• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

मालेगांव ब्लास्ट: NIA जांच ने केस को और उलझा दिया है!

    • विनीत कुमार
    • Updated: 21 अप्रिल, 2016 08:07 PM
  • 21 अप्रिल, 2016 08:07 PM
offline
मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस या अजमेर ब्लास्ट में किसका हाथ था? क्या वाकई 'भगवा आतंक' का वजूद है या सिर्फ राजनीति की खातिर बिना किसी तथ्य के तब हवा दी गई? इस बहस में कोई मारे गए लोगों की बात क्यों नहीं कर रहा?

किसी मामले में अगर राजनीति घुस जाए तो क्या से क्या हो सकता है, इसका एक उदाहरण मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लास्ट की जांच की कहानी है. मामले का सच अब कांग्रेस बनाम बीजेपी की जमीन पर दम तोड़ता नजर आ रहा है. और इस मामले में माध्यम बन रहा है NIA, जिसे आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए खड़ा किया गया था.

असीमानंद के कबूलनामे से अब तक

करीब छह साल पहले जब 2010 में स्वामी असीमानंद ने दिल्ली की एक अदालत में स्वीकार किया कि मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर में हुए ब्लास्ट के लिए RSS और कुछ दूसरे छोटे हिंदू दल जिम्मेदार थे तो खूब हंगामा मचा. पहली बार लगा कि भारत में 'भगवा आतंक' जैसा कुछ मौजूद है. उस वक्त मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस कर रही थी. 2011 में आगे की जांच का जिम्मा मुंबई हमले के बाद 2009 में अस्तित्व में आई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया. जांच तब भी भगवा आतंक की दिशा में ही थी लेकिन 2014 के चुनाव के बाद चीजें बदलनी शुरू हो गईं.

यह भी पढ़ें- कांग्रेस आलाकमान के इशारे पर हुआ था सारा खेल?

एक के बाद एक गवाहों के पलटने का सिलसिला शुरू हुआ और अब आलम ये है कि जांच की पूरी दिशा ही बदलती नजर आ रही है. पिछले ही हफ्ते NIA ने कोर्ट में कहा कि वह फिलहाल मालेगांव ब्लास्ट के बाद गिरफ्तार किए गए 9 मुस्लिम युवकों को आरोपों से मुक्त करने के खिलाफ है. सुनवाई के दौरान तब नौ आरोपियों में से पांच कोर्ट में मौजूद थे. एक को पेशी से छूट दी गई थी जबकि दो 2006 में मुंबई लोकल में हुए ब्लास्ट में दोषी करार दिए जा चुके हैं. वहीं एक आरोपी की मौत हो चुकी है. गौरतलब है कि एनडीए के सत्ता में आने से पहले NIA का इस मामले पर वर्जन कुछ और था.

किसी मामले में अगर राजनीति घुस जाए तो क्या से क्या हो सकता है, इसका एक उदाहरण मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लास्ट की जांच की कहानी है. मामले का सच अब कांग्रेस बनाम बीजेपी की जमीन पर दम तोड़ता नजर आ रहा है. और इस मामले में माध्यम बन रहा है NIA, जिसे आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए खड़ा किया गया था.

असीमानंद के कबूलनामे से अब तक

करीब छह साल पहले जब 2010 में स्वामी असीमानंद ने दिल्ली की एक अदालत में स्वीकार किया कि मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर में हुए ब्लास्ट के लिए RSS और कुछ दूसरे छोटे हिंदू दल जिम्मेदार थे तो खूब हंगामा मचा. पहली बार लगा कि भारत में 'भगवा आतंक' जैसा कुछ मौजूद है. उस वक्त मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस कर रही थी. 2011 में आगे की जांच का जिम्मा मुंबई हमले के बाद 2009 में अस्तित्व में आई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया. जांच तब भी भगवा आतंक की दिशा में ही थी लेकिन 2014 के चुनाव के बाद चीजें बदलनी शुरू हो गईं.

