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भारत और नेपाल का ये रिश्ता क्या कहलाता है?

    • आईचौक
    • Updated: 04 दिसम्बर, 2015 06:31 PM
  • 04 दिसम्बर, 2015 06:31 PM
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जिस तरह दोनों देशों के बीच रास्ते खुले हैं उसी तरह खुले दिल और दिमाग से इसका समाधान खोजना होगा. ध्यान रहे कहीं देर न हो जाए.

नेपाल में इसी साल अप्रैल में जब भूकंप आया तो मदद करनेवालों में भारत सबसे आगे था. दिसंबर आते आते हालत ये हो गई है कि नेपाल में भारतीय राजदूत को वापस भेजने की मांग होने लगी है.

तनावपूर्ण और अनियंत्रित

नेपाल में विरोध प्रदर्शनों के चलते दवा सहित तमाम जरूरी वस्तुओं की भारी किल्लत हो गई है. जब से नेपाल में नया संविधान लागू हुआ है तभी से विरोध शुरू हुआ है.

ये विरोध भारत से सटे इलाकों में काफी तेज है. प्रदर्शनकारी संविधान में बराबरी का हक मांग रहे हैं.

नेपाल का रुख

विरोध प्रदर्शनों से उपजे हालात को नेपाल में भारत की 'नाकेबंदी' करार दिया गया है. नेपाल के केबल ऑपरेटरों का कहना है कि उन पर भारतीय टीवी चैनल न दिखाने का दबाव बनाया जा रहा है. ये दबाव वहां के कुछ माओवादी नेताओं की तरफ से बनाया जा रहा है.

नेपाल के प्रधानमंत्री खड़गा प्रसाद ओली ने तो भारत पर नेपाल की अघोषित नाकेबंदी करने का आरोप लगाया है. ओली का तो यहां तक कहना है कि 'नाकेबंदी' के चलते भूकंप से भी कहीं बड़ा संकट पैदा हो रहा है.

नेपाल वर्कर्स पीजेंट्स पार्टी के दो सांसदों ने तो भारतीय राजदूत को वापस भेजने की मांग कर डाली है. इस बीच नेपाल के उप प्रधानमंत्री कमल थापा ने भारत आकर कई नेताओं से मुलाकात की है. थापा भारत में नेताओं से अपने करीबी रिश्तों के लिए जाने जाते हैं.

भारत का रुख

भारत का साफ तौर पर कहना है कि कोई आर्थिक नाकेबंदी नहीं की गई है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का कहना है कि असल बात तो ये है कि सरकार वैकल्पिक रास्ते या हवाई रास्ते से चीजों की सप्लाई की कोशिश कर रही है.

सुषमा ने संसद में कहा, "मैं सदन से अपील करती हूं कि वह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल नेपाल भेजने के बारे में विचार करे. इस मामले में सरकार सदन की राय से चलेगी."

सुषमा की नजर में सबसे अच्छा रास्ता यही होगा कि विरोध प्रदर्शन खत्म कराने का राजनीतिक समाधान निकाला जाए.

नेपाल ने तेल...

नेपाल में इसी साल अप्रैल में जब भूकंप आया तो मदद करनेवालों में भारत सबसे आगे था. दिसंबर आते आते हालत ये हो गई है कि नेपाल में भारतीय राजदूत को वापस भेजने की मांग होने लगी है.

तनावपूर्ण और अनियंत्रित

नेपाल में विरोध प्रदर्शनों के चलते दवा सहित तमाम जरूरी वस्तुओं की भारी किल्लत हो गई है. जब से नेपाल में नया संविधान लागू हुआ है तभी से विरोध शुरू हुआ है.

ये विरोध भारत से सटे इलाकों में काफी तेज है. प्रदर्शनकारी संविधान में बराबरी का हक मांग रहे हैं.

नेपाल का रुख

विरोध प्रदर्शनों से उपजे हालात को नेपाल में भारत की 'नाकेबंदी' करार दिया गया है. नेपाल के केबल ऑपरेटरों का कहना है कि उन पर भारतीय टीवी चैनल न दिखाने का दबाव बनाया जा रहा है. ये दबाव वहां के कुछ माओवादी नेताओं की तरफ से बनाया जा रहा है.

नेपाल के प्रधानमंत्री खड़गा प्रसाद ओली ने तो भारत पर नेपाल की अघोषित नाकेबंदी करने का आरोप लगाया है. ओली का तो यहां तक कहना है कि 'नाकेबंदी' के चलते भूकंप से भी कहीं बड़ा संकट पैदा हो रहा है.

नेपाल वर्कर्स पीजेंट्स पार्टी के दो सांसदों ने तो भारतीय राजदूत को वापस भेजने की मांग कर डाली है. इस बीच नेपाल के उप प्रधानमंत्री कमल थापा ने भारत आकर कई नेताओं से मुलाकात की है. थापा भारत में नेताओं से अपने करीबी रिश्तों के लिए जाने जाते हैं.

भारत का रुख

भारत का साफ तौर पर कहना है कि कोई आर्थिक नाकेबंदी नहीं की गई है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का कहना है कि असल बात तो ये है कि सरकार वैकल्पिक रास्ते या हवाई रास्ते से चीजों की सप्लाई की कोशिश कर रही है.

सुषमा ने संसद में कहा, "मैं सदन से अपील करती हूं कि वह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल नेपाल भेजने के बारे में विचार करे. इस मामले में सरकार सदन की राय से चलेगी."

सुषमा की नजर में सबसे अच्छा रास्ता यही होगा कि विरोध प्रदर्शन खत्म कराने का राजनीतिक समाधान निकाला जाए.

नेपाल ने तेल आपूर्ति के मामले में इंडियन ऑयल का एकाधिकार भी खत्म कर दिया है. नेपाल ने तेल आपूर्ति को लेकर चीन के साथ समझौता कर लिया है. यही हाल रहा तो चीन सड़क के रास्ते भी सामानों की आपूर्ति की कोशिश करेगा. हालांकि, इसलिए लिए पहले उसे सड़के बनानी होंगी.

विरोध प्रदर्शनों से रास्ता न होने के नाम पर भारत की ओर से तेल की आपूर्ति रुक गई है. जरूरी है कि नेपाल को तेल, दवा और जरूरी सामानों की आपूर्ति शुरू की जाए. तभी संघर्ष कर रहे मधेशियों को इंसाफ दिलाने का रास्ता खुलेगा और चीन के बढ़ते प्रभावों की राह रोकी जा सकेगी.

भारत और नेपाल के बीच राजनीतिक ही नहीं रोटी-बेटी का रिश्ता है. जिस तरह दोनों देशों के बीच रास्ते खुले हैं उसी तरह खुले दिल और दिमाग से इसका समाधान खोजना होगा. ध्यान रहे कहीं देर न हो जाए. वरना, नेपाल को भी पाकिस्तान बनने से रोकना मुश्किल हो जाएगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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