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क्या अन्य सरकारें बाल विरोधी कानून को अमल में लाने के लिए असम का अनुसरण करेंगी ?

    • अशोक भाटिया
    • Updated: 05 फरवरी, 2023 06:34 PM
  • 05 फरवरी, 2023 06:34 PM
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असम सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए सभी 2,197 ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बाल विवाह रोकथाम अधिकारी के रूप में नामित किया है. ये अधिकारी ही पॉक्सो एक्ट के उन मामलों में शिकायत दर्ज कराएंगे, जहां लड़की की उम्र 14 साल से कम है.अगर आंकड़ों के आईने में देखें तो असम सरकार का फैसला स्वागत योग्य प्रतीत होता है.

भारतीय राजनीति अपनी स्थापना के समय से ही इतने गूढ़ तरीके से उलझी रही है कि किसी भी सरकार के लिए समाज सुधार वाले निर्णय लेना आसान नहीं रहा है. जाति, मजहब की दीवारें अक्सर इन निर्णयों को ऐसी खाई में धकेल देती हैं कि उनके पुनर्जन्म की कोई गुंजाइश नहीं रहती. लीग से हटकर चलना भारतीय राजनीति में एक चुनौती की तरह है, जिससे राजनेता बचते आए हैं या ऐसा करके अपनी सत्ता बचाते आए हैं. हालांकि इस स्थिति में साल 2014 के बाद से कुछ बदलाव की आहट गाहे-बगाहे कानों में गूंजती रही है. ताजा मामले के केंद्र में हैं असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा.

सरमा की सरकार ने फैसला लिया है कि अब राज्य में 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) के तहत कार्रवाई की जा रही हैं. यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ. असम की कैबिनेट ने हाल ही में फैसला किया है कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी करने वालों पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. 14-18 साल की आयु वर्ग की लड़कियों की शादी करने वालों पर बाल विवाह निषेध अधिनियमके तहत खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा. असम सरकार ने यह कदम क्यों उठाया है? इसे समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालना बेहद अहम है. बीते साल मई माह में आई राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के अनुसार- असम में 20 से 24 वर्ष की उम्र की 31 प्रतिशत से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले ही कर दी गई.

असम में कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों की अब खैर नहीं है

वहीं, इस मामले में राष्ट्रीय औसत तकरीबन 23 प्रतिशत है. असम में 11.7 फीसदी लड़कियां कम उम्र में गर्भवती हो रही हैं. यह आंकड़े बड़ी संख्या में होने वाले बाल विवाह का जीते-जागते गवाह हैं. राज्य के सीमावर्ती जिले धुबड़ी में आंकड़ा और भी भयावह है, जहां 50 फीसदी शादियां कम उम्र में हो रही हैं. ऐसे में लड़कियां कम उम्र में मां बनने को मजबूर हैं. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ओर से 2022 में जारी आंकड़ों के अनुसार असम, देश में सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर वाला राज्य है, जबकि शिश मृत्यु दर के मामले में यह तीसरे नंबर पर है.

यह जानना जरुरी है कि पुलिस ने एक पखवाड़े से भी कम समय में बाल विवाह के 4,004 मामले दर्ज किए हैं , क्योंकि राज्य कैबिनेट ने 23 जनवरी को अपराधियों को गिरफ्तार करने का फैसला किया था, इसके अलावा इस खतरे के खिलाफ बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया था.सूबे के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि उन्होंने पुलिस को 'महिलाओं पर अक्षम्य और जघन्य अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की भावना' के साथ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.

दरअसल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, असम में मातृ और शिशु मृत्यु दर की उच्च दर है, बाल विवाह इसकी सबसे अहम वजह में गिनी जाती है क्योंकि राज्य में रजिस्टर्ड मैरिज में औसतन 31 फीसदी शादी के लिए प्रतिबंधित उम्र में रजिस्टर्ड हैं. पुलिस महानिदेशक जी पी सिंह के अनुसार उनके पास 8,000 नामित अभियुक्तों की लिस्ट है और अब तक उन्होंने केवल 2,544 लोगों को गिरफ्तार किया है.

