तमिलनाडु में राजनीतिक उठापटक जोरों पर है. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद ओ पनीरसेल्वम ने बगावती तेवर अख्तियार कर लिया है. इसके बाद ये साफ हो गया है अन्नाद्रमुक पार्टी के अंदर अब सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है. पनीरसेल्वम खुलकर वीके शशिकला के खिलाफ खड़े हो गए हैं. उन्होंने कहा कि- 'शशिकला खुद मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं इसलिए मुझे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है.'
पनीरसेल्वम के इन आरोपों के बाद शशिकला को सामने आना पड़ा है. उन्होंने अन्नाद्रमुक पार्टी की बैठक बुलाई और कई प्रमुख लीडरों से मीटिंग करने के बाद पनीरसेल्वम को पार्टी के कोषाध्यक्ष पद से हटा दिया. शशिकला ने कहा कि अन्नाद्रमुक के सभी विधायक एकजुट हैं और उनके साथ हैं. पन्नीरसेल्वम की बगावत के पीछे वे द्रमुक का हाथ देखती हैं.
जब लग रहा था कि एक-दो दिन में शशिकला को मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है. मुख्यमंत्री पद और शशिकला के बीच सिर्फ एक ही अड़चन थी. आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन पर चल रहा करप्शन केस. इस केस का फैसला सुप्रीम कोर्ट अगला ही हफ्ता सुनाने वाला है. सूत्रों की मानें तो तमिलनाडु के गवर्नर विद्यासागर राव इसी कारण से संविधान एक्सपर्ट की राय ले रहे हैं. जिसके चलते शशिकला के शपथ ग्रहण में विलम्ब हो रहा है.
लेकिन अब तमिलनाडु में पिछले कुछ घंटों में घटनाक्रम पूरी तरह से बदल गया है. इन सब के बीच अब सभी लोगों की नजरें तमिलनाडु के गवर्नर पर टिकी है. वो अब अन्नाद्रमुक पार्टी के अंदर शशिकला- पन्नीरसेल्वम के दंगल के बीच क्या निर्णय लेते हैं या कहे तो इनके पास क्या विकल्प बचे हैं.
गवर्नर के पास विकल्प
तमिलनाडु के गवर्नर विद्यासागर राव के पास कुछ विकल्प हैं. इनसे वो पता कर सकते हैं की अन्नाद्रमुक पार्टी के विधायक किसके साथ हैं, शशिकला के साथ या फिर पन्नीरसेल्वम के साथ. अभी अन्नाद्रमुक पार्टी के पास 134 सीटें हैं और विधान सभा में बहुमत साबित करने के लिए 118 विधायकों की जरुरत...
तमिलनाडु में राजनीतिक उठापटक जोरों पर है. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद ओ पनीरसेल्वम ने बगावती तेवर अख्तियार कर लिया है. इसके बाद ये साफ हो गया है अन्नाद्रमुक पार्टी के अंदर अब सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है. पनीरसेल्वम खुलकर वीके शशिकला के खिलाफ खड़े हो गए हैं. उन्होंने कहा कि- 'शशिकला खुद मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं इसलिए मुझे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है.'
पनीरसेल्वम के इन आरोपों के बाद शशिकला को सामने आना पड़ा है. उन्होंने अन्नाद्रमुक पार्टी की बैठक बुलाई और कई प्रमुख लीडरों से मीटिंग करने के बाद पनीरसेल्वम को पार्टी के कोषाध्यक्ष पद से हटा दिया. शशिकला ने कहा कि अन्नाद्रमुक के सभी विधायक एकजुट हैं और उनके साथ हैं. पन्नीरसेल्वम की बगावत के पीछे वे द्रमुक का हाथ देखती हैं.
जब लग रहा था कि एक-दो दिन में शशिकला को मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है. मुख्यमंत्री पद और शशिकला के बीच सिर्फ एक ही अड़चन थी. आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन पर चल रहा करप्शन केस. इस केस का फैसला सुप्रीम कोर्ट अगला ही हफ्ता सुनाने वाला है. सूत्रों की मानें तो तमिलनाडु के गवर्नर विद्यासागर राव इसी कारण से संविधान एक्सपर्ट की राय ले रहे हैं. जिसके चलते शशिकला के शपथ ग्रहण में विलम्ब हो रहा है.
लेकिन अब तमिलनाडु में पिछले कुछ घंटों में घटनाक्रम पूरी तरह से बदल गया है. इन सब के बीच अब सभी लोगों की नजरें तमिलनाडु के गवर्नर पर टिकी है. वो अब अन्नाद्रमुक पार्टी के अंदर शशिकला- पन्नीरसेल्वम के दंगल के बीच क्या निर्णय लेते हैं या कहे तो इनके पास क्या विकल्प बचे हैं.
गवर्नर के पास विकल्प
तमिलनाडु के गवर्नर विद्यासागर राव के पास कुछ विकल्प हैं. इनसे वो पता कर सकते हैं की अन्नाद्रमुक पार्टी के विधायक किसके साथ हैं, शशिकला के साथ या फिर पन्नीरसेल्वम के साथ. अभी अन्नाद्रमुक पार्टी के पास 134 सीटें हैं और विधान सभा में बहुमत साबित करने के लिए 118 विधायकों की जरुरत होगी.
कुछ विकल्पों की बात करें तो-
1. पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र वापस लेने की इजाजत देकर उन्हें वोट ऑफ़ कॉन्फिडेंस हासिल करने के लिए कहें. इसके लिए पन्नीरसेल्वम को कुल 118 विधायक का सपोर्ट चाहिए होगा.
2. उनके पास दूसरा विकल्प ये है कि वो अन्नाद्रमुक पार्टी के सभी विधायकों को राजभवन बुलाकर आम राय जानें और शशिकला, पन्नीरसेल्वम में से जिसके पास ज्यादा बहुमत है उन्हें मुख्यमंत्री बनने के लिए आमंत्रित करें.
3. इसके अलावा और कई विकल्प भी उनके पास मौजूद हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे- पन्नीरसेल्वम को ही सीएम बने रहने के लिए कह सकते हैं या शशिकला को न्योता देकर बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं. एक और विकल्प है कि गवर्नर विधानसभा भंग कर दें. हालांकि इसकी उम्मीद कम है. क्योंकि विधान सभा के चुनाव यहाँ पर 2016 में ही हुए हैं और अभी चार साल से अधिक का कार्यकाल बचा हुआ है. अगर गवर्नर को लगता है कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था बिगड़ गयी है तो वो राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं.
अब देखना ये है कि तमिलनाडु के गवर्नर विद्यासागर राव किन विकल्पों का इस्तेमाल करते हुए इस संकट का समाधान करते हैं. यहाँ पर ये बताना जरुरी है कि गवर्नर के लिए बिना संविधान एक्सपर्ट से सहायता लिए किसी निर्णय पर पहुँचना बहुत ही कठिन है. फ़िलहाल सभी की नजरें गवर्नर पर ही टिकी हुई है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.