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'तानाशाही' शब्द तो नहीं लेकिन अब संसद परिसर में धरना देना असंसदीय होगा

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 15 जुलाई, 2022 06:35 PM
  • 15 जुलाई, 2022 06:27 PM
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लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला (Om Birla) ने असंसदीय शब्दों की सूची पर सफाई के साथ ही संसद परिसर में अब धरना (No Dharna in Parliament) पर भी बैन लगा दिये जाने की खबर आ गयी है - आखिर मॉनसून सेशन (Monsoon Session) में अभी कितने प्रयोग किये जाने बाकी हैं?

असंसदीय शब्दों की सूची के बाद बवाल का अब नया टॉपिक है - संसद में धरना देने पर पाबंदी लगा दिया जाना. शब्दों की सूची पर तो स्पीकर ओम बिड़ला (Om Birla) ने सफाई दे दी है, लेकिन संसद परिसर में धरना (No Dharna in Parliament) देने, किसी बात को लेकर विरोध प्रदर्शन करने और किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन पर पाबंदी लगाने वाले ऑर्डर की कॉपी ही सामने आयी है.

संसद के हर सत्र से पहले सदन में हंगामे के आसार के अनुमान लगाये जाते रहे हैं. और आखिर में सदन में हुए बिजनेस का हिसाब किताब लगाया जाता है. कभी कभी लगता है, स्थिति कुछ सुधर रही है, लेकिन फिर सारे प्रयास ढाक के तीन पात ही पाये जाते हैं. मॉनसून सेशन (Monsoon Session) में ये सब कुछ ज्यादा ही होने की आशंका नजर आ रही है.

जो भी चीजें सामने हैं या उनको देख कर मालूम पड़ती हैं, एक सहज सवाल उभरता है कि क्या माननीय सांसदों के व्यवहार पर भी अंकुश लगाने की कोई तैयारी है - और क्या सदन के बहिष्कार की सूरत में भी सदस्यों के निलंबन या किसी तरह की सजा का प्रावधान किया जाने वाला है?

सवाल ये भी है कि संसद के बाद सड़क पर भी लोगों के चलने-फिरने, लिखने-बोलने जैसे व्यवहार पर भी पाबंदी लगाने की तैयारी चल रही है क्या, जो सरकार को मंजूर न हो!

संसद में अब धरना भी मना है!

iChowk.in के एक आर्टिकल का टाइटल है - 'ध्यान रहे! असंसदीय शब्द पर बैन लगा है, व्यवहार पर नहीं!' ये ह्यूमर पीस भी उसी दिन प्रकाशित हुआ है जिस दिन...

असंसदीय शब्दों की सूची के बाद बवाल का अब नया टॉपिक है - संसद में धरना देने पर पाबंदी लगा दिया जाना. शब्दों की सूची पर तो स्पीकर ओम बिड़ला (Om Birla) ने सफाई दे दी है, लेकिन संसद परिसर में धरना (No Dharna in Parliament) देने, किसी बात को लेकर विरोध प्रदर्शन करने और किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन पर पाबंदी लगाने वाले ऑर्डर की कॉपी ही सामने आयी है.

संसद के हर सत्र से पहले सदन में हंगामे के आसार के अनुमान लगाये जाते रहे हैं. और आखिर में सदन में हुए बिजनेस का हिसाब किताब लगाया जाता है. कभी कभी लगता है, स्थिति कुछ सुधर रही है, लेकिन फिर सारे प्रयास ढाक के तीन पात ही पाये जाते हैं. मॉनसून सेशन (Monsoon Session) में ये सब कुछ ज्यादा ही होने की आशंका नजर आ रही है.

जो भी चीजें सामने हैं या उनको देख कर मालूम पड़ती हैं, एक सहज सवाल उभरता है कि क्या माननीय सांसदों के व्यवहार पर भी अंकुश लगाने की कोई तैयारी है - और क्या सदन के बहिष्कार की सूरत में भी सदस्यों के निलंबन या किसी तरह की सजा का प्रावधान किया जाने वाला है?

सवाल ये भी है कि संसद के बाद सड़क पर भी लोगों के चलने-फिरने, लिखने-बोलने जैसे व्यवहार पर भी पाबंदी लगाने की तैयारी चल रही है क्या, जो सरकार को मंजूर न हो!

संसद में अब धरना भी मना है!

iChowk.in के एक आर्टिकल का टाइटल है - 'ध्यान रहे! असंसदीय शब्द पर बैन लगा है, व्यवहार पर नहीं!' ये ह्यूमर पीस भी उसी दिन प्रकाशित हुआ है जिस दिन पूरे वक्त संसद सचिवालय के असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी को लेकर बवाल मचा रहा.

और ज्यादा देर नहीं लगी, जब कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्विटर पर राज्य सभा के सेक्रेट्री जनरल पीसी मोदी की तरफ से जारी एक आदेश की कॉपी शेयर करते हैं - ध्यान रहे ये पत्र भी 14 जुलाई, 2022 को ही जारी किया गया है.