बाल विवाह के खिलाफ अभियान अगले 3 से 4 दिनों तक जारी रहेगा और सभी डेटा हासिल करने के बाद जिलेवार सही विश्लेषण किया जा सकता है. 'शुक्रवार शाम तक, बिश्वनाथ जिले में सबसे अधिक 137 गिरफ्तारियां की गई हैं, इसके बाद धुबरी में 126, बक्सा में 120, बारपेटा में 114 और कोकराझार में 96 गिरफ्तारियां हुई हैं. डीजीपी के अनुसार अपने कम उम्र के बच्चों की शादी करने वाले परिवारों के सदस्यों के अलावा, पुलिस ने 51 'पुरोहितों' और 'काजियों' को गिरफ्तार किया, जिन्होंने धार्मिक संस्थानों में इस तरह की शादी की रस्में निभाईं.

उन्होंने कहा कि गिरफ्तारियां परिवार के सदस्यों, बाल कल्याण समिति, स्थानीय लोगों और पुलिस कर्मियों से मिली जानकारी के सत्यापन के बाद की गई हैं. सिंह ने कहा, 'हम कानून के अनुसार काम करेंगे, उचित जांच करेंगे और चार्जशीट दाखिल करेंगे.'वैसे बाल विवाह रोकने के लिए देश में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 लागू है, जिसे 2007 में लागू किया गया था. इस कानून के अनुसार, शादी की उम्र लड़कों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 तय की गई है. कानून का उल्लंघन करने के लिए दो वर्ष सश्रम कारावास और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.

वहीं महिलाओं को यह रियायत है कि दोषी पाए जाने पर भी उन्हें जेल नहीं होगी. पुराने कानून में जमानत मिलने की संभावना रहती है. पॉक्सो एक्ट जुड़ने से ऐसा नहीं हो पाएगा.इस बीच राज्य में महिलाएं अपने पति और बेटों की गिरफ्तारी के विरोध में बड़ी संख्या में सामने आईं. पीटीआई के मुताबिक माजुली जिले के 55 वर्षीय निरोदा डोले ने कहा, 'केवल पुरुषों को ही क्यों लिया जाए? हम और हमारे बच्चे कैसे जिंदा रहेंगे? हमारे पास आमदनी का कोई साधन नहीं है.' दरअसल मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 28 जनवरी को कहा था, “अगले 5-6 महीनों में हजारों पतियों को गिरफ्तार किया जाएगा क्योंकि 14 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना अपराध है, भले ही वह कानूनी तौर से विवाहित पति ही क्यों न हो. कई (लड़कियों से शादी करने वाले पुरुष) को आजीवन कारावास हो सकती है.'

हाल ही में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया था कि मातृ और शिशु मृत्यु दर बहुत अधिक है. इसकी एक प्रमुख वजह बाल विवाह है. इसके बाद राज्य सरकार ने बाल विवाह करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया था और पुलिस को प्रथा के खिलाफ अभियान चलाने के लिए भी कहा गया था.दरअसल 14 से ज्यादा और 18 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करने पर बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत कार्रवाई की जाएगी.

असम सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए सभी 2,197 ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बाल विवाह रोकथाम अधिकारी के रूप में नामित किया है. ये अधिकारी ही पॉक्सो एक्ट के उन मामलों में शिकायत दर्ज कराएंगे, जहां लड़की की उम्र 14 साल से कम है.अगर आंकड़ों के आईने में देखें तो असम सरकार का फैसला स्वागतयोग्य प्रतीत होता है. कुछ समाजसेवी संगठनों ने भी इसे सराहा है. हालांकि दूसरी तरफ एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले को संदेहास्पद दृष्टि से देख रहा है. राज्य के कुछ हिस्सों में इस फैसले के खिलाफ लोग धरना-प्रदर्शन में भी जुट गए हैं. इन्हें आशंका है कि मुस्लिमों को परेशान करने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है.

