• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

2019 चुनावों की झलक दिख सकती है उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 21 मार्च, 2017 06:00 PM
  • 21 मार्च, 2017 06:00 PM
offline
बहुत संभव है कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ मिल 2019 चुनावों में महागठबंधन बना मोदी से लोहा ले और इसकी पूरी सम्भावना है कि उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में इसकी शुरुआत देखने को मिल सकती है.

उत्तर प्रदेश में नई सरकार का गठन हो चुका है. हालाँकि, नई सरकार में मुख्यमंत्री समेत दोनों उपमुख्यमंत्री को अगले छह महीनों में विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य होना आवश्यक है. राज्य की योगी सरकार के दो मंत्री स्वन्त्र देव सिंह और एक मात्र मुस्लिम चेहरा मोहसिन रज़ा भी विधानसभा या विधानपरिषद के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर उपचुनाव होने तय है, इन उपचुनावों में दो लोकसभा के सीट भी होंगी, जो योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या के छोड़ने से खाली होंगी. वर्तमान में योगी और मौर्य क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर से सांसद हैं.

हालिया उत्तर प्रदेश के चुनावों में जिस तरह का प्रदर्शन भारतीय जनता पार्टी ने किया है वैसे में उनके लिए 5 सीटों पर चुनाव जीतना कोई मुश्किल बात नहीं लगती. हालाँकि, सरकार के पास कुछ सीटों पर चुनाव में न जाकर विधान परिषद में मनोनीत कर एमएलसी बनाने के भी रास्ते खुले हैं. मगर विधान परिषद की वर्तमान स्थिति में अगले छह महीनो तक केवल एक ही सदस्य को भेजा जा सकता है. ऐसे में बाकियों के लिए चुनाव में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता.  अब बात करें अगर विपक्ष में बैठे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तो इनके लिए आने वाले उपचुनाव 2019 के चुनावों से पहले भविष्य के गठबंधन आजमाने के लिए बेहतर मौका साबित हो सकता है. हालिया चुनावों के नतीजों के बाद इन दलों के पास खोने के लिए कुछ बचा भी नहीं है. ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले उपचुनावों में सपा बसपा अपनी कड़वाहट मिटा बिहार के तर्ज पर एक महागठबंधन बना सकते हैं. अखिलेश ने चुनाव परिणामों के पहले ऐसे संकेत दिए थे कि अगर मगर की स्थिति में वो बसपा के साथ जाने से भी गुरेज नहीं करेंगे. वहीं अगर बात करें बसपा सुप्रीमो मायावती की तो उनकी राज्यसभा सदस्यता भी अगले साल अप्रैल में समाप्त हो रही और बसपा की सीटों की वर्तमान स्थिति में मायावती का दोबारा राज्यसभा में जाना भी मुश्किल ही लगता है. ऐसे में मायावती को समाजवादी पार्टी का साथ मिल सकता है.

उत्तर प्रदेश में नई सरकार का गठन हो चुका है. हालाँकि, नई सरकार में मुख्यमंत्री समेत दोनों उपमुख्यमंत्री को अगले छह महीनों में विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य होना आवश्यक है. राज्य की योगी सरकार के दो मंत्री स्वन्त्र देव सिंह और एक मात्र मुस्लिम चेहरा मोहसिन रज़ा भी विधानसभा या विधानपरिषद के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर उपचुनाव होने तय है, इन उपचुनावों में दो लोकसभा के सीट भी होंगी, जो योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या के छोड़ने से खाली होंगी. वर्तमान में योगी और मौर्य क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर से सांसद हैं.

हालिया उत्तर प्रदेश के चुनावों में जिस तरह का प्रदर्शन भारतीय जनता पार्टी ने किया है वैसे में उनके लिए 5 सीटों पर चुनाव जीतना कोई मुश्किल बात नहीं लगती. हालाँकि, सरकार के पास कुछ सीटों पर चुनाव में न जाकर विधान परिषद में मनोनीत कर एमएलसी बनाने के भी रास्ते खुले हैं. मगर विधान परिषद की वर्तमान स्थिति में अगले छह महीनो तक केवल एक ही सदस्य को भेजा जा सकता है. ऐसे में बाकियों के लिए चुनाव में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता.  अब बात करें अगर विपक्ष में बैठे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तो इनके लिए आने वाले उपचुनाव 2019 के चुनावों से पहले भविष्य के गठबंधन आजमाने के लिए बेहतर मौका साबित हो सकता है. हालिया चुनावों के नतीजों के बाद इन दलों के पास खोने के लिए कुछ बचा भी नहीं है. ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले उपचुनावों में सपा बसपा अपनी कड़वाहट मिटा बिहार के तर्ज पर एक महागठबंधन बना सकते हैं. अखिलेश ने चुनाव परिणामों के पहले ऐसे संकेत दिए थे कि अगर मगर की स्थिति में वो बसपा के साथ जाने से भी गुरेज नहीं करेंगे. वहीं अगर बात करें बसपा सुप्रीमो मायावती की तो उनकी राज्यसभा सदस्यता भी अगले साल अप्रैल में समाप्त हो रही और बसपा की सीटों की वर्तमान स्थिति में मायावती का दोबारा राज्यसभा में जाना भी मुश्किल ही लगता है. ऐसे में मायावती को समाजवादी पार्टी का साथ मिल सकता है.

अब सवाल यह है कि क्या समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी आने वाले उपचुनावों ने कोई गठबंधन बना कर जायेंगे? क्योंकि वर्तमान समय में यह साबित हो चुका है कि अलग-अलग लड़ कर कोई भी पार्टी भाजपा के सामने टिकने में नाकाम रही है. केवल बिहार में ही क्षेत्रीय दलों ने महागठबंधन बना मोदी लहर को काबू में लाने में कामयाब रहे थे. ऐसे में बहुत संभव है कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ मिल 2019 चुनावों में महागठबंधन बना मोदी से लोहा ले और इसकी पूरी सम्भावना है कि उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में इसकी शुरुआत देखने को मिल सकती है.

ये भी पढ़ें -

2024 में मोदी के उत्‍तराधिकारी होंगे योगी ? थोड़ा रुकिए...

बदलते वक्त का नया स्लोगन है - सिर्फ 'दो साल यूपी खुशहाल'

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