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OIC meeting: तालिबान-चीन को बगल में बैठाकर किस मुंह से कश्मीर की बात करता है पाकिस्तान?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 23 मार्च, 2022 08:46 PM
  • 23 मार्च, 2022 08:46 PM
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इस्लामाबाद में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन OIC सीएफएम की बैठक में पाकिस्तान द्वारा तालिबान और चीन को मंच मुहैया कराना इमरान खान का दोगलापन जाहिर कर देता है. सवाल होगा कैसे? तो इसकी एक बड़ी वजह कश्मीर मुद्दा बना है.

मेरा ईमान क्या पूछती हो मुन्नी,

शिया के साथ शिया, सुन्नी के साथ सुन्नी.

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी का ये शेर यूं ही नहीं है. इसमें इंसान और उसके स्वाभाव में फैली हिपोक्रेसी को बहुत ही कम शब्दों में दर्शाया गया. गागर में सागर भरा गया. जिक्र जब हिपोक्रेसी और इंसानी स्वाभाव का हो और हम पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और वहां के पीएम इमरान खान का जिक्र न करें तो तमाम बातें बहुत हद तक अधूरी रह जाती हैं. उपरोक्त बातें पढ़ने के बाद दिमाग के दरवाजे पर दो सवाल 'क्यों' और 'कैसे? दस्तक दे सकते हैं. जवाब के लिए हम सबसे पहले इस्लामाबाद में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन OIC सीएफएम की बैठक का जिक्र करना चाहेंगे. इस साल अफगानिस्तान ने अपने को इस बैठक से दूर रखा है. कारण? अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तान का रवैया. ध्यान रहे गुजरे साल दिसंबर में इस्लामाबाद में अफगानिस्तान पर आयोजित असाधारण सत्र के दौरान अफगान तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी को पाकिस्तान द्वारा बहुत हलके में लिया गया और बतौर विदेश मंत्री उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला. ये बात अफगानिस्तान को बुरी लगी थी. यही वो कारण है जिसके चलते इस बार इस बैठक में अफगान सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की जगह मंत्रालय के एक अधिकारी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. 

चीन और तालिबान को OIC के जरिये एक मंच पर लाकर एक बार फिर इमरान खान ने अपना दोगलापन दर्शा दिया है

जानती पूरी दुनिया है कि यदि अफगानिस्तान में तालिबान के रूप में आतंकवाद का कैंसर फैला तो इसकी एक बड़ी वजह खुद पाकिस्तान है. यानी अगर आज अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साक्षी हम बन रहे हैं तो...

मेरा ईमान क्या पूछती हो मुन्नी,

शिया के साथ शिया, सुन्नी के साथ सुन्नी.

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी का ये शेर यूं ही नहीं है. इसमें इंसान और उसके स्वाभाव में फैली हिपोक्रेसी को बहुत ही कम शब्दों में दर्शाया गया. गागर में सागर भरा गया. जिक्र जब हिपोक्रेसी और इंसानी स्वाभाव का हो और हम पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और वहां के पीएम इमरान खान का जिक्र न करें तो तमाम बातें बहुत हद तक अधूरी रह जाती हैं. उपरोक्त बातें पढ़ने के बाद दिमाग के दरवाजे पर दो सवाल 'क्यों' और 'कैसे? दस्तक दे सकते हैं. जवाब के लिए हम सबसे पहले इस्लामाबाद में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन OIC सीएफएम की बैठक का जिक्र करना चाहेंगे. इस साल अफगानिस्तान ने अपने को इस बैठक से दूर रखा है. कारण? अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तान का रवैया. ध्यान रहे गुजरे साल दिसंबर में इस्लामाबाद में अफगानिस्तान पर आयोजित असाधारण सत्र के दौरान अफगान तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी को पाकिस्तान द्वारा बहुत हलके में लिया गया और बतौर विदेश मंत्री उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला. ये बात अफगानिस्तान को बुरी लगी थी. यही वो कारण है जिसके चलते इस बार इस बैठक में अफगान सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की जगह मंत्रालय के एक अधिकारी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. 

चीन और तालिबान को OIC के जरिये एक मंच पर लाकर एक बार फिर इमरान खान ने अपना दोगलापन दर्शा दिया है

जानती पूरी दुनिया है कि यदि अफगानिस्तान में तालिबान के रूप में आतंकवाद का कैंसर फैला तो इसकी एक बड़ी वजह खुद पाकिस्तान है. यानी अगर आज अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साक्षी हम बन रहे हैं तो इसका सूत्रधार पाकिस्तान समर्पित आतंकवाद है.  मामले में दिलचस्प ये कि पाकिस्तान खुद इस बात को जानता और समझता है. लेकिन बात वही है कि वो अपनी इमेज बिल्डिंग के लिए ऐसा बहुत कुछ कर रहा है जो सीधे सीधे उसकी हिपोक्रेसी को जाहिर करता नजर आ रहा है. 

