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CAA-NRC पर मोदी-शाह को घेरने में विपक्ष फिर क्यों चूक गया?

    • आईचौक
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2019 04:22 PM
  • 21 दिसम्बर, 2019 04:22 PM
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नागरिकता कानून (CAA-NRC Protest) के सटीक विरोध का बेहतरीन मौका झारखंड में चुनाव (Jharkhand Election) था. विपक्ष चाहता तो बीजेपी नेतृत्व (Modi-Shah) को अच्छे से घेर सकता था, लेकिन एक बार फिर चूक गया है.

नागरिकता कानून और NRC (CAA-NRC Protest) के खिलाफ देश भर में हो रहा विरोध प्रदर्शन हद से ज्यादा हिंसक हो गया है. देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले देखें तो झारखंड में हालात अब भी शांतिपूर्ण ही नजर आ रहे हैं. अब तो झारखंड में विधानसभा चुनाव (Jharkhand Election) के सभी पांच चरणों के वोट भी डाले जा चुके हैं.

ऐसा भी नहीं कि झारखंड में नागरिकता कानून की चर्चा न हुई हो. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Narendra Modi and Amit Shah) ने ही इसका जिक्र किया है. विरोध मार्च भी निकाले गये हैं - लेकिन देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले शांत ही रहा है.

सवाल है कि आखिर झारखंड चुनाव में CAA-NRC मुद्दा क्यों नहीं बने?

क्या ऐसा नहीं लगता कि झारखंड में मोदी-शाह को घेरने का एक बेहतरीन मौका पूरा विपक्ष फिर से चूक गया हो?

ये बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा क्यों लगता है?

झारखंड की पहली ही चुनावी रैली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जिन बातों का जिक्र किया उसमें सबसे ऊपर अयोध्या में बनने जा रहा राम मंदिर रहा. रैली में अमित शाह राम मंदिर का निर्माण की चर्चा ऐसे कर रहे थे जैसे, इस मामले में भी 'मोदी है तो मुमकिन है' वाली बात रही. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है और अदालत के बताये मुताबिक तैयारी भी चल रही है.

असम में विरोध और हिंसा जोर पकड़ने लगा था और झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली रही. मोदी ने झारखंड की जमीन से ही असम के लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की और नागरिकता कानून का विस्तार से जिक्र करते हुए मंदिर की तरह उसके खिलाफ भी काम करने का कांग्रेस पर रोक लगाया.

होना तो ये चाहिये था कि नागरिकता कानून को लेकर विपक्षी महागठबंधन पूरी ताकत से मोदी-शाह को घेरने की कोशिश करता. बतौर शक्ति प्रदर्शन अभी जो देश भर में हिंसक विरोध हो रहा है, वैसा अगर झारखंड में हुआ होता तो मोदी सरकार को ढंग से घेरा जा सकता था.

ऐसा भी...

नागरिकता कानून और NRC (CAA-NRC Protest) के खिलाफ देश भर में हो रहा विरोध प्रदर्शन हद से ज्यादा हिंसक हो गया है. देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले देखें तो झारखंड में हालात अब भी शांतिपूर्ण ही नजर आ रहे हैं. अब तो झारखंड में विधानसभा चुनाव (Jharkhand Election) के सभी पांच चरणों के वोट भी डाले जा चुके हैं.

ऐसा भी नहीं कि झारखंड में नागरिकता कानून की चर्चा न हुई हो. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Narendra Modi and Amit Shah) ने ही इसका जिक्र किया है. विरोध मार्च भी निकाले गये हैं - लेकिन देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले शांत ही रहा है.

सवाल है कि आखिर झारखंड चुनाव में CAA-NRC मुद्दा क्यों नहीं बने?

क्या ऐसा नहीं लगता कि झारखंड में मोदी-शाह को घेरने का एक बेहतरीन मौका पूरा विपक्ष फिर से चूक गया हो?

ये बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा क्यों लगता है?

झारखंड की पहली ही चुनावी रैली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जिन बातों का जिक्र किया उसमें सबसे ऊपर अयोध्या में बनने जा रहा राम मंदिर रहा. रैली में अमित शाह राम मंदिर का निर्माण की चर्चा ऐसे कर रहे थे जैसे, इस मामले में भी 'मोदी है तो मुमकिन है' वाली बात रही. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है और अदालत के बताये मुताबिक तैयारी भी चल रही है.

असम में विरोध और हिंसा जोर पकड़ने लगा था और झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली रही. मोदी ने झारखंड की जमीन से ही असम के लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की और नागरिकता कानून का विस्तार से जिक्र करते हुए मंदिर की तरह उसके खिलाफ भी काम करने का कांग्रेस पर रोक लगाया.

होना तो ये चाहिये था कि नागरिकता कानून को लेकर विपक्षी महागठबंधन पूरी ताकत से मोदी-शाह को घेरने की कोशिश करता. बतौर शक्ति प्रदर्शन अभी जो देश भर में हिंसक विरोध हो रहा है, वैसा अगर झारखंड में हुआ होता तो मोदी सरकार को ढंग से घेरा जा सकता था.

