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सीलिंग से राहत भूल जाओ

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 09 मार्च, 2018 08:53 PM
  • 09 मार्च, 2018 08:53 PM
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सीलिंग रोकने की मांग कर रहे व्यापारी नेता कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार अध्यादेश ले आए तो माहौल बदल सकता है. लेकिन अध्यादेश लाने में कई मुश्किलें हैं.

दिल्ली की सड़कों पर जबरदस्त अफरा तफरी है. दुकानदारों और उनके कर्मचारियों की रोज़ी रोटी पर लगातार तलवार लटकी है. कुछ के सिर पर ये तलवार तबाही ला भी चुकी है. इस पूरे माहौल में नेताओं की तरफ से लगातार उम्मीद भरी खबरें आती रहती हैं. नेता तरह-तरह के सपने दिखा रहे हैं और तरह-तरह की मांगे कर रहे हैं. लेकिन क्या सीलिंग से किसी तरह की राहत मुमकिन है? क्या सीलिंग से बचा जा सकता है?

सीलिंग मामले में फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं

सबसे पहले बात करते हैं अध्यादेश की...

सीलिंग रोकने की मांग कर रहे व्यापारी नेता कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार अध्यादेश ले आए तो माहौल बदल सकता है. लेकिन अध्यादेश लाने में कई मुश्किलें हैं.

1. जब तक संसद का सत्र चल रहा होता है अध्यादेश लाया ही नहीं जा सकता.

2. संविधान के मुताबिक अध्यादेश आपातकालीन स्थिति में ही लाया जा सकता है जब संसद सत्र न बुलाया जा सकता हो या सत्र चल न रहा हो तभी अध्यादेश लाना मुमकिन है.

3. अगले 20 दिन तक संसद का बजट सत्र और चलेगा. यानी तब तक अध्यादेश से राहत भूल जाइए. यानी सीलिंग तबतक ऐसे ही चलेगी. कम से कम अध्यादेश से इसे नहीं रोका जा सकता.

4. संसद के सत्र के दौरान एक रास्त विधेयक लाने का बचता है लेकिन विधेयक भी जल्दबाज़ी में लाना मुमकिन नहीं है. हर विधेयक पहले कैबिनेट में पास होता है, उसके बाद सदन की स्थायी समिति उसकी जांच करती है तब वो सदन के पटल पर आता है. सदन में भी बहस की ज़रूरत होती है. ये प्रक्रिया भी लंबी है जाहिर बात है कि राहत के कोई आसार भी नहीं हैं.

5. सत्ताधारी बीजेपी के नेता तो बयान दे रहे हैं, उसकी ट्रेड विंग भी सीलिंग के...

दिल्ली की सड़कों पर जबरदस्त अफरा तफरी है. दुकानदारों और उनके कर्मचारियों की रोज़ी रोटी पर लगातार तलवार लटकी है. कुछ के सिर पर ये तलवार तबाही ला भी चुकी है. इस पूरे माहौल में नेताओं की तरफ से लगातार उम्मीद भरी खबरें आती रहती हैं. नेता तरह-तरह के सपने दिखा रहे हैं और तरह-तरह की मांगे कर रहे हैं. लेकिन क्या सीलिंग से किसी तरह की राहत मुमकिन है? क्या सीलिंग से बचा जा सकता है?

सीलिंग मामले में फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं

सबसे पहले बात करते हैं अध्यादेश की...

सीलिंग रोकने की मांग कर रहे व्यापारी नेता कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार अध्यादेश ले आए तो माहौल बदल सकता है. लेकिन अध्यादेश लाने में कई मुश्किलें हैं.

1. जब तक संसद का सत्र चल रहा होता है अध्यादेश लाया ही नहीं जा सकता.

2. संविधान के मुताबिक अध्यादेश आपातकालीन स्थिति में ही लाया जा सकता है जब संसद सत्र न बुलाया जा सकता हो या सत्र चल न रहा हो तभी अध्यादेश लाना मुमकिन है.

3. अगले 20 दिन तक संसद का बजट सत्र और चलेगा. यानी तब तक अध्यादेश से राहत भूल जाइए. यानी सीलिंग तबतक ऐसे ही चलेगी. कम से कम अध्यादेश से इसे नहीं रोका जा सकता.

