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5 राज्यों के चुनाव नतीजों की एक 'राष्ट्रवादी' व्याख्या

    • सुशांत झा
    • Updated: 19 मई, 2016 05:32 PM
  • 19 मई, 2016 05:32 PM
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कांग्रेस और वाम दलों का पिछले दिनों कहना रहा है कि बीजेपी कौन होती है राष्ट्र वाद का सर्टिफिकेट देने वाली. अब चुनाव नतीजों के जरिए जनता ने कुछ सर्टिफिकेट बांटे हैं. आइए समझते हैं-

पिछले तिमाही में देश के विमर्श में वही मुद्दे आए जो कांग्रेस और वामदलों ने आगे बढ़ाए. हैदराबाद युनिवर्सिटी, जेएनयू, भारत माता आदि. लेकिन 5 राज्‍यों के चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि कांग्रेस हाशिए के भी हाशिए पर चली गई है. वाम दल के लिए तय हो गया है कि अपने गढ़ बंगाल में उसकी सियासत जाती रही. इसका मतलब क्या है?

1. इस जीत की अलग-अलग व्याख्याएं होंगी. बीजेपी को ये देखना चाहिए कि स्थानीय नेतृत्व को खड़ा कर ज्यादा फायदा होता है. पार्टी को शायद कुछ विधायक बंगाल में भी मिल जाए, एकाध केरल में भी. वो बोनस है.

2. कांग्रेस मुक्त भारत तेजी से हो रहा है. इसका श्रेय बीजेपी से अधिक राहुल गांधी को जाना चाहिए. क्योंकि जीत का श्रेय भी वहीं ले लेते हैं.

3. सबसे बड़ी बात ये कि ये चुनाव अल्पसंख्यक तुष्टीकरण,हिंदू-विरोध, राष्ट्र-विरोध इत्यादि जैसी भावनाओँ की हार है. इसे आप केरल के उदाहरण से बेहतर समझेंगे.

4. केरल में वाम को अपेक्षाकृत हिंदूवादी पार्टी माना जाता है, वहां पर कांग्रेस अल्पसंख्यक कार्ड खेलती है. वहां की करीब 45% अल्पसंख्यक वोटर कांग्रेस के एक तरह से भक्त हैं. मेरा अनुमान था कि BJP के उभरने से वाम कमजोर होगा और कांग्रेस जीत सकती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कुछ लोग कहेंगे कि केरल में सबको एक-एक बार मौका मिलता है. दरअसल वो मिथक तमिलनाडु और पंजाब में भी था कभी, जो ध्वस्त होता गया है. केरल में इस बार बीजेपी एक फैक्टर थी जिससे वाम को क्षति हो सकती थी.

5. तमिलनाडु में जयललिता भले ही पुरानी भ्रष्ट हो, लेकिन राष्ट्रवादी भरपूर है. उनका स्टैंड कई मामलों पर साफ रहा है. धर्मांतरण से लेकर राम-मंदिर,हिंदी, केंद्र-राज्य संबंध इत्यादि मामलों पर वो राष्ट्र की मूल-चेतना के साथ खड़ी रही है. दूसरी तरफ DMK ऐस दल है जिसका मूल स्वर वहीं है जो भारत तेरे टुकड़ें होंगे वालों का होता है. सन् 1966 तक वो ऐसी ही भाषा बोलती थी जब तक कि चुनावी कानून में...

पिछले तिमाही में देश के विमर्श में वही मुद्दे आए जो कांग्रेस और वामदलों ने आगे बढ़ाए. हैदराबाद युनिवर्सिटी, जेएनयू, भारत माता आदि. लेकिन 5 राज्‍यों के चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि कांग्रेस हाशिए के भी हाशिए पर चली गई है. वाम दल के लिए तय हो गया है कि अपने गढ़ बंगाल में उसकी सियासत जाती रही. इसका मतलब क्या है?

1. इस जीत की अलग-अलग व्याख्याएं होंगी. बीजेपी को ये देखना चाहिए कि स्थानीय नेतृत्व को खड़ा कर ज्यादा फायदा होता है. पार्टी को शायद कुछ विधायक बंगाल में भी मिल जाए, एकाध केरल में भी. वो बोनस है.

2. कांग्रेस मुक्त भारत तेजी से हो रहा है. इसका श्रेय बीजेपी से अधिक राहुल गांधी को जाना चाहिए. क्योंकि जीत का श्रेय भी वहीं ले लेते हैं.

3. सबसे बड़ी बात ये कि ये चुनाव अल्पसंख्यक तुष्टीकरण,हिंदू-विरोध, राष्ट्र-विरोध इत्यादि जैसी भावनाओँ की हार है. इसे आप केरल के उदाहरण से बेहतर समझेंगे.

4. केरल में वाम को अपेक्षाकृत हिंदूवादी पार्टी माना जाता है, वहां पर कांग्रेस अल्पसंख्यक कार्ड खेलती है. वहां की करीब 45% अल्पसंख्यक वोटर कांग्रेस के एक तरह से भक्त हैं. मेरा अनुमान था कि BJP के उभरने से वाम कमजोर होगा और कांग्रेस जीत सकती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कुछ लोग कहेंगे कि केरल में सबको एक-एक बार मौका मिलता है. दरअसल वो मिथक तमिलनाडु और पंजाब में भी था कभी, जो ध्वस्त होता गया है. केरल में इस बार बीजेपी एक फैक्टर थी जिससे वाम को क्षति हो सकती थी.

5. तमिलनाडु में जयललिता भले ही पुरानी भ्रष्ट हो, लेकिन राष्ट्रवादी भरपूर है. उनका स्टैंड कई मामलों पर साफ रहा है. धर्मांतरण से लेकर राम-मंदिर,हिंदी, केंद्र-राज्य संबंध इत्यादि मामलों पर वो राष्ट्र की मूल-चेतना के साथ खड़ी रही है. दूसरी तरफ DMK ऐस दल है जिसका मूल स्वर वहीं है जो भारत तेरे टुकड़ें होंगे वालों का होता है. सन् 1966 तक वो ऐसी ही भाषा बोलती थी जब तक कि चुनावी कानून में इंदिरा गांधी के समय परिवर्तन नहीं किया गया.

6. बंगाल में वाम की जो गति हुई, वो ठीक ही है. नहीं तो जादवपुर में कुछ और प्रोफेसर और बालक 'भारत तेरे टुकड़ें होंगे' गाते फिरते. ममता अपने आगामी कार्यकालों में इस खर-पतवाड़ को चुन-चुनकर निकाल फेंकेगी. ऐसी उम्मीद लगाई जा सकती है.

7. असम की कहानी बहु-प्रतीक्षित थी. असम को अगला कश्मीर नहीं बनाया जा सकता. कांग्रेस वहां कुछ अपनी करनी से और कुछ एंटी-इंकबेंसी से हारी है. बीजेपी को जो भी मिला है, वह हद से हद बांग्लादेसी घुसपैठियों का रियेक्शन है.

8. कुल मिलाकर मेरे जैसा औसत आदमी इस नतीजे से संतुष्ट है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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