मॉनसून सेशन से पहले ही इतना हंगामा होने लगा है, तो आगे क्या होगा?

ताजा आदेश के मुताबिक, संसद भवन परिसर में कोई भी सदस्य धरना, हड़ताल, भूख हड़ताल नहीं कर सकेगा. साथ ही, परिसर में किसी भी तरह के धार्मिक कार्यक्रम पर भी ठीक वैसे ही पाबंदी लागू रहेगी - असंसदीय शब्दों की ही तरह विपक्ष ने संसद परिसर में लोकतांत्रिक तरीके से विरोध जताने पर रोक पर रिएक्ट किया है.

कांग्रेस के सीनियर नेता और राज्य सभा सांसद जयराम रमेश ने अपने नये ट्वीट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'विषगुरु' बताते हुए आदेश की कॉपी को शेयर किया है. जयराम रमेश ने लिखा है, 'विषगुरु का नया काम - D(h)arna मना है.' असंसदीय शब्दों की सूची के विरोध में भी जयराम रमेश ने ट्विटर पर 'विषगुरु' शब्द का इस्तेमाल किया था.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी को हाल फिलहाल सरकार के सपोर्ट में खड़ा महसूस किया गया है, खासकर अग्निवीर स्कीम को लेकर. लेकिन मनीष तिवारी ने ट्वीट कर संसद परिसर में धरने पर रोक को लेकर जयराम रमेश की ही तरह विरोध प्रकट किया है. मनीष तिवारी ने लिखा है, 'पीठासीन अधिकारी सदस्यों के साथ टकराव का मंच तैयार क्यों कर रहे हैं? पहले असंसदीय शब्दों पर टकराव और अब यह. ये सच में दुर्भाग्यपूर्ण है.'

स्पीकर ओम बिड़ला की सफाई: असंसदीय शब्दों की सूची के विरोध को लेकर मीडिया की सुर्खियां बन जाने के बाद लोक सभा स्पीकर ओम बिड़ला को सफाई देने के लिए खुद को आगे आना पड़ा है. स्पीकर ने अपनी तरफ से किसी भी शब्द पर पाबंदी लगाये जाने की बात से इनकार किया है.

ये बताते हुए कि शुरू से ही ऐसी परंपरा रही है, जिसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया गया है. ओम बिड़ला ने साफ तौर पर कहा है, 'किसी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है.'

स्पीकर ओम बिरला के अनुसार, पहले असंसदीय शब्दों की एक किताब का विमोचन किया जाता था, लेकिन कागजों की बर्बादी से बचने के लिए इसे इंटरनेट पर डाल दिया गया है. स्पीकर ने अपनी तरफ से तस्वीर साफ करने की कोशिश की, 'हमने हटा दिये गये शब्दों का संकलन भी जारी किया है.' स्पीकर का कहना रहा कि जिन शब्दों पर आपत्तियां जतायी गयी थीं, बस उनको हटा दिया गया न कि किसी शब्द पर प्रतिबंध लगाया गया है.

शब्दों को सेलेक्टिव तरीके से हटाये जाने को लेकर भी स्पीकर बिड़ला ने सफाई दी है, 'जिन शब्दों को हटा दिया गया है... वे विपक्ष के साथ-साथ सत्ता में पार्टी द्वारा भी संसद में कहे और उपयोग किये गये हैं. स्पीकर का कहना है, केवल विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों को हटाने जैसी कोई बात सही नहीं है.

ओम बिड़ला ने विपक्षी नेताओं को गलतफहमी फैलाने का आरोप लगाया है और पूछा है, क्या उन्होंने 1,100 पन्नों की ये डिक्शनरी पढ़ी है? बताते हैं, 'ये 1954 से 1986, 1992, 1999, 2004, 2009 और 2010 में जारी की गई थी - और 2010 से सालाना आधार पर रिलीज हो रही है.'

व्यवहार पर सदस्यों के साथ क्या सलूक होगा?

वैसे तो नवनीत राणा को महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, लेकिन संसद सदस्यों के कुछ विशेषाधिकार भी होते हैं. हालांकि, ये विशेषाधिकार ऐसे होतें हैं कि संसद में उनकी कही हुई बातों को लेकर बाहर पुलिस या कोई एजेंसी एक्शन नहीं ले सकती. विशेष परिस्थितियों की बात अलग है - और उसक लिए स्पीकर की अनुमति जरूरी होता है. नवनीत राणा की तरह केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को गिरफ्तारी संसद के बाहर तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को थप्पड़ जड़ने को लेकर हुई थी. अगर ऐसा ही वो संसद में बोले होते तो महाराष्ट्र पुलिस को कोई और आधार बनाना पड़ता, लेकिन सदन की कार्यवाही से राणे की बात जरूर हटा दी गयी होती.