ऐसा भी नहीं रहा कि महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह बीजेपी के पक्ष में पहले से माहौल बना हुआ हो. बीजेपी का तो AJS से गठबंधन भी टूट गया था और दूसरी तरफ हेमंत सोरेन के JMM की अगुवाई में कांग्रेस और आरजेडी मिल कर चुनाव लड़ रहे थे. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी भी अलग से मैदान में थी.

मोदी-शाह के खिलाफ मोर्चे पर कोई टिक क्यों नहीं पा रहा है?

अब तो नीतीश कुमार ने भी बोल दिया है कि बिहार में वो NRC नहीं लागू होने देंगे. जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर कहा जरूर था कि मुख्यमंत्री खुद ही इस बारे में तस्वीर साफ करेंगे, लेकिन लगता है तेजस्वी यादव के बिहार बंद की कॉल को नीतीश कुमार ने गंभीरता से लिया है और इसीलिए उसकी पूर्व संध्या पर ये ऐलान भी कर दिया है.

सवाल ये है कि नीतीश कुमार ने झारखंड जाकर ये बात क्यों नहीं कही? आखिर जेडीयू के उम्मीदवार भी तो चुनाव लड़ ही रहे हैं - और मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ तो नीतीश कुमार के मित्र सरयू राय ही चुनाव मैदान में रहे. बावजूद इसके नीतीश कुमार ने चुनावों के दौरान झारखंड की जमीन पर कदम तक नहीं रखा.

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि नीतीश कुमार की पार्टी ने नागरिकता संशोधन बिल का लोक सभा और राज्य सभा में सपोर्ट किया है. NRC लागू करने की बात तो अभी अमित शाह की तरफ से कही गयी भर है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अभी इसे सिर्फ असम में लागू करने को कहा है.

दिल्ली के रामलीला मैदान से तो सोनिया गांधी ने लोगों को घरों से निकल कर आंदोलन करने का आह्वान किया, लेकिन ये बात कहने के लिए झारखंड जाने की जरूरत नहीं समझी. पश्चिम बंगाल में लोगों से घरों से निकल कर सड़क पर आने को ममता बनर्जी कह रही हैं - क्या ममता बनर्जी झारखंड जाकर बीजेपी के खिलाफ प्रचार नहीं कर सकती थीं? किसी के पक्ष में न सही, बीजेपी के खिलाफ तो वोट मांग ही सकती थीं.

सोनिया गांधी ने एक बार फिर नागरिकता कानून और NRC पर बयान दिया है. सोनिया गांधी ने बीजेपी सरकार की नीतियों को देश विरोधी बताया है.

NRC-CAA का मुद्दा झारखंड में क्यों नहीं उठा?

बीजेपी के विरोधियों का कहना है कि पार्टी चुनावी फायदा लेने के लिए हिंदू-मुस्लिम के बीच भेदभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है - ये बात दिल्ली में भी सुनने को मिली है और पश्चिम बंगाल में भी.

2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में 67.8 फीसदी हिंदू और 14.5 फीसदी मुस्लिम आबादी है. माना जाता है कि मुस्लिम समुदाय भी अब तक बीजेपी का ही सपोर्ट करता आया है. क्या झारखंड का मुस्लिम समुदाय अलग है? अगर नहीं तो वो विपक्ष के बहकावे में क्यों नहीं आया? या विपक्ष ने झारखंड को अहमियत ही नहीं दी.

सवाल ये है कि ऐसे मुद्दे झारखंड में किसी ने क्यों नहीं उठाये? अगर उठाये भी तो वो आवाज इतनी कमजोर क्यों रही कि दिल्ली तक नहीं पहुंच सकी?

झारखंड के पांच चरणों के चुनाव में सबसे ज्यादा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रैलियां की और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नंबर आता है - 8. राहुल गांधी ने झारखंड में 5 रैलियां की और जब रेप इन इंडिया को लेकर वो फंस गये तो आखिर में प्रियंका गांधी वाड्रा को पाकुड़ में चुनाव प्रचार के लिए भेजा गया. पहले तो बताया गया था कि प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी पर फोकस करने के चलते महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह झारखंड में भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाएंगी - लेकिन वो रामलीला मैदान भी पहुंची थीं और झारखंड की रैली में भी. राहुल गांधी, दरअसल, दक्षिण कोरिया के दौरे पर चले गये हैं.

विपक्षी दल विरोध प्रदर्शनों को हवा देकर भले ही मन ही मन सोच रहे हों कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को घेर लिये हैं तो ये उनका वहम है. अभी जो कुछ हो रहा है उससे सिर्फ नुकसान हो रहा है - जान का भी और माल का भी. लोगों की रोजाना की मुश्किलें जो बढ़ी हैं वो अलग हैं.

नागरिकता कानून और NRC के नाम पर परदे के पीछे विपक्षी दल जो लड़ाई लड़ रहे हैं, उसमें और चुनाव के मैदान में होने वाली जंग में जमीन और आसमान का अंतर होता है. फर्ज कीजिये पूरे देश की बजाय विपक्ष सिर्फ झारखंड पर फोकस करता और बीजेपी एक बार फिर महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह फंस जाती तो क्या होता? ये विपक्ष के जश्न मनाने का फिर से मौका नहीं मिलता?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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