यह भी पढ़ें- कांग्रेस आलाकमान के इशारे पर हुआ था सारा खेल?

एक के बाद एक गवाहों के पलटने का सिलसिला शुरू हुआ और अब आलम ये है कि जांच की पूरी दिशा ही बदलती नजर आ रही है. पिछले ही हफ्ते NIA ने कोर्ट में कहा कि वह फिलहाल मालेगांव ब्लास्ट के बाद गिरफ्तार किए गए 9 मुस्लिम युवकों को आरोपों से मुक्त करने के खिलाफ है. सुनवाई के दौरान तब नौ आरोपियों में से पांच कोर्ट में मौजूद थे. एक को पेशी से छूट दी गई थी जबकि दो 2006 में मुंबई लोकल में हुए ब्लास्ट में दोषी करार दिए जा चुके हैं. वहीं एक आरोपी की मौत हो चुकी है. गौरतलब है कि एनडीए के सत्ता में आने से पहले NIA का इस मामले पर वर्जन कुछ और था.

 मालेगांव ब्लास्ट (फाइल फोटो)

मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस या अजमेर ब्लास्ट में किसका हाथ था? क्या वाकई 'भगवा आतंक' का वजूद है या फिर यूपीए सरकार के दौरान इसे ऐसे ही बिना किसी तथ्य के तब हवा दी गई? और अगर वाकई उस समय ठोस सबूत और गवाह मौजूद थे तो वे आज कहां हैं? जाहिर है अब सवालों के घेरे में NIA की जांच भी है क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले और बाद की जांच में स्पष्ट विरोधाभास नजर आता है. तभी मालेगांव ब्लास्ट से जुड़ी फाइलों के गायब होने की खबर आती है तो वहीं केंद्र सरकार की ओर से सफाई भी आ रही है. गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू को कहना पड़ा कि सरकार की ओर से NIA पर कोई दबाव नहीं है.

फाइलों को गुम कौन कर रहा है?

ये सच में हैरान करने वाली बात है. कोर्ट के रिकॉर्ड में आ चुके दस्तावेज भला कैसे गायब हो सकते हैं. बताया जा रहा है कि इसमें कुछ गवाहों के बयान दर्ज थे. लेकिन अगर ये नहीं हैं तो अब और आसानी से केस और गवाहों को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है. ऐसा कौन कर रहा है? एनआईए पर एक आरोप ये भी लग रहा है कि जानबूझकर जांच की गति धीरे की गई है. ये तब भी था जब यूपीए की सरकार थी और अब भी है. शायद, इसलिए NIA की ओर से इस केस में अब तक कोई चार्जशीट दायर नहीं हो सकी है.

यह भी पढ़ें- इशरत पर हेडली की गवाही का सच कुछ और तो नहीं?

तो क्या सभी जांच चल पड़ी इशरत केस की राह पर?

इशरत जहां एनकाउंटर मामले से जुड़े कई अहम खुलासे हाल ही में हुए. पता चल रहा है कि यूपीए के शासन में उस मामले में कुछ छेड़छाड़ की गई. तो इसका मतलब यूपीए के शासन में सभी आतंकी मामलों को राजनीतिक चश्‍मे से डील किया गया? तो अब बीजेपी सरकार क्या कर रही है? इशरत एनकाउंटर मामले में जो बातें सामने आई है, उससे एक मौका तो मोदी सरकार को मिल ही गया है कि वो ऐसे दूसरे मामलों को भी एक ग्रे रंग दे दे.

...लेकिन इन सबके बीच कोई समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव में जिन 100 से ज्यादा लोगों की जान गई, उनकी बात कोई क्यों नहीं कर रहा? क्या किसी मामले में किसी को फंसाने और बचाने की कवायद भर ही हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है...

यह भी पढ़ें- हेडली की गवाही का वो हिस्‍सा जो टीवी पर नहीं आया...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