अगर पाकिस्तान को तालिबान से इतनी ही तकलीफ है तो उसे उन तमाम मुद्दों पर बात करनी चाहिए जिसके लिए वो कश्मीर के लिहाज से मौके बेमौके भारत को घेरता है.  ध्यान रहे कि कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ क्या कुछ नहीं कहा है पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने. कश्मीर मुद्दे पर भले ही पाकिस्तान ने प्रोपोगेंडा फैलाते हुए भारत के खिलाफ तमाम तरह की अनर्गल बातें की हों लेकिन सच्चाई क्या है उसे पूरी दुनिया जानती है. दुनिया समझ रही है कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान झूठ बोल रहा है और लगातार बोले ही जा रहा है. 

चाहे यूएन हो या फिर अन्य कोई मंच. पूर्व में तमाम मौके ऐसे आए हैं जब पीएम इमरान खान ने कश्मीर को लेकर अपना खास एजेंडा चलाया. पूरी दुनिया के सामने इसे एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया और इस मुद्दे की आड़ में सिम्पैथी हासिल करने के प्रयास किये.

भले ही कश्मीर को लेकर इमरान खान की बातों का कोई आधार न हो. मगर एक बड़ा सवाल ये है कि चाहे वो अफगानियों के मानवाधिकार हों या तालिबान शासित अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पाकिस्तान ने कभी उसके खिलाफ मुंह तक नहीं खोला. ऐसा क्यों? साफ़ है कि पाकिस्तान का अपना एजेंडा है जिसे पूरा करने के लिए वो किसी भी सीमा तक जाने में संकोच नहीं करता. 

जिन अधिकारों की बात आज पाकिस्तान कश्मीरी आवाम के लिए कर रहा है कितना अच्छा होता यदि ऐसे ही अधिकारों की बात उसने अफगानिस्तान को लेकर की होती. किया होता उसने तालिबान का विरोध. इमरान इस बात को समझते हैं कि दुनिया तालिबान को अच्छी नजर देखती और क्योंकि उन्हें विश्व पटल पर गुड बुक्स में रहना है तो दुनिया के सामने वो तालिबान के प्रति सख्ती दिखा रहे हैं लेकिन अंदरखाने सच्चाई क्या है तालिबान के लिहाज से वो किसी से छिपी नहीं है.

बात कश्मीर की हुई है. OIC की बैठक की हुई है. तालिबान की हुई है तो हम चीन को क्यों पीछे छोड़ दें. चीन ने उइगर मुसलमानों के साथ अपने शिंगजियांग प्रान्त में क्या किया इसपर कोई बहुत लंबा चौड़ा व्याख्यान देने की जरूरत नहीं है. चीन उइगर मुसलमानों को न केवल यातनाएं दे रहा है बल्कि ऐसा बहुत कुछ कर रहा है जो रौंगटे खड़े कके रख देने वाला है. आज भी चीन में तमाम उइगर मुसलमान कहां हैं? इसकी किसी को कोई खबर नहीं है. ऐसे में पाकिस्तान की खामोशी क्या सवाल नहीं खड़े करेगी? 

जैसा वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य है चीन और पाकिस्तान हम प्याला और हम निवाला हैं लेकिन ऐसी भी क्या दोस्ती कि आदमी सही और गलत में अंतर न कर पाए. क्या आज तक कभी कोई ऐसा स्टेटमेंट आया जब उइगर मुसलमानों को ध्यान में रखकर पाकिस्तान ने मुखर होकर चीन, वहां की सरकार और उइगर मुसलमानों के प्रति चीन की नीति की आलोचना की. साफ़ है कि पाकिस्तान आंखों पर पट्टी बांधे हुए चुप चाप ये सब देख रहा है. 

हम इमरान खान से जरूर पूछना चाहेंगे कि क्या सिर्फ कश्मीर के ही मुसलमान, मुसलमान हैं. क्या शोषण का अर्थ सिर्फ कश्मीरी होना है? क्या बतौर इंसान, इमरान खान चीन के उइगर और अफगानिस्तान के लोगों को मुसलमान नहीं मानते? इमरान चीन को, तालिबान को अपने बगल में बैठाए हैं और कश्मीर पर शिकायत कर रहे हैं. लोग यकीन करना चाहें तो भी कैसे करें? एक बड़ा विरोधाभास है जो बतौर इंसान हमें इमरान खान के चाल, चरित्र और चेहरे में दिखाई दे रहा है.

बहरहाल बात की शुरुआत अकबर इलाहाबादी के शेर के परिदृश्य में हिपोक्रेसी और इंसानी स्वाभाव पर हुई थी तो साफ़ है कि चीन के सामने इमरान कुछ और हैं और तालिबान के सामने कुछ और. रही बात कश्मीर मुद्दे की तो इमरान जानते हैं कि कश्मीर, वहां के मुसलमान, कश्मीर मुद्दा उनके लिए तुरुप का वो इक्का है जो उनकी राजनीति को धार देता रहेगा. कुल मिलाकर इमरान का जो दोगलापन है, अगर उनका सूरज डूब रहा है तो उसकी वजह यही है. बाकी दुनिया को उनके सच और झूठ का बखूबी अंदाजा है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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