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नवाज़ शरीफ का सहानुभूति हासिल करने का दावा मोदी के लिए चेतावनी है

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 21 जुलाई, 2018 02:27 PM
  • 21 जुलाई, 2018 01:15 PM
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पाकिस्तान में जिस प्रकार नवाज़ शरीफ आम चुनावों से पूर्व जनता की सहानभूति जीतना चाहते हैं. उसी प्रकार भारत में 2019 लोक सभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के विरोधी अपने ऊपर लगे आरोपों के नाम पर सहानभूति हासिल करना चाहेंगे.

पनामा पेपर्स से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज़ को गिरफ्तार कर लिया गया. लंदन से पाकिस्तान आते ही दोनों को नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) ने लाहौर हवाई अड्डे पर ही हिरासत में ले लिया और उन्हे रावलपिंडी की जेल ले गए. पाकिस्तान की राजनीति को समझने वाले विश्लेषकों की इस विषय पर अलग-अलग राय है. कुछ का मानना है कि पाकिस्तान का न्यायतंत्र वहां की सेना के अनुसार काम कर रहा है. पाकिस्तान की सेना नवाज़ शरीफ को देश की सत्ता से बाहर कर देना चाहती है. सेना इसके लिए न्यायतंत्र का प्रयोग कर रही है. यही कारण था कि पाकिस्तानी न्यायतंत्र ने वहां के आम चुनावों से पहले जल्द निर्णय लेते हुए नवाज़ शरीफ और उनके परिवार को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी घोषित कर दिया. दूसरी ओर कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि नवाज़ अपने ही कर्मों का फल भोग रहे हैं.

आम चुनावों से पहले खुद को कानून के हवाले किया

अपनी बीमार पत्नी को लंदन में अकेला छोड़कर, पाकिस्तान वापिस लौटकर नवाज़ शरीफ़ वहां की जनता की सहानभूति जीतना चाहते हैं. आम चुनावों से पहले स्वयं को कानून के समक्ष आत्म समर्पित कर नवाज़ शरीफ राजनैतिक 'शहीद' बनना चाहते हैं. ऐसा निर्भीक नेता जो कथित 'झूठे' आरोपों को जवाब देने को तैयार है. यदि पाकिस्तान की जनता के हृदय में नवाज़ के प्रति सहानभूति उत्पन्न हो गई तो उनका जेल में जाने का दांव सफल हो जाएगा.

नवाज़ शरीफ मामले में आगे क्या होता है, इस घटनाक्रम का वहां के चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह तो आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा. इस पूरे मसले से भारत के प्रधानमंत्री को भी एक सीख मिलती है. 2014 लोक सभा चुनाव से पूर्व के प्रचार में मोदी बड़े जोरों शोरों से भ्रष्ट नेताओं को क़ानून के अनुसार सज़ा...

पनामा पेपर्स से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज़ को गिरफ्तार कर लिया गया. लंदन से पाकिस्तान आते ही दोनों को नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) ने लाहौर हवाई अड्डे पर ही हिरासत में ले लिया और उन्हे रावलपिंडी की जेल ले गए. पाकिस्तान की राजनीति को समझने वाले विश्लेषकों की इस विषय पर अलग-अलग राय है. कुछ का मानना है कि पाकिस्तान का न्यायतंत्र वहां की सेना के अनुसार काम कर रहा है. पाकिस्तान की सेना नवाज़ शरीफ को देश की सत्ता से बाहर कर देना चाहती है. सेना इसके लिए न्यायतंत्र का प्रयोग कर रही है. यही कारण था कि पाकिस्तानी न्यायतंत्र ने वहां के आम चुनावों से पहले जल्द निर्णय लेते हुए नवाज़ शरीफ और उनके परिवार को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी घोषित कर दिया. दूसरी ओर कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि नवाज़ अपने ही कर्मों का फल भोग रहे हैं.

आम चुनावों से पहले खुद को कानून के हवाले किया

अपनी बीमार पत्नी को लंदन में अकेला छोड़कर, पाकिस्तान वापिस लौटकर नवाज़ शरीफ़ वहां की जनता की सहानभूति जीतना चाहते हैं. आम चुनावों से पहले स्वयं को कानून के समक्ष आत्म समर्पित कर नवाज़ शरीफ राजनैतिक 'शहीद' बनना चाहते हैं. ऐसा निर्भीक नेता जो कथित 'झूठे' आरोपों को जवाब देने को तैयार है. यदि पाकिस्तान की जनता के हृदय में नवाज़ के प्रति सहानभूति उत्पन्न हो गई तो उनका जेल में जाने का दांव सफल हो जाएगा.

नवाज़ शरीफ मामले में आगे क्या होता है, इस घटनाक्रम का वहां के चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह तो आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा. इस पूरे मसले से भारत के प्रधानमंत्री को भी एक सीख मिलती है. 2014 लोक सभा चुनाव से पूर्व के प्रचार में मोदी बड़े जोरों शोरों से भ्रष्ट नेताओं को क़ानून के अनुसार सज़ा देने की बात करते थे. अपनी सरकार के आरंभिक कुछ सालों में तो नरेंद्र मोदी ने भ्रष्ट नेताओं पर कुछ ख़ास कदम नहीं उठाए. अब जब मोदी सरकार अपने चार साल पूरे कर चुकी है तब सरकार की तरफ से भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे नेताओं पर कुछ तेजी दिखी है.

अपनी सरकार के इस पड़ाव पर भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे विरोधियों पर कार्रवाई, यह रणनीति नरेंद्र मोदी के लिए उल्टी पड़ सकती है. पाकिस्तान में जिस प्रकार नवाज़ शरीफ आम चुनावों से पूर्व जनता की सहानभूति जीतना चाहते हैं. उसी प्रकार भारत में 2019 लोक सभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के विरोधी अपने ऊपर लगे आरोपों के नाम पर सहानभूति हासिल करना चाहेंगे. यदि प्रधानमंत्री को कथित भ्रष्ट नेताओं के विरुद्ध लड़ना था तो सही समय उनकी सरकार के आरंभिक 1-2 साल थे. वह अवसर मोदी सरकार ने खो दिया है.

भारत की जनता तथ्यों के बजाए भावनाओं से अधिक प्रभावित होती है. अतः इस समय किसी को सहानभूति जिताकर नरेंद्र मोदी अपना ही नुकसान करा सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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