4. संसद के सत्र के दौरान एक रास्त विधेयक लाने का बचता है लेकिन विधेयक भी जल्दबाज़ी में लाना मुमकिन नहीं है. हर विधेयक पहले कैबिनेट में पास होता है, उसके बाद सदन की स्थायी समिति उसकी जांच करती है तब वो सदन के पटल पर आता है. सदन में भी बहस की ज़रूरत होती है. ये प्रक्रिया भी लंबी है जाहिर बात है कि राहत के कोई आसार भी नहीं हैं.

5. सत्ताधारी बीजेपी के नेता तो बयान दे रहे हैं, उसकी ट्रेड विंग भी सीलिंग के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा ले रही है, लेकिन अबतक किसी बड़े नेता ने ठोस आश्वासन नहीं दिया है. जब तक केन्द्रीय नेता रुचि नहीं दिखाते सीलिंग पर अध्यादेश की उम्मीद भी बेमानी है.

दूसरा मामला केजरीवाल सरकार का है. मांग की जा रही है कि दिल्ली सरकार 351 सड़कों को विधानसभा में नोटिफाई कर दे. इससे हालात बदल जाएंगे....

1. दिल्ली विधानसभा का सत्र भी आ रहा है, सत्ताधारी आम आदमी पार्टी नोटिफाई करने की बात भी कह चुकी है लेकिन दिल्ली विधानसभा के बयान की ज्यादा अहमियत नहीं है.

2. दिल्ली असेंबली का सेशन है. वो 351 सड़कों पर प्रस्ताव पास कर सकती है लेकिन उसकी अहमियत कम है.

3. कानून के जानकार कहते हैं कि दिल्ली सरकार का ये नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट के सामने टिकेगा नहीं. इसलिए यहां से राहत की उम्मीद कम है.

4. दिल्ली नगर निगम की हालत और भी पतली है. मॉनीटरिंग कमेटी के सामने उसकी एक नहीं चलती.

5. साउथ दिल्ली नगर निगम ने बाकायदा आदेश दिया कि सीलिंग से पहले 48 घंटे का समय दिया जाए. लेकिन मॉनीटरिंग कमेटी ने उसे कुछ समझा ही नहीं. यानी एमसीडी से राहत की उम्मीद करना बेमानी है.

लोगों का मानना है कि मॉनीटरिंग कमिटी रहम बरत सकती है

डीडीए सीलिंग से राहत के लिए जो कर सकता था करके देख चुका है. अब उसकी सांस अटकी हुई है.

1. डीडीए ने दिल्ली के मास्टर प्लान में बदलाव की कवायद की, रातों रात मास्टर प्लान में बदलाव का मसौदा तैयार करके उसे पास भी कर दिया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को तगड़ी फटकार लगाई.

2. एक फटकार के बाद डीडीए अब फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. डीडीए सुप्रीम कोर्ट के सवालों के जवाब नहीं ढूंढ पा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि नये मास्टरप्लान के आने के बाद दिल्ली पर पड़ने वाले असर के बारे में डीडीए क्या करेगा?

3. डीडीए अब धीमी चाल से शांत होकर बैठना चाहता है. उसके वकील पूरी तसल्ली कर लेना चाहते हैं कि बयान सही हो. जाहिर बात है इस पर भी राहत की उम्मीद कम ही है.

कुछ लोग मानते हैं कि मॉनीटरिंग कमिटी रहम बरत सकती है.

1. मॉनीटरिंग कमिटी की जवाबदेही सुप्रीम कोर्ट के लिए ही है. वो वही करेगी जो सुप्रीम कोर्ट कहेगा. अपने मन से किसी फैसले की मॉनीटरिंग कमिटी से उम्मीद करना बेाकर है.

2. मॉनीटरिंग कमेटी को न तो प्रभावित किया जा सकता है न उस पर दबाव डाला जा सकता है.

3. बहरहाल सीलिंग से राहत की उम्मीद करना फिलहाल बेमानी है. व्यापारियों के पास सिवा इसके कोई विकल्प नहीं है कि वो चुपचाप व्यापार पर बेहतर विकल्प तलाशते रहें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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