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'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर विचार बहुत जरूरी है!

    • Amit Goplani
    • Updated: 02 जनवरी, 2023 03:07 PM
  • 02 जनवरी, 2023 03:07 PM
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प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह मांग बीजेपी की तरफ से फिर से उठाई गई है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था हो. यदि हम एक देश, एक चुनाव की नीति को अपनाते हैं तो हम हम देश के कई ह़जार करोड़ रुपए बचा सकते हैं.

चुनाव को लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है. आज हमारे देश में हर वर्ष किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते रहते हैं. इस वजह से हमारा देश हर समय चुनावी मोड में रहता है. हमारे देश में हर 5 साल में लोकसभा के चुनाव होते हैं. ठीक उसी प्रकार हर 5-6 महीनों में 3-4 राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी होते हैं. इस समय हमारे देश में कुल 28 विधानसभा समेत 3 केंद्रशासित विधानसभा और लोकसभा चुनाव अपने-अपने निर्धारित समय में होते हैं. इस कारण हमारे सरकारी ख़जाने पर भारी बोझ पड़ रहा है. दरअसल 1967 तक हमारे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन 1968-69 में कई राज्यों की विधानसभा भंग हो गई. 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय के पहले ही हो गए, जिससे यह व्यवस्था गड़बड़ हो गई. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह मांग बीजेपी की तरफ से फिर से उठाई गई है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था हो.

यदि हम एक देश, एक चुनाव की नीति को अपनाते हैं तो हम हम देश के कई ह़जार करोड़ रुपए बचा सकते हैं. सेंटर फॉर मिडिया स्टड़ीस के अनुसार 2014 में देश के लोकसभा चुनाव में 30 ह़जार करोड़ रुपए खर्च हुए और 5 साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 ह़जार करोड़ रुपए खर्च हुए. ठीक उसी प्रकार देश की अलग-अलग विधानसभाओं में इस तरह का खर्च होता है. यदि हम एक देश, एक चुनाव को अपनाते हैं तो हम कई ह़जार करोड़ बचा कर उसे देश के विकास कार्यों में खर्च कर सकते हैं. आज देश की आज़ादी को 75 वर्ष हो गए फिर भी हमारे देश में कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें दो व़क्त की रोटी नहीं मिलती है. कई ऐसे लोग हैं जिनके पास पक्का मकान नहीं है और वो सड़क किनारे सोने को मज़बूर हैं. यदि हम इस नीति को अपनाते हैं तो हम उन पैसों से ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं. 

बार-बार चुनाव होने के कारण हर कुछ समय में देश के...

चुनाव को लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है. आज हमारे देश में हर वर्ष किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते रहते हैं. इस वजह से हमारा देश हर समय चुनावी मोड में रहता है. हमारे देश में हर 5 साल में लोकसभा के चुनाव होते हैं. ठीक उसी प्रकार हर 5-6 महीनों में 3-4 राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी होते हैं. इस समय हमारे देश में कुल 28 विधानसभा समेत 3 केंद्रशासित विधानसभा और लोकसभा चुनाव अपने-अपने निर्धारित समय में होते हैं. इस कारण हमारे सरकारी ख़जाने पर भारी बोझ पड़ रहा है. दरअसल 1967 तक हमारे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन 1968-69 में कई राज्यों की विधानसभा भंग हो गई. 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय के पहले ही हो गए, जिससे यह व्यवस्था गड़बड़ हो गई. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह मांग बीजेपी की तरफ से फिर से उठाई गई है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था हो.

यदि हम एक देश, एक चुनाव की नीति को अपनाते हैं तो हम हम देश के कई ह़जार करोड़ रुपए बचा सकते हैं. सेंटर फॉर मिडिया स्टड़ीस के अनुसार 2014 में देश के लोकसभा चुनाव में 30 ह़जार करोड़ रुपए खर्च हुए और 5 साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 ह़जार करोड़ रुपए खर्च हुए. ठीक उसी प्रकार देश की अलग-अलग विधानसभाओं में इस तरह का खर्च होता है. यदि हम एक देश, एक चुनाव को अपनाते हैं तो हम कई ह़जार करोड़ बचा कर उसे देश के विकास कार्यों में खर्च कर सकते हैं. आज देश की आज़ादी को 75 वर्ष हो गए फिर भी हमारे देश में कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें दो व़क्त की रोटी नहीं मिलती है. कई ऐसे लोग हैं जिनके पास पक्का मकान नहीं है और वो सड़क किनारे सोने को मज़बूर हैं. यदि हम इस नीति को अपनाते हैं तो हम उन पैसों से ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं. 

बार-बार चुनाव होने के कारण हर कुछ समय में देश के अलग-अलग राज्यों में आचार संहिता लागू होती है जिस कारण उन राज्यों में विकास कार्य ठप पड़ जाते हैं या सरकार बड़े फैसले नहीं ले पाती है, जिससे देश का विकास उस गति से नहीं हो पाता जिस गति से होना चाहिए. जिस प्रकार 2017 में देश ने एक देश, एक कर (GST) अपना कर राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया, उसी प्रकार एक देश, एक चुनाव को अपनाकर देश को बार-बार चुनाव में होने वाले दंगे और भ्रष्टाचार से भी बचाना चाहिए. इस नीति को अपनाकर चुनाव अयोग, सुरक्षा बलों और सरकारी शिक्षकों पर पड़ने वाले बोझ को भी कम करना चाहिए.

यह समय राजनीतिक पार्टीयों को अपना निजी स्वार्थ से ऊपर ऊठकर देश हित में सोचना चाहिए. इस नीति से देश में लोकतंत्र या राजनीतिक पार्टींयों को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है. अगर ऐसा होता तो 2019 लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश और ओड़िशा विधानसभा में जगन मोहन रेड्डी आंध्र में या नवीन पटनायक ओड़िशा में भारी बहुमत के साथ सरकार नहीं बना पाते या कभी त्रिशंकु नतीजे आते है तो अल्पमत सरकार का भी गठन कर सकते है, इसका उदाहरण हमने 1991 के लोकसभा के चुनाव में देखा है किस तरह नरसिंहा राव ने अल्पमत सरकार का गठन किया और सफलता पूर्वक पूरे 5 साल सरकार भी चलाई. आज दुलिया में कई ऐसे देश है, जहा इस नीति को अपनाया गया है, उम्मीद है हमारे देश की राजनीतिक पार्टीया भी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेंगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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