संसद में सदस्यों को तमाम तरह के अधिकार मिले हुए हैं. सांसदों को अपने इलाके से लेकर देश और दुनिया में लोक हित से जुड़ा कोई भी मुद्दा उठाने का अधिकार मिला हुआ है. सांसद सदन में सवाल पूछ सकते हैं. सांसदों के वोट से ही कोई भी बिल पास होकर कानून बनता है. पार्टीलाइन की बात अलग है, लेकिन वे चाहें तो पक्ष या विरोध में खड़े हो सकते हैं - यहां तक कि सभी संसद सदस्यों को प्राइवेट मेंबर बिल लाने का भी अधिकार मिला हुआ है.

अब सवाल ये उठता है कि जब सांसदों को इतने सारे अधिकार और सुविधाएं मिली हुई हैं तो सदन से बाहर जाकर धरना देने की जरूरत क्यों पड़ती है?

ये तो यही हुआ कि सांसद अपने अधिकारों की ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. सही तरीके से अपनी बात रखते. मुद्दे उठाते. सवाल पूछते तो सदन के बाहर अपने अधिकारों के लिए धरना देने की भला जरूरत ही क्यों पड़ेगी?

संसद में अक्सर देखने को मिलता है कि सदस्य शोर मचाते हुए सदन वेल में पहुंच जाते हैं. कभी विरोध जताने के नाम पर किसी बिल की कॉपी फाड़ दी जाती है. कभी चेयर की तरफ कागजों का पुलिंदा उछाल दिया जाता है - कई बार तो माइक तक भी फेंके जाते देखे गये हैं.

अभी पिछले साल ही मॉनसून सत्र में हुए हंगामे को लेकर राज्य सभा के उपसभापति एम. वेंकैया नाडयू ने शीतकालीन सत्र में एक्शन लिया था. हंगामा करने वाले 12 सदस्यों को राज्य सभा से निलंबित करते हुए सभापति नायडू का कहना रहा, 'जो कुछ सदन में हुआ है, उसने लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र किया है.'

11 अगस्त, 2021 को इंश्योरेंस बिल पर चर्चा के दौरान राज्य सभा में हंगामा से हालात बेकाबू होने पर सदस्यों को शांत कराने के लिए मार्शल बुलाने पड़े थे. हालांकि, विपक्ष का आरोप था कि जब इंश्योरेंस बिल पेश किया गया तो सदन में बाहरी सिक्योरिटी स्टाफ को बुलाया गया जो सुरक्षा विभाग के कर्मचारी नहीं थे. विपक्ष ने महिला सदस्यों के साथ बदसलूकी करने का भी इल्जाम लगाया था.

अब सवाल ये है कि क्या आने वाले वाले दिनों में संसद की कार्यवाही के दौरान सदन का बहिष्कार करने पर भी स्पीकर/ राज्य सभा के उपसभापति की तरफ से कार्रवाई की जाएगी?

बोलने की आजादी तो है, लेकिन शर्तें भी लागू हैं

देश की सबसे बड़ी विपक्षी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में भी केंद्र सरकार पर बोलने की आजादी बाधित करने का आरोप लगाया था. अक्सर राहुल गांधी देश में बोलने की आजादी छीन लेने का आरोप लगाते रहे हैं - मोदी सरकार पर वो सीधे ही ये आरोप जड़ देते हैं कि उनको बोलने नहीं दिया जाता - लेकिन वो डरते नहीं हैं, ऐसा भी बताते हैं.

विदेशी धरती पर राहुल का कहना रहा, 'चूंकि, बोलने की आजादी बाधित की जा रही है, इसलिए अदृश्य ताकतें संस्थाओं में जगह बना ले रही हैं - और देश में संवाद के तरीके को नये सिरे से परिभाषित कर रही हैं.'

एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा था, 'मैं देख रहा हूं कि भारत को बोलने की आजादी देने वाली संस्थाओं पर हमला किया जा रहा है - संसद, चुनाव प्रणाली, लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर एक संगठन द्वारा कब्जा किया जा रहा है.' राहुल गांधी के संगठन से आशय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ही रहा होगा. ऐसा इसलिए भी क्योंकि संघ हमेशा ही उनके निशाने पर होता है और संघ के खिलाफ मानहानि के मुकदमे में वो ट्रायल फेस कर रहे हैं.

अपनी बात को राहुल गांधी ने कुछ ऐसे समझाया था - हमारे लिए भारत तब ‘जीवंत’ होता है, जब वो बोलता है और जब भारत चुप हो जाता है, तब वो ‘बेजान’ हो जाता है.

असंसदीय शब्दों पर मचे बवाल के बीच राहुल गांधी की बातों का भी जवाब लोक सभा स्पीकर के बयान में मिल रहा है. शब्दों पर पाबंदी को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश में ओम बिड़ला का कहना है, "सदस्य अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं... कोई भी उस अधिकार को नहीं छीन सकता, लेकिन ये संसद की मर्यादा के अनुसार होना चाहिये."

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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