सोशल मीडिया पर दिल्ली टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक में है. कारण बना है पुरानी दिल्ली का चावड़ी बाजार क्षेत्र और वहां मुसलमानों द्वारा एक मंदिर में की गई तोड़ फोड़. घटना के बाद से ही इलाके में तनाव है और कोई अप्रिय घटना न हो इसलिए प्रशासन ने भी चौकसी बढ़ा दी है. व्यवसायिक क्षेत्र होने के कारण इलाके में भीड़भाड़ रहती है इसलिए दुकानें बंद हैं और पुलिस-सुरक्षा बल मौजूद हैं. घटना का अवलोकन किया जाए तो मिल रहा है कि भले ही दिल्ली के बीचों बीच मंदिर टूटा है मगर लोगों का एक दूसरे के प्रति सौहार्द और भरोसा अभी भी कायम है. एक बड़े वर्ग या फिर अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले लोगों द्वारा लाख असहिष्णुता-असहिष्णुता का डंका पीटा जा रहा हो. मुल्क के हालात खराब बताए जा रहे हों. लेकिन अच्छी बात ये है कि पूरे देश से अभी ऐसी कोई खबर नहीं आई है जिसमें इस घटना की प्रतिक्रिया के स्वरुप किसी भी मुसलमान या फिर उसकी प्रॉपर्टी को हिंसा का सामना करना पड़ा हो.
बात बिल्कुल सीधी और एकएम साफ है. देश की जनता जानती है कि कैसे उसे ऐसी समस्याओं से लड़ना है फिर उसे पार लगाना है. आइये नजर डालते हैं कुछ ऐसे बिन्दुओं पर जो हमें ये बताएंगे कि ये पूरा मामला क्या था और कैसे लोगों ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए खराब हालात को नियंत्रित कर लिया है.
घटना की जानकारी
बात समझने से पहले हमारे लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि आखिर ये पूरा मुद्दा था क्या? तो आपको बताते चलें कि चावड़ी बाज़ार के हौज़ काज़ी क्षेत्र में मोटरसाइकिल पार्किंग को लेकर हुए एक छोटे से विवाद ने सांप्रदायिक रंग ले लिया और स्थिति इतनी बिगड़ गई कि नौबत...
सोशल मीडिया पर दिल्ली टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक में है. कारण बना है पुरानी दिल्ली का चावड़ी बाजार क्षेत्र और वहां मुसलमानों द्वारा एक मंदिर में की गई तोड़ फोड़. घटना के बाद से ही इलाके में तनाव है और कोई अप्रिय घटना न हो इसलिए प्रशासन ने भी चौकसी बढ़ा दी है. व्यवसायिक क्षेत्र होने के कारण इलाके में भीड़भाड़ रहती है इसलिए दुकानें बंद हैं और पुलिस-सुरक्षा बल मौजूद हैं. घटना का अवलोकन किया जाए तो मिल रहा है कि भले ही दिल्ली के बीचों बीच मंदिर टूटा है मगर लोगों का एक दूसरे के प्रति सौहार्द और भरोसा अभी भी कायम है. एक बड़े वर्ग या फिर अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले लोगों द्वारा लाख असहिष्णुता-असहिष्णुता का डंका पीटा जा रहा हो. मुल्क के हालात खराब बताए जा रहे हों. लेकिन अच्छी बात ये है कि पूरे देश से अभी ऐसी कोई खबर नहीं आई है जिसमें इस घटना की प्रतिक्रिया के स्वरुप किसी भी मुसलमान या फिर उसकी प्रॉपर्टी को हिंसा का सामना करना पड़ा हो.
बात बिल्कुल सीधी और एकएम साफ है. देश की जनता जानती है कि कैसे उसे ऐसी समस्याओं से लड़ना है फिर उसे पार लगाना है. आइये नजर डालते हैं कुछ ऐसे बिन्दुओं पर जो हमें ये बताएंगे कि ये पूरा मामला क्या था और कैसे लोगों ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए खराब हालात को नियंत्रित कर लिया है.
घटना की जानकारी
बात समझने से पहले हमारे लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि आखिर ये पूरा मुद्दा था क्या? तो आपको बताते चलें कि चावड़ी बाज़ार के हौज़ काज़ी क्षेत्र में मोटरसाइकिल पार्किंग को लेकर हुए एक छोटे से विवाद ने सांप्रदायिक रंग ले लिया और स्थिति इतनी बिगड़ गई कि नौबत मंदिर के टूटने और पुलिस आने तक आ गई.
बात कुछ यूं है कि लालकुआं स्थित गली में एक व्यक्ति फल की दुकान के सामने स्कूटी लगा रहा था. फल वाले ने अपनी दुकान के पास से उसे हटने को कहा, इसी को लेकर स्कूटी पार्क कर रहे आदमी से उसकी कहासुनी हो गई. इसी बीच दोनों पक्षों से कई लोग आ गए और मामला ने तूल पकड़ लिया. इसके बाद दोनों तरफ से मारपीट हुई.
