर मुल्तान, पंजाब से जीतकर संसद में आ गए. उस समय उन्हें संसदीय कार्य राज्य मंत्री बना दिया गया. यहां तक कि 1996 में वो पीपीपी के आधिकारिक प्रवक्ता भी बन गए. 1997 में वो पहली बार चुनाव हारे तब भी जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें आर्थिक सलाहकारों की काउंसिल में जगह दी, लेकिन कुरैशी ने मना कर दिया.

फिर वो मुल्तान के मेयर बन गए. अगले इलेक्शन में एक बार फिर कुरैशी को जीत मिली. 2002 में जीतने के लिए न सिर्फ कुरैशी ने अपने मेयर होने का बल्कि अपने सज्जादा होने का भी फायदा उठाया था. 2006 में तो बेनजीर भुट्टो ने कुरैशी को पीपीपी का अध्यक्ष बना दिया.

2008 में कुरैशी फिर चुनाव जीत गए. उस समय कुरैशी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन कुछ कारणों से उन्हें विदेश मंत्रालय दे दिया गया. उस समय कुरैशी की नीतियों पर कई सवाल भी उठे. 2011 में कुरैशी के परिवार को लेकर कई विवाद हुए और उसी साल पाकिस्तानी कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या कम हुई को कुरैशी को जल एवं ऊर्जा मंत्रालय देने की बात हुई, लेकिन कुरैशी ने मना कर दिया और विदेश मंत्री ही रहे, लेकिन उसी साल Raymond Davis कांड के कारण कुरैशी को विदेश मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उसी समय उन्होंने अपने अनुयायियों की बैठक बुलाकर PTI से जुड़ने की बात कह डाली.

फिर PTI से भी लगातार चुनाव जीतकर दोबारा पाकिस्तान के विदेश मंत्री बन गए हैं कुरैशी.

जब सज्जादा नशीन नहीं रहे थे कुरैशी..

कुरैशी की लोकप्रियता भले ही बहुत ज्यादा हो, लेकिन अपनी लोकप्रियता का गलत इस्तेमाल कर कुरैशी ने राजनीति फायदा उठाया. ये आरोप खुद कुरैशी के छोटे भाई मुरीद हुसैन ने लगाया था और इसी आधार पर उन्हें हजरत बहाउद्दीन जकारिया के अनुयायियों के सज्जादा नशीन के पद से हटा दिया गया था.

पर इसके बावजूद कुरैशी की लोकप्रियता में कमी नहीं आई. अभी भी पाकिस्तान में वो बहुत लोकप्रिय हैं. कुरैशी को देखने के लिए अभी भी हज़ारों लोगों की भीड़ उमड़ती है और अभी भी शाह महमूद कुरैशी को एक संत ही माना जाता है.

कुरैशी के नाम पर गाई जाती हैं कव्वालियां-

आमतौर पर सूफी सिलसिले में दरगाहों पर कव्‍वालियों का दौर चलता है. जिसमें सूफी बाबाओं की शान में कव्‍वालियां गाई जाती हैं. यूट्यूब पर शाह महमूद कुरैशी के नाम पर भी ऐसी ही कई कव्‍वालियां मौजूद हैं. जिसमें उनकी शान में कसीदे पढ़े गए हैं. तो ये हैं पाकिस्तान के विदेश मंत्री जो अब भारत की ओर से हमले की भविष्‍यवाणी कर रहे हैं. उनकी इस बात में भले कोई दम न हो, लेकिन कम से कम उनमें अंधविश्‍वास करने वाले लोग और पाकिस्‍तान की सरकार तो इसे सच मानेगी ही सही.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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