दरअसल, मुस्लिम समुदाय में बाल विवाह का प्रचलन अधिक है. हालांकि मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में देखने वाले राजनीतिक दल इस तथ्य को सिरे से नकार देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनका वोट बैंक उनसे छिटक जाएगा और सत्ता की चाबी उनसे दूर हो जाएगी. असम में फैसले के विरोध के पीछे भी यही राजनीतिक कारण है.यह देश का दुर्भाग्य है कि कई बार ऐसे फैसलों का भी विरोध किया जाने लगता है जो कि समाज के हित में हों.

अधिकांश मामलों में राजनीतिक नफा-नुकसान देखकर पार्टियां बेवजह विरोध में उतर आती हैं, जबकि इस फैसले के देशहित में दूरगामी परिणाम होंगे. गौरतलब है कि यहां पर बीते साल हुए एक देशव्यापी आंदोलन का जिक्र करना लाजिमी है. इस आंदोलन का नाम था ‘बाल विवाह मुक्त भारत’. नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने इस आंदोलन की शुरुआत 16 अक्टूबर, 2022 को की थी. देशभर के करीब 500 जिलों में 70,000 से ज्यादा महिलाओं ने बाल विवाह के विरोध में मशाल जुलूस निकाला था.

महिलाओं की इतनी बड़ी हिस्सेदारी इस बात का सुबूत है कि बाल विवाह के दुष्परिणामों से देश चिंतित है.आंदोलन से देशभर में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दो करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े थे. जो लोग यह मानते हैं कि देश में बाल विवाह कोई समस्या नहीं है और बहुत ही छोटे स्तर पर या कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ही बाल विवाह होता है, उनके लिए ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ आंदोलन को जानना जरूरी है.

जरूरत है कि असम सरकार के फैसले को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाए और बाल विवाह की बुराई को खत्म करने के लिए सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चला जाए. सरकार किसी विशेष राजनीतिक दल की हो सकती है लेकिन बेटियां तो हमारी हैं. आखिर एक बेटी से कैसे उसका भविष्य छीना जा सकता है? कैसे उनके सपनों की उड़ान को रोका जा सकता है. यदि बेटियों का बाल विवाह नहीं होगा तो वे भी उच्च शिक्षा हासिल कर सकती हैं, रोजगार हासिल कर सकती हैं, रोजगार दे सकती हैं.

इस तरह से वे देश की आर्थिक प्रगति में अपना अमूल्य योगदान दे सकती हैं. पढ़ी-लिखी और सशक्त बेटियों से आने वाली पूरी पीढ़ी की तकदीर बदल जाएगी. इसलिए असम सरकार के फैसले का समर्थन करना ही न्यायोचित है. साथ ही अन्य राज्य सरकारों को भी हेमंत बिस्वा सरमा के फैसले से सीख लेनी चाहिए और बाल विवाह जैसी बुराई के अंत के लिए कदम उठाना चाहिए.

ध्यान देने योग्य बात है कि असम से पहले कर्नाटक में भी भाजपा सरकार ने सख्त कानूनी प्रावधान के जरिये बाल विवाह पर अंकुश लगाया है. असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि कर्नाटक सरकार ने राज्यव्यापी अभियान चला कर 11 हजार से ज्यादा बाल विवाह रोके हैं और 10 हजार से ज्यादा बाल विवाह जोड़ों को पकड़ा है. उनका मानना है कि असम में भी राज्यव्यापी अभियान का बड़ा असर होगा. दरअसल राज्यव्यापी अभियान की जरुरत है . अभी तक केवल भाजपा शासित राज्यों में अभियान चला है जबकि अन्य राज्यों कीसरकारें खामोश हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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