स्थानीय लोगों ने बीच-बचाव करके मामले को शांत कराने की कोशिश की गई. बाद में अफवाह उड़ी की गास मोहम्मद नाम के लड़के के साथ मॉब लिंचिंग हुई है ये सुनकर इलाके के मुसलमान आक्रोशित हो गए और उन्होंने दुर्गा मंदिर में धावा बोल दिया और जमकर तोड़ फोड़ की. जैसे जैसे लोगों को घटना की जानकारी मिलती गई मामला तूल पकड़ता गया.
मीडिया का चुप्पी साधना
इस पूरे मामले में जिस बात ने सबसे ज्यादा आक्रोशित किया है, वो मीडिया का रवैया और इस घटना की रिपोर्टिंग है. अलग अलग जगहों पर, जहां कहीं भी इस घटना को रिपोर्ट किया गया है उसका प्रस्तुतीकरण देखिये. किसी मुस्लिम के साथ लिंचिंग या फिर छेड़छाड़ हो जाए तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कैमरे मौका ए वारदात पर लग जाएंगे अखबार इसे फ्रंट पेज पर रिपोर्ट करेगा.
वहीं बात जब इस घटना की हो तो ये बताना बहुत जरूरी है कि इस घटना को क्राइम की किसी छोटी स्टोरी की तरह अखबार का पन्ना भरने के लिए छापा गया है.
अखबार में भी यही बताया गया है कि मामले की शुरुआत स्कूटी खड़ी करने को हुई जिसने बाद में मारपीट का रूप लिया और स्थिति इतनी खराब हो गई कि नौबत मंदिर तोड़ने तक आ गई.
सोशल मीडिया का उन्माद
इस पूरे मामले में सोशल मीडिया का उन्माद एक अलग चिंता का विषय है. मामले को लेकर सोशल मीडिया कैसे नफरत की इस आग में खर डाल रहा है इसे समझने के लिए हमने उस वक़्त का अवलोकन करना पड़ेगा जब सोशल मीडिया नहीं था बल्कि ये कहें कि इतना प्रभावी नहीं था.
उस दौर पर अगर ध्यान दें तो मिलता है कि तब अगर कहीं घटना होती थी तो उसकी जानकारी बहुत ही सीमित वर्ग के पास रहती थी. उस स्थिति में क्योंकि जानकारी बहुत ही सीमित थी इसलिए बवाल या किसी भी तरह की हिंसा की सम्भावना कम रहती थी. उस समय के उलट अगर आज हम मुद्दों को देखें तो मिलता है कि हिंसा के प्रचार प्रसार की एक बड़ी वजह सोशल मीडिया है.
दिल्ली मामले को ही लें तो फेसबुक और ट्विटर की बदौलत ये मामला जहां दिल्ली में खूब गर्मा रहा है तो वहीं दूरस्थ स्थानों पर भी इंटरनेट और सोशल मीडिया के पहुंचने के कारण खूब सुर्खियां बटोरे हुए है और देश भर से इस मुद्दे पर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
'असहिष्णुता' को आईना
जैसा कि हमने इस लेख के शुरुआत में ही बता दिया है कि दिल्ली के चावड़ी बाजार में हुए इस उपद्रव ने 'असहिष्णुता' को आईना दिखाया है. सवाल होगा कि कैसे ? तो इसका भी जवाब हम ऊपर दे चुके हैं. हम ऊपर इस बात को बता चुके हैं कि एक बड़े वर्ग या फिर ये कहें कि अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले लोगों द्वारा बार बार यही कहा जा रहा है कि देश में जैसा महाल है, असहिष्णुता बढ़ गई है और हर चीज में हिंदू या मुसलमान हो रहा है.
ऐसे लोग अपनी बातों में लगातार इसी बात को दर्शा रहे हैं कि मुल्क के हालात लगातार खराब हो रहे हैं. देश में नफरत बढ़ गई है. इन तमाम बैटन के विपरीत यदि हम दिल्ली की घटना को देखें तो मिलता है कि अच्छी बात ये है कि पूरे देश से अभी ऐसी कोई खबर नहीं आई है जिसमें इस घटना की प्रतिक्रिया के स्वरुप किसी भी मुसलमान या फिर उसकी प्रॉपर्टी को हिंसा का सामना करना पड़ा हो.
इसलिए दिल्ली की ये घटना उन लोगों के मुहं पर करारा तमाचा है जिनका मानना है कि देश में नफरत इतनी है कि अब ये देश किसी भी शांति पसंद इंसान के रहने योग्य नहीं बचा है.
घटना के बाद की शांति मिसाल
घटना बीते ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका है. मुस्तैदी दिखाते हुए प्रशासन ने कार्रवाई की है और हालात काबू में रखे हैं. घटना बड़ी है इसलिए लोगों में आक्रोश का होना स्वाभाविक है मगर जिस हिसाब से इस घटना पर शांति कायम है ये अपने आप में एक मिसाल है.
घटना पर लोगों का रवैया हमें बताता है कि भले ही लाख नफरत और हिंसा की बातें हों. मगर अब भी लोग एक साथ रहना चाहते हैं और एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं. कहा जा सकता है कि घटना के बाद फैली शांति ने उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारा है जिनका मानना था कि घटना उग्र रूप लेगी और हालात नियंत्रण से बाहर होंगे. कहा जा सकता है कि लोगों ने समझदारी का परिचय दिया है और अपनी सूझबूझ के कारण एक बड़ी अनहोनी होने से रोकी है.
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